हम हिंदुस्तानी

*Inner voice*

(Nityanootan Broadcast service)
      भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व उनके मन्त्रिमण्डली सहयोगियों की बात पर यकीन जरूर होना चाहिये कि नागरिकता कानून में 9वा संशोधन नागरिकता देने के बारे में है न कि लेकिन लेने के बारे में । उनकी इस बात को भी गम्भीरता से लेना चाहिए कि वे भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान ,बांग्लादेश तथा अफ़ग़ानिस्तान में शासन तंत्र द्वारा उत्पीड़न के परिणामस्वरूप दयनीय जीवन बिता रहे गैर मुस्लिम नागरिक जो 2014 से पूर्व भारत आ गए उन्हें नागरिकता देना चाहते हैं । इस बात से जहां राजनीतिक रूप से खलबली मची वहीँ बंगाल ,असम व उत्तरपूर्व के प्रदेशो में भी उग्र विरोध शुरू हुआ है । विरोधी राजनीतिक दलों का मानना है कि यह साम्प्रदायिकता से सना है क्यों कि सभी धर्मों के लोगो को नागरिकता देना परन्तु मुस्लिमों को न देना यह बेमानी है जबकि इन देशों में कई मामलों में मुस्लिम भी उत्पीड़ित है ।
     मुझे अपनी गुरु ,माता व मार्गदर्शक दीदी निर्मला देशपांडे जी के साथ कई बार पाकिस्तान जाने का मौका मिला व गत वर्ष बांग्लादेश भी गया । इन देशों में अनेक लोग मेरे व्यक्तिगत व सामाजिक मित्र है । सिंध (पाकिस्तान) में मेरे एक मित्र डॉ विनेश आर्य समाज के प्रचारक है । वे वेद तथा स्वामी दयानंद के अनुयायी होने के साथ-२ वतन परस्त पाकिस्तानी है ।
   वर्ष 1997 में जब मैं पहली बार कराची गया  तो मैने वहाँ के एक हिन्दू मित्र श्री मनोहर  लाल साहनी से आत्मीयता से पूछा कि वहाँ हिन्दुओ की क्या दशा है इस पर उनका जवाब था कि बेचारे मुसलमानों का ही  क्या अच्छा हाल है ? जबकि हालात यह है कि चाहे दुनियां में कोई भी देश हो वहां गरीबों तथा अल्पसंख्यक लोगो के हालात बद से बदतर ही है । हम कुछ उदाहरण देकर  वहाँ की अनुकूल -विपरीत स्थितियों को अच्छे बुरे होने का प्रमाणपत्र नही दे सकते ।
     श्री राहुल गांधी ने जब  बलात्कार पर चर्चा करते हुए भारत की ख्याति *मेक इन इंडिया* को रेप इन इंडिया बताया तो सचमुच बुरा लगा । गुजरात के मुख्यमंत्री रहते वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली को रेप की राजधानी कहा था  तब भी वह ठीक नही था। कई बार ऐसे प्रतीकात्मक वाक्य भी हमे बुरे लगते है और हम अपने मनमाने ढंग से उसकी व्याख्या करते हैं । जबकि सच तो यह है कि ऐसी घटनाएं किसी भी देश-प्रदेश का हुलिया बयान नही कर सकती । क्या ओडिसा में  ईसाई प्रचारक ग्राहम तथा उसके दो बच्चों को जला कर मार देने अथवा अखलाक व पहलू खान की मोब लीनचिंग जो सचमुच निंदनीय व जघन्य है उसे समूचे भारत  को  असहिष्णु राष्ट्र  कहने को अच्छा मानेंगे अथवा देश भर में दलितों अथवा महिलाओं पर हो रहे भेदभाव तथा अत्याचार से क्या इस देश के हर नागरिक को इसमे हिस्सेदार मानेंगे ,सम्भवतः नही ।
