छपाक

*Inner Voice*
(Nityanootan Broadcast Service)
  *राष्ट्रीय महिला आयोग,भारत सरकार की अध्यक्ष श्रीमती रेखा शर्मा* की पोस्ट बहुत ही सराहनीय व महत्वपूर्ण है जिसमे उन्होंने कहा है कि फ़िल्म की नायिका व चरित्र इतना महत्वपूर्ण नही है ,जितना उस महिला की व्यथा को उजागर करना है ।
     देश में साम्प्रदायिक माहौल आजकल इतना घिनौना व भयंकर हो गया है कि हर बात को हिन्दू-मुसलमान के नजरिये से देखने व समझने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है । कलाकार की अपनी भी व्यक्तिगत जिंदगी , सामाजिक सरोकार व राजनीतिक विचार होते है । अनेक बार वह अपनी इन सीमाओं से निकल कर समाज के गम्भीर मुद्दों को लेकर अपना किरदार निभाते हुए फ़िल्म बनाता है । हो सकता है कि हम उसकी विचारधारा से सहमत-असहमत हो परन्तु उसके अभिनय से अवश्य सहमत होते है । ख्वाजा अहमद अब्बास , कैफ़ी आज़मी, दिलीप कुमार, जावेद अख्तर ,शबाना आज़मी जैसे अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों के अभिनय से क्या हम इसलिए प्रभावित होने से बचे कि वे सभी मुसलमान है और विचारों में वामपंथी भी । मोहम्मद रफी के गाये हिन्दू धर्म से सम्बंधित भजनों को क्या उन्होंने उसी आस्था व प्रेममय होकर नही गाया जैसे कोई सनातन धर्मी हिन्दू गाता हो फिर दीपिका पादुकोण के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ,दिल्ली में छात्रों के बीच जाने पर एतराज क्यों? हम एक लोकतांत्रिक देश मे रह रहे है। किसी भी नागरिक को उसके मजहब, भाषा व विचारधारा के नाम पर देशभक्ति का प्रमाणपत्र देने का अधिकार किसी को भी नही है ।
    सत्ता जिम्मेदारी देती है । निरंकुश सत्ता सिर्फ तानाशाही । देश मे बढते तनाव व आक्रोश से देशभक्त नागरिकों में चिंता है ,जिसका निराकरण ही प्रगति व विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा ।
राम मोहन राय,
दिल्ली/09.01.2020

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