सुपथ पर चले -अफवाहों से बचे । करे राष्ट्र निर्माण
*सुपथ पर चले -झूठ ,प्रपंच और अफवाहों से बचें*
*Inner voice*
*Nityanootan Broadcast Service* )
बचपन से ही मेरे माता-पिता की प्रेरणा रहती की गायत्री मंत्र का पाठ करके अपनी शुद्ध बुद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हम सुपथ पर चले व निंदा- चुगली, घृणा ,प्रपंच व झूठ से बचे । वे हमें इसका सस्वर पाठ करवाते ।
*ॐ *भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
गायत्री मंत्र का अर्थ*
... *उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें. वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें*.
वे लोग सचमुच ही दया के पात्र है जो सुबह-२ उठते ही हिन्दू-मुसलमान का राग अलापने लगते है ।
मेरे कई मित्र हमे ऐसे ही मैसेज भेजते है । उन्हें लगता है कि हम इससे परेशान होंगे । पहले तो सचमुच ऐसा हुआ ,पर अब ऐसे लोगों पर दया आती है । कई भाई-बहन तो ऐसे मैसेज फॉरवर्ड करेंगे जो उन्होंने ने भी नही पढ़े ,बस उन पर हिन्दू-मुसलमान का टैग होना चाहिये बस फिर क्या ,उनकी प्रातःकालीन कार्यवाही शुरू ।
आर्य समाजी विचारो का मेरे माता-पिता पर गहरा प्रभाव रहा है । वैसे ही संस्कार हमें भी मिले । 5-6साल की उम्र में ही सन्ध्या-हवन के सभी वैदिक मन्त्र कंठस्थ करवा दिए गए । आर्य समाज भवन में जाते और वहाँ विद्वान उपदेशको के विचार सुनते । आर्य वीर दल और आर्य युवक समाज के शिविर भी जीवन निर्माण मूल्यों को समझने में सहायक रही । आर्य समाज के चौथे नियम में स्पष्ट कहा था *संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है* । यह ही एक ऐसी आख्या रही जिसने संकीर्णता से मुक्त किया और *वसुधैव कुटुम्बकम* का वाद समझा कर एक विश्व नागरिक बनने की दृष्टि दी ।
मेरा जन्म एक पिछड़ी सैनी (माली) जाति में हुआ था । मेरे पिता *मास्टर सीता राम सैनी* हमारे क्षेत्र में हमारी जाति में पहले ग्रेजुएट थे । इतिफाक की बात देखिए वे जिस जैन हाई स्कूल ,पानीपत में पढ़े ,वहीँ 1928-1948 तक उर्दू ,अरबी और फ़ारसी के टीचर रहे । पिता जी का मानना था कि बिरादरी के अनपढ़ लोगो को पढ़ाई के लिये प्रेरित करना भी एक राष्ट्र व समाज सेवा है । इसीलिए उन्होंने *संत साधु सिंह (रोपड़), महाशय भरत सिंह( रोहतक), महाशय लालमणि सिंह( टटेसर), श्री ज्ञानेंद्र सिंह रेवाड़ी, महाशय ताराचंद नारनौल* यह सब वे लोग थे जो विचारधारा से आर्य समाज से प्रभावित थे, परंतु काम करते थे बिरादरी में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का। उन्हीं लोगों के सानिध्य में हमें विकसित होने का अवसर मिला। मेरी माता *श्रीमती सीता रानी स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी थी तथा कांग्रेस की अग्रणी महिला कार्यकत्री* थीं। उन्होंने हमारे शहर में जहां आर्य महिला समाज, रेडक्रॉस सोसाइटी इत्यादि संस्थाओं का निर्माण किया, वही वह दिल्ली- हरियाणा सैनी समाज की अनेक वर्षों तक अध्यक्ष रहीं।
