गुड बाए -फ़िरदौसी -मिचिल
नोआखाली ,बांग्लादेश से एक युवा रंगकर्मी फिरदौसी आलम व उनकी आठ वर्षीय बेटी मिचिल तक़वा उदीची आज लगभग 25 दिन हमारे परिवार के साथ बिता कर स्वदेश लौट गई । हम अभी- उन्हें विदा कर घर लौटे ही है । इस दौरान वे दोनों हम से इतना घुल-मिल कर पारिवारिक माहौल में रहे कि अब उनका जाना अखर रहा है ।
फिरदौसी की अब से पहले हमारी कोई मुलाकात व परिचय नही था । पर सोशल मीडिया ने इस पूरी दुनियां को इतना छोटा कर दिया है कि अब यह एक ग्लोबल विलेज सा लगता है । यह ही सूत्र बना हमारे परिचय का । पर इसे सन्दर्भ दिया ढाका में रह रहे मेरे मित्र प्रिंस ने ,जो अपने देश की कम्युनिस्ट पार्टी का एक अग्रणी नेता है तथा वह और मैं 1980 में लगभग छह माह तक ताशकंद-मास्को (तत्कालीन सोवियत संघ) में एक साथ रहे थे । वैसे तो प्रिंस से भी 1980 के बाद कोई सम्पर्क नही था परन्तु गत वर्ष हमारी बांग्लादेश यात्रा के दौरान लगभग 38 वर्षो बाद हमारी मुलाकात हमारी बहन तंद्रा बरुआ व उनके पति नब कुमार राहा के प्रयासों से हुई थी ।
फिरदौसी ,नोआखाली में एक सांस्कृतिक ग्रुप उदीची (ध्रुव तारा) के साथ जुड़ी है । बांग्लादेश के छोटे पर्दे पर अक्सर वह किसी न किसी अभिनय में दिखती है । साथ-2 मंचीय अभिनय में भी वह पारंगत है । उनका परिवार यानी माता-पिता कठोर धार्मिक प्रवृत्ति के है जबकि वह एक उदार विचारों की महिला है । उनका विवाह बचपन मे ही हो गया था परन्तु पति के साथ अनबन होने की वजह से तलाक हो गया । उनके पास दो ही विकल्प थे । एक वह पुनर्विवाह करे अथवा अपने पैरों पर खड़ी होकर अपनी बेटी का पालन-पोषण कर सबल बनाये । उन्होंने दूसरा रास्ता चुना । एक मिडिल स्कूल पास 18 वर्षीय युवती जिनकी एक वर्ष की बेटी भी थी ,ने अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू की तथा साथ-2 एक रंगकर्मी के तौर पर अपना जीवन भी । आमदनी कम थी पर संकल्प बड़ा था । सहयोगी कोई था नही परन्तु उनके वैचारिक साथियों ने उसकी मदद की और वह आगे बढ़ निकली और आज वह न केवल एक स्थापित कलाकार है वहीं सरकारी कॉन्ट्रेक्टर भी है । अब रोजी-रोटी का साधन बन गया है । वे चाहती है कि उनकी बेटी उन सब विद्याओं को सीखे ताकि वह स्वावलम्बी बन सके ।
फिरदौसी व उनकी बेटी की सोशल साइट्स पर बात होती रहती थी । यद्यपि वह मेरी बेटी की उम्र की है परन्तु वह मुझे भाई कह कर सम्बोधित करती है । वह हमसे मिलने की इच्छुक थी इसके लिये उन्होंने पासपोर्ट बनवाया तथा वीज़ा लेकर भारत आने की तैयारी शुरू की । वह बेहतर ढंग से जानती थी कि उनके लिये हम ,हमारा वातावरण व खान-पान, हमारी भाषा व धर्म बिल्कुल अलग होगा पर वे हिम्मत कर आये और साथ ऐसे रहे जैसे कोई पारिवारिक सदस्य हो । हम तो ठहरे शाकाहारी । वे तो इसे बर्दास्त कर लेती परन्तु बेटी के लिये नामुमकिन था। मैने कहीं पढ़ा-सुना था कि गांधी जी से मिलने जब भी कभी खान बादशाह आते थे तो उन्हें गोश्त खाने की अनुमति रहती थी । हमने भी इस प्रमाण को बता कर पत्नी को समझाया । और अरे वाह ,उन्होंने भी घर मे मांसाहारी भोजन की अनुमति दे दी । अब समस्या यह रही कि खाना लाएगा कौन? पर इस समस्या का भी हल निकाला गया ।
फिरदौसी व उनकी बेटी अपनी छुटियाँ बिताने अपने मायके आयी थी । हमने भी उन सभी रिवायतों को पूरा किया जो बहनों के साथ होती है । वे हमारे साथ आगरा ,मथुरा-वृंदावन और दिल्ली में खूब घूमी । इस दौरान उनका सर्व -धर्म समभाव का भाव रहा जिसकी वजह से कोई परेशानी का सामना नही करना पड़ा । उत्तर भारत मे इस दौरान पड़ रही सर्दी से वे जरूर त्रस्त रहे । वे राजस्थान जाने के इच्छुक थे । हम अपने साथियो के आभारी है जिन्होंने बीकानेर ,जोधपुर, जैसलमेर में मेहमाननवाजी की व्यवस्था भी कर दी थी परन्तु भीषण सर्दी के आक्रमण ने हमे आगे नही बढ़ने दिया । इस दौरान अहमदाबाद से मेरी छोटी बेटी संघमित्रा का हरदम आग्रह रहा कि वे उसके पास भी आये पर वह सम्भव न हो सका ।
उनके प्रवास के दौरान मजे की बात यह रही कि फिरदौसी सिर्फ बांग्ला ही जानती थी और हम इस मीठी भाषा से अनजान । पर एक दो -दिन में ही हम एक दूसरे की बात कामचलाऊ समझने लगे । बेटी मिचिल को हिंदी कार्टून सेरिअल्स ने हिंदी बोलनी -समझनी सीखा दी थी । कई मामलों में वह दुभाषिये का काम भी करती थी । उनके प्रवास के दौरान अनेक इंडो-बांग्लादेश के व्यंजनों को बनाया गया । कई बार ऐसा लगता था कि घर मे कोई पाकशाला- प्रशिक्षण की क्लास चल रही है ।
फिरदौसी व मिचिल आपके जज़्बे व विश्वास को सलाम । आपने हम पर यकीन किया और हमने उस पर पूरा उतरने का प्रयास किया ।
कई दिनों तक हम आप को भुला नही पाएंगे ।
गुड बाय !
We love you n miss you.
अल्लाह हाफ़िज़!
😢
राम मोहन राय
दिल्ली/15.01.2020
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