जिया को विनम्र श्रद्धांजलि
श्रीमती केसरदेवी माली आज 94 वर्ष की अवस्था मे अनन्त में विलीन हो गयी ।
वैसे तो वह एक सहज ,सरल व गुमनाम जीवन जीने वाली महिला थी परन्तु एक महिला क्या कर सकती है ,उसकी एक साकार प्रतिमूर्ति थी ।
उनका जन्म सन 1927 में तत्कालीन उदयपुर (राजस्थान) के नाथद्वारा कस्बे में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था । पिता तुलसीदास एक साधारण किसान थे व माता एक बहुत ही साधारण महिला । वे अपने माता-पिता की तीन बेटियाँ थी लाली बाई , कमला देवी और सबसे छोटी वह खुद केसर ।पूरा परिवार ही तिलकायत वैष्णव सम्प्रदाय का आस्थावान मतावलम्बी । ठाकुर की पूजा ,आरती व सेवा ही उनका सर्वोपरि कर्त्तव्य था । घर भी श्री नाथद्वारा मंदिर के बिल्कुल सटा हुआ था । दिन में आठ बार ज्योही दर्शन के लिये द्वार खुलते ,पूरा परिवार ही दर्शन लाभ करता । घर में भी ठाकुर जी का विग्रह विराजमान था । बाकी समय उसी लड्डू गोपाल जी को साकार रूप मान कर उनकी सेवा -पूजा ।उनके लिए यह ही एक अनिवार्य शिक्षा थी जो उन्होंने सीखी थी । कस्बे में कोई स्कूल भी नही था और फिर लड़कियों के लिये इसका नाम भी लेना एक गुनाह था
कस्बे की समाज का रिवाज था कि बेटे-बेटियों की शादियां दूर नही की जाए । एक मोहल्ले के लड़के की दूसरे मोहल्ले की लड़की के साथ । उस समय बाल विवाह एक साधारण बात थी । ऐसी ही स्थितियों में मंदिर के साथ लगती गली में रहने वाली आठ साल की केसर का विवाह एक दूसरे मोहल्ले फौज में रहने वाले 10 साल के लड़के गणेशलाल के साथ हो गया । उसी परिवार के बड़े लड़के मोहन लाल का विवाह भी केसर की बड़ी बहन से उसी मंडप में सम्पन्न हुआ था । दोनों मासूम बच्चियां अपनी ससुराल में आ गयी और खेल-कूद को भूल कर घर के कामकाज को सीखते हुए हाथ बटाने लगी । ससुर श्री नाथीलाल भवन निर्माण के ठेकेदार थे व सास एक सख्त मिज़ाज की महिला । पति तो थे है बच्चे । ऐसे ही वातावरण में इन बहनों का लालन-पालन हुआ ।
पति को पढ़-लिख कर आगे बढ़ने की ललक थी । उन्होंने उदयपुर आकर अपनी शिक्षा पोस्ट ग्रेजुएशन तक कर पूरी करके इंदौर में संत जेवियर कॉलेज में वकालत पढ़ने के लिए चले गए और फिर उदयपुर में ही गणेशलाल माली ,एडवोकेट के नाम से वकालत शुरू की । अब घर मे दाम्पत्य जीवन भी शुरू हो गया था ।
केसरदेवी बेशक एक अनपढ़ महिला थी परन्तु उन्होंने अपने पति को पढ़ने व आगे बढ़ने के लिये सदा प्रोत्साहित किया । पति वॉलीबॉल के एक अच्छे खिलाड़ी थे तथा अपनी इस योग्यता के बलबूते उन्होंने राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की थी । उनके कंठ मे भी सरस्वती का वास था और इस वरदान को वे अपने मित्र प्रसिद्ध पार्श्वगायक व फ़िल्म अभिनेता किशोर कुमार के साथ अजमाते थे । दोस्त तो बॉम्बे फ़िल्म इंडस्ट्री में निकल गया और गणेशलाल अपनी वकालत करने उदयपुर में स्थापित हो गए । पति को वकालत के साथ-२ राजनीति का भी शौक था । नाथद्वारा कस्बे में वे कुछ गिने चुने पढ़े लिखे लोगों में थे । उन्ही के कस्बे के एक अन्य नेता व प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी श्री मोहन लाल सुखाड़िया ने उनकी प्रतिभा को परख कर अपना विश्वश्त साथी बना लिया ।