कुछ मित्र हमें मुसलमानों का समर्थक कहकर उकसाने की कोशिश करते हैं। मेरा उनसे विनम्र निवेदन है कि हमें संकीर्णता का पाठ न तो पारिवारिक संस्कार में मिला न ही शिक्षण के दौरान ऐसे अध्यापकों से जो किसी भी प्रकार की घृणा एवं भेदभाव की बात करती हो। विद्यार्थी काल में मैं *श्री दीपचन्द्र निर्मोही* जी के जीवन व्यक्तित्व एवं विचारधारा के प्रति आकर्षित रहा। वह भी एक ऐसे गुर जो हिंदी आंदोलन के सत्याग्रह में जेल गए तथा जिन्होंने गौरक्षा सत्याग्रह में भी भाग लिया। इन सब के बावजूद वह खुले विचारों के व्यक्ति रहे और यह उन्हीं का प्रभाव था कि वामपंथ के प्रति प्रभावित होने के बावजूद आर्य समाज से नाता कभी नहीं टूटा। हमें सदैव इस बात के प्रति सजगता रही कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और उसके लिए भारत में रहने वाले तमाम धर्मों के लोगों को एक साथ रखना होगा। इसलिए जब भी कभी किसी भी प्रकार की कोई ऐसी आशंका पनपती है जो हमारे सांप्रदायिक एवं सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करती है तो मन व्यथित हो जाता है ।लोकतंत्र में बेशक बहुसंख्या की विजय होती है ,परंतु विजय प्राप्त करने के बाद उस बहुसंख्या का दायित्व बन जाता है कि वह अल्पसंख्या अर्थात सभी लोगों को जोड़कर चले और उनके चिंतन में सबका साथ- सबका विकास की भावना हो।बहुसंख्यकों की विजय चुनाव में बेशक हो, परंतु शासन करते समय सब में एकरूपता हो । बहुसंख्या शब्द का प्रयोग इस लेख के संबंध में राजनीतिक है अर्थात जिन्हें चुनाव में ज्यादा स्थान प्राप्त हो। जबकि सामाजिक एवं संवैधानिक
मायने में कानून के सामने सब बराबर है। इन तमाम बातों की चर्चा करते हुए किसी भी तरह 1982- 84 तक के कार्यकाल में पंजाब में मिलिटेंसी का प्रादुर्भाव, हरियाणा में उसके प्रतिरोध में सिखों को अपमानित करने, उनके धार्मिक ग्रंथों को जलाने, मासूम लोगों की हत्या को कभी भी भुला नहीं पाता। उस समय जब भी हम लोगों को एक साथ जोड़ने की बात कहते तो लोग हमारे प्रति शंकित हो जाते और हमारा आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए परिहास करते ।उस समय भी हमारा प्रयास होता कि हम मंदिरों, गुरुद्वारों और अन्य धार्मिक स्थलों पर जाकर राष्ट्रीय एकता, शांति एवं सद्भाव की बात करें । आतंकी संगठन शिव शंभू दल के मुकाबले भगत सिंह सभा की स्थापना कर हम लोगों ने सांप्रदायिक सौहार्द का काम उन विपरीत परिस्थितियों में किया जब सभी सिखों को अकाली कहा जाता था और सभी अकालियों को आतंकवादी। बचपन से ही हम लोग विभिन्न पर्वों पर गुरुद्वारों से निकलने वाले नगर कीर्तन में शरीक होते थे। पर उन काले वर्षों में मेरे शहर में नगर कीर्तन निकलने भी बंद हो गए थे ।परंतु वर्ष 1987 में जब अनेक वर्षों बाद गुरुपूरब के अवसर पर एक बार फिर शोभायात्रा निकली तो उसे देखकर मैं भावुक हो गया था और आंखें छ्लछला गई थी ।मैं विचारों से आर्य समाजी रहा, परंतु कर्मों से सर्व धर्म समभाव का हामी रहा। *मेरी गुरु दीदी निर्मला देशपांडे* उसी दौर में अपने साथियों को लेकर पंजाब यात्रा पर गई थी। जगह-जगह गुरुद्वारों मन्दिरो और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर रुक कर उन्होंने सद्भाव का संदेश दिया था। हमारे एक अन्य वरिष्ठ साथी *सरदार दया सिंह ने भी पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रोफेसर शेर सिंह* के साथ मिलकर सिख- आर्य समाज यात्रा पूरे हरियाणा- पंजाब में चलाई ।जिसका मकसद था- सिख एवं आर्य समाजी किसी भी प्रकार की संकीर्णता से उठकर *एक ईश्वर तथा सरबत का भला हो अर्थात सर्वे भवंतु सुखिन:* पर एकमत है। इसलिए उन्हें मिलकर काम करना चाहिए ।
