Pushpa Bhabhi
*पुष्पा भाभी*
मेरी शादी के 37 वर्षो बाद यह पहला अवसर था जब मेरी सासु माँ की अनुपस्थिति में मेरी सालेज (पत्नी के भाई की पत्नी) ने ससुराल से विदा किया । मन व्यथित भी था व भावुक भी ,परन्तु हालात बदल गए है जिन्हें स्वीकार करना पड़ेगा । स्मरण रहे मेरी सासु माँ श्रीमती केसर देवी जी (पत्नी स्व0 श्री गणेशलाल जी माली,पूर्व सांसद) का निधन विगत 25 मई को हो गया था और लॉक डाउन की वजह से हम दोनों पति-पत्नी उदयपुर नही आ पाए थे । मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कांता को इस बात का बेहद पछतावा था । चूंकि अब परिवार में एक शादी में कोटा आये थे तो वहीं से उदयपुर आ गए ।
मेरी सलेज श्रीमती पुष्पा माली शुरू से ही हमसे बेहद स्नेह रखती रही । बेशक उनके तीन ननदें और भी थी । पर उनकी कृपा दृष्टि हम पर सर्वाधिक रही । ऐसा स्वभाविक भी है । एक तो हम दूर से कभी-२ आने वाले बेटी-दामाद थे ,दूसरे हमारी शादी में पाणिग्रहण संस्कार में कन्या के माता-पिता के सभी कर्मकांड एवम धार्मिक-सामाजिक रीति-रिवाजों को उन्होंने तथा उनके पति डॉ रमाकांत ने ही किया था । कारण यह कि उसी दिन व एक ही मुहूर्त में मेरी पत्नी की बड़ी बहन तारा की भी शादी अजमेर निवासी श्री अम्बा लाल जी कच्छावा से थी और उनकी सभी रीतियों को मेरे श्वसुर एवम सासु माँ ने करने की जिम्मेवारी ली थी । उस दिन से आज तक हमारे लिए तो पुष्पा भाभी ही हमारी सासु माँ रही । यद्यपि आयु में वे मेरी पत्नी से भी कम है ,पर व्यवहार में मेरी सास से भी आगे ।
पुष्पा भाभी अपने 6 भाईयों एवम 5 बहनों की सबसे छोटी बहन है । उनके पिता श्री मांगीलाल कच्छावा ,ज़िला चुरू के राजलदेसर कस्बे के एक व्यापारी थे । वे तथा उनकी पत्नी अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति बहुत ही जागरूक थे और यही कारण था कि उन्होंने अपने बड़े पुत्र श्री अमोलक चंद को उदयपुर आकर पढ़ने एवम रोजगार के लिये प्रोत्साहित किया और इस बड़े भाई ने न केवल इस नए बड़े शहर में ख्याति अर्जित की वहीँ अपने सभी बहन- भाइयों को भी उत्तम से उत्तम शिक्षण-प्रशिक्षण एवम व्यवसाय का प्रबंध किया ।
पुष्पा भाभी न केवल सामाजिक व्यवहार में अपितु पाकशाला विज्ञान में निपुण है । ऐसी कहावत प्रचलित है कि दिल पर राज करने का रास्ता पेट से होकर गुजरता है और भाभी जी इस कला में पूर्ण पारंगत है । न केवल सम्पूर्ण राजस्थानी व्यंजन अपितु दक्षिण भारतीय व पंजाबी खाना बनाने में भी उनका कोई सानी नही । दाल-बाटी-चूरमा, गट्टे ,केर- सांगरी, बाफले और पता नही क्या-२ वे बनाती है और हम ठहरे पक्के चटोरे ।भाभी जी को व्यंजन बनाने की आदत है और हमे है खाने का चस्का ।
उदयपुर में उनके घर 'पितृकृपा' की एक मात्र धुरी पुष्पा भाभी ही है । ऐसा नही है कि वे किन्हीं भी आलोचनाओं से परे है पर उनके गुण इन सब पर भारी है । उनके हम से तीन रिश्ते है । एक - रिश्ते के हिसाब से वे हमारी सलेह है । दूसरे - व्यवहार की दृष्टि से सासू माँ है । तीसरे - मेरी बड़ी बेटी सुलभा के पति की सगी छोटी मौसी है और इस तरह हमारी समधिन (बियाही जी) भी हुई । पर वे सदा हमसे दूसरे नम्बर का रिश्ता ही निभाती हैं ।
भाभी जी के दो पुत्रियां जया व प्रियंका व एक पुत्र प्रतीक है, जो अब सभी विवाहित है तथा अपनी योग्यता के अनुसार बेहतर कार्य कर रहे है । इन सभी बच्चों पर अपनी मां के गुणों की छाप साफ दिखाई देती है ।
मेरे स्वसुर जी अपने शहर उदयपुर के न केवल एक प्रतिष्ठित वकील रहे वहीँ एक राजनेता भी रहे । अपनी व्यवहार कुशलता एवम लोकप्रियता के कारण ही राजस्थान से एक बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे । परन्तु उन्हें अफसोस रहा कि उनकी कोई संतान उनकी तरह सामाजिक-राजनीतिक सेवा में नही रही । परन्तु भाभी जी इस कमी को भी पूरी करती है । वे न केवल राजनीति में अपितु सामाजिक कार्यो में सक्रिय है ।
मेरा ससुराल पक्ष श्री नाथद्वारा /पुष्टिमार्गीय तिलकायत वैष्णव सम्प्रदाय के प्रति आस्थावान है । श्री ठाकुर जी की सेवा में वे आनंदित रहते है । यह भाभी जी ही है जो इन तमाम परम्पराओं एवं आस्थाओं का निष्ठा से पालन करती है । व्रत ,पूजा और उपासना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है ।
अपनी सासु माँ के जीवित रहते मैं अक्सर कहता था कि ससुराल तो तब तक है जब तक सास-ससुर है । इसका वह हमेशा प्रतिकार करती और कहती कि रिश्ते संस्कारों से बनते है । ऐसा नही है कि हम उनके गुणों से नावाक़िफ़ थे परन्तु अब उसे यथार्थ रूप में पा रहे है ।
हमारे मस्तक पर आपके द्वारा लगाये गए तिलक व दी गयी भेंट से हम अभिभूत है । आपका आशीर्वाद एवम कृपा दृष्टि हम पर सदा बनी रहे ,ऐसी हम कामना करते है ।
राम मोहन राय,
कृष्णा कांता ।
उदयपुर(राजस्थान)
18.12.2020
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