गांधी और भगत सिंह जैसे हमारे विश्व नायक बेहद दुर्भाग्यशाली हैं। शहादत देते समय उन्हें यह कतई अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनकी आने वाली नस्लें इतनी कृतघ्न, इतनी निकृष्ट और इतनी तुच्छ मानसिकता की होंगी कि उन्हें हत्यारों को राष्ट्रपिता बनाने की सनक चढ़ेगी। उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस आदमी के तीन दशक के नेतृत्व में विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य को भारत की गरीब जनता ने हराया था, एक दिन भारत की संसद में उसी गांधी के हत्यारों की सराहना की जाएगी।

गांधी इस देश का अंतिम आदमी है, वह हमेशा बेचारा था। जब उसे हरामखोर परजीवियों ने ट्रेन से बाहर फेंका तब भी, जब वह अंतिम जन के लिए लड़ रहा था तब भी, जब वह दुनिया भर में घूम घूम कर अपमानित हुआ तब भी, जब उस पर अनेक बार हमले हुए तब भी, जब वह सबको कंधा मिलाकर रहने को मनाता रहा तब भी। अफ्रीका से लेकर नोआखली तक, गांधी हमेशा उपेक्षित, अकेला और बेचारा था।

गांधी विश्वगुरु बनने निकले देश में गटर में डूबता हुआ सफाईकर्मी है, आत्महत्या करता हुआ किसान है, बेरोजगारी से जूझता नौजवान है, भूख से मरता हुआ गरीब है। गांधी वह व्यक्ति है जिसके लिए किसी की आंख नम नहीं होती

गांधी मानवता का वह समर्थक है जिसे हिन्दू कठमुल्ले मुसलमान कहते रहे, जिसे मुसलमान कठमुल्ले हिंदूवादी कहते रहे, अंत में जिसे हिन्दू कठमुल्लों ने मिलकर मार डाला और मिठाइयां बांटी। लेकिन वह मानवता का अनन्य प्रेमी था, मानवता को उसकी हत्या से धक्का लगा। उसने करुणापूर्वक गांधी को अपनाया और गांधी दुनिया के सामने नजीर बन गया।

आज एक पढ़ा लिखा मध्यवर्गीय व्यक्ति क्यों चाहता है कि गांधी को गाली दी जाए? वह क्यों चाहता है कि गोडसे की मूर्तियां लगाई जाएं। वह क्यों चाहता है कि गोडसे का नारा लगाने वाले भारत की संसद में रहें।

क्योंकि उसने 70 साल तक उदार आज़ादी का मजा लिया है और अब उसके भीतर का राक्षस कुछ एडवेंचर चाहता है। उनकी मति पर तरस खाना चाहिए जो राहुल गांधी की कांग्रेस से चिढ़कर महात्मा गांधी को गालियां देता है। वह दया का पात्र है जो अपने को हिन्दू कहता है और एक ऐसी महिला के समर्थन में खड़ा है जिसका जीवन क्रूरता और हिंसा से भरा है।

अहिंसा गांधी की ताकत है जिसने ब्रिटेन को घुटनों पर ला दिया था। हिंसा गोडसे की ताकत थी जिसने एक महानायक को हमसे छीन लिया।

फिर भी आपको गोडसे चाहिए तो भविष्य का नरकिस्तान आपको मुबारक! आपकी रक्त पिपासा आपको मुबारक! सामान्य मनुष्य मरे हुए गांधी को बार-बार मरता देखता है और भीतर ही भीतर खुद भी मरता है। बार-बार मारा जाना ही गांधी होना है। इतनी बार मरने के लिए जो आत्मबल चाहिए, वही मनुष्य की जीवटता है, वही पौरुष है और वही गांधी का हिंदुत्व है।

हत्यारे लोग हिन्दू नहीं हैं, निरीह लोगों पर बम फोड़ने वाले हिन्दू नहीं हैं। अपने जीवन में किसी को एक थप्पड़ मारे बगैर दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य को हरा देने वाला वह 'भूखा नंगा फ़क़ीर' हिन्दू है जिसने चर्चिल को नानी याद दिला दी थी।

गांधी का लहू इस देश की संसद में सीझा है। वही हमारा पुरखा है और वही हमारी चेतना है।

याद रखना कि गांधी निकृष्ट लोगों से उलझता भी नहीं, वे अपनी मौत मर जाते हैं। गांधी अमर हो जाता है।
Krishna Kant

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

मुजीब, गांधी और टैगोर पर हमले किस के निशाने पर