स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक(गीता जयंती पर विशेष)
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स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक*
मेरी उम्र उस समय 7-8 साल की होगी । न तो हमारा पानीपत शहर बड़ा था औऱ न ही हमारा दायरा । देवी मंदिर जो कि मुश्किल से एक किलोमीटर होगा परन्तु कई खेत पार करके जाना होता था जो ऐसा लगता मानो कई मील दूर है । दिन ढलते ही सभी लोग ऐसे अपने घर मे आ जाते जैसे पक्षी अपने नीड़ में आ जाते हो । शहर के चारो तरफ दीवार थी तथा उनमें निकलने -बड़ने के दरवाजे लगे थे । हम जिस मोहल्ले में रहते थे उसके तीन तरफ रास्ते खुलते थे । एक घेर राइयाँ की तरफ ,दूसरा बाजार की ओर से दौलत हलवाई की तरफ से बाजार में और तीसरा रास्ता था घाटी बार की तरफ जहां सड़क पार करते ही *परम हंस कुटिया* थी । जहाँ सुबह - शाम सत्संग होता और कोई न कोई साधु- संत आते ही रहते । पर वहाँ सिर्फ बड़े - बूढ़े ही जाते थे क्योंकि वहाँ उनके मतलब का ही रूखा सूखा काम ही होता । वहाँ हम बच्चों का क्या काम ,क्योंकि वहाँ प्रशाद तक नही बटता था । इसके विपरीत एक बात और कि हमारा परिवार ठहरा आर्य समाजी जो ऐसे सत्संगों में भी आस्थावान न था ।
पर एक दिन दोपहर बाद उस परमहंस कुटिया में खूब चहल पहल थी । हमारा तो जैसे पूरा मोहल्ला ही वहाँ उमड़ा हुआ था । बच्चे, जवान ,बूढ़े व खास तौर महिलाएं सभी तो वहाँ गए थे और उस लारे में मैं व मेरी बहन मुन्नी भी वहाँ गयी थी । हमे बताया गया था कि वहाँ आज एक युवा सन्यासी जो खूब पढ़ा- लिखा , ऊँचा- लम्बा ,हृष्ट- पुष्ट है कहीं बाहर से आएगा । हम सब आतुरता से उनकी इंतज़ार कर रहे थे, तभी रिक्शा पर एक बहुत ही खूबसूरत साधु वहाँ आये । उन्होंने बहुत थोड़ी देर वहाँ अपना हम बच्चों को न समझने वाला प्रवचन दिया पर फिर क्या था उन महात्मा जी के सभी उपस्थित लोग लट्टू हो गए । अपनी वापसी के लिये रिक्शा पर चढ़ने पर हर कोई उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहता था । वह युवा सन्यासी भी सब को अपनी मुद्रा से सहज ही आकर्षित कर रहा था । उनके जाने के बाद माहौल में सिर्फ उनकी ही चर्चा थी । यह सन्यासी कोई और नही स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक थे ।
स्वामी जी की वाणी पर सरस्वती का वास था । वे ऐसे बोलते थे मानो कोई शहद का माधुर्य बिखेर रहा हो । गीता ज्ञान के तो इतने माहिर कि न केवल उन्हें गीता के पूरे श्लोक कंठस्थ थे वहीँ उनका सरलार्थ जब वे बताते तो श्रोता गदगद हो उठते । हमने सिर्फ सुना था कि महात्मा गांधी के आह्वान पर वकीलों ने वकालत छोड़ दी ,शिक्षकों ने स्कूल - कालेज पर हमने अपने शहर में स्वामी गीतानन्द जी के प्रभाव को देखा कि उनके सम्पर्क में आकर कई वकील ,टीचर्स ,प्रोफेसर ने अपना व्यवसाय छोड़ कर अध्यात्म का रास्ता चुना । हमारे मोहल्ले की ही दो शिक्षित लड़कियां शारदा भटनागर व राज गर्ग जो स्कूल व कालेज में शिक्षिका ने घर -बार छोड़ कर निष्ठा जी महाराज व स्वामी मुक्तानन्द जी महाराज के नाम से गीता के प्रचार-प्रसार के लिये सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ।
