प्रख्यात शांति सैनिक डॉ मुब्बशिर हसन के निधन पर अपने शोक  एवम व्यथा की अभिव्यक्ति जब मैने अपनी बड़ी बहन सरीखी डॉ सय्यदा हमीद से की तो उन्होंने सांत्वना देते हुए मुझे लिखा
" प्रिय राम,
 कुरान सूरह 3: 185 कुल्लू नफासीन ज़कातुल मौत
हर व्यक्ति की मौत निश्चित है ।  आपके प्रति उनका गहरा लगाव था।  हम उनके काम को आगे बढ़ाने के लिए कृत संकल्प हैं। "
   
जी, आपा आपने बहुत सही कहा कि वे मुझसे बहुत स्नेह रखते थे ।   उसका सबसे बड़ा कारण यह भी रहा होगा कि मैं उनके बाबा ए शहर पानीपत का हूं । मुझे वह वाकया आज भी याद है जब पहली बार 1997 में जब सुबह के समय मेरे टेलीफोन की घण्टी बजी और उधर से आवाज आई कि वे लाहौर से मुब्बशिर बोल रहे है । मैं तो अभिभूत हो गया और मेरी बोलती बंद । अब वे ही बोल रहे थे । उनका सवाल था कि पानीपत में कहाँ रहते हो भाई । मैने जवाब दिया कायस्थान मोहल्ले में । फिर वे पूछा उपराही में तलाही में । मेरे तलाही में कहने पर उन्होंने चरखी से अपने पुश्तैनी घर जो मोहल्ला अंसार से बुलबुल बाज़ार होते हुए उपराही के लाला आत्मा राम ,गर्मा मास्टर से होते हुए तलाही के श्री राम चन्द्र भटनागर ,प0 सेवा राम , प0 छज्जू राम, के घर के रास्ते बताते हुए बोले कि वहां ही शुगन चंद वकील के घर के सामने मास्टर सीता राम का मकान है । इतना सुनते ही मैने अपनी चुप्पी तोड़ी और झट से बोला कि मैं ही तो मास्टर सीता राम का लड़का हूं । और बस फिर उन्होंने मेरी जो हमारे जन्म से बीसियों साल पहले गुजर गई थी ,को याद करते हुए हमारे परिवार के उनसे अंतरंग सम्बन्धो के किस्से सुनाने शुरू कर दिए और वे भी ठेठ पानीपत की लोक प्रचलित बोली में । मैं भी भावविभोर हुआ सुन रहा था । फिर बोले कि तूने ही हमे पानीपत बुलाया है ? उन्होंने मेरे पिता से भी बात की । अब तो ऐसा लग रहा था मानो पानीपत का पानी यहीं के पानी मे समा गया हो । ऐसा समा था कि मुब्बशिर साहब रुक ही नही रहे थे । पूरे पानीपत में अपने बचपन ,जवानी और यहां से जाने के तमाम किस्सों को उन्होंने सुनाया । तकरीबन एक घण्टे तक टेलीफोन पर उनसे बात हुई । पर इसका फायदा यह रहा कि उनके तमाम मिलने वाले लोगों , सहपाठियो और दोस्तो का परिचय मिल गया । बाद में मेरे पिता ने उन सभी के बारे में और उनकी मौजूदा रिहाईश के बारे में मुझे जानकारी दी और अपने साथी लाला सीताराम, शिष्य श्री मांगे राम सैनी और पवन शर्मा को बुला कर उन्हें जिम्मेदारी दी कि जब भी लाहौर से लोग आए तो वे उन्हें उनके मिलने वालों से।मिलवाएं । डॉ मुब्बशिर अपने 23 सदस्यीय दल के साथ मार्च -1997 में पानीपत आये । पर उनके आने के दो माह पहले ही मेरे पिता इंतकाल फरमा चुके थे । पर शायद इस बात का उन्हें अहसास था तभी वे जिम्मेदारी देकर गए ।
 जी आपा, आज भी वह दिन एक फिल्म के सीन की की तरह मेरे जेहन में है, जब आज के ही दिन 17 मार्च, 1997 को आप व निर्मला देशपांडे दीदी पाकिस्तान से पानीपतियों का एक 27 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल लेकर पानीपत आई थी। मेरी
