बाबू रामानन्द शिंगला जन्म शताब्दी । भाई, मित्र व गुरु
*भाई, मित्र व पितातुल्य*
बाबू श्री रामा नंद जी शिंगला की जन्मशताब्दी पर उन्हें स्मरण करना एक पुण्यात्मा को आदरांजलि देना है । एक ऐसा व्यक्तित्व जो अपने सिद्धान्तों पर दृढ़ था ,मर्यादाओं से प्रतिबंधित था व विचारो से उदार । एक ऐसा अनथक कार्यकर्ता जिसने अपने सर्वस्व जीवन को महृषि दयानन्द के मिशन व आर्य समाज के आंदोलन को समर्पित किया । वैसे तो यह माना जाता रहा है कि आर्य समाजी कठोर निश्चयी होते है । श्री रामानन्द शिंगला एक ऐसे विरले पुरुष थे जिन्होंने आर्य समाज को जीवंत ग्रहण कर उसे अपने जीवन जीने का अंग बनाया ।
श्री शिंगला का परिवार हमारे पानीपत में सपाटू वाले के नाम से जाना जाता रहा है । उनके पिता लाला छज्जूराम एक प्रमुख ज़मीदार व रईस थे । इसके बावजूद भी वे एक निर्भीक सामाजिक नेता व राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े थे । भारत विभाजन के बाद महात्मा गांधी को पानीपत में लाने के लिये उंनके ही प्रयास थे । उनके परिवार के ही अन्य सदस्य लाला देशबन्धु गुप्ता न केवल लब्धप्रतिष्ठ पत्रकार थे वहीं एक महान स्वतन्त्रता सेनानी व तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी नेता थे । ये उन्हीं के सम्बंध थे जिसने राष्ट्रीय स्तर पर स्पाटूवाले परिवार को जोड़ा था । लाला छजुराम तत्कालीन संयुक्त पंजाब में आर्य समाज के अग्रणी कर्णधारो में थे तथा स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन काल में ही आर्य समाज ,पानीपत के संस्थापको में से एक थे । यह आर्य समाज का ही उद्यम था कि स्वामी इछरानंद सरस्वती ,स्वामी श्रद्धानंद , महात्मा हंसराज , महात्मा आनंद स्वामी , प0 राम चन्द्र देहलवी जैसे विद्वान आर्य समाज ,पानीपत( वर्तमान बड़ा बाजार) में विभिन्न अवसरों पर पधारे । यह इसी समाज की प्रेरणा थी कि भक्त फूलसिंह जैसे लोगो ने सरकारी नौकरी छोड़ कर अपना पूरा जीवन ही आर्य समाज को अर्पित कर दिया । इसी समाज के एक सत्संग में प0 चमूपति आर्य एम ए के विचारो को सुन कर मुगला डाकू का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने अपने तमाम अपराधों से तौबा करके आर्य जीवन को अपनाया ।
श्री रामानंद शिंगला जी अपने चार भाइयों सर्वश्री ब्रह्मदत्त शिंगला ,ओम प्रकाश शिंगला ,रामानन्द शिंगला व विश्वनाथ शिंगला में तीसरे नम्बर थे । दो भाई सबसे बड़े व छोटे जबकि अपने व्यवसाय में व्यस्त रहे जबकि बीच के दोनों भाई व्यवसाय के अतिरिक्त सामाजिक कार्यो में भी कार्यरत्त रहे । पानीपत में जहाँ आर्य समाज की स्थापना आपके परिवार के पुरषार्थ का परिणाम था वहीं आर्य हाई स्कूल (वर्तमान सीनियर सैकंडरी स्कूल), आर्य कालेज तथा आर्य कन्या विद्यालय की स्थापना का श्रेय भी इसी आर्य समाज तथा आपके परिवार को जाता है । न केवल स्थापना अपितु जिस तरह से इसको पल्लवित किया वह सर्वदा प्रसंशनीय है । श्री ओमप्रकाश जी शिंगला अपने जीवन पर्यंत आर्य कालेज व अन्य आर्य शिक्षण संस्थाओं के सचिव/ प्रबन्धक/ अध्यक्ष रहे । आचार्य लक्ष्मीदत्त दीक्षित , ओम प्रकाश शिंगला व