A new era of beginning of India-China relations- the need of the hour

■भारत-चीन संबंध: शांति, सहयोग और समृद्धि की ओर एक कदम
   ●प्रधानमंत्री की प्रस्तावित चीन यात्रा और इसका महत्व :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा भारत-चीन संबंधों के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। यह न केवल दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को बढ़ाएगी, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी एक सकारात्मक संदेश देगी। भारत और चीन, दो प्राचीन सभ्यताएं और विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले पड़ोसी देश, भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और सामरिक दृष्टिकोण से एक-दूसरे के पूरक हैं। पड़ोसियों को बदला नहीं जा सकता, इसलिए मैत्रीपूर्ण संबंध न केवल अपरिहार्य हैं, बल्कि वैश्विक परिस्थितियों में अनिवार्य भी हैं।

●वैश्विक परिदृश्य और भारत-चीन-रूस त्रिकोण:
     वर्तमान वैश्विक मंच पर भारत, चीन और रूस के बीच नए समीकरण उभर रहे हैं। यह त्रिकोणीय सहयोग एशिया को सशक्त बनाने और विश्व शांति की गारंटी बन सकता है। अमेरिका की कमजोर आर्थिक स्थिति और उसकी मनमानी नीतियों, जैसे टैरिफ वृद्धि और दबाव की रणनीति, ने कई देशों को वैकल्पिक साझेदारियों की ओर प्रेरित किया है। ऐसे में भारत और चीन का एकजुट होना क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक आर्थिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है। हाल ही में ईरान द्वारा अमेरिकी-इजरायल गठजोड़ के खिलाफ दिखाई गई वीरतापूर्वक एकजुटता भी एशिया की एकता को और मजबूत करती है।

●गरीबी उन्मूलन में चीन से सीख :
चीन ने पिछले कुछ दशकों में गरीबी उन्मूलन में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, जिसने लाखों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया। भारत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने की योजना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है। चीन के ग्रामीण विकास, औद्योगीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव से भारत को सीखने की जरूरत है। दोनों देशों के बीच ज्ञान और अनुभव का आदान-प्रदान न केवल भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाएगा, बल्कि आपसी विश्वास को भी बढ़ाएगा।
●ऐतिहासिक विवादों से आगे बढ़ना:
कुछ लोग भारत-चीन संबंधों को 1962 के युद्ध के दृष्टिकोण से देखते हैं, जो एक सीमित और पुराना नजरिया है। भारत ने 200 वर्षों के औपनिवेशिक शासन को पीछे छोड़कर वैश्विक मंच पर अपनी जगह बनाई है। उसी तरह, भारत और चीन को 1962 के युद्ध को भुलाकर भविष्य की ओर बढ़ना होगा। सीमा विवाद और अन्य मतभेदों को बातचीत के माध्यम से हल करना आवश्यक है। स्वर्गीय निर्मला देशपांडे जी का कथन, “गोली नहीं, बोली चाहिए; युद्ध नहीं, बुद्ध चाहिए,” आज भी प्रासंगिक है और संबंधों को नई दिशा दे सकता है।
●जनता के स्तर पर मैत्री:  
   निर्मला देशपांडे जी द्वारा स्थापित ‘एसोसिएशन ऑफ पीपल्स ऑफ एशिया’ ने जनता के स्तर पर भारत-चीन मैत्री को बढ़ावा देने का सराहनीय प्रयास किया। सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षिक सहयोग और व्यापारिक साझेदारियां दोनों देशों के लोगों को करीब ला सकती हैं। बौद्ध दर्शन, जो दोनों देशों की साझा विरासत है, शांति और करुणा का मार्ग दिखाता है। 
●गुरुदेव टैगोर की पुण्यतिथि और उनकी चीन यात्रा: 
आज गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि है, और उनकी चीन यात्रा की शताब्दी को दोनों देशों में व्यापक स्तर पर मनाया जा रहा है। उनकी यात्रा के दौरान दिए गए वक्तव्य का एक अंश इस प्रकार है:  
“हमारा लक्ष्य केवल भौतिक प्रगति नहीं, बल्कि मानवता की एकता और शांति की स्थापना है। भारत और चीन की सभ्यताएं विश्व को सहयोग और करुणा का संदेश दे सकती हैं।” 
यह संदेश आज भी प्रासंगिक है और दोनों देशों को एकजुट होने की प्रेरणा देता है।
   ●प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा दोनों देशों के बीच विश्वास, सहयोग और शांति की नींव को मजबूत करने का एक ऐतिहासिक अवसर है। यह यात्रा न केवल भारत-चीन संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी, बल्कि वैश्विक मंच पर एशिया की एकता और शक्ति को भी प्रदर्शित करेगी। बातचीत, सहयोग और आपसी सम्मान के माध्यम से भारत और चीन न केवल अपने हितों को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि विश्व शांति और समृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। जैसा कि कहा जाता है, “जब से जगे रे भाई, तब से सवेरा है।” यह सवेरा भारत-चीन मैत्री का एक नया अध्याय हो सकता है।
Ram Mohan Rai, 
Nityanutan Varta. 
07.08.2025

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