का0 राजेश्वर राव को उनकी पुण्यतिथि पर स्मरण

*का0 राजेश्वर राव को विनम्र श्रद्धांजलि* !

9 अप्रैल के दिन आज हम ख्यातिप्राप्त कम्युनिस्ट लीडर , प्रसिद्ध स्वतंत्रता सैनानी,चिंतक व लेखक श्री चंद्र राजेश्वर राव की पुण्यतिथि पर हम उन्हें स्मरण कर रहे है । उनका जन्म आन्ध्रप्रदेश (वर्तमान तेलंगाना)के कृष्णा ज़िला में एक बड़े किसान परिवार में हुआ दि0  6 जून ,1914 को हुआ । बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में उनकी शिक्षा दीक्षा हुई और फिर वे अंग्रेज़ी दासता के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए । अनेक वर्षों तक जेल में रहे और भारत की आज़ादी के बाद भी एक नए भारत के निर्माण के लिये जिसमे कोई भूखा ,नँगा व बेकार नही होगा , लग गए । तेलंगाना में किसानों के सशस्त्र संघर्ष जो उनकी ही बिरादरी व वर्ग के अन्याय के खिलाफ था ,उसका नेतृत्व किया । और बाद में कम्युनिस्ट पार्टी के एक कुलवक्ति कार्यकर्ता बन के पार्टी के शीर्षस्थ नेतृत्व में शामिल हुए । इस दौरान उन्हें सौभाग्य रहा अजय घोष, एस ए डांगे, भूपेश गुप्त , ए जी अधिकारी , समर मुखर्जी , इंद्रजीत गुप्त जैसे महान चिंतकों व प्रखर नेताओ के साथ काम करने का । वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 22 वर्षो तक लगातार महासचिव रहे । इस दौरान उन्होंने तमाम उतार-चढ़ाव का सामना किया । इमरजेंसी के दौर-दौरे में उसका समर्थन भी किया और बाद में उसके दुष्परिणाम आने पर विरोध भी । उनके समय मे ही उन्होंने भारत मे कम्युनिस्ट आंदोलन के निर्माताओं में से एक एस ए डांगे को ही पार्टी से निष्कासित करने का निर्णय भी सुनाया । खैर ,इस पोस्ट में मैं उनकी जीवनी न कह कर अपनी बात ही रखना चाहूंगा । क्योंकि उनके निर्णयों की समीक्षा करने में मैं एक उचित व्यक्ति नही हूँ ।
       सन 1974 में आर्य सीनियर सेकंडरी स्कूल, पानीपत से बारहवीं पास कर मैंने साथ लगते आर्य कॉलेज में प्रवेश लिया । कारण यही भी था कि आर्य समाज की पृष्ठभूमि थी और इसलिये आर्य संस्थाओं के प्रति आकर्षण था । माता-पिता कांग्रेस के पक्के समर्थक और इंदिरा जी के प्रबल हामी । उस समय देश मे श्री जय प्रकाश नारायण का इंदिरा सरकार विरोधी आंदोलन चल रहा था । जेपी का नारा सम्पूर्ण क्रांति का था । उनके समर्थक लोग नारे लगते 'सम्पूर्ण क्रांति का नारा है, भावी भविष्य हमारा है ' । युवा आंदोलन व नेतृत्व की वजह से हम भी स्वयं को उनसे प्रभावित होते दिखते । हमने अपने ऐसे ही जिज्ञासा पूर्ण प्रश्नों को अपने गुरु जी श्री दीप चंद जी निर्मोही, जो आर्य स्कूल में हिंदी के अध्यापक थे तथा जिन्हें मैं प्रारम्भ से ही अपना आदर्श मानता हूं ,उनके समक्ष रखा । उन्होंने मेरे प्रश्नों का उत्तर देते हुए क्रांति की पूरी विचारधारा एवम प्रक्रिया को रखा और मैं उनकी ही प्रेरणा से आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की तरफ मुड़ा । घर वालो को इस पर कोई आपत्ति इस वजह से भी नही थी क्योंकि ए आई एस एफ तथा उसकी मूल पार्टी सीपीआई उस समय के इंदिरा विरोधी आंदोलन में इंदिरा जी के साथ थी ।
      आर्य समाजी-कांग्रेसी पारिवारिक वातावरण ने स्कूल में ही मुझे आगे बढ़ने के अनेक अवसर प्राप्त हुए । भाषण, वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेकर विजयी होने पर पुरस्कृत भी हुए । निर्मोही जी के प्रोत्साहन पर अब मैं धीरे-२ रटन्त भाषण से मुक्त हो रहा था । अब धीरे-२ प्रगतिशील विचारधारा की ओर अग्रसर भी । कॉलेज में इन सब बातों का लाभ मिला और मैं जल्दी ही अपने सहपाठियों के बीच लोकप्रिय होने लगा । इसी दौरान अन्य छात्र नेताओं विजय सपरा व बलबीर भसीन से मेरा परिचय गुरु जी के माध्यंम से ही हुआ । ये दोनों स्टूडेंट्स फेडरेशन के स्थानीय नेता थे । मेरे जैसे कुशल वक्ता को पाकर ये साथी अत्यंत प्रसन्न