आस्तिक नेहरू पद्य पुस्तक की समीक्षा
शिक्षिका श्रीमती सुषमा गुप्ता के माध्यम से सन 1968 में प्रकाशित उनके पिता श्री गोपालदास गुप्त की पद्य पुस्तक "आस्तिक नेहरू" को पढ़ने का अवसर मिला । कविताओं का विषय एवम भावाव्यक्ति इस तरह रोचक रही कि एक ही बार मे पूरी की पूरी उनकी कविता के सभी छंदों को पढ़ गया ।
श्री गुप्त न केवल लोकतांत्रिक सिद्धान्तों को समर्पित रहे वहीं शांति ,एकता ,भाईचारे एवम समता के प्रबल पक्षधर रहे । जिनकी निष्ठा की पूर्ण अभिव्यक्ति इन 10 कविताओं में है ।गांधी-विनोबा विचार से वे सरोबार है । नेहरु-इंदिरा की पंचशील , विश्वशांति एवम गुटनिरपेक्षता की नीतियों के वे न केवल समर्थक ही नही अपितु प्रचारक भी रहे । डॉ ज़ाकिर हुसैन उनके लिए एक महामहिम राष्ट्रपति ही नही अपितु महात्मा गांधी के महान सुयोग्य शिष्य रहे जो बुनियादी तालीम के माध्यम से एक नए भारत के निर्माण के लिए क्रियाशील थे ।
पुस्तक की भाषा इतनी सरल एवम भक्तिपूर्ण है कि हर सुधि पाठक को प्रेरित करती है ।
राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर ने इस पुस्तक का आलेख लिख कर लेखक के प्रति न केवल अपने सम्मान की अभिव्यक्ति की है वहीं उनकी विचारधारा के प्रति भी अपना समर्थन दिया है ।
मुझे इस बात की खुशी है होप के विद्यार्थी गांधी-विनोबा विचार के साथ-२ इन कविताओं को भी पढ़ कर आनंदित होंगे । ऐसे दौर में जब जनतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता एवम आपसी भाईचारा निशाने पर है तब यह कालजयी रचनाएं उनका मार्ग प्रशस्त करेंगी ।
विचारों के धनी ऐसे पिता के घर जन्म लेकर श्रीमती सुषमा गुप्ता धन्य है और इस पर हम उन्हें बधाई देते है ।
उनके पिता के ही शब्दों में
" शत वर्षों तक देखो, बोलो,
और सुनो जियो शत वर्षों तक, गांधी नेहरू के सदृश देवी,
पहुंचो ऊंचे आदर्शों तक।
इन शब्दों के द्वारा मेरा,
शुभ अभिनंदन स्वीकार करो। निज पिता सदृश इस जग में, अपने यश का विस्तार करो ।"
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राम मोहन राय
पानीपत
(नित्यनूतन वार्ता)
23.02.2021
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