आर्य समाज में वैचारिक एवं सैद्धांतिक तौर पर मैं *स्वामी अग्निवेश* जी का समर्थक रहा हूं। मुझे *पंडित लेखराम एवं स्वामी सत्यानन्द जी* द्वारा रचित स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवन कथा को पढ़ने का अवसर मिला है। अध्ययन के दौरान मैंने पाया कि *महर्षि दयानंद सरस्वती ने जिस तरह अपने मिशन के प्रचार- प्रसार के लिए इंटे और पत्थर खाए ,विरोधियों की गालियां एवं अपमान सहे , परंतु वह सत्य मार्ग से नहीं हटे। यदि स्वामी दयानंद के पथ पर कोई सही मायनों में अग्रसर है तो वह स्वामी अग्निवेश है* । जो अपने जीवन एवं कार्यों से स्वयं सत्य मार्ग का प्रचार करते हुए निरंतर अग्रसर हैं। इसके लिए उन्होंने गुंडा तत्वों की मार सहन की है, अपमान का सामना किया है और दयानंद की तरह ईसाईयों व मुसलमानों के समर्थक होने के आरोप सहे है ।वह अपने व्याख्यान का प्रारंभ ही *ओम बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम*, *एक ओंकार सतनाम करता पुरख* से करते हैं। उनके विरोधी उन्हें *कम्युनिस्ट, नक्सली, आतंकवादी* आदि आदि विशेषणों से अलंकृत भी करते हैं। परंतु वे सदैव सत्य मार्ग पर अडिग हैं।
ऐसी स्थिति में जब सरकार का विरोध करना राष्ट्रद्रोह माना जाता हो, शांति, प्रेम एवं सद्भाव की बात करने को हिंदू विरोधी एवं मुस्लिम परस्ती कहा जाता हो, ऐसे समय में ऋषि दयानंद और आर्य समाज का काम करना बड़ा मुश्किल है। भयावह स्थिति यह है कि आर्य समाज का संपूर्ण नेतृत्व किन्हीं विशेष संगठनों के दबाव में है और सच कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। ऐसे समय में बेशक काम करने में काफी दिक्कत है, परंतु हम काम करना जारी रखेंगे। मेरा सभी मित्रों से निवेदन है कि वह प्रातः काल उठकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की अफवाहों, गप्पों एवं झूठ को फॉरवर्ड ना कर वेद मंत्रों को फॉरवर्ड करें जिसमें कहा है-
**अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्*।
*युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम* ॥
सब व्यक्त वस्तुओं के जानने वाले हे अग्निदेव! हमे सुपथ से, उत्तम मार्ग से आनन्द की ओर ले चल; पाप का कुटिलतापूर्ण आकर्षण हमसे हटा दे, दूर कर दे।
पाखण्ड ,अंधविश्वास तथा व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की झूठी अफवाहें हमे राष्ट्र विद्रोह की तरफ ही ले जाएगी । इसलिये ऐसी मिथ्या जानकारी का न तो मिथ्या प्रचार करें व न ही इसमे सहयोगी बने । स्मरण रहे राष्ट्र हित सर्वोपरि है । हम एक और विभाजन नही चाहते ।
राम मोहन राय,
पानीपत
03.02.2020
*Inner voice*
*Nityanootan Broadcast Service* )
बचपन से ही मेरे माता-पिता की प्रेरणा रहती की गायत्री मंत्र का पाठ करके अपनी शुद्ध बुद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हम सुपथ पर चले व निंदा- चुगली, घृणा ,प्रपंच व झूठ से बचे । वे हमें इसका सस्वर पाठ करवाते ।
*ॐ *भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
गायत्री मंत्र का अर्थ*
... *उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें. वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें*.
