मौलाना आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान, टोंक (राजस्थान)
*मौलाना आज़ाद अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान ,टोंक*( राजस्थान)
(Nityanootan Broadcast Service)
मेरे पिता *मा0 सीता राम सैनी* जैन हाई स्कूल ,पानीपत में उर्दू,अरबी व फ़ारसी के टीचर थे । वे बताते थे कि पढ़ने व सीखने की इच्छा उन्हें बचपन से ही थी । इसीलिये दसवीं तक वे इसी स्कूल में पढ़े । उस समय लोगो के घरों में बिजली नही थी ,ऐसे हालात में भी देर रात तक दीये की रोशनी में पढ़ना एक आम बात थी । वे ये भी बताते कि घर के आर्थिक हालात भी कोई सम्पन्न नही थे । ऐसे में नजदीक के देवी मंदिर में अर्पित किये गए दियों की रोशनी में वे पढ़ने के लिये जाते थे । मेरे बड़े भाई श्री मन मोहन बहादुर की पढ़ाई तक तो उर्दू की पढ़ाई थी परन्तु हमारे तक आते-२ उर्दू का खात्मा कर हिंदी -देवनागरी लिपि में पाठ्यक्रम हो गए और हम इस मीठी भाषा से वंचित हो गए । मेरे पिता चाहते थे कि घर मे कोई न कोई तो उर्दू,अरबी और फ़ारसी को सीखे पर वातावरण न होने की वजह से न सीख सके पर हां मेरे बेटे उत्कर्ष को उन्होंने अपना शागिर्द बनाने की कोशिश की परन्तु इतने उनका रुख्सत होने का समय हो गया था । अपने इंतकाल फरमाने की पहली शाम तक उन्होंने अपने पोते उत्कर्ष की उर्दू की क्लास ली ।
आज मेरी खुशनसीबी है कि मैं राजस्थान के लखनऊ ,अदब के शहर ,मीठे खरबूजों व पानी की नगरी और हिन्दू मुस्लिम एकता की मसकान के नाम से ख्यातिप्राप्त नगरी टोंक में अपने मित्र श्री मुजीब अता आज़ाद के निमंत्रण पर यहां के विश्व प्रसिद्ध अरबी फारसी शोध संस्थान में पूज्यपाद महात्मा गांधी एवम उनकी स्वनाम धन्या पत्नी कस्तूरबा के 150 वे जन्म जयंती वर्ष के अवसर पर तीन दिवसीय सेमिनार के समापन समारोह में भाग लेने के लिये उपस्थित हुं । इस सेमिनार में देश-विदेश के लगभग 250 विद्वान भाग ले रहे है । मुझे इस्राइल से आये एक विद्वान श्री बरे से मिल कर बेहद प्रसन्नता हुई जो हिंदुस्तान के पठानों पर शोध कर रहे है । इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे शोधकर्ताओं से भी मिलने का अवसर मिला जो न केवल कला, संस्कृति पर अद्भुत काम कर रहे है वहीं धर्म व सभ्यता पर भी कार्यरत है ।
मेरे स्वर्गीय पिता यदि आज जीवित होते तो वे अत्यंत प्रसन्न होते कि आज मैं उनकी अदबी भाषाओं के केंद्र में हूं । अब यह केंद्र *मौलाना आज़ाद अरबी व फ़ारसी शोध केंद्र* के नाम से जाना जाता है । इस केंद्र के संस्थापक निदेशक ,भाषाविद साहबजादा डॉ शौकत अली खान है जिन्होंने अपने परिश्रम एवम योग्यता से इसे ऊचाइयों पर ले जाने का काम किया है । यहां की लाइब्रेरी में अनेक लेखकों की लगभग 90,000 पुस्तके जो ज्ञान-विज्ञान , धर्म एवम संस्कृति , गणित ,ज्योतिष ,खगोल, इतिहास , राजनीति के विभिन्न पहलू से सम्बंधित है, सजी है । हजारों की संख्या में दुर्लभ पांडुलिपियां है जिन्हें बहुत ही आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से संजोया गया ताकि आगामी अनेक पीढ़ियों तक यह सुरक्षित रहे । मुग़ल बादशाहों द्वारा हस्त लिखित अनेक ग्रन्थ यहां रखे है । बादशाह बाबर से बहादुर शाह जफर की तहरीरें भी यहां हिफाजत में है । पवित्र कुरान शरीफ की लगभग 10× 5 फ़ीट लम्बाई चौड़ाई में प्रति तथा बिल्कुल एक 2×2 इंच की डिब्बी में एक बहुत ही छोटी प्रति यहां मिलेगी । टोंक के विभिन्न नवाबो के हस्तलिखित हुकुमनामे भी दीवारों पर प्रदर्शित है वहीं उनकी पोषक तथा हथियार भी बहुत ही खूबसूरती से दर्शाए है । लायब्रेरी तथा संग्रहालय के व्यवस्थापक श्री *सैय्यद बदर अहमद साहब* एक बहुत ही संजीदा ,भावुक तथा विद्वान व्यक्तित्व के धनी है जो हर वस्तु का बहुत ही सुंदर ढंग से विवेचन करते है ।