      बांग्लादेश में भी अनेक ऐसे मित्र है जो गांधी विचार का अद्भुत कार्य कर रहे है । इन लोगो ने पाकिस्तान बनने के बाद से बांग्लादेश की मुक्ति तक अनेक शासकीय जुल्म सहे है । हम जानते है कि सन 1975 में बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद उनकी दोनों पुत्रियां जिनमे वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना भी है भारत में शरणागत रही । यह तो वहाँ की जनता का पराक्रम रहा कि उन्होंने निरकुंश सैन्य सत्ता को हटा दिया वरना यदि वही स्थिति रहती तो क्या हमारी सरकार दोनों शेख बहनों को नागरिकता नही देती? तस्लीमा नसरीन जैसी बहादुर व निडर महिला यदि भारत की नागरिकता चाहेगी तो हम क्या करेंगे ? सभी सरकारों का चरित्र ऐसा रहा कि अतिवादियों  तथा कठमुल्लों के सामने वे निर्बल नज़र आये और उस वीरांगना को बार -२ तरिस्कृत होना पड़ा । क्या   इन्हें हम इस लिये नागरिकता नही दे पाएंगे कि क्योंकि वे बांग्लादेशी मुस्लिम है ?
     कानून के एक विद्यार्थी के नाते मेरा मत है कि नागरिकता कानून इतना मुक्कमल है कि वह हर शासन को पूरा अधिकार देता है कि वह परिस्थितियों के अनुसार किसी भी देश के उत्पीड़ित नागरिक को उसकी प्रार्थना पर नागरिकता प्रदान कर उसे सम्प्रभु नागरिकता प्रदान कर सकता था फिर इस संशोधन की जरूरत क्यों आ पड़ी थी ? संशोधन से पूर्व भी यह एक्ट सर्वाधिकार पूर्ण था कि वह सरकार को सशक्त करता था कि वह अपने विवेक का इस्तेमाल कर किसी को भी नागरिकता दे अथवा मना करे । संशोधन करके कहीं यह किसी सम्प्रदाय विशेष के लोगो को उकसाने का काम नही हुआ ? यह सर्वथा सही है कि इससे किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता को किसी भी तरह का भय नही होगा  परन्तु राष्ट्रीय रजिस्टर (एन आर सी) को लागू करने की जल्दबाजी जरूर भय व चिंता प्रकट करती है । मामला अब सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है अब इस पर वृहद कानूनी विवेचना होगी ।
    प्रधानमंत्री जी ने बेशक कहा है कि एन आर सी लागू नही होने जा रहा परन्तु राष्ट्रपति जी के संसद में अभिभाषण तथा गृहमंत्री जी के बयानों में इसकी पुष्टि नही है । भारत जैसे विशाल बहुविविधता के देश को एक रखना एक बहुत बड़ा काम है जो होना ही नही अपितु दिखना भी चाहिए । पाकिस्तान और बांग्लादेश में ऐसा हो रहा है ऐसा ही हमे भी करना चाहिए । ऐसा करना व समझना इस देश के लिये अच्छा नही होगा । कभी भी व किसी भी तरह से इस्लामिक पाकिस्तान व हिंदू राष्ट्र नेपाल हमारा आदर्श नही बन सकते ।
      आर एस एस के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी का कथन की हिंदुस्तान में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है कि व्याख्या मन मुताबिक हो सकती है परन्तु सब कुछ होने से पहले उसका हिंदुस्तानी होना ज्यादा जरूरी है । ऐसे ही पाकिस्तान में रहने वाला पाकिस्तानी ,बांग्लादेश में रहने वाला बांग्लादेशी ,अफ़ग़ानिस्तान में रहने वाला अफगानी, नेपाल में रहने वाला नेपाली है । वहाँ के नागरिकों को ऐसा न कह कर हम उन्हें कमजोर ही करेंगे ,न कि उनकी कोई मदद ।
राम मोहन राय
पानीपत/ 26.12.2019

Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

मुजीब, गांधी और टैगोर पर हमले किस के निशाने पर