गेटवे ऑफ इंडिया: एक ऐतिहासिक यात्रा का संस्मरण

गेटवे ऑफ इंडिया: एक ऐतिहासिक यात्रा का संस्मरण
  मुंबई, यह शहर न केवल भारत का आर्थिक केंद्र है, बल्कि इतिहास और संस्कृति का एक जीवंत ताना-बाना भी है। आज, 28 जुलाई 2025 की सुबह, मैं और मेरी पत्नी कृष्णा कांता और बहन कुतुब एक ऐसी यात्रा पर निकले, जिसका मकसद केवल गेटवे ऑफ इंडिया या ताजमहल होटल की भव्यता देखना नहीं था, बल्कि उस स्थान को महसूस करना था, जहां से भारत के इतिहास की कई महत्वपूर्ण कहानियां शुरू और खत्म हुईं।
  सुबह से ही मुंबई में रिमझिम बारिश का आलम था। बारिश का मौसम मुंबई की पहचान है, और इस शहर की फिजा में कुछ ऐसा जादू है कि बूंदों की सरसराहट के बीच भी हर कोना जीवंत लगता है। बारिश की वजह से हमारा मन थोड़ा डगमगाया, लेकिन कुतुब का जोश और हौसला ऐसा था कि उसने मुझे इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए प्रेरित कर दिया। उसने कहा, "बारिश तो मुंबई की शान है, और गेटवे को बारिश में देखने का मजा ही कुछ और होगा।" उसकी बात मानकर हम निकल पड़े।
  जब हम गेटवे ऑफ इंडिया पहुंचे, तो वहां का नजारा देखते ही बनता था। समुद्र के किनारे खड़ा यह विशाल स्मारक अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के साथ हमें जैसे समय के उस दौर में ले गया, जब 1911 में इसे ब्रिटिश राज के स्वागत में बनाया गया था। यह वही स्थान है, जहां से अंग्रेज भारत आए और 200 साल तक राज करने के बाद 1947 में यहीं से विदा हुए। गेटवे के मेहराबदार ढांचे को देखते हुए मन में एक अजीब-सी भावना उमड़ी। यह स्मारक न केवल पत्थर और सीमेंट का ढांचा है, बल्कि भारत की गुलामी और आजादी की कहानी का मूक साक्षी भी है।
  हमने गेटवे के सामने खड़े होकर समुद्र की लहरों को निहारा। बारिश की बूंदें हमारे चेहरों पर पड़ रही थीं, और हल्की ठंडी हवा मन को सुकून दे रही थी। आसपास पर्यटकों की भीड़ थी, कुछ छतरियां लिए, कुछ बारिश में भीगते हुए। बच्चे, परिवार, और विदेशी सैलानी, सभी इस जगह की रौनक का हिस्सा थे। लेकिन मेरे लिए यह सिर्फ एक पर्यटक स्थल नहीं था। यह वह जगह थी, जहां से 1893 में स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म संसद में भाग लेने के लिए शिकागो रवाना हुए थे। उनकी यात्रा ने भारत की आध्यात्मिक धरोहर को विश्व मंच पर स्थापित किया था। यह सोचकर मन में गर्व की अनुभूति हुई कि हम उसी धरती पर खड़े हैं, जहां से भारत ने दुनिया को अपनी बौद्धिक और आध्यात्मिक ताकत दिखाई थी।
   कुतुब बहन ने मुझसे कहा, "देखो, यह जगह कितनी जीवंत है। बारिश में भी लोग यहां रुक रहे हैं, फोटो खींच रहे हैं, और इतिहास को अपने तरीके से जी रहे हैं।" हमने भी कुछ तस्वीरें लीं, लेकिन सच कहूं तो उस पल को कैमरे में कैद करना आसान नहीं था। गेटवे के सामने खड़े होकर, बारिश की बूंदों के बीच, हमने न केवल उस स्मारक को देखा, बल्कि उसकी कहानियों को महसूस किया। पास ही ताजमहल होटल की भव्य इमारत खड़ी थी, जो अपने आप में एक और कहानी कह रही थी—लक्जरी, इतिहास और 2008 के उस दुखद हमले की, जिसने इस शहर के जज्बे को और मजबूत किया।
  हमने वहां कुछ देर रुककर चाय की चुस्कियां ली। बारिश अब हल्की हो चुकी थी, लेकिन आसमान में बादल अभी भी छाए थे। समुद्र की लहरें गेटवे के किनारे से टकरा रही थीं, और ऐसा लग रहा था जैसे वे भी इस स्थान की कहानियां सुना रही हों। हमने आपस में बात की कि कैसे यह जगह भारत के अतीत और वर्तमान को जोड़ती है। अंग्रेजों के आने और जाने से लेकर स्वामी विवेकानंद के विश्व मंच पर भारत का परचम लहराने तक, यह स्मारक हर भारतीय के लिए गर्व का प्रतीक है।
   इस यात्रा ने हमें न केवल मुंबई की बारिश और गेटवे की भव्यता का आनंद दिया, बल्कि इतिहास के पन्नों को फिर से जीने का मौका भी दिया। कुतुब का हौसला और यह रिमझिम बारिश इस दिन को और यादगार बना गए। गेटवे ऑफ इंडिया अब मेरे लिए सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है, जहां इतिहास की धड़कनें आज भी सुनाई देती हैं। यह यात्रा मेरे दिल में हमेशा के लिए बस गई है।
Ram Mohan Rai, 
Mumbai. 25.07.2025

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