Visit of August Kranti Maidan ,Mumbai/25.07.2025

अगस्त क्रांति मैदान और तेजपाल हॉल: स्वतंत्रता संग्राम की स्मृतियों की एक जीवंत यात्रा 
   मुंबई की सैर मेरे लिए हमेशा से एक रोमांचक अनुभव रही है, लेकिन इस बार की यात्रा मेरे दिल में हमेशा के लिए बस गई। यह यात्रा थी अगस्त क्रांति मैदान और गोकुलदास तेजपाल हॉल की, दो ऐसे ऐतिहासिक स्थानों की, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को न केवल देखा, बल्कि उसे आकार भी दिया। इस यात्रा में मेरे साथी थे सामाजिक कार्यकर्ता जयंत दीवान, जिन्हें मैं "जीवंत विश्वकोश" कहना पसंद करूंगा। उनके 50 वर्षों के अनुभव और कहानियों ने इस यात्रा को और भी जीवंत बना दिया।

 अगस्त क्रांति मैदान: जहां गूंजा "करो या मरो" का नारा
जब हम ग्रांट रोड पश्चिम, दक्षिण मुंबई की ओर बढ़े, तो अगस्त क्रांति मैदान का दृश्य हमारे सामने था। पहले इसे  गोवालिया टैंक मैदान कहा जाता था, क्योंकि यहां गायों को नहलाया जाता था। मराठी में "गो" यानी गाय और "वाला" यानी मालिक—नाम सुनते ही पुराने मुंबई की तस्वीर आंखों के सामने आ जाती है। लेकिन यह मैदान केवल गायों की कहानी नहीं कहता। 8 अगस्त 1942 को यहीं महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल फूंका था। उनके शब्द, "हम या तो भारत को आज़ाद करेंगे या इस प्रयास में मर जाएंगे," आज भी इस मैदान की मिट्टी में गूंजते से लगते हैं।
  जयंत भाई ने हमें बताया कि अगले ही दिन, 9 अगस्त 1942 को, जब गांधीजी और अन्य कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, तब अरुणा आसफ अली ने इस मैदान पर तिरंगा फहराकर आंदोलन की लौ को बुझने नहीं दिया। मैं उस पल की कल्पना कर रहा था—एक युवा महिला, जिसने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और स्वतंत्रता की भावना को जीवित रखा। जयंत भाई ने अपनी आंखों में चमक के साथ कहा, "अरुणा जी को 'भारत छोड़ो आंदोलन की नायिका' यूं ही नहीं कहा जाता।". हमने भी पानीपत में अरुणा जी के मार्गदर्शन में साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए किए गए अपने कार्यों की कहानियां भी उन्हें सुनाईं.
  मैदान में खड़ा एक स्मारक स्तंभ उस दौर की क्रांतिकारी भावना को चुपके से बयां करता है। आज यह मैदान बच्चों के क्रिकेट, फुटबॉल और वॉलीबॉल के खेलों से गुलزار रहता है। स्कूली बच्चे, बुजुर्ग, और स्थानीय लोग इसे जीवंत बनाए रखते हैं। लेकिन जैसे ही मैंने उस स्मारक को देखा, मुझे लगा कि यह मिट्टी आज भी उन स्वतंत्रता सेनानियों के साहस को सहेजे हुए है।
   मैदान से कुछ ही कदम दूर, लगभग 250 मीटर की दूरी पर, गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज और हॉल की भव्य इमारत मेरे सामने थी। जयंत भाई ने मुस्कुराते हुए कहा, "यही वह जगह है जहां भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी गई।" 28 दिसंबर 1885 को यहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी। एलन ऑक्टेवियन ह्यूम, दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, और वोमेश चंद्र बनर्जी जैसे दिग्गजों ने मिलकर एक ऐसे संगठन को जन्म दिया, जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करेगा।
  हॉल का नामकरण गोकुलदास तेजपाल, एक परोपकारी व्यापारी के नाम पर हुआ, जिन्होंने इस भवन के लिए धन दिया। मैं हॉल के अंदर खड़ा था, और मेरे मन में उस पहले सत्र की तस्वीर उभर रही थी, जिसमें 72 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। यह वही जगह थी जहां से स्वराज और स्वदेशी जैसे विचारों ने जन्म लिया। जयंत भाई ने बताया कि यह हॉल उस समय के बौद्धिक और राजनीतिक विचारों का केंद्र था, और आज भी यह इतिहास की उन गूंजों को संजोए हुए है।
  इस यात्रा में जयंत भाई का साथ मेरे लिए किसी खजाने से कम नहीं था। उनके अनुभव, उनकी कहानियां, और उनका उत्साह स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को जीवंत बना देता था। उन्होंने न केवल हमें इन स्थानों तक पहुंचाया, बल्कि अपने सामाजिक कार्यों के जरिए यह भी दिखाया कि स्वतंत्रता केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और साहस का प्रतीक है। पानीपत में अरुणा आसफ अली के मार्गदर्शन में उनके काम ने मुझे यह एहसास दिलाया कि स्वतंत्रता संग्राम की भावना आज भी जीवित है—चाहे वह साम्प्रदायिक सद्भावना हो या सामाजिक सुधार।
    अगस्त क्रांति मैदान और तेजपाल हॉल की यह यात्रा मेरे लिए केवल एक भौगोलिक सैर नहीं थी, बल्कि इतिहास की उन गलियों में एक भावनात्मक सफर थी, जहां हर कदम पर साहस, एकता, और बलिदान की कहानियां बिखरी हुई थीं। मैदान का स्मारक और हॉल की दीवारें आज भी चुपके से उन क्रांतिकारियों की गाथा सुनाती हैं। जयंत भाई जैसे लोगों की बदौलत यह इतिहास न केवल संरक्षित है, बल्कि नई पीढ़ियों तक पहुंच रहा है।
  जैसे ही हमने मैदान और हॉल को अलविदा कहा, मेरे मन में एक विचार बार-बार गूंज रहा था—स्वतंत्रता सिर्फ आजादी का जश्न नहीं, बल्कि उस एकता और साहस का सम्मान है, जो हमें इन स्थानों की कहानियों से मिलता है। यह यात्रा मेरे लिए एक प्रेरणा बन गई, और मुझे यकीन है कि यह हर उस व्यक्ति को प्रेरित करेगी, जो इन ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन करेगा।
Ram Mohan Rai, 
Grant Road, Mumbai. 
25.07.2025

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