*Inner voice*
(Nityanootan Broadcast service)
लॉ फर्स्ट ईयर के एक विद्यार्थी से पता चला कि वह एक स्थानीय लॉ कॉलेज में प्रतिवर्ष लगभग एक लाख रुपये फीस देकर पढ़ रहा है । जब मैने अचरज किया तो वह बोला कि सोनीपत में तो एक कॉलेज में एल एल बी की एक साल की फीस लगभग आठ लाख रुपये सालाना है । इन सभी कॉलेजेस में यदि कोई होस्टल में भी रह रहा है तो लगभग इतना ही खर्च अतिरिक्त पड़ता है ।
पानीपत में ही स्कूल टाइम के मेरे अनेक सहपाठी आज प्रतिष्ठित मेडिकल डॉक्टर है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी मेरी तरह ही साधारण ही है । जो एक गवर्मेन्ट एडिड स्कूल में मामूली फीस देकर पढ़े और फिर अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उनका मेडिकल कॉलेज में दाखिला हुआ और फिर व्यवसाय में आये । मैं कह सकता हूं कि इस प्रोफेशन में तमाम विसंगतियों के बावजूद भी उनके प्राइवेट अस्पताल में भारी संख्या में मरीज अपना इलाज अफफोर्डबल खर्च में करवाते है । आज भी सरकारी मेडिकल स्कूल ,कॉलेज अथवा व्यवसायिक संस्थान में इतनी ही फीस है जहाँ एक साधारण पृष्ठभूमि का कोई भी छात्र मामूली फीस देकर पढ़ सकते है । जबकि प्राइवेट संस्थानों में मेडिकल पढ़ाई एक वर्ष में लाखों रुपये खर्च से कम नही । जब कोई करोड़ो खर्च कर अपने प्रोफेशन में आएगा तो वह कमाएगा भी वैसे ही और आज हालात सामने है ।
जिस देश मे 74 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है । करोड़ो लोग ऐसे है जिनकी आय दस हजार से निम्न है ।उस आबादी को तो उच्च शिक्षा के अधिकार से खारिज ही कर दिया गया है । उच्च शिक्षा के न रहते वे या तो डी क्लास का सरकारी काम करेंगे अथवा असंगठित क्षेत्र में ठेके पर मजदूर ।
उच्च वर्ग तथा शासन,जनता पर हर तरह से मनोवैज्ञानिक असर बना रहा है कि सरकारी विश्विद्यालय अथवा अन्य शैक्षणिक संस्थान अपनी उपयोगिता खो चुके है तथा इन्हें या तो बन्द कर देना चाहिए अथवा इन्हें निजि हाथों में सौंप देना चाहिये । आज अनेक ऐसे विश्विद्यालयों में सस्ती अथवा मुफ्त शिक्षा के आंदोलन भी चल रहे है । पिछले दो-तीन महीनों से चल रहे इन आंदोलनों के प्रति सरकार की चुप्पी उनकी मनसा को जाहिर कर रही है । दूसरी तरफ वह जमात भी सक्रिय है जो शायद उच्च शिक्षा अपनी वजह से ग्रहण नही कर पाए परन्तु यह बात कहने में उस्ताद है कि सरकारी समर्थन प्राप्त संस्थान में गुंडे व अराजक तत्व पनप रहे है क्योंकि वे तकरीबन मुफ्त में उनके टैक्स देने से पढ़ रहे है । वैसे तो हर नागरिक ही टैक्स पेयर्स की श्रेणी में है । इनकम , सेल्स तथा अन्य व्यवसायिक टैक्स देने की अपेक्षा वह आदमी टैक्स देने में ज्यादा ईमानदार है जो बीड़ी , बस यात्रा व फुटकर सामान खरीदने में टैक्स देता है ।
भारतीय संविधान में शिक्षा का अधिकार मौलिक हो ऐसा हमारी मांग हो ताकि एक आम गरीब किसान-मजदूर का बच्चा भी उसी छत के नीचे अधिकार पूर्वक शिक्षा ग्रहण कर सके जैसे पैसे वाले घर का बालक ।
ऐसे ही सपनो को लेकर हमारा राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आंदोलन लड़ा गया और यह ही आज की मांग भी है ।
*राम मोहन राय*
पानीपत/11.01.201.20
(Nityanootan Broadcast service)