रामानन्द शिंगला के नेतृत्व व संगठन शक्ति का प्रभाव रहा कि आर्य कालेज के दीक्षांत व अन्य समारोहों में तत्कालीन रेलमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री( पूर्व प्रधानमंत्री), पूर्व राज्यपाल एन वी गाडगिल, संयुक्त राष्ट्र संघ की पहली महिला अध्यक्ष श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित, श्रीमान कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी जैसी महान हस्तियां पधारी ।
श्री रामा नन्द शिंगला ने तो अपना पूरा जीवन व समय ही आर्य समाज को दे दिया था । वह अपना एक एक क्षण समाज के कार्यो के लिये ही जीते थे । खादी के सफेद कपड़ो में एक छाता लिये वे पूरे दिन को एक संस्था से दूसरी संस्था तक पैदल जाते तथा वहां के तमाम कार्यो की निगरानी कर व्यस्तता देते । सन 1985 में आर्य समाज ,बड़ा बाजार ,पानीपत की शताब्दी मनाई गई । देश - विदेश से हजारों आर्य जन ने भाग लिया पर इस समारोह की सफलता के लिये जो जयमाला के धागे की तरह जो सबको पिरोये था परन्तु दृष्टिगोचर नही था वह व्यक्ति रामा नन्द शिंगला थे ।
उन्होंने अपने पारिवारिक दायित्वों को भी पूरा किया । संयुक्त परिवार की भूमि जी गढ़ी सिकंदर पुर व अन्य स्थानों पर थी उनका प्रबन्धन भी वे अपनी सामाजिक कार्यो के अतिरिक्त करते थे । वे गांव के नम्बरदार भी थे व आर्य समाज के प्रांतीय संगठन सभा के उपाध्यक्ष व कोषाध्यक्ष भी । उनकी पत्नी श्रीमती प्रेमवती जी खुद भी एक प्रतिष्ठित आर्य समृद्ध परिवार से सम्बन्ध रखती थी ,इसके बावजूद भी वे बाबू रामा नन्द जी शिंगला की सर्वदा मित्र ,सचिव व सफल पत्नी रही जिसने अपने चार पुत्रो सर्वश्री नरेंद्र ,वीरेंद्र ,राज व राकेश व पुत्री श्रीमती सुजाता को उत्तम से उत्तम न केवल शिक्षा दी वहीं श्रेष्ठ संस्कार भी दिए । उनका पुत्र श्री वीरेंद्र शिंगला तो अब अपने दिवंगत पिता के पदचिन्हों पर चल कर उन्हीं के कार्यो को यथावत कर रहा है । स्वामी दयानंद का कथन कि वे माता-पिता धन्य हैं जो अपनी सन्तान को उत्तम से उत्तम शिक्षा प्रदान करते हैं ,इस परिवार पर अक्षर अक्षरशः सत्य साबित होता है ।
बाबू श्री रामा नन्द शिंगला व्यक्तिगत रूप से मेरे भाई ,गुरु व पितातुल्य थे । भाई इस रूप में कि वे मेरे पिता मास्टर सीता राम सैनी के विद्यार्थी थे । दूसरे मेरे पिता को आर्य समाज की ओर प्रवृत्त करवाने वाले उनके पिता लाला छज्जू राम थे और मुझे आर्य समाज मे लाने वाले खुद बाबू रामा नन्द शिंगला जी ।
मित्र इस रूप में कि आयु में अंतर के बावजूद भी वे हमेशा मेरे व मेरे परिवार के हर दुःख- सुख में सहयोगी रहे । वेद में ईश्वर को मित्र की तरह सहायक कहा है ।
पितातुल्य इस लिये की उन्होंने मेरे जीवन का हर प्रकार से मार्गदर्शन से अग्रसर होने की प्रेरणा दी ।
वे चलती फिरती आर्य समाज थे और यहाँ तक कि उन्होंने अपने जीवन की आहुति भी आर्य समाज के एक कार्यक्रम में अजमेर जाते हुए दी । ऐसे अमर हुतात्मा बाबू रामा नन्द जी शिंगला की जन्म शताब्दी के अवसर पर हम सब उन्हें विनम्र भाव से स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करते है ।
