Morena's Immortal Martyr Pandit Ram Prasad Bismil Museum: An Unforgettable Travelogue/12.08.2025

 मुरैना के अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल संग्रहालय: एक अविस्मरणीय यात्रा वृतांत
      मैंने कभी सोचा नहीं था कि मध्य प्रदेश की धरती पर इतनी गहराई से इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां छिपी होंगी। अगस्त 2025 की एक धूप भरी दोपहर थी, जब मैं मुरैना से जौरा की ओर अपनी कार से यात्रा कर रहा था। सड़कें चंबल की घाटियों से गुजरती हुईं, हरे-भरे खेतों और पुरानी इमारतों के बीच से निकल रही थीं। अचानक, रेलवे रोड पर एक साइनबोर्ड ने मेरा ध्यान खींचा – "अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल संग्रहालय"। नाम सुनते ही मन में एक उत्सुकता जागी। राम प्रसाद बिस्मिल, वह क्रांतिकारी कवि और स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने काकोरी कांड में अपनी जान की बाजी लगा दी थी। मैंने कार रोकी और सोचा, क्यों ना इसमें घूम लिया जाए? यह निर्णय मेरी यात्रा का सबसे यादगार हिस्सा बन गया। यदि आप भी मुरैना क्षेत्र में हैं, तो इसे छोड़ना मत – यह न केवल इतिहास की किताबों को जीवंत करता है, बल्कि राष्ट्रभक्ति की एक नई लहर पैदा करता है।
  संग्रहालय रेलवे रोड पर स्थित है, पुलिस लाइन के पास, एमडीआर 2 पर। बाहर से देखने में यह एक साधारण भवन लगता है, लेकिन अंदर कदम रखते ही आपको लगता है कि आप समय की सुरंग से गुजर रहे हैं। प्रवेश द्वार पर ही एक भव्य मूर्ति आपका स्वागत करती है – एक वीर सैनिक की, जिसके हाथ में भारतीय तिरंगा लहरा रहा है। यह मूर्ति इतनी जीवंत है कि लगता है, सैनिक अभी बोल उठेगा और "भारत माता की जय" का उद्घोष करेगा। मैंने कुछ मिनट वहां रुककर उसकी आंखों में देखा – वे आंखें स्वतंत्रता की जंग की कहानियां कह रही थीं। संग्रहालय का नामकरण पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सम्मान में किया गया है, जो 1897 में जन्मे और 1927 में फांसी पर चढ़े थे। यहां आने पर पता चला कि यह संग्रहालय न केवल उनकी स्मृति को समर्पित है, बल्कि चंबल क्षेत्र के समृद्ध इतिहास को भी संजोए हुए है।
   अंदर घूमते हुए, मैंने देखा कि संग्रहालय को कई खंडों में बांटा गया है। सबसे पहले पुरातात्विक प्रदर्शनी क्षेत्र आता है, जहां अति प्राचीनतम मूर्तियां रखी गई हैं। ये मूर्तियां चंबल घाटी से खुदाई में मिली हैं – कुछ तो हजारों साल पुरानी, जैसे सिंधु घाटी सभ्यता की याद दिलाती हुईं। एक मूर्ति विशेष रूप से ध्यानाकर्षित करती है – एक योद्धा की, जो कांसे से बनी है और उसके चेहरे पर युद्ध की दृढ़ता झलकती है। पास ही हथियारों का संग्रह है: तलवारें, भाले, ढालें और बंदूकें, जो मध्यकालीन युग से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक की हैं। मैंने एक पुरानी राइफल को छुआ (बेशक, कांच के पीछे से), और सोचा कि यह कितने युद्धों की गवाह होगी। संग्रहालय के कर्मचारी ने बताया कि ये हथियार चंबल के डकैतों और क्रांतिकारियों से जुड़े हैं, जिनमें बिस्मिल जी का योगदान प्रमुख है।
   फिर आता है वह हिस्सा जो राम प्रसाद बिस्मिल की जीवन गाथा को समर्पित है। यहां उनकी तस्वीरें, कविताएं और पत्र प्रदर्शित हैं। एक दीवार पर उनकी प्रसिद्ध कविता "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" लिखी हुई है, जो पढ़ते ही रोंगटे खड़े कर देती है। संग्रहालय में एक छोटा सा ऑडियो-विजुअल रूम भी है, जहां काकोरी कांड की डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाती है। मैंने वहां बैठकर देखी – कैसे बिस्मिल जी ने ब्रिटिश ट्रेन लूटकर स्वतंत्रता आंदोलन को धन मुहैया कराया, और फिर फांसी पर चढ़ते हुए भी मुस्कुराते रहे। आसपास अन्य क्रांतिकारियों की यादें भी हैं, जैसे अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह। संग्रहालय को हाल ही में ई-संग्रहालय बनाने की योजना है, जहां सब कुछ डिजिटल रूप से उपलब्ध होगा – एक क्लिक पर पूरा इतिहास।
    घूमते-घूमते एक घंटे बीत गए, लेकिन लगा जैसे समय थम गया हो। बाहर निकलते हुए मैंने सोचा, यह जगह सिर्फ संग्रहालय नहीं, बल्कि एक जीवंत श्रद्धांजलि है उन शहीदों को जिन्होंने हमें आजादी दी। टिकट महज 25 रुपये का है, और खुलने का समय सुबह 10 से शाम 6 बजे तक। यदि आप परिवार के साथ हैं, तो बच्चों को जरूर ले जाएं – यह उन्हें इतिहास से जोड़ेगा। मुरैना से जौरा जाते हुए रुकना आसान है, और अगर आप चंबल की सैर पर हैं, तो यह एक जरूरी पड़ाव है। मैं तो कहूंगा, आप भी जरूर जाएं – यहां से लौटकर आपकी देशभक्ति और मजबूत हो जाएगी। मध्य प्रदेश की इस छिपी हुई धरोहर को देखना एक सच्चा अनुभव है!
राम मोहन राय, 
सुधांशु मुद्गल. 
Morana, MadhyaPrdesh. 

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