शारदा बहन जी (साध्वी निष्ठा जी) हमारे परिवार से विशेष स्नेह रखती थी । दरअसल उनके पिता श्री राम चंद्र भटनागर जो कि रेलवे से सेवा निवृत्त गार्ड थे, मेरे पिता मास्टर सीता राम सैनी के गहरे मित्र थे जिस वजह से उनके घर मे खूब आना जाना था । शारदा बहन जी स्थानीय आई बी कॉलेज में लेक्चरर थी । हम दोनों बहन- भाई ,यदा कदा उनसे मिलने जाते तो वे सदा हमे नैतिक शिक्षा ही देती । एक बार मुझे गीता कंठस्थ करने का चाव हुआ तो उनके प्रोत्साहन व सहयोग से मैने गीता के पहले दो अध्याय ही रट लिए । राज गर्ग बहन जी( वर्तमान स्वामी मुक्तानन्द जी) जो हमारे घर के नजदीक ही दौलत हलवाई की गली की तरफ रहती थी, के पिता श्री बुद्ध सेन गर्ग मेरे पिता के विद्यार्थी थे ,इसलिए उनसे भी खूब अच्छे पारिवारिक सम्बन्ध थे । पर इन दोनों बहनों ने जब घर-बार छोड़ कर सन्यस्त मार्ग अपनाया तो उनके प्रति हमारी श्रद्धा ओर भी बढ़ गयी और कई बार मेरे मन मे भी विचार आता कि स्वामी गीतानन्द जी से दीक्षित होकर मैं भी सन्यासी बन जाऊं और फिर ऐसे ही परमहंस कुटिया में आऊँ जैसे स्वामी जी आये थे ।
हमारे मोहल्ले के तमाम नर-नारियो ने स्वामी जी का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया था बचा था तो हमारा परिवार जो आर्य समाजी होने की वजह से ऐसा न कर सका था । हमारे घर परिवार का वातावरण वैचारिक दृष्टि से उदार था । हमे कोई भी पूजा पद्धति अपनाने से उन्हें कोई परहेज नही था । इसीलिए मुझे स्वामी जी के सानिध्य में जाने की स्वतंत्रता मिली । मैं आयु में छोटा बालक था इसलिये मुझे स्वामी जी से दीक्षा यो नही मिली परन्तु मैं नियमित तौर पर उनके सत्संगों में जाता व पहली कतार में बैठता । पानीपत में जब गीता मंदिर की नींव रखी गयी तो अन्य गणमान्य लोगों के अतिरिक्त मैं भी उसका साक्षी रहा ।
स्वामी गीतानन्द जी का प्रभाव अब निरन्तर न केवल पानीपत में अपितु आसपास भी बढ़ने लगा था । वे गीता पाठ के अतिरिक्त विद्यार्थियो में गीता ज्ञान के प्रचार-प्रसार का कार्य भी बखूबी कर रहे थे और इस कार्य मे उनके सहयोगी थे उनके शिष्य साध्वी निष्ठा जी , स्वामी मुक्तानन्द जी , स्वामी विश्वास जी व अन्य ।
एक दिन हमारी गली में राज किशोरी, बाजे वाली माता जी के घर स्वामी जी पधारे । वहाँ उन्होंने गीता पाठ व गीता माता की जय - गंगा माता की जय के भजन गाये । सब के साथ हम भी झूम रहे थे । स्वामी जी जब वहां से निकलने लगे तो मैंने भी उन से बाल सुलभ शब्दो में आग्रह किया कि हमारे घर भी पधारे ।पर यह क्या वे एक दम चलने को तैयार हो गए । सब भक्तगण हतप्रभ थे व मैं मेरी बहन भी भौचक्की । पर हम डर रहे थे कि हमारी माता जी किसी सामाजिक कार्य से बाहर गयी है जब उन्हें पता चलेगा तो वे हमें खूब डाटेंगी । पर यह हमारे लिये मौका भी था कि घर पर विरोध करने को कोई नही है और यह अवसर ठीक रहेगा । स्वामी जी को कुछ लोगो ने चुगली की तरह कहा कि यह आर्य समाजी घर है और इनके घर इनकी माता-पिता भी घर से बाहर है सम्भवतः अपेक्षित आदर सत्कार भी न हो । इस पर