राम मोहन राय
बाबू श्री रामा नंद जी शिंगला की जन्मशताब्दी पर उन्हें स्मरण करना एक पुण्यात्मा को आदरांजलि देना है । एक ऐसा व्यक्तित्व जो अपने सिद्धान्तों पर दृढ़ था ,मर्यादाओं से प्रतिबंधित था व विचारो से उदार । एक ऐसा अनथक कार्यकर्ता जिसने अपने सर्वस्व जीवन को महृषि दयानन्द के मिशन व आर्य समाज के आंदोलन को समर्पित किया । वैसे तो यह माना जाता रहा है कि आर्य समाजी कठोर निश्चयी होते है । श्री रामानन्द शिंगला एक ऐसे विरले पुरुष थे जिन्होंने आर्य समाज को जीवंत ग्रहण कर उसे अपने जीवन जीने का अंग बनाया ।
श्री शिंगला का परिवार हमारे पानीपत में सपाटू वाले के नाम से जाना जाता रहा है । उनके पिता लाला छज्जूराम एक प्रमुख ज़मीदार व रईस थे । इसके बावजूद भी वे एक निर्भीक सामाजिक नेता व राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े थे । भारत विभाजन के बाद महात्मा गांधी को पानीपत में लाने के लिये उंनके ही प्रयास थे । उनके परिवार के ही अन्य सदस्य लाला देशबन्धु गुप्ता न केवल लब्धप्रतिष्ठ पत्रकार थे वहीं एक महान स्वतन्त्रता सेनानी व तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी नेता थे । ये उन्हीं के सम्बंध थे जिसने राष्ट्रीय स्तर पर स्पाटूवाले परिवार को जोड़ा था । लाला छजुराम तत्कालीन संयुक्त पंजाब में आर्य समाज के अग्रणी कर्णधारो में थे तथा स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन काल में ही आर्य समाज ,पानीपत के संस्थापको में से एक थे । यह आर्य समाज का ही उद्यम था कि स्वामी इछरानंद सरस्वती ,स्वामी श्रद्धानंद , महात्मा हंसराज , महात्मा आनंद स्वामी , प0 राम चन्द्र देहलवी जैसे विद्वान आर्य समाज ,पानीपत( वर्तमान बड़ा बाजार) में विभिन्न अवसरों पर पधारे । यह इसी समाज की प्रेरणा थी कि भक्त फूलसिंह जैसे लोगो ने सरकारी नौकरी छोड़ कर अपना पूरा जीवन ही आर्य समाज को अर्पित कर दिया । इसी समाज के एक सत्संग में प0 चमूपति आर्य एम ए के विचारो को सुन कर मुगला डाकू का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने अपने तमाम अपराधों से तौबा करके आर्य जीवन को अपनाया ।
श्री रामानंद शिंगला जी अपने चार भाइयों सर्वश्री ब्रह्मदत्त शिंगला ,ओम प्रकाश शिंगला ,रामानन्द शिंगला व विश्वनाथ शिंगला में तीसरे नम्बर थे । दो भाई सबसे बड़े व छोटे जबकि अपने व्यवसाय में व्यस्त रहे जबकि बीच के दोनों भाई व्यवसाय के अतिरिक्त सामाजिक कार्यो में भी कार्यरत्त रहे । पानीपत में जहाँ आर्य समाज की स्थापना आपके परिवार के पुरषार्थ का परिणाम था वहीं आर्य हाई स्कूल (वर्तमान सीनियर सैकंडरी स्कूल), आर्य कालेज तथा आर्य कन्या विद्यालय की स्थापना का श्रेय भी इसी आर्य समाज तथा आपके परिवार को जाता है । न केवल स्थापना अपितु जिस तरह से इसको पल्लवित किया वह सर्वदा प्रसंशनीय है । श्री ओमप्रकाश जी शिंगला अपने जीवन पर्यंत आर्य कालेज व अन्य आर्य शिक्षण संस्थाओं के सचिव/ प्रबन्धक/ अध्यक्ष रहे । आचार्य लक्ष्मीदत्त दीक्षित , ओम प्रकाश शिंगला व रामानन्द शिंगला के नेतृत्व व संगठन शक्ति का प्रभाव रहा कि आर्य कालेज के दीक्षांत व अन्य समारोहों में तत्कालीन रेलमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री( पूर्व प्रधानमंत्री), पूर्व राज्यपाल एन वी गाडगिल, संयुक्त राष्ट्र संघ की पहली महिला अध्यक्ष श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित, श्रीमान कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी जैसी महान हस्तियां पधारी ।