हुए और इन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया । सीपीआई के जिला सचिव का0 रघुवीर सिंह बहुत ही संजीदा इंसान थे । उनका भी मेरे प्रति बहुत स्नेह रहा । अन्य कारणों के अतिरिक्त एक कारण यह भी था कि वे अपने स्कूल समय में मेरे पिता के विद्यार्थी रहे थे । स्थानीय नेता रामदित्ता ,बलवंत सिंह , सूरत सिंह, रणबीर मलिक आदि सभी मेरे परिवार के प्रति स्नेही थे । उनका मानना था कि मैं पार्टी का एक उदयमान नेता हो सकता हूं । उन्हीं दिनों दिल्ली के सीपीआई मुख्यालय अजय भवन में छात्रों का एक वैचारिक स्कूल लगा था । हरियाणा से नरेन्द्र सुखन ,बलबीर भसीन उसमे पहले ही भेजे जा चुके थे ।  तीन जून,1975 का दिन था ,का0 रघुवीर सिंह हमारे घर सुबह-२ आये और उन्होंने कहा कि उन्हें आज ही दिल्ली अजय भवन में एक महीने के लिये जाना है । मेरे माता-पिता ऐसे किसी भी जगह जाने में आड़े नही आते थे पर फिर भी मैने गुरु जी निर्मोही जी से आज्ञा लेनी मुनासिब समझी और उनसे बात कर मैं दिल्ली की बस में बैठ कर दोपहर तक बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अजय भवन पहुंच गया । मैं उस समय शरीर से पतला-दुबला था और शर्मिला भी । अजय भवन पहुंचते ही मुझे रिसेप्शन पर मिलने श्री अनिल राजिमवाले आये और उन्होंने हाथ मिलाने के लिये हाथ बढ़ाया । मेरे संस्कारो में अपने से बड़े लोगो के चरण स्पर्श की परंपरा थी अतः मैंने सहमते हुए अपना हाथ बढ़ाया । अपने से बड़े किसी भी व्यक्ति से हाथ मिलाने का यह शुभारंभ था । जो अब भी लगता है कि उनका हाथ आज भी मेरे साथ है । उसी स्कूल में हमारे साथ सीपीआई की वर्तमान सचिव अमरजीत कौर , गुजरात से एस वाई अयाची आदि -२ अनेक युवा थे ।
उसी दौरान अजय भवन स्कूल में , का0 एस ए डांगे,डॉ ए जी अधिकारी व उनकी पत्नी, बाबा सोहन सिंह जोश , मोहित सेन, भूपेश गुप्त, इंद्रजीत गुप्त, रमेश चंद्रा,ए बी वर्द्धन , रुस्तम जी, गिरीश मिश्र आदि नेताओ से न केवल मिलने का अपितु उनकी आत्मीयता प्राप्त करने का भी अवसर मिला । इसी दौरान का0 राजेश्वर राव, जो उस पार्टी के महासचिव थे ,हमारे स्कूल में एक क्लास लेने के लिये पधारे । एक विशालकाय व्यक्तित्व , चेहरा अनुपम ऊर्जा व तेज से परिपूर्ण , जो बरबस ही हरकिसी को अपनी ओर आकर्षित करता था । सभी के परिचय के दौरान का0 अनिल राजिमवाले ने मेरे परिचय में उन्हें बताया कि मैं एक आर्य समाजी-कांग्रेसी स्वतन्त्रता सेनानी परिवार से हूँ तो वे बेहद प्रसन्न हुए और गर्म जोशी से हाथ मिलाया । अब मुझे भी बड़ो से हाथ मिलाने का अभ्यास हो गया था ।
       जेपी आंदोलन अपने उभार पर था । अजय भवन के नजदीक ही एक तरफ कुछ ही दूरी पर रामलीला मैदान था और दूसरी तरफ गांधी शांति प्रतिष्ठान था । रामलीला मैदान की एक विशाल जनसभा में हमने 23 जून की शाम  को श्री जयप्रकाश नारायण के मुखारविंद से वह सुना जब उन्होंने पत्रकारों के जवाब में कहा था कि *यदि आर एस एस फ़ासिस्ट है तो वे भी फ़ासिस्ट है*  और उसी रात एमरजेंसी की घोषणा हो गयी और उसी रात को जी पी एफ से जेपी गिरफ्तार हो गए । अजय भवन रहते हुए हम सब उन लमहों के गवाह थे । उसी  दिन
 का0 राजेश्वर राव का बयान आपातकाल के समर्थन में उसी समय जारी किया गया जिसके शब्द अक्षरअक्ष: आज भी कंठस्थ है ' *आपातकाल की घोषणा और प्रतिगामी व प्रतिक्रियावादी ताकतों पर पूर्वगामी प्रहार से प्रगतिशील एवम प्रतिक्रियावादी ताकतों का संघर्ष नए दौर में पहुंच गया है*।'
    अजय भवन स्कूल समाप्त होने के बाद हम पानीपत आकर अपनी पढ़ाई के साथ -२ छात्रों के  मुद्दों पर संघर्ष करते रहे । लॉ करते हुए भी यही क्रम जारी रहा । स्टूडेंट्स फेडरेशन के काम के साथ-२ मजदूरों और वह भी खेत मजदूरों के काम से जुड़े । जेल भी गए, पुलिस की पिटाई भी खाई  परन्तु हार नही मानी । वकालत पास कर अब अपने शहर पानीपत में वकालत के साथ पार्टी का काम भी करते । हमारे आदर्श भूपेश गुप्त व राजेश्वर राव ही थे । मन मे प्रबल इच्छा थी कि घर-गृहस्थी न बनाए और होल टाइमर बन कर पार्टी का ही काम करे । परन्तु ऐसा न हो सका । अपनी पसंद से एक राजनीतिक परिवार में विवाह हुआ ।
