पानीपत की गलियां-21. (जी टी रोड से असंध रोड रेल्वे लाइन तक)
(जी टी रोड से असंध रोड रेल्वे लाइन तक)
पानीपत की गलियों की सैर करते हुए आज हमने जी.टी. रोड के लाल बत्ती चौक से असंध रोड की ओर रुख किया। यह सैर न केवल शहर के भौगोलिक परिवेश की याद दिलाती है, बल्कि उन पुराने दिनों की सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक जिंदगी को भी जीवंत कर देती है, जब विचारधाराएँ भले ही अलग हों, पर इंसानियत एक ही थी।
●शुरुआत की गलियाँ और बाजार:
असंध रोड की शुरुआत में ही दाईं ओर कांग्रेस भवन है। इसके ठीक साथ ही मीट मार्केट है। पहले यह मार्केट अंसार चौक में शाह जी की कोठी के सामने लगती थी। बाद में इसे शिफ्ट कर कांग्रेस भवन के साथ वाली गली में लाया गया। यह गली गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल के साथ-साथ चलती हुई स्कूल के पिछले गेट से गुजरती है। यहीं से दो रास्ते निकलते हैं—एक सीधे असंध रोड की ओर, दूसरा बिशन स्वरूप कॉलोनी की तरफ।
कांग्रेस भवन के नीचे आज भी क्वालिटी कन्फेक्शनरी की दुकान है—वही पुरानी स्वाद वाली मिठाइयाँ, वही पुरानी यादें।
●असंध रोड का पुराना स्वरूप:
कभी यह सड़क बिल्कुल सुनसान थी। मैंने यहाँ खेत देखे हैं, जहाँ हवा में सरसों की महक फैली रहती थी। अब तो यह गली-गली गुलजार है। सड़क शुरू होते ही दाईं ओर कॉमरेड बलवंत सिंह की लकड़ी की टाल थी। यह सिर्फ दुकान नहीं, बल्कि शहर का एक खुला मंच था—जहाँ हर पार्टी के लोग आते, बैठते, चाय पीते और बेबाक चर्चा करते।
यहाँ नियमित रूप से दिखाई देते थे:
- पंडित माधो राम शर्मा (पूर्व सांसद)
- श्री हुकुमत शाह (पूर्व विधायक, कांग्रेस)
- श्री फतेह चंद विज (पाँच बार विधायक—भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, बीजेपी)
- श्री चमन लाल आहूजा (कांग्रेस)
- कॉमरेड रघुवीर सिंह, कॉमरेड रामदित्ता मल (सीपीआई),
- .कॉमरेड जोगिंदर पाल (सोशलिस्ट पार्टी)
- श्री दीवान चंद भाटिया (कॉंग्रेस)
ये सब विरोधी विचारधाराओं के थे, पर दोस्ती पक्की थी। का0 बलवंत सिंह सीपीआई के सदस्य थे, लेकिन शहर के उन चुनिंदा संजीदा लोगों में थे, जिनके पास कोई भी अपनी समस्या लेकर बिना झिझक जाता। मेरे पिता मास्टर सीता राम सैनी भी अक्सर उनके पास बैठते थे।
श्री फतेह चंद विज साहब तो अलग ही शख्सियत थे। हर दुख-दर्द में शामिल होते, हर पार्टी के जलसे- कार्यक्रम में पहुँचते। एक बार चमन लाल आहूजा और फतेह चंद विज का चुनावी मुकाबला हुआ। दूसरी बार विज साहब और हुकुमत शाह का। एक में जीते, एक में हारे—पर रिश्तों में जरा सी खटास भी नहीं आई।
बलवंत सिंह, दीवान चंद भाटिया और फतेह चंद विज एक-दूसरे को चिढ़ाते: "अरे, मैं ही तेरी शोक सभा में श्रद्धांजलि दूंगा" तीनों में होड़ थी कि कौन पहले देगा। यह मजाक था, पर विचारधारा पर तीनों अडिग थे।
मैं भी बाद में इन बैठकों में शामिल होने लगा। खासकर 1984 में, जब सिख-विरोधी साम्प्रदायिक माहौल के खिलाफ हमने स्टूडेंट्स फेडरेशन और भगत सिंह सभा बनाई। हमारा नारा था:
"न हिन्दू राज, न खालिस्तान—जुग जुग जिए हिन्दुस्तान!"
