राजा महेंद्र प्रताप- डॉ राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी

राजा महेन्द्रप्रताप
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बचपन में मेरी मां इनकी कहानी सुनाती थीं,वे इनके भाई राजा दत्तप्रसादसिंह [मुरसान]की पालिता बेटी थीं। अंग्रेजसरकार इन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी किंतु ये संसार के देशों में घूमे आजादी का संदेश सुनाने।१९१८ में ये लेनिन से मिले,१९१५ में अफ्गानिस्तान में रहते हुए भारत की अस्थायी सरकार बनायी,जिसके राष्ट्रपति स्वयं और प्रधानमन्त्री मौलाना बरकतउल्लाह बने।उद्देश्य था ब्रिटिश-विरोधी शक्तियों को भारत की आजादी के लिये एकत्र करना।
राजा महेन्द्रप्रताप ने १९२२ में जर्मनी में क्रांतिकारी पत्र निकाले।जापान जाकर रासबिहारी बोस से और अमेरिका की गदरपार्टी के तथा फिर चीन के नेताओं से भेंट की ।निर्भीक पत्रकार थे,प्रताप,स्वराज्य और वन्देमातरं में विद्रोहभाव के लेख लिखे।जवाहरलालनेहरू ने मेरीकहानी में राजा महेन्द्रप्रताप की चर्चा की है।
अलीगढ,वृंदावन,हाथरस आदि में राजा महेन्द्रप्रताप की रियासत और जमींदा्री थी,वह सब इन्होंने शिक्षासंस्थाओं को दान कर दी।उस जमाने में मथुरा में पोलीटेक्नीकल कालेज खोलने का सपना राजा महेन्द्रप्रताप ने देखा था। बेटा था प्रेमसिंह ,उसकी स्मृति में प्रेममहाविद्यालय की स्थापना की।मथुरा से एम.पी निर्वाचित हुए,हालांकि जवाहरलालनेहरू इनके विरुद्ध खडे कांग्रेस के प्रत्याशी का प्रचार करने आये थे।प्रेममहाविद्यालय के विद्यार्थी इतने जोश में थे कि नेहरूजी की अपील बेअसर हो गयी।इनका चुनावचिन्ह था रेलकाइंजन। चन्दोबेटी का बेटा होने के नाते मुझे भी इन्होंने एक आशीर्वाद की चिट्ठी लिखी थी।वह मेरे पास सुरक्षित है। इन्होंने अपना नाम पीटर पीर प्रताप रख लिया था।उनकी स्मृति को श्रद्धामय नमन!

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