पति को किस प्रकार से अपनी मूक सेवा से प्रोत्साहित किया जा सकता है यह बात केसर ने बहुत ही सहजता से सीख ली थी । उन्होंने इसका एक ही मन्त्र माना कि घर की पूरी व्यवस्था वह सम्भाल कर पति को निश्चिंत कर देगी और ऐसा ही हुआ । नाथद्वारा में नगरपालिका का गठन हुआ और श्री गणेशलाल उसके पहले निर्वाचित अध्यक्ष । और यह प्रगति की रफ्तार फिर रुकी नही । पति ,ज़िला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष बने और फिर राज्यसभा के सदस्य । इसके अतिरिक्त अनेक शासकीय निकायों के निदेशक । पति को दिल्ली में भी बतौर सांसद आवास मिला व बाद में जयपुर में भी । परन्तु केसरदेवी ने कभी भी उनके साथ उदयपुर से बाहर रहने का लोभ नही किया । वे हमेशा घर पर ही रह कर अपने सास-ससुर ,देवर -जेठ व बाद में अपने बच्चों का ही ख्याल रखने के मोर्चे पर अड़ी रहती ।
केसरदेवी खुद अनपढ़ रही परन्तु अपने जीवन की इस कमी को खूब जानती थी । उन्हें यह भी बखूबी पता था कि लड़कियों के लिये पढ़ाई का क्या महत्व है । इसीलिये जहाँ उन्होंने अपने दोनों बेटों को उच्च शिक्षा दिलवाई, वहीं अपनी सभी चारों बेटियों को भी पोस्ट ग्रेजुएशन तक शिक्षा प्राप्त करने के लिये उन्हें सहयोग किया । बाल विवाह की दिक्कतों से भी बखूबी वाकिफ थी इसीलिए अपनी बेटियों के लिये वर देखते हुए सिर्फ और सिर्फ उनकी शिक्षा के स्तर का पैमाना रखा । और आज उनके पुत्र डॉ रमाकांत उदयपुर में ही एक सफल मेडिकल प्रैक्टिशनर है वहीं दूसरा पुत्र हरिकांत एक कंपनी में कार्यरत है । पुत्रियां सर्वश्रीमती प्रेमलता पत्नी श्री देवीलाल माली(पूर्व उपाचार्य), मधु पत्नी श्री दयानन्द सैनी ( पूर्व प्रशासनिक अधिकारी), तारा पत्नी श्री अम्बा लाल कच्छावा (पूर्व बैंक अधिकारी) तथा छोटी पुत्री कृष्णा कान्ता पूर्व मेम्बर जज ज़िला कंज्यूमर कोर्ट पत्नी श्री राम मोहन राय(एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट) है । पांचवी बेटी भगवती विवाहोपरांत घरेलू परिस्थितियों वश नही रही । बेटों की बहुएं भी श्रीमती पुष्पा व संतोष भी उच्च शिक्षा प्राप्त है ।
केसरदेवी एक व्यवहार कुशल महिला थी । वर्ष 1992 में अपने पति के देहांत के बाद भी उन्होंने अपने पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधने का काम किया । गर्मी की छुटियों में तो पूरे घर में सभी बेटियों और उनके बच्चों के आने पर एक महफ़िल ही लगी रहती थी । ऐसे समय मे वे स्वयं तथा उनकी बड़ी बहू पुष्पा सभी की यथेष्ठ आवभगत करती तथा उनकी पसन्दीदा व्यंजन परोसती । वे खुद पाक विद्या में निपुण थी । राजस्थानी व्यंजन बनाने में तो माहिर । उन की इस परंपरा को उनकी बहू श्रीमती पुष्पा ने सहेज कर रखा है ।
पिछले लगभग एक वर्ष से वे अत्यंत वृद्ध होने की वजह से कमजोर हो गयी थी परन्तु ऐसी कोई खास बीमारी नही थी । घर मे बेटा डॉक्टर उनका हर सम्भव चिकित्सीय सेवा देता और बहू सेवा सुषुर्षा । इस मायने में वह एक अत्यंत संतुष्ट महिला थी । इस दौरान अनेक कई बार ऐसा लगा कि वे अब नही रहेगी पर वे विजयी रही । हम जब भी उनके पास रह कर विदाई लेते तो वे तिलक लगाती व भेंट देती । हम हंसते हुए कहते कि जिया(माँ) अगली बार मिलोगी न तो वे भी मुस्करा उठती । उनके पति की मृत्यु 12 मई 1992 को हुई थी सम्भवतः वे इन्ही दिनों में महाप्रयाण को उपयुक्त मान रही थी ।
