पैट्रिस ललूमबा: कांगो के स्वतंत्रता संग्राम का अमिट दीप

पैट्रिस लूलंबा: कांगो के स्वतंत्रता संग्राम का अमिट दीप
(राम मोहन राय, एडवोकेट, पानीपत)
मानव इतिहास ऐसे असंख्य स्वर्णिम पृष्ठों से भरा पड़ा है जहाँ किसी एक व्यक्ति की आवाज़ ने पूरी एक कौम को जगा दिया, उसकी चेतना को दिशा दी और संघर्ष की आग में उसे तपाकर स्वतंत्रता के अलख से आलोकित कर दिया। ऐसे ही इतिहास पुरुष थे – पैट्रिस एमरी लुंबा।
  जिनकी जन्मतिथि 2 जुलाई 1925 थी, स्थान: बेल्जियन कांगो का एक सामान्य-सा गाँव – ओनालुआ। एक साधारण किसान परिवार के पुत्र – फ्राँस्वा टोलेंगा ओटेटशिमा और जूलियन वामाटो लोमेंजा की संतान। टेटेला जनजाति से संबंध रखने वाला यह बालक जन्म से ही अद्वितीय था। प्रारंभ में जिनका नाम था – एलियास ओकित’असोम्बो, जिसका अर्थ टेटेला भाषा में था – “शापितों का उत्तराधिकारी”। किंतु उन्होंने अपनी चेतना के प्रकाश से अपने भाग्य का नवलेखन किया और फ्रांसीसी नाम “पैट्रिस” को अपनाया, जैसा उस समय की औपनिवेशिक परंपरा थी।
   औपनिवेशिक बेल्जियन शासन में शिक्षा सीमित थी। मिशनरी स्कूलों के माध्यम से ही थोड़ा बहुत शिक्षण सुलभ था। लुंबा ने इसी वातावरण में शिक्षा प्राप्त की। वे शुरू से ही मेधावी थे। पुस्तकें उनके लिए केवल शब्दों का संग्रह नहीं थीं – वे उनके आत्मा के दर्पण थे। वॉल्टेयर, रूसो, मोलिएर और विक्टर ह्यूगो की रचनाओं ने उनके भीतर एक विचारशील, प्रश्नाकुल और न्यायप्रिय आत्मा को जन्म दिया।  उन्होंने विभिन्न नौकरियों में कार्य किया – किंडु में नर्सिंग सहायक, स्टैनलीविल में डाक क्लर्क, लियोपोल्डविल में लेखाकार। किंतु उनके शब्दों में विद्रोह का स्वर था। वे कविताएँ लिखते, लेखों में औपनिवेशिक सत्ता की नीतियों की आलोचना करते और एक स्वतंत्र कांगो की परिकल्पना को शब्दों में गढ़ते।
    1950 के दशक में उन्होंने बेल्जियन लिबरल पार्टी के साथ जुड़कर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। 1955 में ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष बने। उन पर डाक विभाग से धन गबन का आरोप भी लगा – और एक वर्ष की सजा भी हुई। किंतु यह अनुभव उनके विचारों को और धारदार बना गया।
   1958 में मूवमेंट नेशनल कॉन्गोलेज़ (MNC) की स्थापना की। यह दल एकजुट कांगो का स्वप्न था – जातीयता से परे, क्षेत्रवाद से ऊपर। उसी वर्ष वे घाना के पैन-अफ्रीकन सम्मेलन में भाग लेने पहुँचे, जहाँ क्वामे नक्रुमाह से भेंट ने उनकी विचारधारा को पैन-अफ्रीकन चेतना में बदल दिया।
     ब्रसेल्स में राउंड टेबल सम्मेलन में लुंबा ने बेल्जियम की सत्ता के सामने निर्भीकता से स्वतंत्रता की मांग रखी। परिणामस्वरूप, 30 जून 1960 को कांगो स्वतंत्र हुआ।
   लुंबा – देश के पहले प्रधानमंत्री बने। राष्ट्रपति बने जोसेफ कसावुबु। लेकिन यह स्वतंत्रता तुरंत ही संघर्ष और संकट के गर्त में फंस गई। सेना में विद्रोह हुआ, कटंगा ने विद्रोह कर दिया। लुंबा ने संयुक्त राष्ट्र से सहायता मांगी, परंतु जब अपेक्षित समर्थन नहीं मिला, तो उन्होंने सोवियत संघ से समर्थन का रुख किया।
   यह कदम शीत युद्ध की राजनीति में अमेरिका और बेल्जियम को अखर गया। 5 सितंबर 1960 को राष्ट्रपति ने उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया। लुंबा ने इसे अस्वीकार किया। सत्ता संघर्ष चरम पर था।
कर्नल मोबुतु ने सैन्य तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथ में ली। लुंबा को गिरफ्तार कर लिया गया। 17 जनवरी 1961 को कटंगा में बेल्जियन भाड़े के सैनिकों और अलगाववादियों ने उन्हें दो साथियों के साथ मौत के घाट उतार दिया। शवों को सल्फ्यूरिक एसिड में गला दिया गया – मानो वे इतिहास से उनके अस्तित्व को मिटा देना चाहते थे।
पर क्या कभी विचार मिटते हैं? क्या आत्माएं मार दी जाती हैं?
   2002 में बेल्जियम सरकार ने उनकी हत्या में “नैतिक जिम्मेदारी” स्वीकार की। 2022 में उनका एक दांत – एकमात्र शेष अवशेष – उनके परिवार को लौटाया गया। यह दांत आज पूरे अफ्रीका की चेतना का नन्हा, परंतु अटूट स्मारक है।
   वे केवल कांगो के नहीं, समस्त अफ्रीका के थे। उनकी आवाज़ गुलामी की जंजीरों को तोड़ने वाली थी। वे पैन-अफ्रीकन विचारधारा के प्रतीक बने। न्याय, समानता और आत्मनिर्भरता उनके विचारों के मूल में था।
   डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में उन्हें "राष्ट्रीय नायक" का दर्जा प्राप्त है। उनके नाम पर स्मारक, सड़कें, डाक टिकट और आत्माओं की चेतना आज भी जीवित हैं।
    पैट्रिस लुंबा – एक नाम नहीं, एक चेतना। वे हमें सिखाते हैं कि स्वतंत्रता केवल एक तिथि नहीं होती, वह एक सतत् संघर्ष है। उनके जीवन का प्रत्येक पल यह कहता है – “जो अन्याय के विरुद्ध खड़ा होता है, वही इतिहास रचता है।”
   उनकी शहादत, उनके विचार और उनके संघर्ष आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देते रहेंगे।
  स्वतंत्रता की इस अमर ज्योति को शत् शत् नमन।

✍️ राम मोहन राय
16.07.2025

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