श्री रामा नन्द शिंगला ने तो अपना पूरा जीवन व समय ही आर्य समाज को दे दिया था । वह अपना एक एक क्षण समाज के कार्यो के लिये ही जीते थे । खादी के सफेद कपड़ो में एक छाता लिये वे पूरे दिन को एक संस्था से दूसरी संस्था तक पैदल जाते तथा वहां के तमाम कार्यो की निगरानी कर व्यस्तता देते । सन 1985 में आर्य समाज ,बड़ा बाजार ,पानीपत की शताब्दी मनाई गई । देश - विदेश से हजारों आर्य जन ने भाग लिया पर इस समारोह की सफलता के लिये जो जयमाला के धागे की तरह जो सबको पिरोये था परन्तु दृष्टिगोचर नही था वह व्यक्ति रामा नन्द शिंगला थे ।
उन्होंने अपने पारिवारिक दायित्वों को भी पूरा किया । संयुक्त परिवार की भूमि जी गढ़ी सिकंदर पुर व अन्य स्थानों पर थी उनका प्रबन्धन भी वे अपनी सामाजिक कार्यो के अतिरिक्त करते थे । वे गांव के नम्बरदार भी थे व आर्य समाज के प्रांतीय संगठन सभा के उपाध्यक्ष व कोषाध्यक्ष भी । उनकी पत्नी श्रीमती प्रेमवती जी खुद भी एक प्रतिष्ठित आर्य समृद्ध परिवार से सम्बन्ध रखती थी ,इसके बावजूद भी वे बाबू रामा नन्द जी शिंगला की सर्वदा मित्र ,सचिव व सफल पत्नी रही जिसने अपने चार पुत्रो सर्वश्री नरेंद्र ,वीरेंद्र ,राज व राकेश व पुत्री श्रीमती सुजाता को उत्तम से उत्तम न केवल शिक्षा दी वहीं श्रेष्ठ संस्कार भी दिए । उनका पुत्र श्री वीरेंद्र शिंगला तो अब अपने दिवंगत पिता के पदचिन्हों पर चल कर उन्हीं के कार्यो को यथावत कर रहा है । स्वामी दयानंद का कथन कि वे माता-पिता धन्य हैं जो अपनी सन्तान को उत्तम से उत्तम शिक्षा प्रदान करते हैं ,इस परिवार पर अक्षर अक्षरशः सत्य साबित होता है ।
बाबू श्री रामा नन्द शिंगला व्यक्तिगत रूप से मेरे भाई ,गुरु व पितातुल्य थे । भाई इस रूप में कि वे मेरे पिता मास्टर सीता राम सैनी के विद्यार्थी थे । दूसरे मेरे पिता को आर्य समाज की ओर प्रवृत्त करवाने वाले उनके पिता लाला छज्जू राम थे और मुझे आर्य समाज मे लाने वाले खुद बाबू रामा नन्द शिंगला जी ।
मित्र इस रूप में कि आयु में अंतर के बावजूद भी वे हमेशा मेरे व मेरे परिवार के हर दुःख- सुख में सहयोगी रहे । वेद में ईश्वर को मित्र की तरह सहायक कहा है ।
पितातुल्य इस लिये की उन्होंने मेरे जीवन का हर प्रकार से मार्गदर्शन से अग्रसर होने की प्रेरणा दी ।
वे चलती फिरती आर्य समाज थे और यहाँ तक कि उन्होंने अपने जीवन की आहुति भी आर्य समाज के एक कार्यक्रम में अजमेर जाते हुए दी । ऐसे अमर हुतात्मा बाबू रामा नन्द जी शिंगला की जन्म शताब्दी के अवसर पर हम सब उन्हें विनम्र भाव से स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करते है ।
राम मोहन राय
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