लॉ फर्स्ट ईयर के एक विद्यार्थी से पता चला कि वह एक स्थानीय लॉ कॉलेज में प्रतिवर्ष लगभग एक लाख रुपये फीस देकर पढ़ रहा है । जब मैने अचरज किया तो वह बोला कि सोनीपत में तो एक कॉलेज में एल एल बी की एक साल की फीस लगभग आठ लाख रुपये सालाना है । इन सभी कॉलेजेस में यदि कोई होस्टल में भी रह रहा है तो लगभग इतना ही खर्च अतिरिक्त पड़ता है ।
पानीपत में ही स्कूल टाइम के मेरे अनेक सहपाठी आज प्रतिष्ठित मेडिकल डॉक्टर है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी मेरी तरह ही साधारण ही है । जो एक गवर्मेन्ट एडिड स्कूल में मामूली फीस देकर पढ़े और फिर अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उनका मेडिकल कॉलेज में दाखिला हुआ और फिर व्यवसाय में आये । मैं कह सकता हूं कि इस प्रोफेशन में तमाम विसंगतियों के बावजूद भी उनके प्राइवेट अस्पताल में भारी संख्या में मरीज अपना इलाज अफफोर्डबल खर्च में करवाते है । आज भी सरकारी मेडिकल स्कूल ,कॉलेज अथवा व्यवसायिक संस्थान में इतनी ही फीस है जहाँ एक साधारण पृष्ठभूमि का कोई भी छात्र मामूली फीस देकर पढ़ सकते है । जबकि प्राइवेट संस्थानों में मेडिकल पढ़ाई एक वर्ष में लाखों रुपये खर्च से कम नही । जब कोई करोड़ो खर्च कर अपने प्रोफेशन में आएगा तो वह कमाएगा भी वैसे ही और आज हालात सामने है ।
जिस देश मे 74 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है । करोड़ो लोग ऐसे है जिनकी आय दस हजार से निम्न है ।उस आबादी को तो उच्च शिक्षा के अधिकार से खारिज ही कर दिया गया है । उच्च शिक्षा के न रहते वे या तो डी क्लास का सरकारी काम करेंगे अथवा असंगठित क्षेत्र में ठेके पर मजदूर ।
उच्च वर्ग तथा शासन,जनता पर हर तरह से मनोवैज्ञानिक असर बना रहा है कि सरकारी विश्विद्यालय अथवा अन्य शैक्षणिक संस्थान अपनी उपयोगिता खो चुके है तथा इन्हें या तो बन्द कर देना चाहिए अथवा इन्हें निजि हाथों में सौंप देना चाहिये । आज अनेक ऐसे विश्विद्यालयों में सस्ती अथवा मुफ्त शिक्षा के आंदोलन भी चल रहे है । पिछले दो-तीन महीनों से चल रहे इन आंदोलनों के प्रति सरकार की चुप्पी उनकी मनसा को जाहिर कर रही है । दूसरी तरफ वह जमात भी सक्रिय है जो शायद उच्च शिक्षा अपनी वजह से ग्रहण नही कर पाए परन्तु यह बात कहने में उस्ताद है कि सरकारी समर्थन प्राप्त संस्थान में गुंडे व अराजक तत्व पनप रहे है क्योंकि वे तकरीबन मुफ्त में उनके टैक्स देने से पढ़ रहे है । वैसे तो हर नागरिक ही टैक्स पेयर्स की श्रेणी में है । इनकम , सेल्स तथा अन्य व्यवसायिक टैक्स देने की अपेक्षा वह आदमी टैक्स देने में ज्यादा ईमानदार है जो बीड़ी , बस यात्रा व फुटकर सामान खरीदने में टैक्स देता है ।
भारतीय संविधान में शिक्षा का अधिकार मौलिक हो ऐसा हमारी मांग हो ताकि एक आम गरीब किसान-मजदूर का बच्चा भी उसी छत के नीचे अधिकार पूर्वक शिक्षा ग्रहण कर सके जैसे पैसे वाले घर का बालक ।
ऐसे ही सपनो को लेकर हमारा राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आंदोलन लड़ा गया और यह ही आज की मांग भी है ।
*राम मोहन राय*
पानीपत/11.01.201.20
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