Aruna Asif Ali


अरुणा आसफ अली के जन्म दिवस 16 जुलाई को उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि (nityanootan.com)
💐💐💐💐💐💐💐💐अरुणा जी से वायदा
👊👊👊👊👊👊👊👊👊 माता -पिता के कांग्रेस व स्वतन्त्रता आंदोलन में सक्रिय होने की वजह से परिवार में अरुणा आसफ अली का नाम श्रद्धा व सम्मान से लिया जाता था ।पिता जी जब भी देशभक्ति व वीरता की कोई मिसाल देते तो अरुणा आसफ अली का नाम जरूर लेते ,यही कारण था कि उन्होंने मेरी बड़ी बहन का नाम 'अरुणा 'रखा ।वे हमे  उनकी जीवन गाथा भी बताते कि किस तरह 1942 के भारत छोडो आंदोलन में ,मुम्बई के परेड ग्राउंड में अनेक बेतहाशा पाबंदियों के बावजूद भी अँगरेज़ सैनिको व सिपाहियो को चकमा देकर उन्होंने तिरंगा फहराया था व अपनी गिरफ्तारी दी थी । हमारे परिवार के लिए वे एक आदर्श थी ।
        अब एक अवसर आया जब मै दिल्ली गया और वहाँ कृष्णा राजिमवाले के माध्यम से बहादुर शाह ज़फर मार्ग स्थित उनके पायनियर /लिंक  के दफ्तर में उनसे मिलने का । मैने उनको श्री दीप चंद्र निर्मोही द्वारा इंदिरा जी पर लिखी पुस्तक 'विश्व की सर्वाधिक संघर्षशील महिला ' भेंट करते हुए अपने शहर पानीपत आने का निमन्त्रण देते हुए कहा कि आपके आने पर एक बड़ी मीटिंग करेंगे जिसमे हजारो लोगो को।जुटाएंगे । मेरी इस बात से वे मुस्कराई व बहुत ही धीमे आवाज में जवाब दिया 'लोगो की भीड़ का अब आकर्षण नही पर आउंगी कभी भी '।बात आई गयी हो गयी ।
   सन् 1984 में पंजाब में आतंकवाद जोरो पर था वहीँ दूसरी ओर अंधराष्ट्रवाद भी कम न था ।'शिव शम्भु का जाप करेंगे ,अपनी रक्षा आप करेंगे 'के नारे लगाकर त्रिशूल बांटे जा रहे थे । तत्कालीन सत्ताधारी व वर्तमान राष्ट्रभक्त एक ही गाड़ी में सवार थे । जहाँ पुरे भारत में सन् 1984 में सिख विरोधी नरसंहार हुआ था वहीँ इसकी रिहर्सल 1982 फ़रवरी में मेरे शहर पानीपत में हो चुकी थी । गुरूद्वारे जलाए गए ,पवित्र गुरुग्रन्थ साहब को अपमानित किया गया व 9 निरपराध सिखों की हत्या कर दी गयी तथा अनेक पर आतंकवादी होने का समर्थक होने का आरोप लगा कर झूठे मुकदमो में जेल भेज दिया गया । हम लोगो ने शांति समितियां बना कर काम करना शुरू किया जो उठाए गए बवंडर के खिलाफ  काफी कमजोर था । तभी कृष्णा राजिमवाले की मार्फत इतलाह मिली कि यद्यपि अरुणा जी  पांव की हड्डी टूटने की वजह से चलने फिरने मे असमर्थ है फिर भी वे पानीपत पीड़ित परिवारो से मिलने आ रही है । हम सब लोगो ने मिल कर तैयारी शुरू की व दिन के 11 बजे (तारीख याद नही ) अरुणा जी अपनी अनेक साथियो के साथ आ पहुची व मुझे मिलते ही उलहना देकर बोली 'क्या ऐसे मौके पर बुलाना चाहता था और कहाँ है वे हजारो लोग जो इन चन्द निहत्थो को भी न बचा सके ?'। हम सभी शर्मिंदा थे सचमुच हमारे पास कोई जवाब न था । खैर, हम उन्हें
 सभी जगह ले गए जहाँ हमले हुए थे ।मैने उन्हें सहारा देने के लिए उनके हाथ के पंजो में अपने पंजे फसाए व सहारा देकर उनकी जगह-2 जाने व पीडितो से मिलने में उनकी मदद करता रहा। आज 35 साल बीतने को है पर लगता है जो पंजे फंसाये थे आज भी अलग नही हुए है। अरुणा जी हमारा वायदा है कि साम्प्रदायिकता , कट्टरपन व भेदभाव के विरुद्ध लड़ने के जिस जज्बे को आप संचारित करके गयी थी उसे सदा सिद्दत से अंतिम साँस तक बरकरार रखेंगे ।
राम मोहन राय ।👊
(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट सर्विस )

Comments

  1. आपके जज्बे को सलाम है और आसफ अली जी को हम नमन करते हैं

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