स्वामी जी मुस्कराए और मैं आगे-२ और स्वामी जी मेरे पीछे-२ हमारे घर पहुंच गए । तुरन्त एक तख्त बिछाया गया और वे वहाँ विराजमान हुए व हंस कर बोले कि अब तुम खुश हो । कुछ देर रुक कर चलने लगे ,तभी मेरी मां भी वहाँ पहुंची व भारी संख्या में किसी अनहोनी की आशंका से डर गई । मां के आने से हमारी भी सिट्टीपिट्टी गुम थी कि वह नाराज होगी । माँ को देख कर स्वामी जी बोले कि वे तो इस कन्हैया के कहने को टाल न सके । पर उस दिन माता जी भी प्रसन्न थी ।
वर्ष 1971 में गीता जयंती उत्सव स्वामी गीतानन्द जी की प्रेरणा से पानीपत में मनाया गया । उसी क्रम में गीता पर एक भाषण प्रतियोगिता ,एस डी गर्ल्स स्कूल में आयोजित की जिसमे विभिन्न स्कूलों के लगभग 32 प्रतिभागियों ने भाग लिया । स्वामी जी की उपस्थिति ने मेरा उत्साह दुगना कर दिया और मैने बहुत ही अच्छे ढंग से अपना वक्तव्य दिया और मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया । इस अवसर पर स्वामी जी ने अन्य पुरस्कारों के अतिरिक्त गीता की प्रति भी दी जो मेरे पास आज भी सुरक्षित है ।
स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक ने अपना सम्पूर्ण जीवन परोपकार व धर्म प्रचार में लगाया । अंतिम समय में वे देशदेशान्तर में प्रचार करने में लगे रहे व अंत मे उन्होंने इस नश्वर शरीर को छोड़ा । आज भी न केवल पानीपत में अपितु अन्य गांव, कस्बो , शहरों में उनके हजारों अनुयायी है । गीता जयंती महोत्सव के इस अवसर पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि एवम नमन ।
राम मोहन राय
पानीपत / 07.12.2019
स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक*
मेरी उम्र उस समय 7-8 साल की होगी । न तो हमारा पानीपत शहर बड़ा था औऱ न ही हमारा दायरा । देवी मंदिर जो कि मुश्किल से एक किलोमीटर होगा परन्तु कई खेत पार करके जाना होता था जो ऐसा लगता मानो कई मील दूर है । दिन ढलते ही सभी लोग ऐसे अपने घर मे आ जाते जैसे पक्षी अपने नीड़ में आ जाते हो । शहर के चारो तरफ दीवार थी तथा उनमें निकलने -बड़ने के दरवाजे लगे थे । हम जिस मोहल्ले में रहते थे उसके तीन तरफ रास्ते खुलते थे । एक घेर राइयाँ की तरफ ,दूसरा बाजार की ओर से दौलत हलवाई की तरफ से बाजार में और तीसरा रास्ता था घाटी बार की तरफ जहां सड़क पार करते ही *परम हंस कुटिया* थी । जहाँ सुबह - शाम सत्संग होता और कोई न कोई साधु- संत आते ही रहते । पर वहाँ सिर्फ बड़े - बूढ़े ही जाते थे क्योंकि वहाँ उनके मतलब का ही रूखा सूखा काम ही होता । वहाँ हम बच्चों का क्या काम ,क्योंकि वहाँ प्रशाद तक नही बटता था । इसके विपरीत एक बात और कि हमारा परिवार ठहरा आर्य समाजी जो ऐसे सत्संगों में भी आस्थावान न था ।