इस बार मार्च में लगभग 10-12 दिन मेरी पत्नी कृष्णा कान्ता अपनी मां के पास उदयपुर में रुकी । मैं भी उन्हें लिवाने वहाँ गया और दो दिन रुका ।
मेरी पत्नी का कहना था कि जिया इस दौरान कुछ ज्यादा नही बोली । पर चलने वाले दिन वे मुखर हो गयी । और सब को पहचान कर सबके बारे में पूछने लगी । बेटी ने अपनी माँ से कहा कि अब मैं पानीपत जा रही हूं अब कब आऊं तो जिया ने मुस्कराते हुए मेवाड़ी में जवाब दिया कि *यह भी कोई पूछने की बात है तेरा घर है जब चाहे आ जाना* । मायका तो माँ से ही होता था पर वह आश्वस्त थी कि उनकी पुष्पा इस कमी को कभी महसूस नही होने देगी ।
वर्ष में एक बार अमेरिका आने का आग्रह हमारी बेटी सुलभा का रहता है । हम वहां जाते तो थे पर एक डर के साथ कि कहीं इंडिया में हमारे न रहते जिया न चली जाए और हम उनके अंतिम दर्शन से भी वंचित न रह पाएं । पर अब तो हम इंडिया में ही है परन्तु जिया के अनन्त यात्रा पर निकलने पर भी उनके अंतिम दर्शनार्थ कोरोना पाबंदियों के कारण उदयपुर नही जा पा रहे जिसका हमें खासकर मेरी पत्नी को मलाल रहेगा ।
*जिया हम सदा आपको याद रखेंगे* ।
*न केवल आपको अपितु जीवन जीने के ढंग व इच्छा शक्ति को भी* ।
आपको अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि ।
राम मोहन राय
पानीपत
26.05.2020
वैसे तो वह एक सहज ,सरल व गुमनाम जीवन जीने वाली महिला थी परन्तु एक महिला क्या कर सकती है ,उसकी एक साकार प्रतिमूर्ति थी ।
उनका जन्म सन 1927 में तत्कालीन उदयपुर (राजस्थान) के नाथद्वारा कस्बे में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था । पिता तुलसीदास एक साधारण किसान थे व माता एक बहुत ही साधारण महिला । वे अपने माता-पिता की तीन बेटियाँ थी लाली बाई , कमला देवी और सबसे छोटी वह खुद केसर ।पूरा परिवार ही तिलकायत वैष्णव सम्प्रदाय का आस्थावान मतावलम्बी । ठाकुर की पूजा ,आरती व सेवा ही उनका सर्वोपरि कर्त्तव्य था । घर भी श्री नाथद्वारा मंदिर के बिल्कुल सटा हुआ था । दिन में आठ बार ज्योही दर्शन के लिये द्वार खुलते ,पूरा परिवार ही दर्शन लाभ करता । घर में भी ठाकुर जी का विग्रह विराजमान था । बाकी समय उसी लड्डू गोपाल जी को साकार रूप मान कर उनकी सेवा -पूजा ।उनके लिए यह ही एक अनिवार्य शिक्षा थी जो उन्होंने सीखी थी । कस्बे में कोई स्कूल भी नही था और फिर लड़कियों के लिये इसका नाम भी लेना एक गुनाह था
कस्बे की समाज का रिवाज था कि बेटे-बेटियों की शादियां दूर नही की जाए । एक मोहल्ले के लड़के की दूसरे मोहल्ले की लड़की के साथ । उस समय बाल विवाह एक साधारण बात थी । ऐसी ही स्थितियों में मंदिर के साथ लगती गली में रहने वाली आठ साल की केसर का विवाह एक दूसरे मोहल्ले फौज में रहने वाले 10 साल के लड़के गणेशलाल के साथ हो गया । उसी परिवार के बड़े लड़के मोहन लाल का विवाह भी केसर की बड़ी बहन से उसी मंडप में सम्पन्न हुआ था । दोनों मासूम बच्चियां अपनी ससुराल में आ गयी और खेल-कूद को भूल कर घर के कामकाज को सीखते हुए हाथ बटाने लगी । ससुर श्री नाथीलाल भवन निर्माण के ठेकेदार थे व सास एक सख्त मिज़ाज की महिला । पति तो थे है बच्चे । ऐसे ही वातावरण में इन बहनों का लालन-पालन हुआ ।
