स्वच्छता: प्रकृति के प्रति सच्ची श्रद्घा( घुमक्कड़ की डायरी -6) -10.04.2025
शाम की सुनहरी धूप में अल्मेरे की नदी के किनारे टहलते हुए मन शांत हो गया। नदी का जल स्वच्छ था, जिसमें सूर्यास्त की आभा ऐसे दिख रही थी मानो प्रकृति ने स्वयं सोने की चादर बिछा दी हो। यहाँ के लोगों के लिए यह नदी सिर्फ पानी का स्रोत है, लेकिन उनकी ज़िम्मेदारी का अहसास देखकर हृदय प्रशंसा से भर उठा। वहीं, हम भारतीय नदियों को 'माता' कहते हैं, पर उनकी अवहेलना करने में संकोच नहीं करते। यह विरोधाभास क्यों? भारत में नदियों का आध्यात्मिक महत्व असंदिग्ध है। गंगा, यमुना, या सरस्वती—सभी को पूज्य माना जाता है। लेकिन पूजा के फूल, प्लास्टिक, और औद्योगिक कचरे से ये माताएँ दम तोड़ रही हैं। अल्मेरे में नदी के प्रति सम्मान धार्मिक नहीं, व्यावहारिक है। यहाँ के निवासी इसे जीवन का आधार मानकर स्वच्छ रखते हैं। शायद यही कारण है कि विदेशों में रहने वाले भारतीय सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा नहीं फैलाते, लेकिन स्वदेश लौटते ही उनकी संवेदनशीलता लुप्त हो जाती है। क्या यह केवल सुविधाओं की कमी है, या फिर हमारी मानसिकता में जड़ जमाए आलस्य? सच तो यह है कि स्वच्छ...