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Showing posts from April, 2025

स्वच्छता: प्रकृति के प्रति सच्ची श्रद्घा( घुमक्कड़ की डायरी -6) -10.04.2025

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  शाम की सुनहरी धूप में अल्मेरे की नदी के किनारे टहलते हुए मन शांत हो गया। नदी का जल स्वच्छ था, जिसमें सूर्यास्त की आभा ऐसे दिख रही थी मानो प्रकृति ने स्वयं सोने की चादर बिछा दी हो। यहाँ के लोगों के लिए यह नदी सिर्फ पानी का स्रोत है, लेकिन उनकी ज़िम्मेदारी का अहसास देखकर हृदय प्रशंसा से भर उठा। वहीं, हम भारतीय नदियों को 'माता' कहते हैं, पर उनकी अवहेलना करने में संकोच नहीं करते। यह विरोधाभास क्यों?   भारत में नदियों का आध्यात्मिक महत्व असंदिग्ध है। गंगा, यमुना, या सरस्वती—सभी को पूज्य माना जाता है। लेकिन पूजा के फूल, प्लास्टिक, और औद्योगिक कचरे से ये माताएँ दम तोड़ रही हैं। अल्मेरे में नदी के प्रति सम्मान धार्मिक नहीं, व्यावहारिक है। यहाँ के निवासी इसे जीवन का आधार मानकर स्वच्छ रखते हैं। शायद यही कारण है कि विदेशों में रहने वाले भारतीय सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा नहीं फैलाते, लेकिन स्वदेश लौटते ही उनकी संवेदनशीलता लुप्त हो जाती है। क्या यह केवल सुविधाओं की कमी है, या फिर हमारी मानसिकता में जड़ जमाए आलस्य?   सच तो यह है कि स्वच्छ...

Traveling is my destiny. घुमक्कड़ की डायरी-5(Blossoms street, Almere, Netherlands). 09.04.2025

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घुमक्कड़ की डायरी-5 अल्मेरे की ब्लॉसम्स स्ट्रीट की सैर: हर कदम पर बिखरी मधुर अनुभूतियाँ.   अल्मेरे की ब्लॉसम्स स्ट्रीट का मोहक नज़ारा हम जब से अल्मेरे , नीदरलैंड आए हैं तब से आकर्षित कर रहा था, और आखिरकार आज हमने वहाँ जाने का निश्चय किया। घर से दो रास्ते थे—एक 10 मिनट की बस यात्रा, और दूसरा 50 मिनट की पैदल सैर। हमने जल्दबाज़ी को पीछे छोड़ते हुए धीमी गति वाले रास्ते को चुना। यह निर्णय एक साधारण यात्रा को अद्भुत अनुभूतियों के गुलदस्ते में बदलने वाला था।   यह पैदल यात्रा धीरे-धीरे शहर की भागती हुई ज़िंदगी से एक छोटा-सा विद्रोह बन गई। शुरुआत में शहर का शोर धीरे-धीरे पीछे रह गया, और उसकी जगह हमारे कदमों की मधुर थाप ने ले ली। रास्ते में अल्मेरे की जलधाराएँ हमारी साथी बन गईं—चमकती नहरें, आकाश को अपने आँचल में समेटे बहती एक शांत नदी, और काई से ढके पत्थरों के नीचे मुस्कुराते छोटे-छोटे नाले। हर पानी का रास्ता यहाँ की प्रकृति और शहरी जीवन के सामंजस्य की कहानी कह रहा था।   लेकिन इस यात्रा के असली जादूगर थे पक्षी। हंसों का एक जत्था हमसे मिला, जो राजसी अंदाज़...

