अतिथिदेवो भव

अतिथिदेवो भव
इलाहाबाद में *हमारे मेज़बान डॉ दिवाकर त्रिपाठी ,उनकी पत्नी श्रीमती अलका , दोनो पुत्रियां आयुष्मती मालविका व देववाणी* सभी तो बहुत ही विनम्र ,सहज व सरल स्वभाव से सुभोषित हैं । डॉ त्रिपाठी तो हमारे दो दिनों के प्रवास के दौरान समूचे समय हमारे साथ हरदम रहे । हमारी इच्छा को वे स्वत: ही समझ जाते थे और फिर उसी की मुताबिक  हमारी सेवा - भाव मे जुट जाते थे । उनके आदरणीय गुरु श्री डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी जी के सानिध्य में ही उनका घर है । घर वास्तव में घर ,जहां प्रेम और सद्भावना का दर्शन है और अतिथि परायणता तो न केवल प्रशंसीनय ही  अपितु अनुकरणीय भी है।
महात्मा गांधी का यह वाक्य इस परिवार पर सटीक उतरता है- *सुसंस्कृत घर जैसी कोई पाठशाला नही और ईमानदार तथा सदाचारी माता-पिता जैसे कोई शिक्षक नही ।*
 हमारा उन्होंने कार्यक्रम तय किया कि देर रात पर इलाहाबाद -प्रयागराज कुम्भ में खूब घूमे परन्तु रुके उनके घर पर । दिन में आश्रमो में भोजन-प्रशाद ले पर रात्रि भोज ,घर पर । शंकराचार्य जी के पंडाल से फारिग होते ही वे हमें कुम्भ मेला के दर्शन करवाते हुए गंगा तट पर ले गये ।पर यह क्या जैसे छोटे बच्चे अपनी मां को देख कर मचल जाता है वैसे ही *मां गंगा* को देखते ही हमारी वैसी ही हालत हो गयी । रात्रि के 8 बजने को आये थे , ठंडी हवाएं सांये -२ चल रही थी पर हम बच्चे कहां रुकने वाले थे । संजय राय , विशाल और मैने कपड़े उतारे और रस्सी पकड़ कर उतर गए मां की गोद मे । प्रयागराज के घाट हरिद्वार अथवा वाराणसी के घाटों की तरह पक्के नही है ,यहां सभी खुले व कच्चे तट है । विशाल एवम आकर्षक । हमने भी मचल-२ कर खूब स्नान किया । और फिर तृप्त होकर वहीं मिल रही मसालेदार चाय पी ।  लौटते इलाहाबाद किले से सटे  हुए *लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर* भी गए ।मंगलवार होने की वजह से खूब भीड़ थी । हम ठहरे मूर्ति दर्शन में अनास्थावान, परन्तु संजय राय का कहना था कि अब जब मंदिर आ ही गए है तो दर्शन तो जरूर करके ही जाएंगे । काफी देर के बाद नम्बर आया । वहां का लड्डू प्रशाद पाकर बेहद ही आनंद आया ।
 डॉ त्रिपाठी तो जैसे हमारे मनोभाव जान रहे थे फिर हमें ले गए एक चाट- आलू टिक्की व गोलगप्पे की रेहड़ी पर । वहाँ पहुच कर तो लगा कि यात्रा अब सफल हुई । मेरे अज़ीज़ नीरज ग्रोवर का कथन है कि यदि किसी यात्रा के दौरान राम मोहन राय ,कही बीच रास्ते से गायब हो जाएं तो समझना कि गोलगप्पे की कोई दुकान उन्हें पा गयी है और वे उसका आनंद ले रही है ।