इसी संस्थान में देश-विदेश से आये अनेकों शोधकर्ताओं से भेंट करने का भी अवसर मिला । ये सभी वे लोग है जिनकी विद्वता तथा प्रतिबद्धता का कोई सानी नही है । युवाओ की इस संख्या को देख कर हर कोई आश्वस्त हो सकता है कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है । कैलीग्राफी में तो इनका कोई मुकाबला नही । इनकी एक-२ कृति अद्भुत तथा अनुपम है ।
*साहबजादा डॉ शौकत अली खान* एक विद्वान पुरुष है जिन्होंने अनेक विश्वविख्यात आलिमों से तालीम हासिल की है । यह उनकी दूर दृष्टि एवम कड़ी मेहनत का ही परिणाम है कि यह संस्थान निरन्तर प्रगति पथ पर है । डॉ खान ने अनेक भाषाओं में सैंकड़ो पुस्तकों को लिखा है जिसे दुनिया भर के विश्विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है । उनके सुपुत्र *साहबजादा डॉ सौलत अली खान* जो पिता के अनुरूप ही दुनियावी व रूहानी तालीम के माहिर हैं ,का इल्मी दुनियां में वह ही मुकाम है जो उनके पिता का । वर्तमान में वे महृषि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी ,अजमेर के अरबी -फारसी विभाग के अध्यक्ष है तथा डेपुटेशन पर बतौर निदेशक पदभार सम्भाले है । उनके आने से इस संस्थान ने नए कीर्तिमान स्थापित किये है ।
ऐसे संस्थानों को ओर अधिक संरक्षण की आवश्यकता है । पूर्व उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह जी शेखावत का इस केंद्र को भरपूर सहयोग रहा । केंद्रीय / राज्य कला व संस्कृति विभाग ऐसे संस्थाओं की आर्थिक सहायता करता है । इस केंद्र की अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं है जिनके न होने की वजह से कई बाधाएं है । इन्हें मुख्यमंत्री जी के आगमन का इंतजार है और यहां के क्षेत्रीय विधायक को मुख्यमंत्री पद की इंतज़ार है और इस कश्मकश में यह दोनों की इंतजार में परेशान है ।
*टोंक का मौलाना आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान* भारत का ही नही अपितु पूरे विश्व मे अपना मुकाम रखता है । इसमें आना किसी भी सम्मान से कम नही ।
राम मोहन राय
टोंक(राजस्थान)
(Nityanootan Broadcast Service)
मेरे पिता *मा0 सीता राम सैनी* जैन हाई स्कूल ,पानीपत में उर्दू,अरबी व फ़ारसी के टीचर थे । वे बताते थे कि पढ़ने व सीखने की इच्छा उन्हें बचपन से ही थी । इसीलिये दसवीं तक वे इसी स्कूल में पढ़े । उस समय लोगो के घरों में बिजली नही थी ,ऐसे हालात में भी देर रात तक दीये की रोशनी में पढ़ना एक आम बात थी । वे ये भी बताते कि घर के आर्थिक हालात भी कोई सम्पन्न नही थे । ऐसे में नजदीक के देवी मंदिर में अर्पित किये गए दियों की रोशनी में वे पढ़ने के लिये जाते थे । मेरे बड़े भाई श्री मन मोहन बहादुर की पढ़ाई तक तो उर्दू की पढ़ाई थी परन्तु हमारे तक आते-२ उर्दू का खात्मा कर हिंदी -देवनागरी लिपि में पाठ्यक्रम हो गए और हम इस मीठी भाषा से वंचित हो गए । मेरे पिता चाहते थे कि घर मे कोई न कोई तो उर्दू,अरबी और फ़ारसी को सीखे पर वातावरण न होने की वजह से न सीख सके पर हां मेरे बेटे उत्कर्ष को उन्होंने अपना शागिर्द बनाने की कोशिश की परन्तु इतने उनका रुख्सत होने का समय हो गया था । अपने इंतकाल फरमाने की पहली शाम तक उन्होंने अपने पोते उत्कर्ष की उर्दू की क्लास ली ।
आज मेरी खुशनसीबी है कि मैं राजस्थान के लखनऊ ,अदब के शहर ,मीठे खरबूजों व पानी की नगरी और हिन्दू मुस्लिम एकता की मसकान के नाम से ख्यातिप्राप्त नगरी टोंक में अपने मित्र श्री मुजीब अता आज़ाद के निमंत्रण पर यहां के विश्व प्रसिद्ध अरबी फारसी शोध संस्थान में पूज्यपाद महात्मा गांधी एवम उनकी स्वनाम धन्या पत्नी कस्तूरबा के 150 वे जन्म जयंती वर्ष के अवसर पर तीन दिवसीय सेमिनार के समापन समारोह में भाग लेने के लिये उपस्थित हुं । इस सेमिनार में देश-विदेश के लगभग 250 विद्वान भाग ले रहे है । मुझे इस्राइल से आये एक विद्वान श्री बरे से मिल कर बेहद प्रसन्नता हुई जो हिंदुस्तान के पठानों पर शोध कर रहे है । इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे शोधकर्ताओं से भी मिलने का अवसर मिला जो न केवल कला, संस्कृति पर अद्भुत काम कर रहे है वहीं धर्म व सभ्यता पर भी कार्यरत है ।