वे लोग सचमुच ही दया के पात्र है जो सुबह-२ उठते ही हिन्दू-मुसलमान का राग अलापने लगते है ।
मेरे कई मित्र हमे ऐसे ही मैसेज भेजते है । उन्हें लगता है कि हम इससे परेशान होंगे । पहले तो सचमुच ऐसा हुआ ,पर अब ऐसे लोगों पर दया आती है । कई भाई-बहन तो ऐसे मैसेज फॉरवर्ड करेंगे जो उन्होंने ने भी नही पढ़े ,बस उन पर हिन्दू-मुसलमान का टैग होना चाहिये बस फिर क्या ,उनकी प्रातःकालीन कार्यवाही शुरू ।
आर्य समाजी विचारो का मेरे माता-पिता पर गहरा प्रभाव रहा है । वैसे ही संस्कार हमें भी मिले । 5-6साल की उम्र में ही सन्ध्या-हवन के सभी वैदिक मन्त्र कंठस्थ करवा दिए गए । आर्य समाज भवन में जाते और वहाँ विद्वान उपदेशको के विचार सुनते । आर्य वीर दल और आर्य युवक समाज के शिविर भी जीवन निर्माण मूल्यों को समझने में सहायक रही । आर्य समाज के चौथे नियम में स्पष्ट कहा था *संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है* । यह ही एक ऐसी आख्या रही जिसने संकीर्णता से मुक्त किया और *वसुधैव कुटुम्बकम* का वाद समझा कर एक विश्व नागरिक बनने की दृष्टि दी ।
मेरा जन्म एक पिछड़ी सैनी (माली) जाति में हुआ था । मेरे पिता *मास्टर सीता राम सैनी* हमारे क्षेत्र में हमारी जाति में पहले ग्रेजुएट थे । इतिफाक की बात देखिए वे जिस जैन हाई स्कूल ,पानीपत में पढ़े ,वहीँ 1928-1948 तक उर्दू ,अरबी और फ़ारसी के टीचर रहे । पिता जी का मानना था कि बिरादरी के अनपढ़ लोगो को पढ़ाई के लिये प्रेरित करना भी एक राष्ट्र व समाज सेवा है । इसीलिए उन्होंने *संत साधु सिंह (रोपड़), महाशय भरत सिंह( रोहतक), महाशय लालमणि सिंह( टटेसर), श्री ज्ञानेंद्र सिंह रेवाड़ी, महाशय ताराचंद नारनौल* यह सब वे लोग थे जो विचारधारा से आर्य समाज से प्रभावित थे, परंतु काम करते थे बिरादरी में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का। उन्हीं लोगों के सानिध्य में हमें विकसित होने का अवसर मिला। मेरी माता *श्रीमती सीता रानी स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी थी तथा कांग्रेस की अग्रणी महिला कार्यकत्री* थीं। उन्होंने हमारे शहर में जहां आर्य महिला समाज, रेडक्रॉस सोसाइटी इत्यादि संस्थाओं का निर्माण किया, वही वह दिल्ली- हरियाणा सैनी समाज की अनेक वर्षों तक अध्यक्ष रहीं।
कुछ मित्र हमें मुसलमानों का समर्थक कहकर उकसाने की कोशिश करते हैं। मेरा उनसे विनम्र निवेदन है कि हमें संकीर्णता का पाठ न तो पारिवारिक संस्कार में मिला न ही शिक्षण के दौरान ऐसे अध्यापकों से जो किसी भी प्रकार की घृणा एवं भेदभाव की बात करती हो। विद्यार्थी काल में मैं *श्री दीपचन्द्र निर्मोही* जी के जीवन व्यक्तित्व एवं विचारधारा के प्रति आकर्षित रहा। वह भी एक ऐसे गुर जो हिंदी आंदोलन के सत्याग्रह में जेल गए तथा जिन्होंने गौरक्षा सत्याग्रह में भी भाग लिया। इन सब के बावजूद वह खुले विचारों के