   इसी दौरान का0 सी राजेश्वर राव जो कि अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के अध्यक्ष भी थे , यूनियन की जनरल कॉउन्सिल की मीटिंग के लिये पानीपत आये । पता चला कि वे दिल्ली से पानीपत रोडवेज़ की एक बस  से आ रहे है । उन्हें लिवाने की जिम्मेदारी मुझे दी गयी । मैं नियत समय पर बस अड्डे पर पहुंच गया । तभी मैने देखा कि बस के सकड़े दरवाजे से का0 राव अपना बिस्तरबंद लिए बड़े मुश्किल से फंस-फंसा कर उतर रहे है । मैने जाकर उनका स्वागत किया । उनके हाथ से उनका बिस्तरबंद व एक छोटा अटेची लेनी की कोशिश की पर वे न माने । तब मैंने एक रिक्शा भगतसिंह स्मारक(सीपीआई, हरियाणा का मुख्यालय) के लिये ली । उनके विशालकाय शरीर के लिये रिक्शा छोटी थी पर वे उसकी सीट पर बहुत ही मुश्किल से धंसे । मैं पीछे बैठा और हम अपने गन्तव्य स्थल पर आगये । मैं पूरे रास्ते सोचता रहा कि यह कोई साधारण व्यक्ति तो है नही परन्तु इनकी सादगी व सरलता कितनी महान है । का0 राजेश्वर राव का कोई भी लक्षण आधुनिक नेताओं वाला नही था । वे एक गर्म पैंट के नीचे पैरों में चप्पल पहने थे और ऊपर एक मामूली स्वेटर । उनकी सादगी अद्भुत व अनुकरणीय थी ।
 उसी दिन शाम को किला ग्राउंड पर  एक जनसभा में उनका सम्बोधन था । मैं व मेरी पत्नी दोनों उस जलसे में गए । मैं मंच संचालक था अतः का0 राव के साथ बैठने का मुझे अवसर मिलना ही था । पर उस समय भी उन्हें मेरा परिचय याद था जो कई वर्ष पहले अनिल राजिमवाले ने उन्हें दिया था ।
     एमरजेंसी के दौर में सीपीआई व कांग्रेस का गठजोड़ खूब अच्छा चला । इंदिरा गांधी जी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करवाने में पार्टी की भूमिका अग्रणी थी , पर तभी एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत  संजय गांधी एवम उनकी चांडाल चौकड़ी का उदय हुआ । उन्होंने इंदिरा जी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम के समानांतर 5 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया और फिर परिवार नियोजन , स्वच्छता के नाम पर अनेक भवनों व सड़को का विध्वंस तथा सीपीआई के चरित्र हनन का अभियान शुरू हो गया । एमरजेंसी के खात्मे के साथ-२ ही न केवल कांग्रेस सरकार का पतन हुआ वहीं कांग्रेस-सीपीआई गठजोड़ की भी समाप्ति हो गयी । पार्टी की भठिंडा कांग्रेस ने इस सम्बन्धो के खात्मे पर मोहर लगा दी । हम लोग का0 एस ए डांगे ,मोहित सेन की कार्यनीति एकता व संघर्ष  के समर्थक थे । इन नेताओं के पार्टी के निष्कासित होने के बाद धीरे-२ हम भी सक्रिय न रह पाए । अंततः हम लोगो को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया । तब हम लोगो की प्रतिक्रिया थी कि पार्टी ने हमें निष्कासित किया है ,हमने तो पार्टी को नही किया ।
      इसी बीच दीदी निर्मला देशपांडे जी के सम्पर्क में आये और फिर गांधी-विनोबा की अपनी पारिवारिक विचारधारा से पुनः जुड़ कर काम करने लगे ।
     का0 राजेश्वर राव जैसे नेताओं के बारे में सोच कर भी मन सिहर उठता है कि कैसे थे वे लोग और अब वे कहाँ चले गए ।
    का0 सी राजेश्वर राव को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि ।
राम मोहन राय,
पानीपत / 09.04.2020

Comments

  1. Very absorbing and informative about your association with the party. Your observations about Com.Rajeshwar Rao are impressive. I also got an opportunity to see him very closely .Red salute to this great revolutionary .Regards

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