पति को पढ़-लिख कर आगे बढ़ने की ललक थी । उन्होंने उदयपुर आकर अपनी शिक्षा पोस्ट ग्रेजुएशन तक कर पूरी करके इंदौर में संत जेवियर कॉलेज में वकालत पढ़ने के लिए चले गए और फिर उदयपुर में ही गणेशलाल माली ,एडवोकेट के नाम से वकालत शुरू की । अब घर मे दाम्पत्य जीवन भी शुरू हो गया था ।
केसरदेवी बेशक एक अनपढ़ महिला थी परन्तु उन्होंने अपने पति को पढ़ने व आगे बढ़ने के लिये सदा प्रोत्साहित किया । पति वॉलीबॉल के एक अच्छे खिलाड़ी थे तथा अपनी इस योग्यता के बलबूते उन्होंने राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की थी । उनके कंठ मे भी सरस्वती का वास था और इस वरदान को वे अपने मित्र प्रसिद्ध पार्श्वगायक व फ़िल्म अभिनेता किशोर कुमार के साथ अजमाते थे । दोस्त तो बॉम्बे फ़िल्म इंडस्ट्री में निकल गया और गणेशलाल अपनी वकालत करने उदयपुर में स्थापित हो गए । पति को वकालत के साथ-२ राजनीति का भी शौक था । नाथद्वारा कस्बे में वे कुछ गिने चुने पढ़े लिखे लोगों में थे । उन्ही के कस्बे के एक अन्य नेता व प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी श्री मोहन लाल सुखाड़िया ने उनकी प्रतिभा को परख कर अपना विश्वश्त साथी बना लिया ।
पति को किस प्रकार से अपनी मूक सेवा से प्रोत्साहित किया जा सकता है यह बात केसर ने बहुत ही सहजता से सीख ली थी । उन्होंने इसका एक ही मन्त्र माना कि घर की पूरी व्यवस्था वह सम्भाल कर पति को निश्चिंत कर देगी और ऐसा ही हुआ । नाथद्वारा में नगरपालिका का गठन हुआ और श्री गणेशलाल उसके पहले निर्वाचित अध्यक्ष । और यह प्रगति की रफ्तार फिर रुकी नही । पति ,ज़िला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष बने और फिर राज्यसभा के सदस्य । इसके अतिरिक्त अनेक शासकीय निकायों के निदेशक । पति को दिल्ली में भी बतौर सांसद आवास मिला व बाद में जयपुर में भी । परन्तु केसरदेवी ने कभी भी उनके साथ उदयपुर से बाहर रहने का लोभ नही किया । वे हमेशा घर पर ही रह कर अपने सास-ससुर ,देवर -जेठ व बाद में अपने बच्चों का ही ख्याल रखने के मोर्चे पर अड़ी रहती ।
केसरदेवी खुद अनपढ़ रही परन्तु अपने जीवन की इस कमी को खूब जानती थी । उन्हें यह भी बखूबी पता था कि लड़कियों के लिये पढ़ाई का क्या महत्व है । इसीलिये जहाँ उन्होंने अपने दोनों बेटों को उच्च शिक्षा दिलवाई, वहीं अपनी सभी चारों बेटियों को भी पोस्ट ग्रेजुएशन तक शिक्षा प्राप्त करने के लिये उन्हें सहयोग किया । बाल विवाह की दिक्कतों से भी बखूबी वाकिफ थी इसीलिए अपनी बेटियों के लिये वर देखते हुए सिर्फ और सिर्फ उनकी शिक्षा के स्तर का पैमाना रखा । और आज उनके पुत्र डॉ रमाकांत उदयपुर में ही एक सफल मेडिकल प्रैक्टिशनर है वहीं दूसरा पुत्र हरिकांत एक कंपनी में कार्यरत है । पुत्रियां सर्वश्रीमती प्रेमलता