व्यक्ति रहे और यह उन्हीं का प्रभाव था कि वामपंथ के प्रति प्रभावित होने के बावजूद आर्य समाज से नाता कभी नहीं टूटा। हमें सदैव इस बात के प्रति सजगता रही कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और उसके लिए भारत में रहने वाले तमाम धर्मों के लोगों को एक साथ रखना होगा। इसलिए जब भी कभी किसी भी प्रकार की कोई ऐसी आशंका पनपती है जो हमारे सांप्रदायिक एवं सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करती है तो मन व्यथित हो जाता है ।लोकतंत्र में बेशक बहुसंख्या की विजय होती है ,परंतु विजय प्राप्त करने के बाद उस बहुसंख्या का दायित्व बन जाता है कि वह अल्पसंख्या अर्थात सभी लोगों को जोड़कर चले और उनके चिंतन में सबका साथ- सबका विकास की भावना हो।बहुसंख्यकों की विजय चुनाव में बेशक हो, परंतु शासन करते समय सब में एकरूपता हो । बहुसंख्या शब्द का प्रयोग इस लेख के संबंध में राजनीतिक है अर्थात जिन्हें चुनाव में ज्यादा स्थान प्राप्त हो। जबकि सामाजिक एवं संवैधानिक
मायने में कानून के सामने सब बराबर है। इन तमाम बातों की चर्चा करते हुए किसी भी तरह 1982- 84 तक के कार्यकाल में पंजाब में मिलिटेंसी का प्रादुर्भाव, हरियाणा में उसके प्रतिरोध में सिखों को अपमानित करने, उनके धार्मिक ग्रंथों को जलाने, मासूम लोगों की हत्या को कभी भी भुला नहीं पाता। उस समय जब भी हम लोगों को एक साथ जोड़ने की बात कहते तो लोग हमारे प्रति शंकित हो जाते और हमारा आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए परिहास करते ।उस समय भी हमारा प्रयास होता कि हम मंदिरों, गुरुद्वारों और अन्य धार्मिक स्थलों पर जाकर राष्ट्रीय एकता, शांति एवं सद्भाव की बात करें । आतंकी संगठन शिव शंभू दल के मुकाबले भगत सिंह सभा की स्थापना कर हम लोगों ने सांप्रदायिक सौहार्द का काम उन विपरीत परिस्थितियों में किया जब सभी सिखों को अकाली कहा जाता था और सभी अकालियों को आतंकवादी। बचपन से ही हम लोग विभिन्न पर्वों पर गुरुद्वारों से निकलने वाले नगर कीर्तन में शरीक होते थे। पर उन काले वर्षों में मेरे शहर में नगर कीर्तन निकलने भी बंद हो गए थे ।परंतु वर्ष 1987 में जब अनेक वर्षों बाद गुरुपूरब के अवसर पर एक बार फिर शोभायात्रा निकली तो उसे देखकर मैं भावुक हो गया था और आंखें छ्लछला गई थी ।मैं विचारों से आर्य समाजी रहा, परंतु कर्मों से सर्व धर्म समभाव का हामी रहा। *मेरी गुरु दीदी निर्मला देशपांडे* उसी दौर में अपने साथियों को लेकर पंजाब यात्रा पर गई थी। जगह-जगह गुरुद्वारों मन्दिरो और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर रुक कर उन्होंने सद्भाव का संदेश दिया था। हमारे एक अन्य वरिष्ठ साथी *सरदार दया सिंह ने भी पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रोफेसर शेर सिंह* के साथ मिलकर सिख- आर्य समाज यात्रा पूरे हरियाणा- पंजाब में चलाई ।जिसका मकसद था- सिख एवं आर्य समाजी किसी भी प्रकार की संकीर्णता से उठकर *एक ईश्वर तथा सरबत का भला हो अर्थात सर्वे भवंतु सुखिन:* पर एकमत है। इसलिए उन्हें मिलकर काम करना चाहिए ।
