■नेपाल का सबक:बोया और काटा का सिद्धांत
■नेपाल का सबक:बोया और काटा का सिद्धांत
●भारतीय संस्कृति में एक प्राचीन मान्यता है कि 'जैसा बोओगे, वैसा काटोगे'। यह सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत जीवन पर लागू होता है, बल्कि राष्ट्रों और समाजों के निर्माण तथा विकास पर भी। हाल के वर्षों में हमने इसकी सच्चाई को अपने पड़ोसी देशों में साकार होते देखा है। कुछ दिनों पहले बांग्लादेश में हुई अशांति, उससे पहले पाकिस्तान और श्रीलंका में उथल-पुथल, और अब नेपाल में जारी संकट—ये सभी घटनाएं हमें यही सिखाती हैं कि हिंसा और नफरत के बीज से उगने वाला कोई भी पेड़ लंबे समय तक फलदायी नहीं रह सकता। प्रश्न उठता है: क्या बोया गया और क्या काटा जा रहा है? आइए, इस पर गहराई से विचार करें।
●पाकिस्तान का जन्म ही द्विराष्ट्र सिद्धांत पर आधारित था, जो हिंसा और नफरत की नींव पर खड़ा किया गया। सांप्रदायिक उन्माद को जिस तरह फैलाया गया और ध्रुवीकरण किया गया, उसकी परिणति हमें पाकिस्तान में मिली। बाद में, यही बीज बांग्लादेश में भी फूट पड़े। इतिहास हमें बताता है कि हिंसा पर आधारित कोई भी व्यवस्था स्थायी नहीं रह सकती। कारण स्पष्ट है: जब हम अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को केवल हिंसा की शिक्षा देते हैं, तो उनके पास समस्या समाधान का कोई अन्य हथियार नहीं बचता। थोड़ा सा आक्रोश या असंतोष होने पर वे हिंसा को ही एकमात्र साधन मान लेते हैं। परिणामस्वरूप, समाज में अराजकता फैल जाती है और व्यवस्था चरमरा जाती है।
●इसके विपरीत, भारत की आजादी का इतिहास एक अलग कहानी कहता है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमारा स्वतंत्रता संग्राम शांतिपूर्ण, अहिंसक और लोकतांत्रिक रहा। गांधीजी ने बार-बार दोहराया कि वे ऐसी आजादी को समर्थन नहीं देंगे जो हिंसा पर आधारित हो। चाहे हिंसा किसी भी रूप में भड़की हो, बापू ने उसका कभी साथ नहीं दिया। यही कारण है कि आज भारत में, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कितने भी अंतर्विरोध या विसंगतियां क्यों न हों, हम उन्हें लोकतांत्रिक ढंग से समझने और सुधारने की कोशिश करते हैं। हम हिंसा का सहारा नहीं लेते, बल्कि संवाद, बहस और चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से समस्याओं का हल निकालते हैं।
●इस संदर्भ में, वियतनाम के क्रांतिकारी नेता हो ची मिन्ह का एक उदाहरण विचारणीय है। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने देश में अहिंसा पर आधारित क्रांति क्यों नहीं की, तो उनका जवाब था: "हमारे पास महात्मा गांधी जैसा नेतृत्व नहीं था।" यह कथन हमें सोचने पर मजबूर करता है कि नेतृत्व की गुणवत्ता और मूल्य कितने महत्वपूर्ण होते हैं। गांधीजी जैसे नेता ने हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाया, जो आज भी हमारी राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा है।
●कई मित्र अक्सर कहते हैं कि जिस तरह की स्थितियां इन पड़ोसी देशों में बनीं, वैसी हमारे देश में भी बन सकती हैं। तो, क्या हम भी वही रास्ता अपनाएंगे? मैं नहीं मानता। हमारी परंपराएं, राष्ट्रीय आजादी के मूल्य और अहिंसक सिद्धांत हमें कभी ऐसी हिंसक राह पर प्रेरित नहीं करेंगे। भारत का इतिहास हमें सिखाता है कि स्थायी परिवर्तन केवल शांति और लोकतंत्र से आता है, न कि हिंसा से। यदि हम इन पाठों को याद रखें, तो हम न केवल अपने देश को मजबूत बनाएंगे, बल्कि दुनिया को भी अहिंसा का संदेश दे सकेंगे।
●आज की दुनिया में, जहां संघर्ष और अशांति चारों ओर फैली है, गांधीजी के सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। हमें अपने पड़ोसी देशों की घटनाओं से सीख लेनी चाहिए और अपनी जड़ों को मजबूत रखना चाहिए। तभी हम सच्चे अर्थों में 'जैसा बोओगे, वैसा काटोगे' के सिद्धांत को सकारात्मक रूप में जी सकेंगे।
☆Ram Mohan Rai .
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