आपातकाल 1975 - एक चश्मदीद की स्मृति《राम मोहन राय | 25 जून 2025》
《राम मोहन राय | 25 जून 2025》
●कल एक सामाजिक कार्यक्रम में मैं उस माहौल का हिस्सा था, जो भावनाओं और संवेदनाओं से भरा था। लेकिन तभी एक नेता ने मंच से 25 जून 1975 का ज़िक्र छेड़ दिया, जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। उनका यह कहना कि उस दिन नागरिक अधिकारों का दमन हुआ, मुझे खटका। मुझे लगा, ऐसे पवित्र अवसरों का राजनीतिकरण क्यों? क्षोभ के साथ मैं वहाँ से उठकर चला आया।
●मैं उस आपातकाल का चश्मदीद हूँ। एक छात्र और राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में दिल्ली में उन दिनों को मैंने जिया है। आज, 50 साल बाद, उस दौर की स्मृतियाँ ताज़ा हैं। आइए, उस इतिहास की कुछ परतें खोलें और समझें कि आपातकाल केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक जटिल घटनाक्रम था।
● 1975 का माहौल: अराजकता और चुनौतियाँ:
उन दिनों देश अस्थिरता के दौर से गुज़र रहा था। इलाहाबाद हाई कोर्ट का इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला, जयप्रकाश नारायण (जेपी) का रामलीला मैदान में फौज को बगावत की धमकी देना, और देशव्यापी अराजकता ने कानून-व्यवस्था को चरमरा दिया था। कुछ सत्ता-लोभी ताकतें संवैधानिक सरकार को उखाड़ फेंकना चाहती थीं। दूसरी ओर, 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी और युद्ध में पाकिस्तान की हार ने इंदिरा जी को वैश्विक मंच पर स्थापित कर दिया था। लेकिन अमेरिका, चीन और पाकिस्तान की घेराबंदी भारत की संप्रभुता के लिए खतरा थी। गोपनीय सूचनाएँ थीं कि देश-विदेश में साज़िशें रची जा रही थीं।
ऐसे में, इंदिरा जी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लागू किया। यह निर्णय कठिन था, लेकिन उनके लिए देश की एकता और स्थिरता सर्वोपरि थी।
●आपातकाल: अनुशासन या दमन?
आपातकाल ने देश को अनुशासित किया। रेलवे, यातायात, सब कुछ व्यवस्थित हो गया। इंदिरा जी के 20-सूत्री कार्यक्रम ने मज़दूरों, किसानों और युवाओं के लिए कई कल्याणकारी कदम उठाए। बंधुआ मज़दूरी समाप्त हुई, नए कानून बने। लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। लगभग 24 अतिवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा, ज़्यादातर वामपंथी। आंदोलनकारी नेताओं को जेल हुई, हालाँकि एक संगठन के 70% नेताओं ने माफी माँगकर जेल से छुटकारा पा लिया।
●संजय गांधी और पाँच-सूत्री भूल
आपातकाल की सबसे बड़ी भूल थी संजय गांधी को मोहरा बनाना। उनके पाँच-सूत्री कार्यक्रम ने अराजकता फैलाई। सफाई के नाम पर बस्तियाँ उजाड़ी गईं, जबरन नसबंदी ने ग़रीबों, मज़दूरों और अल्पसंख्यकों को त्रस्त कर दिया। यह दौर एक गैर-संवैधानिक सत्ता केंद्र के हाथों में चला गया।
●लोकतंत्र की जीत:
फिर भी, इंदिरा जी ने आपातकाल ख़त्म कर 1977 में निष्पक्ष चुनाव कराए। हार स्वीकार की और विपक्ष में बैठीं। यह उनकी लोकतांत्रिक मर्यादा थी। जनता पार्टी की सरकार तीन साल में बिखर गई। इंदिरा जी को गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार किया गया, उनकी लोकसभा सदस्यता छीनी गई। लेकिन 1980 में जनता ने उन्हें फिर प्रचंड बहुमत दिया। उनकी कूटनीति ने पड़ोसी देशों में लोकतंत्र को बढ़ावा दिया, पर साज़िशें थमी नहीं। बांग्लादेश में शेख मुजीब, श्रीलंका में भंडारनायके, और पाकिस्तान में भुट्टो की हत्याएँ इसकी गवाह हैं। आखिरकार, इंदिरा जी भी साज़िश का शिकार हुईं और शहीद हो गईं।
●आज का सवाल
50 साल बाद भी संविधान का वह अनुच्छेद, जिसके तहत आपातकाल लगा, जस का तस है। क्या हम उस दौर को केवल काले-सफेद चश्मे से देख सकते हैं? आपातकाल को समझने के लिए उस समय की साज़िशें, चुनौतियाँ और वैश्विक परिदृश्य को समझना ज़रूरी है।
राम मोहन राय
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