●टाल के सामने का नजारा:
टाल के ठीक सामने एक मेडिकल स्टोर था—आज भी है। आमने-सामने कुछ दुकानें। बाईं ओर एक रास्ता बैंक कॉलोनी की तरफ मुड़ता था—उस समय की सबसे पॉश कॉलोनी।
यहाँ श्री बाबू राम मित्तल का घर था। उनके पास एक रथ नुमा घोड़ा गाड़ी थी। उसकी सवारी करते हुए वे और उनका परिवार बाजार निकलते। गाड़ी का सारथी एक लंबे-तगड़े, बड़ी-बड़ी मूछों वाले बुजुर्ग थे—जो बड़ी अदा से उसे हांकते। बाबू राम मित्तल जी हमारी गली के दामाद थे। बेहद नेक और शरीफ इंसान। आर्य समाज बड़ा बाजार के तीन साल तक प्रधान रहे। मैं उस समय समाज का मंत्री था। उनके दो बेटे थे श्री यश पाल —छोटा बेटा सुधीर मेरे साथ पढ़ता था।
●आगे की सड़क और स्मृतियाँ:
सड़क पर आगे बढ़ते ही एक और रास्ता बैंक कॉलोनी की ओर जाता था—अब वहाँ बैरियर लगा दिया गया है। यहीं आगे खेत शुरू हो जाते थे। बीच में सिद्ध बाबा निर्माण की कुटिया थी। वहाँ पानी का रहट था—यात्रियों को पीने को पानी, खाने को दाल-रोटी का प्रसाद। बाबा सिद्ध पुरुष थे।
कुटिया के सामने ही श्मशान भूमि थी—पहले पंजाबियों का श्मशान कहलाती थी, बाद में इसे शिवपुरी के नाम से जाना जाता है । इसे विकसित करने का सराहनीय काम श्री हीरा नंद मक्कड़ ने किया।
गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल के पिछले गेट से पहले कोने पर डॉ. मनोहर लाल सुनेजा के पिता श्री लधा राम की बड़ी लकड़ी की टाल थी। बाद में इससे कुछ ही आगे चलकर यहीं पानीपत की पहली घरेलू गैस एजेंसी जनता गैस एजेंसी खुली। यह कैप्टन सदा नंद खुराना (1965 भारत-पाक जंग में शहीद) के वारिसों को सरकार ने आवंटित की थी।
●1984 का काला अध्याय :
1984 में सिख-विरोधी दंगों में यहीं रहने वाले सिख भाइयों की दुकानें लूटी गईं, जान-माल को नुकसान पहुँचा। यह एक ऐसा ब्लैक एपिसोड है, जिसे याद करते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
●आज का परिदृश्य :
अब गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल के सामने से ही फ्लाईओवर शुरू हो जाता है, जो रेलवे लाइन और फाटक को पार करते हुए प्रभाकर हॉस्पिटल के सामने उतरता है। लेकिन हम तो पैदल ही शिवपुरी तक आए। रेल्वे फाटक यानी यहां लोहे के फाटक थे जो ट्रेन आने पर बंद किए जाते ताकि कोई व्यक्ति व सवारी दुर्घटनाग्रस्त होने से बचे. ऐसे फाटक अभी भी अनेक रास्तो पर है यानी गोहाना रोड पर तो खास.
पहले यह इलाका बिल्कुल सुनसान था—अब शहर के बीचों-बीच है। यहीं से एक रास्ता बिशन स्वरूप कॉलोनी की ओर निकलता है, जो कई मोड़ लेते हुए पुराने बस स्टैंड के सामने जी.टी. रोड पर मिलता है। दूसरा रास्ता तीन गलियों में बँट जाता है:
1. गीता कॉलोनी
2. बाल्मीकि बस्ती
3. रेलवे स्टेशन की ओर
अब भी एक अंडरपास है, जो असंध रोड के दूसरी ओर ले जाता है। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी—बारिश हो या नाले का ओवरफ्लो—इसमें गंदा पानी भरा रहता है।
यह सैर सिर्फ रास्तों की नहीं—उन लोगों, उन दोस्तियों, उन विचारों और उन दर्दों की सैर थी, जो आज भी पानीपत की मिट्टी में दफन हैं।
(उपरोक्त लेख में यदि कोई तथ्यात्मक गलती अथवा भूल हो तो उसे आपके सुझाव से सुधारा जा सकता है)
Ram Mohan Rai,
Advocate,
Panipat/14.11.2025
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