मेरा भाई राना
मेरा भाई !
आज मेरे भाई मदन मोहन को गए पूरे 30 दिन हो गए । वह एक ऐसी यात्रा पर निकल गए है जहां से आजतक तो कोई भी उस रूप में वापिस नही आया ।
ऐसा नही की उनसे मेरा कोई अत्यंत आत्मीय सम्बन्ध थे और वे मेरे बिना और मैं कोई उनके बिना कोई भी काम नही करते थे । परन्तु किसी भी प्रकार का कोई दुराव भी नही था । सम्बन्ध ऐसे ही थे जैसे माता-पिता के जीवित रहते भाइयों में रहते है । किन्ही भी छोटी-२ बातों पर तुनक मिज़ाजी । परन्तु झगड़ा कोई भी नही । और हां कोई सम्पत्ति अथवा अन्य विवाद तो कभी भी नही ।
वह मुझसे 7 साल बड़े थे । इस बीच हमारी एक बहन मुन्नी है और उसके बाद मैं । मेरे माता-पिता ने उनका प्यार का नाम राना रखा अर्थात बेहद प्यारा । बचपन से ही बहुत भोला ,सहज स्वभाव एवम निष्कपट रहे । जो कहना है कह दिया उसमें किसी भी प्रकार का वैर भाव नही ।
हमारा घर बेशक आर्य समाजी -कांग्रेसी वातावरण का था पर किसी भी प्रकार की कोई संकीर्णता नही रही । घर के बड़े कमरे में तीन चित्र लगे थे - स्वामी दयानंद , बा-बापू और प्रभु यीशु का । ईसा मसीह के यह चित्र हमारे पिता जी के दोस्त पादरी साहब (डेविड के पिता) ने उन्हें भेंट किया था ।
पादरी साहब जब-२ घर आते हमारे खाने के लिये मिठाई व फल लाते । मेरे बड़े भाई राना से तो उनका खूब ही स्नेह रहता । उन्हें कभी-2 वे चर्च भी ले जाते । और भाई भी खुशी-कहता कि वह तो फादर का बेटा है । बचपन मे जब भी अपनी बात की सत्यता को साबित करने के लिए कसम खाता तो ईसा मसीह के नाम की ही खाता । ऐसा करना ही उनकी बात की विश्वसनीयता का प्रमाण थी ।
घर के पिछवाड़े वाले मकान में मौलवी अल्लाह रख्खा और उनकी पत्नी रहते थे । उनके कोई बच्चा नही था पर हम थे न उनके बच्चे । माता जी तो सुबह होते ही आर्य समाज के प्रचार के लिये घर से निकल पड़ती और उनके बाद हम तीनों भाइयों-बहन की जिम्मेवारी उनकी ही होती । हम उन्हें ही अब्बा और अम्मा कह कर बुलाते । मेरी बहन को तो वे अपनी गोद लिए बेटी ही मानते
अलसुबह पिता जी हम तीनों भाइयों - बहन को कंधे पर बिठा कर पूरे घर का चक्कर भारत माता ,ऋषि दयानन्द , महात्मा गांधी के जयकारे लगाते हुए घुमाते । यह एक प्रभातफेरी होती जिसे वे गांधी जयंती से जोड़ते हुए निरन्तर जारी रखते । इस कंधा सवारी में सबसे छोटा होने की वजह से कम वजन के कारण सबसे ज्यादा वक्त मुझे मिलता । इस बात से भाई कुछ नाराज रहता ।
वह दूध पीने का बहुत ही शौकीन थे । घर मे गाय-भैंस दोनों थी । दूध, दही ,मख्खन,लस्सी और घी खूब होता । जिसका बटवारा हम पांच लोगों में बराबर से माँ करती । एक से डेढ़ किलो दूध तो प्रत्येक के हिस्से में रोजाना आता । अपनी शौकीन तबियत के कारण वह कभी-२ हमारे हिस्से में भी कुछ शामिल रहते । हमारा झगड़े का एक कारण यह भी रहता । पर इसका निदान पिता जी अपने हिस्से को देकर करते ।