मुब्बशिर साहब से टेलीफोन पर तो कई मर्तबा बात होती रही। मुझे बातचीत में वह एक दोस्त से लगते थे ।पर मैंने उन्हें कभी देखा नहीं था। मेरे दिमाग में तो वह मेरी ही तरह के छोटे कद के आदमी थे। उनके पानीपत आने पर मैं तो उन्हें पहचान नहीं सका,पर वह मेरे पास आकर बोले," क्यों राममोहन कैसे हो?" तो मैंने देखा कि एक विशाल व्यक्तित्व 6 फीट से भी ऊंचा ,मुख पर जिसके  तेज बरस रहा था, मेरे सामने खड़ा था। जो मुझसे दोस्त की तरह बात कर रहा था। उन्होंने मेरे पिता के बारे में भी पूछा और जब मैंने उन्हें उनके इंतकाल के बारे में बताया तो वह दुखी हो गए। उनके साथ लाहौर के एक अन्य व्यक्ति जनाब अब्दुल रब अब्बासी भी आए थे। जिनका कहना था कि वह मेरे पिता से जैन हाई स्कूल में उर्दू ,अरबी और फारसी पढ़े हैं। आपको याद है कि जब स्काईलार्क में इस दल के स्वागत के लिए एक सभा आयोजित की गई थी। डॉ जकी हसन  कुलसुम, सोमभाई, कॉ रामदित्ता,
 निर्मला देशपांडे और आप उस की अध्यक्षता कर रहे थे। तब डॉ मुब्बशिर
 ने अपनी तकरीर में कितनी आत्मीयता से भावविभोर होकर अपने संस्मरणो
 को बताया था। 50 साल बाद भी वह न तो अपने घर को भूले थे, न मोहल्ले को, न पानीपत की गलियों को,न उनके रास्तों को,न ही अपने दोस्तों को, उन्होंने एक पहाड़े की तरह पानीपत के आसपास के गांव के नाम भी बताए थे और हां, वह अपने कई दोस्तों को सुबह-सुबह पानीपत की गलियों की सैर करते-करते बुला कर भी लाए थे। उन्होंने बताया था पानीपत 5 मीम ( मै) के लिए मशहूर था। मस्जिद, मुल्ला, मलाई, मक्खी     , और आपा याद है आपको जब वह अपनी बहन कुलसुम के साथ लाला रामानंद शिंगला के घर गए थे और लाला जी की पत्नी प्रेमवती को देखकर वे इतने भाव विह्लल हो गए थे ,जैसे कि बरसों बाद अपनी बहन से मिले हो। आपा ,यह तो आपको याद होगा कि जब अगले दिन सुबह शैलेंद्र के घर डॉ साहब के साथ आप और मैं साथ जा रहे थे तो परमहंस कुटिया के ठीक सामने आपने बड़ी बहन के नाते किन्हीं व्यवस्था की कमी को लेकर डांट लगाई थी। उस समय डॉ साहब चुप रहे। पर आपको नहीं पता कि गेस्ट हाउस में पहुंचने के बाद उन्होंने मुझे फोन किया था और कहा था कि सईदा मन की बहुत साफ है। उन्होंने तुम्हें छोटे भाई की तरह डांटा है, आप महसूस न करना।
 जी आपा ,सन 1998 में भारत से शांतिकर्मियों का एक प्रतिनिधिमंडल कराची शांति सम्मेलन में हिस्सा लेने गया था ।उस दल में देश के मूर्धन्य विद्वान थे, चिंतक थे, राजनेता थे और शांति कर्मी भी। शायद मैं तो इनमें से कोई भी नहीं था। परंतु मुझे इस दल में आपने व दीदी निर्मला देशपांडे ने डॉक्टर मुब्बशिर साहब के कहने पर रखा था कि इन पानीपती जवान को साथ जरूर लाएं ।आप तो सम्मेलन की कार्यवाहियों में मशगूल हो गए। पर मैं अपने पानीपतियों के साथ घुलने मिलने में ।मंच को मुब्बशिर साहब ही संचालित कर रहे थे। उन्होंने दल के सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और मुझे सम्मेलन से नदारद देख कर कहा भाई राममोहन तो पानीपतीयों में पानीपती हो गया है। जनता के स्तर पर तो यही काम कर रहा है, बिल्कुल जमीन से जुड़कर। मेरे इस परिचय को जब दीदी ने बताया तो मैं गदगद हो गया ।उस दल में सबसे छोटी उम्र का मै ही तो था और इस छोटे प्रतिनिधि को मुब्बशिर  साहब ने अपनी मोहब्बत से जिस तरह  सरोबार किया था ,उसको बताना बहुत मुश्किल है। इसके बाद वह कई बार आपके घर दिल्ली में मिले। उन्होंने कभी एहसास नहीं होने दिया कि वह इतनी बड़ी शख्सियत के मालिक हैं ।बस एक ही एहसास कि मैं उनके शहर का रहने वाला हूं। आपको तो याद होगा कि सन 2008 में पानीपत में दूसरा हाली मेला आयोजित किया गया, जिसमें तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी साहब बतौर मेहमाने  खसूसी तशरीफ़ फरमा हुए। इस मेले में तत्कालीन गवर्नर डॉ ए.आर. किदवई
और मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी मौजूद थे। अपनी तकरीर में डॉ  साहब ने शुरुआत ही यहां से की थी कि उन्हें पानीपती होने पर फख्र है ।इस पर मंच से ही मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि आप तो पानीपती ही हैं। उसी के जवाब में उन्होंने कहा फिर तो आप मुझे पानीपती का नागरिकता प्रमाणपत्र ईशू कर दें। यह सिर्फ बात नहीं थी  बल्कि उनके मन की अभिव्यक्ति थी। जिसमें वह चाहते थे कि जिस शहर में वह पैदा हुए ,पले बढ़े, वहीं आकर अधिकारपूर्वक रहे ।उनका कहना था कि वह चाहते हैं कि वह भी उसी जमीन की मिट्टी में समाए जहां सैकड़ों साल से उनके बुजुर्ग आराम फरमा रहे हैं। हाली मेले के दौरान वह पानीपत के लोगों से और खासतौर से नौजवानों से इस तरह से मिले मानो उनका बिछड़ा हुआ बुजुर्ग उनसे मुलाकात कर रहा हो।आपा, 2015 में लाहौर में रह रही मेरी मुंह बोली बहन जो महान सूफी संत हजरत बू अली शाह कलंदर की 39 वीं पीढ़ी के सज्जादानशीन जनाब आबिद नोमानी की पत्नी है, गंभीर रूप से बीमार हो गई। उनकी इच्छा थी कि मैं उन्हें एक बार तो मिलने के लिए आऊँ ।मै लाहौर गया । मुब्बशिर साहब को जब मेरे आने की इत्तला मिली तो वह मुझे लंच पर ले जाने के  लिए अपनी एक छोटी कार खुद ड्राइव करके आए। यह वही कार थी जिस पर वह पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना होने पर निर्वासित जीवन जी रहे प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को लाहौर एयरपोर्ट से अपने घर तक खुद ड्राइव करके लाए थे। जब उन्होंने मुझे ऐसा बताया तो मैं गदगद हो गया। खुशी इस बात की थी कि दुनिया की ऐसी मशहूर शख्सियत के साथ मै बैठा हूं और वह तकरीबन 92वें साल की उम्र में कार ड्राइव करके मेरे जैसे एक साधारण व्यक्ति को अपने साथ ले जा रहे हैं। इससे ज्यादा सम्मान किसी का क्या हो सकता है और ऐसा इसलिए था कि वह मुझसे  बेइंतहा मोहब्बत करते थे। उसके बाद भी यदा-कदा उनसे बातचीत होती रही और यह जानकर तो उन्हें बेहद खुशी हुई कि हम लोगों ने उनके काम भारत- पाकिस्तान के लोगों के बीच दोस्ती और अमन की यात्रा को दोबारा शुरू किया है। आप ही ने बताया था कि जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने हमारे सभी साथियों के प्रति अपने स्नेह और आशीर्वाद का इजहार किया था ।आपा, हम बहुत गमगीन है कि डॉक्टर साहब हमारे बीच नहीं है। दिल ज़ार ज़ार रोता है। परंतु हम उन्हें यकीन दिलाना चाहते हैं कि उनके विश्वास को खत्म नहीं होने देंगे ।आपने ठीक कहा कि जो पैदा हुआ है ,वह मरेगा जरूर । उनकी 99 वर्ष की भरपूर आयु थी। वेद का एक बहुत ही प्रचलित मंत्र है जिसे महामृत्युंजय मंत्र के नाम से स्मरण किया जाता है। जिसमें कामना की गई है कि जिस प्रकार पका हुआ खरबूजा स्वत: ही अपनी बेल से अलग हो जाता है, ऐसे ही हम मृत्यु को प्राप्त हो। डॉक्टर साहब ने अपने जीवन के तमाम कार्यों को उत्तम एवं श्रेष्ठ ढंग से कर रुखसती की है। हम भी उनसे इतनी मोहब्बत करते हैं जितनी वह करते थे। हम सदा उन्हें याद करेंगे, भूलेंगे नहीं। न तो उनके जीवन को, न उनके काम को और न उद्देश्य को। हम वादा करते हैं कि हम सब मिलकर उस परचम को और ज्यादा  बुलंदी तक ले जाएंगे। क्योंकि हमारी नियति में सिर्फ कामयाबी ही है।
राममोहन राय
पानीपत
17.03.2020

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