पर एक दिन दोपहर बाद उस परमहंस कुटिया में खूब चहल पहल थी । हमारा तो जैसे पूरा मोहल्ला ही वहाँ उमड़ा हुआ था । बच्चे, जवान ,बूढ़े व खास तौर महिलाएं सभी तो वहाँ गए थे और उस लारे में मैं व मेरी बहन मुन्नी भी वहाँ गयी थी । हमे बताया गया था कि वहाँ आज एक युवा सन्यासी जो खूब पढ़ा- लिखा , ऊँचा- लम्बा ,हृष्ट- पुष्ट है कहीं बाहर से आएगा । हम सब आतुरता से उनकी इंतज़ार कर रहे थे, तभी रिक्शा पर एक बहुत ही खूबसूरत साधु वहाँ आये । उन्होंने बहुत थोड़ी देर वहाँ अपना हम बच्चों को न समझने वाला प्रवचन दिया पर फिर क्या था उन महात्मा जी के सभी उपस्थित लोग लट्टू हो गए । अपनी वापसी के लिये रिक्शा पर चढ़ने पर हर कोई उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहता था । वह युवा सन्यासी भी सब को अपनी मुद्रा से सहज ही आकर्षित कर रहा था । उनके जाने के बाद माहौल में सिर्फ उनकी ही चर्चा थी । यह सन्यासी कोई और नही स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक थे ।
स्वामी जी की वाणी पर सरस्वती का वास था । वे ऐसे बोलते थे मानो कोई शहद का माधुर्य बिखेर रहा हो । गीता ज्ञान के तो इतने माहिर कि न केवल उन्हें गीता के पूरे श्लोक कंठस्थ थे वहीँ उनका सरलार्थ जब वे बताते तो श्रोता गदगद हो उठते । हमने सिर्फ सुना था कि महात्मा गांधी के आह्वान पर वकीलों ने वकालत छोड़ दी ,शिक्षकों ने स्कूल - कालेज पर हमने अपने शहर में स्वामी गीतानन्द जी के प्रभाव को देखा कि उनके सम्पर्क में आकर कई वकील ,टीचर्स ,प्रोफेसर ने अपना व्यवसाय छोड़ कर अध्यात्म का रास्ता चुना । हमारे मोहल्ले की ही दो शिक्षित लड़कियां शारदा भटनागर व राज गर्ग जो स्कूल व कालेज में शिक्षिका ने घर -बार छोड़ कर निष्ठा जी महाराज व स्वामी मुक्तानन्द जी महाराज के नाम से गीता के प्रचार-प्रसार के लिये सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ।
शारदा बहन जी (साध्वी निष्ठा जी) हमारे परिवार से विशेष स्नेह रखती थी । दरअसल उनके पिता श्री राम चंद्र भटनागर जो कि रेलवे से सेवा निवृत्त गार्ड थे, मेरे पिता मास्टर सीता राम सैनी के गहरे मित्र थे जिस वजह से उनके घर मे खूब आना जाना था । शारदा बहन जी स्थानीय आई बी कॉलेज में लेक्चरर थी । हम दोनों बहन- भाई ,यदा कदा उनसे मिलने जाते तो वे सदा हमे नैतिक शिक्षा ही देती । एक बार मुझे गीता कंठस्थ करने का चाव हुआ तो उनके प्रोत्साहन व सहयोग से मैने गीता के पहले दो अध्याय ही रट लिए । राज गर्ग बहन जी( वर्तमान स्वामी मुक्तानन्द जी) जो हमारे घर के नजदीक ही दौलत हलवाई की गली की तरफ रहती थी, के पिता श्री बुद्ध सेन गर्ग मेरे पिता के विद्यार्थी थे ,इसलिए उनसे भी खूब अच्छे पारिवारिक सम्बन्ध थे । पर इन दोनों बहनों ने जब घर-बार छोड़ कर सन्यस्त मार्ग अपनाया तो उनके प्रति हमारी श्रद्धा ओर भी बढ़ गयी और कई बार मेरे मन मे भी विचार आता कि स्वामी गीतानन्द जी से दीक्षित होकर मैं भी सन्यासी बन जाऊं और फिर ऐसे ही परमहंस कुटिया में आऊँ जैसे स्वामी जी आये थे ।
हमारे मोहल्ले के तमाम नर-नारियो ने स्वामी जी का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया था बचा था तो हमारा परिवार जो आर्य समाजी होने की वजह से ऐसा न कर सका था । हमारे घर परिवार का वातावरण वैचारिक दृष्टि से उदार था । हमे कोई भी पूजा पद्धति अपनाने से उन्हें कोई परहेज नही था । इसीलिए मुझे स्वामी जी के सानिध्य में जाने की स्वतंत्रता मिली । मैं आयु में छोटा बालक था इसलिये मुझे स्वामी जी से दीक्षा यो नही मिली परन्तु मैं नियमित तौर पर उनके सत्संगों में जाता व पहली कतार में बैठता । पानीपत में जब गीता मंदिर की नींव रखी गयी तो अन्य गणमान्य लोगों के अतिरिक्त मैं भी उसका साक्षी रहा ।