मेरे स्वर्गीय पिता यदि आज जीवित होते तो वे अत्यंत प्रसन्न होते कि आज मैं उनकी अदबी भाषाओं के केंद्र में हूं । अब यह केंद्र *मौलाना आज़ाद अरबी व फ़ारसी शोध केंद्र* के नाम से जाना जाता है । इस केंद्र के संस्थापक निदेशक ,भाषाविद साहबजादा डॉ शौकत अली खान है जिन्होंने अपने परिश्रम एवम योग्यता से इसे ऊचाइयों पर ले जाने का काम किया है । यहां की लाइब्रेरी में अनेक लेखकों की लगभग 90,000 पुस्तके जो ज्ञान-विज्ञान , धर्म एवम संस्कृति , गणित ,ज्योतिष ,खगोल, इतिहास , राजनीति के विभिन्न पहलू से सम्बंधित है, सजी है । हजारों की संख्या में दुर्लभ पांडुलिपियां है जिन्हें बहुत ही आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से संजोया गया ताकि आगामी अनेक पीढ़ियों तक यह सुरक्षित रहे । मुग़ल बादशाहों द्वारा हस्त लिखित अनेक ग्रन्थ यहां रखे है । बादशाह बाबर से बहादुर शाह जफर की तहरीरें भी यहां हिफाजत में है । पवित्र कुरान शरीफ की लगभग 10× 5 फ़ीट लम्बाई चौड़ाई में प्रति तथा बिल्कुल एक 2×2 इंच की डिब्बी में एक बहुत ही छोटी प्रति यहां मिलेगी । टोंक के विभिन्न नवाबो के हस्तलिखित हुकुमनामे भी दीवारों पर प्रदर्शित है वहीं उनकी पोषक तथा हथियार भी बहुत ही खूबसूरती से दर्शाए है । लायब्रेरी तथा संग्रहालय के व्यवस्थापक श्री *सैय्यद बदर अहमद साहब* एक बहुत ही संजीदा ,भावुक तथा विद्वान व्यक्तित्व के धनी है जो हर वस्तु का बहुत ही सुंदर ढंग से विवेचन करते है ।
इसी संस्थान में देश-विदेश से आये अनेकों शोधकर्ताओं से भेंट करने का भी अवसर मिला । ये सभी वे लोग है जिनकी विद्वता तथा प्रतिबद्धता का कोई सानी नही है । युवाओ की इस संख्या को देख कर हर कोई आश्वस्त हो सकता है कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है । कैलीग्राफी में तो इनका कोई मुकाबला नही । इनकी एक-२ कृति अद्भुत तथा अनुपम है ।
*साहबजादा डॉ शौकत अली खान* एक विद्वान पुरुष है जिन्होंने अनेक विश्वविख्यात आलिमों से तालीम हासिल की है । यह उनकी दूर दृष्टि एवम कड़ी मेहनत का ही परिणाम है कि यह संस्थान निरन्तर प्रगति पथ पर है । डॉ खान ने अनेक भाषाओं में सैंकड़ो पुस्तकों को लिखा है जिसे दुनिया भर के विश्विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है । उनके सुपुत्र *साहबजादा डॉ सौलत अली खान* जो पिता के अनुरूप ही दुनियावी व रूहानी तालीम के माहिर हैं ,का इल्मी दुनियां में वह ही मुकाम है जो उनके पिता का । वर्तमान में वे महृषि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी ,अजमेर के अरबी -फारसी विभाग के अध्यक्ष है तथा डेपुटेशन पर बतौर निदेशक पदभार सम्भाले है । उनके आने से इस संस्थान ने नए कीर्तिमान स्थापित किये है ।
ऐसे संस्थानों को ओर अधिक संरक्षण की आवश्यकता है । पूर्व उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह जी शेखावत का इस केंद्र को भरपूर सहयोग रहा । केंद्रीय / राज्य कला व संस्कृति विभाग ऐसे संस्थाओं की आर्थिक सहायता करता है । इस केंद्र की अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं है जिनके न होने की वजह से कई बाधाएं है । इन्हें मुख्यमंत्री जी के आगमन का इंतजार है और यहां के क्षेत्रीय विधायक को मुख्यमंत्री पद की इंतज़ार है और इस कश्मकश में यह दोनों की इंतजार में परेशान है ।
*टोंक का मौलाना आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान* भारत का ही नही अपितु पूरे विश्व मे अपना मुकाम रखता है । इसमें आना किसी भी सम्मान से कम नही ।
राम मोहन राय
टोंक(राजस्थान)
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