पानीपत की गलियां-25 (गुरुद्वारा रोड से sanauli Road)
पानीपत की गलियों का एक पुराना सफ़र
(अमर भवन चौक से गुरुद्वारा रोड, सनोली रोड तक)
आज फिर उन पुरानी गलियों में चलते हुए मन पुरानी यादों में डूब गया। हम निकले अमर भवन चौक (राघड़ो मोहल्ला) से, सनौली रोड की तरफ़। रास्ते में सबसे पहले आता है श्री बांके बिहारी मंदिर, उसके ठीक बाद गुरुद्वारा साहिब। मंदिर की घंटियों की आवाज़ और गुरुद्वारे से आती अरदास की स्वर-लहरियाँ एक साथ गूँजती हैं तो लगता है जैसे शहर खुद अपनी दोहरी आत्मा का परिचय दे रहा हो।
बाज़ार की तरफ़ जैसे ही मुड़ते हैं, दाहिनी तरफ़ दिखता है मंचंदा ढाबा – पानीपत का वह मशहूर पुराना भोजनालय जो दशकों से यहाँ डटा है। ढाबे के साथ ही एक पतली गली निकलती है और कुछ कदम आगे फिर एक मंदिर। यही वह इलाका है जहाँ छोटे-बड़े हैंडलूम प्रोडक्ट्स के शोरूम सजे रहते हैं। खेस, चादरें, पर्दे, दरियाँ, मैट्स, घरेलू सजावटी कपड़े – सब कुछ यहाँ भरपूर मिलता है। चूँकि यह रास्ता खुला है और सनौली रोड के बेहद करीब, इसलिए थोक और परचून के ग्राहक यहाँ ख़ूब आते हैं। दिन भर ट्रक, टेम्पो, रेहड़ी-ठेले की आवाज़ें और मोल-भाव की गूँज रहती है।
थोड़ा आगे बढ़ते ही गुरुद्वारा का विशाल गेट आता है जो बाज़ार को आर-पार काटता है। इन दिनों श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज के 350वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में पूरा बाज़ार सज-धज कर रहता है – झंडे, बैनर, लाइटें, फूलों की मालाएँ। गेट के साथ ही बायीं तरफ़ मोहल्ला गढ़ी सैनियान है। पहले यहाँ कच्चे मकान और तंग गलियाँ हुआ करती थीं, अब धर्मशाला भी पक्की और भव्य बन गई है, रिहाइशी मकान भी अच्छे बने हैं। बेशक, कई पुराने सैनियन परिवार यहाँ से अपने मकान बेचकर कहीं और चले गए।
1984 का ज़ख़्म आज भी ताज़ा है। उस वक़्त मैं सैनी सभा, पानीपत का प्रधान था। अक्सर यहाँ आना होता था। ठीक इसी गुरुद्वारा साहिब पर भीड़ ने आगज़नी की थी। निहत्थे, मासूम लोग मारे गए थे। किताबें जलीं, ग्रंथ जले, घर जले। वे लोग कहाँ से आए थे? एक भी चेहरा पहचान का नहीं था। न कोई धर्म पता, न जाति। बस आँखों के सामने दिल दहला देने वाले दृश्य थे जिन्हें आज तक भुलाया नहीं जा सका। उस वक़्त भी वही जुमला गूँजता था जो आज भी गूँजता है – “यह तो ठीक है कि हर अमुक धर्म का व्यक्ति आतंकवादी नहीं होता, लेकिन यह भी तो ठीक है कि हर आतंकवादी अमुक धर्म का ही होता है।” ज़ख़्म पर नमक छिड़कने वाला यह जुमला उस दिन भी था, आज भी है।
इसी गुरुद्वारा के साथ वाली गली आगे गुरुद्वारा रोड कहलाती है। गुरुद्वारा के सामने ही हैदराबादी बिरादरी का एक रिहायशी मोहल्ला भी है. सड़क पर चलते हुए दाहिनी तरफ़ कई छोटी-छोटी गलियाँ हैं। इसी रोड पर गुरुद्वारा प्रबंधन द्वारा संचालित गुरु नानक पब्लिक सीनियर secondary स्कूल भी है। स्कूल के ठीक सामने हमारे पुराने आर्य समाजी मित्र बलराज एलावाधी जी का घर है। बचपन से जवानी तक हमारा वहाँ नियमित आना-जाना रहा। चाय की चुस्कियों के साथ देश-दुनिया, धर्म-समाज पर घंटों चर्चा होती थी। गली के आख़िरी छोर पर पहले म्यूनिसिपल चुंगी हुआ करती थी, उसकी बगल में एलावाधी टाइप कॉलेज था – अब वहाँ भी बाज़ार ही बस गया है।
आख़िर में यह सड़क सनौली रोड पर जा मिलती है। सनौली रोड के पश्चिम में हैदराबादी अस्पताल के बाद मंदिर और फिर जी.टी. रोड, जबकि पूरब में हरिद्वार, शामली, सहारनपुर की तरफ़ जाने वाला रास्ता।
इन गलियों में चलते हुए लगता है – शहर बदल गया, मकान बदल गए, दुकानें बदल गईं, लेकिन कुछ ज़ख़्म और कुछ यादें आज भी जस की तस हैं। शायद यही शहरों की नियति है – ऊपर से चमकते रहें, अंदर से दर्द लिए चलते रहें।
Ram Mohan Rai,
Advocate.
Panipat/21.11.2025
Comments
Post a Comment