Morning walk in Almere, Netherlands. घुमक्कड़ की डायरी/08.04.2025

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  प्रकृति की गोद में एक सुबह: अल्मेरे में मॉर्निंग वॉक का अनुभव आज सुबह जब नींद खुली, तो मन में एक ताज़गी भरा विचार आया—"क्यों न अल्मेरे की सुबह को प्रकृति के साथ जिया जाए?" यही सोचकर मैं अपने दैनिक लक्ष्य, यानी 6,000 क़दम चलने के संकल्प के साथ मॉर्निंग वॉक पर निकल पड़ा। घर से बाहर कदम रखते ही सामने बहती हुई नदी ने मुझे अपनी ओर खींच लिया। नदी के किनारे-किनारे चलते हुए लगा, जैसे मैं किसी चित्रकार की कैनवास पर बनी तस्वीर का हिस्सा बन गया हूँ।   नदी का पानी इतना स्वच्छ और नीला था कि उसमें आसमान का प्रतिबिंब साफ़ दिख रहा था। किनारे पर खड़ी नावें (क्रूज़) और पानी पर तैरती बत्तखों, हंसों व अन्य पक्षियों का समूह मन को शांति दे रहा था। बत्तखों की क्वैक-क्वैक और हवा में लहराते पंखों की आवाज़ें प्रकृति का संगीत बन रही थीं। यह दृश्य देखकर लगा, जैसे जलचर और थलचर पक्षी आपस में कोई मधुर संवाद कर रहे हों।   आगे बढ़ते हुए रास्ते में एक पशुशाला नज़र आई। वहाँ घोड़े, कुत्ते, बिल्लियाँ, और मुर्गियाँ आपस में घुलमिल कर खेल रहे थे। एक घो...

घुमक्कड़ की डायरी-3 /07.04.2025. Almere [Netherlands]

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घुमक्कड़ की डायरी.  अल्मेरे ब्यूटेन की रंगीन दुनिया में एक दिन. हम एम्सटर्डम से करीब 30 किलोमीटर दूर *अल्मेरे* शहर के उपनगर *अल्मेरे ब्यूटेन* की ओर निकले। यह शहर फ्लेवोलैंड प्रांत का हिस्सा है, जो समुद्र से जीते गए ज़मीन (पोल्डर) पर बसा है। रास्ते भर की खूबसूरती देखते ही बनती थी—चेरी ब्लॉसम के गुलाबी फूलों वाले पेड़, पीले डैफोडिल्स के झुरमुट, और नीले हायसिंथ के झाड़। मानो प्रकृति ने अपने रंगों की पैलेट बिखेर दी हो! हवा में फूलों की मदहोश कर देने वाली खुशबू और ठंडी हवा के झोंकों ने यात्रा को और भी सुहावना बना दिया। बाज़ार की ओर कदम: सांस्कृतिक मेलजोल की महक   अल्मेरे ब्यूटेन का मार्केट एक जीवंत और व्यस्त जगह थी, जहाँ दुनिया भर के स्वाद और रंग एक साथ मिलते हैं। बाज़ार के प्रवेश द्वार पर ही *डच पनीर*के स्टॉल नज़र आए—गौडा और एडम की विभिन्न वेराइटीज़, जिनकी खुशबू दूर से ही नाक को चौंका रही थी। वहीं पास में ताज़े स्ट्रॉबेरी और एस्पैरागस के ढेर लगे थे, जो डच खेतों की उपज का प्रमाण थे।     इंडियन स्टोर: स्वदेश का स्वाद ...

घुमक्कड़ की डायरी -2 / 05.04.2025. Amsterdam[Netherlands]

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घुमक्कड़ की डायरी.  ब्लॉसम्स पार्क, एम्सटर्डम की एक यादगार यात्रा* कई दिनों से धूप निकली हुई है औऱ यहां नीदरलैंड्स में यह एक खुशखबरी है. खुली धूप और ठंडी हवा के साथ मेरा कदम चेरी ब्लॉसम्स पार्क की ओर बढ़ा। एम्सटर्डम के इस कोने में जाते ही लगा, मानो प्रकृति ने गुलाबी चादर ओढ़ ली हो। हर तरफ साकुरा के पेड़ों की छतरी नीचे लोग बिखरे थे—कुछ पिकनिक मनाते, कुछ फोटो खींचते, तो कुछ बस ख़ामोशी से फूलों का नृत्य देख रहे थे। रास्ते भीड़ से भरे थे, पर हर चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। मानो यह पार्क सबके लिए वक्त को रोकने का बहाना हो।   जापानी संस्कृति की झलक यहाँ हर कदम पर दिखी। बांस के स्टॉल्स पर ताकोयाकी, सुशी, और मोची की खुशबू हवा में घुल रही थी। एक स्टॉल से मैचा टी की चुस्की लेते हुए मैंने महसूस किया—यह सिर्फ़ बाहर का नज़ारा नहीं, बल्कि दिल से जुड़ा उत्सव था। कलाकारों ने यूकेयूली की मधुर धुनें बजाईं, तो कहीं इकाइबाना (फूलों की सजावट) की कार्यशालाएँ चल रही थीं। बच्चे कागज़ के क्रेन बनाने में मशगूल थे, और बुजुर्ग जोड़े हाथों में हाथ डाले चल रहे थे।   ...