स्वामी गीतानन्द जी का प्रभाव अब निरन्तर न केवल पानीपत में अपितु आसपास भी बढ़ने लगा था । वे गीता पाठ के अतिरिक्त विद्यार्थियो में गीता ज्ञान के प्रचार-प्रसार का कार्य भी बखूबी कर रहे थे और इस कार्य मे उनके सहयोगी थे उनके शिष्य साध्वी निष्ठा जी , स्वामी मुक्तानन्द जी , स्वामी विश्वास जी व अन्य ।
एक दिन हमारी गली में राज किशोरी, बाजे वाली माता जी के घर स्वामी जी पधारे । वहाँ उन्होंने गीता पाठ व गीता माता की जय - गंगा माता की जय के भजन गाये । सब के साथ हम भी झूम रहे थे । स्वामी जी जब वहां से निकलने लगे तो मैंने भी उन से बाल सुलभ शब्दो में आग्रह किया कि हमारे घर भी पधारे ।पर यह क्या वे एक दम चलने को तैयार हो गए । सब भक्तगण हतप्रभ थे व मैं मेरी बहन भी भौचक्की । पर हम डर रहे थे कि हमारी माता जी किसी सामाजिक कार्य से बाहर गयी है जब उन्हें पता चलेगा तो वे हमें खूब डाटेंगी । पर यह हमारे लिये मौका भी था कि घर पर विरोध करने को कोई नही है और यह अवसर ठीक रहेगा । स्वामी जी को कुछ लोगो ने चुगली की तरह कहा कि यह आर्य समाजी घर है और इनके घर इनकी माता-पिता भी घर से बाहर है सम्भवतः अपेक्षित आदर सत्कार भी न हो । इस पर स्वामी जी मुस्कराए और मैं आगे-२ और स्वामी जी मेरे पीछे-२ हमारे घर पहुंच गए । तुरन्त एक तख्त बिछाया गया और वे वहाँ विराजमान हुए व हंस कर बोले कि अब तुम खुश हो । कुछ देर रुक कर चलने लगे ,तभी मेरी मां भी वहाँ पहुंची व भारी संख्या में किसी अनहोनी की आशंका से डर गई । मां के आने से हमारी भी सिट्टीपिट्टी गुम थी कि वह नाराज होगी । माँ को देख कर स्वामी जी बोले कि वे तो इस कन्हैया के कहने को टाल न सके । पर उस दिन माता जी भी प्रसन्न थी ।
वर्ष 1971 में गीता जयंती उत्सव स्वामी गीतानन्द जी की प्रेरणा से पानीपत में मनाया गया । उसी क्रम में गीता पर एक भाषण प्रतियोगिता ,एस डी गर्ल्स स्कूल में आयोजित की जिसमे विभिन्न स्कूलों के लगभग 32 प्रतिभागियों ने भाग लिया । स्वामी जी की उपस्थिति ने मेरा उत्साह दुगना कर दिया और मैने बहुत ही अच्छे ढंग से अपना वक्तव्य दिया और मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया । इस अवसर पर स्वामी जी ने अन्य पुरस्कारों के अतिरिक्त गीता की प्रति भी दी जो मेरे पास आज भी सुरक्षित है ।
स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक ने अपना सम्पूर्ण जीवन परोपकार व धर्म प्रचार में लगाया । अंतिम समय में वे देशदेशान्तर में प्रचार करने में लगे रहे व अंत मे उन्होंने इस नश्वर शरीर को छोड़ा । आज भी न केवल पानीपत में अपितु अन्य गांव, कस्बो , शहरों में उनके हजारों अनुयायी है । गीता जयंती महोत्सव के इस अवसर पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि एवम नमन ।
राम मोहन राय
पानीपत / 07.12.2019
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