पत्नी श्री देवीलाल माली(पूर्व उपाचार्य), मधु पत्नी श्री दयानन्द सैनी ( पूर्व प्रशासनिक अधिकारी), तारा पत्नी श्री अम्बा लाल कच्छावा (पूर्व बैंक अधिकारी) तथा छोटी पुत्री कृष्णा कान्ता पूर्व मेम्बर जज ज़िला कंज्यूमर कोर्ट पत्नी श्री राम मोहन राय(एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट) है । पांचवी बेटी भगवती विवाहोपरांत घरेलू परिस्थितियों वश नही रही । बेटों की बहुएं भी श्रीमती पुष्पा व संतोष भी उच्च शिक्षा प्राप्त है ।
केसरदेवी एक व्यवहार कुशल महिला थी । वर्ष 1992 में अपने पति के देहांत के बाद भी उन्होंने अपने पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधने का काम किया । गर्मी की छुटियों में तो पूरे घर में सभी बेटियों और उनके बच्चों के आने पर एक महफ़िल ही लगी रहती थी । ऐसे समय मे वे स्वयं तथा उनकी बड़ी बहू पुष्पा सभी की यथेष्ठ आवभगत करती तथा उनकी पसन्दीदा व्यंजन परोसती । वे खुद पाक विद्या में निपुण थी । राजस्थानी व्यंजन बनाने में तो माहिर । उन की इस परंपरा को उनकी बहू श्रीमती पुष्पा ने सहेज कर रखा है ।
पिछले लगभग एक वर्ष से वे अत्यंत वृद्ध होने की वजह से कमजोर हो गयी थी परन्तु ऐसी कोई खास बीमारी नही थी । घर मे बेटा डॉक्टर उनका हर सम्भव चिकित्सीय सेवा देता और बहू सेवा सुषुर्षा । इस मायने में वह एक अत्यंत संतुष्ट महिला थी । इस दौरान अनेक कई बार ऐसा लगा कि वे अब नही रहेगी पर वे विजयी रही । हम जब भी उनके पास रह कर विदाई लेते तो वे तिलक लगाती व भेंट देती । हम हंसते हुए कहते कि जिया(माँ) अगली बार मिलोगी न तो वे भी मुस्करा उठती । उनके पति की मृत्यु 12 मई 1992 को हुई थी सम्भवतः वे इन्ही दिनों में महाप्रयाण को उपयुक्त मान रही थी ।
इस बार मार्च में लगभग 10-12 दिन मेरी पत्नी कृष्णा कान्ता अपनी मां के पास उदयपुर में रुकी । मैं भी उन्हें लिवाने वहाँ गया और दो दिन रुका ।
मेरी पत्नी का कहना था कि जिया इस दौरान कुछ ज्यादा नही बोली । पर चलने वाले दिन वे मुखर हो गयी । और सब को पहचान कर सबके बारे में पूछने लगी । बेटी ने अपनी माँ से कहा कि अब मैं पानीपत जा रही हूं अब कब आऊं तो जिया ने मुस्कराते हुए मेवाड़ी में जवाब दिया कि *यह भी कोई पूछने की बात है तेरा घर है जब चाहे आ जाना* । मायका तो माँ से ही होता था पर वह आश्वस्त थी कि उनकी पुष्पा इस कमी को कभी महसूस नही होने देगी ।
वर्ष में एक बार अमेरिका आने का आग्रह हमारी बेटी सुलभा का रहता है । हम वहां जाते तो थे पर एक डर के साथ कि कहीं इंडिया में हमारे न रहते जिया न चली जाए और हम उनके अंतिम दर्शन से भी वंचित न रह पाएं । पर अब तो हम इंडिया में ही है परन्तु जिया के अनन्त यात्रा पर निकलने पर भी उनके अंतिम दर्शनार्थ कोरोना पाबंदियों के कारण उदयपुर नही जा पा रहे जिसका हमें खासकर मेरी पत्नी को मलाल रहेगा ।
*जिया हम सदा आपको याद रखेंगे* ।
*न केवल आपको अपितु जीवन जीने के ढंग व इच्छा शक्ति को भी* ।
आपको अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि ।
राम मोहन राय
पानीपत
26.05.2020
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