हमारे परिवार में हर रविवार को हवन होता । वैदिक पद्धति से महृषि दयानन्द प्रणीत यज्ञ । खासियत यह भी रहती की इसके साथ-२ ही सर्वधर्म समभाव प्रार्थना , रामधुन और एकादश व्रतों का पाठ भी होता । माताजी आर्य समाजी तथा पिता जी पौराणिक सनातन धर्मी थे । परन्तु इस सब के बावजूद भी घर मे धार्मिक सदाशयता थी । अनेक बार जब कोई कठोर आर्य समाजी कुछ आलोचना करता तो जवाब यह ही होता कि सब अपने -२ धर्म मार्ग पर अडिग रहो और अन्य धर्मावलंबियों का सम्मान करो ।
घर मे पिता जी की सीमित आमदनी से ही घर चलता । हम सभी को आमदनी का पता रहता और यह भी की बैंक पूंजी तो नदारद है । एक बार हम तीनों बहन-भाइयों ने निश्चय किया कि इस महीने घर हम चलाएंगे । पिता जी को वेतन मिलते ही हम तीनों को थमा दिया गया और हो गयी शुरुआत । खर्च में कटौती की फिर भी महीने के अंतिम सप्ताह में पैसा खत्म । अब क्या करें? माता-पिता दोनों इस प्रयोग को शांत भाव से देख रहे थे । हम संकट में देख कर वे आगे आये । हम अब तक समझ नही पाए कि ऐसी क्या बात थी कि इतनी कम आमदनी में वे घर का गुजारा कैसे करते थे ?
11 वीं पास करने के बाद भाई राना की हरियाणा सरकार में क्लर्क के पद पर नौकरी लग गयी । अब घर मे कमाने वाले दो हो गए थे ।
राना भाई की नियुक्ति पी डब्ल्यू डी ,बी एंड आर विभाग के एकाउंट्स विभाग में हुई थी । एक दिन हमने देखा कि वे पिता जी के पास आकर यह उलहाना देते हुए जोर-२ से रो रहे है कि उन्होंने उसे रिश्वत लेनी क्यो नही सिखाई । पिता जी भी द्रवित थे परन्तु दिल मे खुश भी कि उनका बेटा उनकी ही तरह ईमानदारी की राह पर है ।
राना जी का विवाह 1973 में दिल्ली में हुआ । उनकी पत्नी कृष्णा एक सुसभ्य परिवार से एक शिक्षित महिला है । हमारी भाभी ने भी हमारे परिवार की परम्पराओ का भलीभांति पालन किया और हमारे सीधे-साधे भाई के साथ जिस तरह से जीवन निर्वहन किया वह स्तुत्य व अनुकरणीय है । उनके एक बेटा अरविंद व बेटी आकू है ।
10 वर्ष पूर्व अपनी रिटायरमेंट के बाद वे सादगी पूर्ण जीवन बिता रहे थे । हमारे मकान की पहली मंजिल में वे तथा उनका परिवार तथा नीचे हम । वैसे कोई बटवारा नही था परन्तु सहूलियत के अनुसार ऐसी व्यवस्था थी ।
हर त्योहार हम इकठ्ठे ही मनाते और इसी तरह से हर गमी खुशी भी । मेरी दोनों बेटियों तथा बेटे को वे नियमित फोन कर उनका हालचाल पूछते ।
इस नामुराद कोरोना ने मेरे इस भाई को लील लिया ।और विगत 20 सितंबर को वे हमसे सदा-२ के लिए विदा हो गए ।
अब घर से दूर हूं ताकि सामान्य हो सकूं ।घर वापिस आने की सोचते ही मेरा दिल फटता है कि अब वह नही मिलेंगे । हम ही तो उसे अग्नि के हवाले करके आये थे फिर उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाह । फिर भी हम इस सच्चाई को कबूल करने को तैयार नही है । सोच-२ कर मन दुखी होता है कि अब मेरा वह माँ जाया भाई नही मिलेगा ।
हम तुम्हे बहुत याद करते है और सदा याद रखेंगे ।
We love you Rana . We miss you always.😪😪😪
राम मोहन राय
उत्तराखंड।
19.10.2020
Comments
Post a Comment