पानीपत की गलियां-19. (नवल सिनेमा से रेलवे रोड तक)

पानीपत की गलियां-19
पानीपत की गलियों का सफ़र: नवल सिनेमा से रेलवे रोड तक

पानीपत – वह शहर जो तीन ऐतिहासिक युद्धों की गवाही देता है, हथकरघा और टेक्सटाइल की जीवंत धड़कन है, और मेरे बचपन की अनगिनत यादों का खज़ाना। आज इस यात्रा वृत्तांत में हम शहर की उन पुरानी गलियों में घूमेंगे जो कभी मनोरंजन, संघर्ष, व्यापार और रोज़मर्रा की ज़िंदगी का केंद्र हुआ करती थीं। हमारी यात्रा शुरू होती है नवल सिनेमा (नॉवल्टी थियेटर) से, जो रेलवे रोड पर अपनी नब्बे साल पुरानी शान लिए आज भी खड़ा है, और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए रेलवे स्टेशन तक का सफ़र तय करेंगे। यह सिर्फ़ एक सड़क नहीं, बल्कि पानीपत की आत्मा की एक झलक है – जहाँ इतिहास, संस्कृति और बदलते समय की कहानियाँ एक-दूसरे में गुंथी हुई हैं।

नवल थियेटर: नब्बे साल पुरानी सिनेमाई विरासत

रेलवे रोड की शुरुआत में ही खड़ा है नवल थियेटर, जिसे शहरवासी प्यार से नॉवल्टी कहते हैं। यह पानीपत का सबसे पुराना सिनेमा हॉल है, जिसकी नींव लगभग नब्बे वर्ष पहले (1930 के दशक में) रखी गई थी। इसे शहर के प्रसिद्ध रईस बाबू नवल किशोर गर्ग की स्मृति में उनके पुत्रों ने बनवाया था। उस ज़माने में सिनेमा देखना कोई साधारण बात नहीं थी – यह एक उत्सव था, एक सामाजिक आयोजन।

लेडीज शो और बचपन की यादें:
ख़ास तौर पर लेडीज शो के दौरान महिलाएँ अपने 12 साल तक के बच्चों को साथ ले जा सकती थीं। मैं आज भी उन दिनों को याद करता हूँ जब माँ के साथ "राजा और रंक", "मुग़ल-ए-आज़म" या "मदर इंडिया" जैसी फ़िल्में देखने यहाँ आया करता था। टिकट महज़ एक रुपये की होती थी, फिर भी हॉल खचाखच भरा रहता। परदे पर कहानियाँ जीवंत हो उठतीं – नायक की तलवार की चमक, नायिका की मुस्कान, और गीतों की धुनें। बाहर गलियों में चाय की चुस्कियाँ, मूँगफली की खुशबू, और दोस्तों के साथ फ़िल्म की चर्चा।

एक इमारत, दो दुनिया
नवल थियेटर की इमारत अपने आप में एक पूरी कहानी है।  
- ऊपर: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का दफ़्तर हुआ करता था।  
- यहाँ: इंजीनियरिंग एंड टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन का केंद्र था, जहाँ कामरेड रघुवीर सिंह, कामरेड जयपाल और अन्य मजदूर नेता मिलते थे। वे टेक्सटाइल मिलों के मज़दूरों की समस्याएँ सुनते, ट्रेड यूनियन अधिनियम के तहत उनके हक़ की लड़ाई लड़ते। हड़तालों की योजना, मज़दूरों की रैलियाँ – सब यहीं से शुरू होती थीं।  
- नीचे: कामरेड रामदित्ता की साइकिल दुकान थी, जहाँ पंचर जोड़ने की आवाज़ और मज़दूरों की बातचीत गूँजती।  
- ज़मीन पर: कृष्णा होटल की चाय, समोसे और पकौड़ों की महक।  

ऊपर फ़िल्मी गीत गूँजते, नीचे मज़दूरों की आवाज़ें उठतीं, और बीच में चाय की भाप। यह इमारत मनोरंजन और संघर्ष की दो धाराओं को एक ही छत के नीचे समेटे थी।

आज का नवल:
आज कृष्णा होटल और यूनियन दफ़्तर चले गए। नॉवल्टी सिनेमा अब भी खड़ा है – जैसे कोई बूढ़ा योद्धा, जिसके चेहरे पर समय की झुर्रियाँ हैं, लेकिन आँखों में इतिहास की चमक। कभी-कभी पुरानी फ़िल्में यहाँ चलती हैं, और पुराने दर्शक आते हैं – शायद अपनी यादों को फिर से जीने।

रेलवे रोड: व्यापार, भीड़ और फर्नीचर की राजधानी

नॉवल्टी से आगे बढ़िए। दाहिनी ओर छोटी-बड़ी दुकानें शुरू हो जाती हैं – बिजली का सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, जूते, मिठाइयाँ, स्टेशनरी। लेकिन असली आकर्षण है फर्नीचर मार्केट।

फर्नीचर की राजधानी
पानीपत का फर्नीचर देशभर में मशहूर है। यहाँ सोफ़े, बेड, डाइनिंग टेबल, अलमारियाँ – हर तरह का बढ़िया और किफ़ायती फर्नीचर मिलता है। दुकानों के बाहर लकड़ी की खुशबू, कारीगरों की हथौड़ों की आवाज़, और पॉलिश की चमक। यहाँ का फर्नीचर दिल्ली, चंडीगढ़, लुधियाना – हर जगह जाता है।