हमारा उन्होंने कार्यक्रम तय किया कि देर रात पर इलाहाबाद -प्रयागराज कुम्भ में खूब घूमे परन्तु रुके उनके घर पर । दिन में आश्रमो में भोजन-प्रशाद ले पर रात्रि भोज ,घर पर । शंकराचार्यजी के पंडाल से फारिग होते ही वे हमें कुम्भ मेला के दर्शन करवाते हुए गंगा तट पर ले गये । इसी मां गंगा के बारे में इसके महान सपूत प0 जवाहरलाल नेहरु ने अपनी वसीयत में लिखा ," मैने सुबह की रोशनी में। गंगा को मुस्कराते , उछलते कूदते देखा है, और देखा है शाम के साये में उदास , काली -सी चादर ओढ़े हुए , भेद भरी, जाड़ो में सिमटी -सी, आहिस्ते-२ बहती हुई सुन्दर धारा और बरसात में दहाड़ती - गरजती हुई , समुंदर की तरह चौड़ा लिये , और सागर को बरबाद करने की शक्ति लिये हुए  । यही गंगा मेरे लिये निशानी है भारत की प्राचीनता की , यादगार की ,जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही है भविष्य के महासागर की ऒर।"
 पर यह क्या जैसे छोटे बच्चे अपनी मां को देख कर मचल जाता है वैसे ही *मां गंगा* को देखते ही हमारी वैसी ही हालत हो गयी । रात्रि के 8 बजने को आये थे , ठंडी हवाएं सांये -२ चल रही थी पर हम बच्चे कहां रुकने वाले थे । संजय राय , विशाल और मैने कपड़े उतारे और रस्सी पकड़ कर उतर गए मां की गोद मे । प्रयागराज के घाट हरिद्वार अथवा वाराणसी के घाटों की तरह पक्के नही है ,यहां सभी खुले व कच्चे तट है । विशाल एवम आकर्षक । हमने भी मचल-२ कर खूब स्नान किया । और फिर तृप्त होकर वहीं मिल रही मसालेदार चाय पी ।  लौटते इलाहाबाद किले से सटे  हुए *लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर* भी गए ।मंगलवार होने की वजह से खूब भीड़ थी । हम ठहरे मूर्ति दर्शन में अनास्थावान, परन्तु संजय राय का कहना था कि अब जब मंदिर आ ही गए है तो दर्शन तो जरूर करके ही जाएंगे । काफी देर के बाद नम्बर आया । वहां का लड्डू प्रशाद पाकर बेहद ही आनंद आया ।
 डॉ त्रिपाठी तो जैसे हमारे मनोभाव जान रहे थे फिर हमें ले गए एक चाट- आलू टिक्की व गोलगप्पे की रेहड़ी पर । वहाँ पहुच कर तो लगा कि यात्रा अब सफल हुई । मेरे अज़ीज़ नीरज ग्रोवर का कथन है कि यदि किसी यात्रा के दौरान राम मोहन राय ,कही बीच रास्ते से गायब हो जाएं तो समझना कि गोलगप्पे की कोई दुकान उन्हें पा गयी है और वे उसका आनंद ले रही है । हमने अपने मेज़बान से दो स्थान पर तो अवश्य ही ले चलने का आग्रह किया था एक- अल्फ्रेड पार्क और दूसरा आनंद भवन । व्यवस्था बनाने में डॉ दिवाकर त्रिपाठी बहुत ही उम्दा इंसान साबित हुए । देर रात को हम उनके घर पहुंचे जहां उनकी पत्नी व बड़ी बेटी भोजन ,डाइनिंग टेबल पर सजा कर परोसने की तैयारी में थी वहीं छोटी बेटी *देववाणी* तबले पर अभ्यास कर रही थी । उसी के साथ ,हमारे इंडोनेशियाई सहयात्री मित्र इंद्रा   ने एक भजन हिंदी में सुनाया और फिर आपसी पारिवारिक परिचय हुआ ।
ऐसे अतिथि परायण -संस्कार परिवार के लिये कोटिश शुभकामनाएं व आशीर्वाद ।

राम मोहन राय
(Nityanootan broadcast service)
05.02.2019

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