आर्य समाज में वैचारिक एवं सैद्धांतिक तौर पर मैं *स्वामी अग्निवेश* जी का समर्थक रहा हूं। मुझे *पंडित लेखराम एवं स्वामी सत्यानन्द जी* द्वारा रचित स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवन कथा को पढ़ने का अवसर मिला है। अध्ययन के दौरान मैंने पाया कि *महर्षि दयानंद सरस्वती ने जिस तरह अपने मिशन के प्रचार- प्रसार के लिए इंटे और पत्थर खाए ,विरोधियों की गालियां एवं अपमान सहे , परंतु वह सत्य मार्ग से नहीं हटे। यदि स्वामी दयानंद के पथ पर कोई सही मायनों में अग्रसर है तो वह स्वामी अग्निवेश है* । जो अपने जीवन एवं कार्यों से स्वयं सत्य मार्ग का प्रचार करते हुए निरंतर अग्रसर हैं। इसके लिए उन्होंने गुंडा तत्वों की मार सहन की है, अपमान का सामना किया है और दयानंद की तरह ईसाईयों व मुसलमानों के समर्थक होने के आरोप सहे है ।वह अपने व्याख्यान का प्रारंभ ही *ओम बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम*, *एक ओंकार सतनाम करता पुरख* से करते हैं। उनके विरोधी उन्हें *कम्युनिस्ट, नक्सली, आतंकवादी* आदि आदि विशेषणों से अलंकृत भी करते हैं। परंतु वे सदैव सत्य मार्ग पर अडिग हैं।
ऐसी स्थिति में जब सरकार का विरोध करना राष्ट्रद्रोह माना जाता हो, शांति, प्रेम एवं सद्भाव की बात करने को हिंदू विरोधी एवं मुस्लिम परस्ती कहा जाता हो, ऐसे समय में ऋषि दयानंद और आर्य समाज का काम करना बड़ा मुश्किल है। भयावह स्थिति यह है कि आर्य समाज का संपूर्ण नेतृत्व किन्हीं विशेष संगठनों के दबाव में है और सच कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। ऐसे समय में बेशक काम करने में काफी दिक्कत है, परंतु हम काम करना जारी रखेंगे। मेरा सभी मित्रों से निवेदन है कि वह प्रातः काल उठकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की अफवाहों, गप्पों एवं झूठ को फॉरवर्ड ना कर वेद मंत्रों को फॉरवर्ड करें जिसमें कहा है-
**अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्*।
*युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम* ॥
सब व्यक्त वस्तुओं के जानने वाले हे अग्निदेव! हमे सुपथ से, उत्तम मार्ग से आनन्द की ओर ले चल; पाप का कुटिलतापूर्ण आकर्षण हमसे हटा दे, दूर कर दे।
पाखण्ड ,अंधविश्वास तथा व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की झूठी अफवाहें हमे राष्ट्र विद्रोह की तरफ ही ले जाएगी । इसलिये ऐसी मिथ्या जानकारी का न तो मिथ्या प्रचार करें व न ही इसमे सहयोगी बने । स्मरण रहे राष्ट्र हित सर्वोपरि है । हम एक और विभाजन नही चाहते ।
राम मोहन राय,
पानीपत
03.02.2020
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