पानीपत की गलियां-15(पानीपत की गलियों में एक यादगार सैर: कचहरी बाजार से चोड़ा बाज़ार तक)

पानीपत की गलियां-15
(पानीपत की गलियों में एक यादगार सैर: कचहरी बाजार से चोड़ा बाज़ार तक)

आज सुबह की ताज़ा हवा में पानीपत की पुरानी गलियों की सैर करने का मन हुआ। शहर की भीड़-भाड़ से दूर, इन संकरी गलियों में इतिहास, संस्कृति और लोगों की ज़िंदगानी की कहानियाँ छिपी हैं। मैं कचहरी बाज़ार से शुरूआत करता हूँ, जहाँ सुबह-सुबह दुकानों के शटर खुलने की आवाज़ें और चाय की भाप उड़ाती दुकानों का माहौल जीवंत हो जाता है। यहाँ से आगे बढ़ते हुए, हम दो भाइयों की मशहूर दुकान के पास से गुज़रते हैं – वो दुकान जहाँ बचपन  की यादें ताज़ा हो जाती हैं। ठीक इसी के बगल में डॉ. मनोहर लाल  सुनेजा का क्लीनिक है, जो अब उनके सुपुत्र डॉ  नवीन सुनेजा (सेवानिवृत्त Deputy Civil Surgeon)चला रहे हैं। क्लीनिक की दीवारें पुरानी हैं, लेकिन उनमें शहर की सेवा की गाथाएँ समाई हैं।

डॉ. मनोहर लाल सुनेजा – एक सज्जन, मिलनसार और समर्पित व्यक्तित्व। बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे। रघुवीर सैनी, सुल्तान सिंह और विजय कुमार सलूजा जैसे साथियों के साथ संगठन की नींव मजबूत की। एक बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से विधायक का चुनाव भी लड़े, लेकिन पार्टी की आंतरिक राजनीति का शिकार होकर हार गए। फिर भी, लोगों के दुख-सुख में शामिल होना कभी नहीं छोड़ा। पानीपत को जिला बनाने के संघर्ष में अग्रणी रहे। कई बार नगरपालिका के सदस्य बने, लेकिन पद-प्रतिष्ठा की लालच नहीं की। पार्टी अनुशासन उनके लिए सर्वोपरि था। आजकल अस्वस्थ हैं, लेकिन मानसिक रूप से पूर्णतः सजग। उनकी इज्ज़त दलगत राजनीति से कहीं ऊपर है – शहर उन्हें 'डॉ. साहब' कहकर पुकारता है, सम्मान की भाषा में। क्लीनिक के साथ पहले लकड़ी की टाल थी. और यहीं था उनका जनता क्लिनिक, जहाँ पुराने ज़माने की दवाइयाँ और मरीजों की लंबी कतारें याद आती हैं। अब उसकी जगह एक शानदार आर-पार मार्केट है, जो गली को और जीवंत बनाती है।

यहाँ से हम चोड़ा बाज़ार में दाखिल होते हैं – इसे ओल्ड हॉस्पिटल रोड भी कहते हैं। संकरी गली, दोनों तरफ दुकानें सजी हुईं। यह गली प्रेम मंदिर के पीछे वाली है, जो शाह जी की कोठी के ठीक सामने से गुज़रती है। थोड़ा आगे चलें तो दाहिनी ओर पालिका बाज़ार आता है। यहाँ पहले पुराना सिविल हॉस्पिटल था – मेरे जन्म से पहले और काफी बाद तक। उस ज़माने में बच्चे घर पर दाईयों से पैदा होते थे, लेकिन इस हॉस्पिटल में डॉ. फ्रांसिस पहली कुशल गायनेकोलॉजिस्ट थीं। बाद में डॉ. कँवर हरि सिंह, डॉ प्रेम कुमार और डॉ. मसीह भी आए। यहीं सिविल हॉस्पिटल वेलफेयर सोसाइटी बनी, जिसमें मेरी माता सीता रानी कई वर्षों तक सेक्रेटरी रहीं। उनकी यादें आज भी यहाँ की दीवारों में बसी हैं – मरीजों की सेवा, गरीबों की मदद। अब यह मार्केट छोटे-बड़े शो-रूम से भरी है: गारमेंट्स, लेडीज़ साड़ियाँ, किड्स वेयर – हर तरफ रंग-बिरंगे कपड़े लहराते नज़र आते हैं। दुकानों में ग्राहकों की चहल-पहल, मोल-भाव की आवाज़ें – पानीपत की व्यापारिक आत्मा यहीं धड़कती है।

पालिका बाज़ार के ठीक सामने एक सीधी गली शाह जी की कोठी की ओर जाती है। यह गली रोज़मर्रा के कपड़ों की दुकानों से भरी है – सस्ते, टिकाऊ और स्थानीय पसन्द वाले। इससे आगे बढ़ें तो एक और गली प्रेम मंदिर की तरफ मुड़ती है. यह मंदिर हर मिलाप सम्प्रदाय का मन्दिर है जिसका सम्पूर्ण संचालन महिलाएं ही करती है.यहां की वर्तमान मुखिया माता कांतादेवी जी है.  पानीपत की सैंकड़ों निराश्रित औरतों का यह आश्रय स्थल रहा है. इसी मन्दिर से आगे चलकर लैय्या प्राइमरी स्कूल है जिसके सामने से गुज़रकर दिगंबर जैन मंदिर वाली सड़क पर मिलती है। स्कूल की पुरानी इमारत देखकर बचपन की घंटियाँ बजती हैं – वो दिन जब किताबें कंधे पर टांगे स्कूल जाते थे।

     बाज़ार की मुख्य सड़क पर आगे चलें तो दाहिनी ओर न्यू क्लॉथ मार्केट और उसके साथ ही  कुछ आगे चलकर जवाहर मार्केट है . इसका एक दरवाज़ा इस बाज़ार की ओर खुलता है, दूसरा जी टी रोड पर। पानीपत में यह खुदरा कपड़ा मार्केट की रानी रही है – हर प्रकार का कपड़ा, अच्छा और सस्ता। साथ में टेलरिंग शॉप्स भी, जहाँ कपड़े सिलवाने का मज़ा अलग है। इसके सामने नगरपालिका का पुराना दफ्तर था, जो बाद में किला पर शिफ्ट हो गया। बाज़ार जैन हाई स्कूल की पुरानी बिल्डिंग के पिछवाड़े में पचरंगा बाज़ार की तरफ खत्म होता है। पूरी मार्केट की एसोसिएशन के प्रधान आजकल मेरा क्लास फेलो श्री दर्शन लाल वधवा हैं – पुराने दोस्त की सफलता देखकर अच्छा लगता है।

पूरे पानीपत में चोड़ा बाज़ार अद्भुत है – जहाँ कपड़े खरीदना सिर्फ शॉपिंग नहीं, एक अनुभव है। सस्ते दाम, गुणवत्ता और दुकानदारों की मुस्कान। सैर खत्म करते हुए मन भर आता है – इन गलियों में न केवल कपड़े बिकते हैं, बल्कि शहर की आत्मा जीवित रहती है। अगली बार फिर आऊँगा, शायद कोई पुरानी कहानी और सुनाने को मिले।
Ram Mohan Rai, 
Panipat/07.11.2025
( यात्रा वृतांत में यदि आप कोई त्रुटि हो तो आपकी सलाह पर सुधार किया जा सकता है. )

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