पुराना बाज़ार
रेलवे रोड कभी पानीपत का मुख्य बाज़ार था। सुबह से रात तक भीड़ इतनी होती थी कि कुहनी से कुहनी रगड़कर चलना पड़ता। रेहड़ी वाले चाय बेचते, मूँगफली वाले पुकारते, और दुकानदार ग्राहकों को बुलाते। लेकिन अब ट्रैफ़िक प्रतिबंध के कारण सड़क खुली और साफ़ है। पैदल चलना आसान हो गया, और दुकानें अब भी वैसी ही चमकती हैं।

लाला तोता राम धर्मशाला और आसपास
स्टेशन से पहले दाहिनी ओर है लाला तोता राम की धर्मशाला। इसकी स्थापना रेलवे स्टेशन के समय (1897 के आसपास) हुई थी। यात्री ट्रेन से उतरते और अपने गंतव्य पर जाने से पहले यहाँ रुकते।  
- सुविधाएँ: आज यहाँ समय के अनुसार सुविधाएँ बढ़ी हैं – बिस्तर, पानी, साफ़-सफ़ाई।  
- किराया: नाममात्र का।  
- सेवा: होटल से कम दाम, सुविधा धर्मशाला से ज़्यादा।  

इसी से जुड़ा है चतुर्भुज लीलावती ट्रस्ट का सेवार्थ स्थान। इसके सामने है लाला जय नारायण गोयला की ऊनी मिल – जो कभी पानीपत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री का गौरव थी।

रेलवे स्टेशन: 1897 से अब तक का सफ़र:

रेलवे रोड के अंत में आता है पानीपत रेलवे स्टेशन। इसकी स्थापना सन् 1897 में हुई थी, जब दिल्ली-अंबाला-कालका रेलवे लाइन शुरू हुई। यह एक जंक्शन है – यहाँ रोहतक, गोहाना, जींद की ट्रेनें भी मिलती हैं।
इसके पीछे जैन स्थानक है।
यहां जोहड़ था।
यहां के एक सेठ ने कश्मीर से आ रहे व्यापारी से खरीद कर जोहड़ में केसर गिरवा दी थी।
उस व्यापारी ने सेठ को चैलेंज कर दिया था कि यह माल तुम्हारे मतलब का नहीं है।

आज का स्टेशन
- ट्रेनें: हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तर भारत की तमाम ट्रेनें यहीं रुकती हैं।  
- हाई-स्पीड: शताब्दी, वंदे भारत जैसी ट्रेनें भी यहाँ ठहरती हैं।  
- प्लेटफ़ॉर्म: चाय की टपरी, समोसे की थड़ी, कुल्हड़ वाली चाय, और आने-जाने वालों की चहल-पहल।  

पुरानी घड़ी
स्टेशन के प्रवेश द्वार पर लगी पुरानी घड़ी आज भी टिक-टिक करती है। जैसे कह रही हो:  
"समय बदल गया, ट्रेनें नई हो गईं, लेकिन मैं यहीं हूँ – पानीपत की धड़कन।"

बाएँ मुड़िए: नगर निगम और सुधार मण्डल 

रेलवे स्टेशन के ठीक पहले बाईं ओर एक रास्ता पीछे की तरफ़ निकलता है। यहीं हैं:  
- नगर निगम पानीपत  
- नगर सुधार मण्डल 

कभी यह इलाका शांत था। अब यहाँ फाइलों की खटर-पटर, शहर के विकास की योजनाएँ, और पानीपत के भविष्य की नींव रखी जाती है।

गीता कॉलोनी की ओर: एक झलक

रेलवे रोड पर थोड़ा और आगे बढ़िए, दाहिनी ओर एक सड़क गीता कॉलोनी की तरफ़ मुड़ती है। यहीं है प्रसिद्ध गीता मंदिर।  
- माहौल: रेलवे रोड की हलचल से बिलकुल अलग – शांति, भक्ति, और घंटियों की आवाज़।  
- कहानी: इतनी समृद्ध कि इसके लिए एक अलग लेख लिखा जाएगा।  

(अगली कड़ी में: गीता मंदिर और गीता कॉलोनी की पूरी कहानी।)

अंत में: एक बदला हुआ लेकिन ज़िंदा रेलवे रोड

कभी यह सड़क इतनी भीड़भाड़ वाली थी कि पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी। आज ट्रैफ़िक हटने से यह खुली, साफ़ और पैदल चलने लायक हो गई है।  
- दुकानें: अब भी चमकती हैं।  
- फर्नीचर की झलक: हवा में तैरती है।  
- नॉवल्टी सिनेमा: पुरानी फ़िल्मों की याद दिलाता है।  

पानीपत की यह गली न सिर्फ़ व्यापार की धुरी है, बल्कि बचपन, संघर्ष, मनोरंजन और इतिहास की साक्षी भी है।

यात्रा जारी है... 
(अगली कड़ी: गीता मंदिर और गीता कॉलोनी की कहानी)

राम मोहन राय,
एडवोकेट,  
12 नवंबर 2025

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