अब तो संभलो
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अब तो समझ लो*!
देशभर में बढ़ते कोरोना के मामलों एवं लगातार मृत्यु होने के समाचारों से हम सब बहुत ही भयभीत हैं ।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह कोई बीमारी नहीं है । अपितु आपदा में अवसर ढूंढने की साजिशें हैं उनका यह तर्क है कि जब राजनीतिक चुनावों में भारी रैलियां करके सरकार चाहे वह राज्य की हो अथवा केंद्र की वहां के नेता भीड़ जुटा रहे हैं ।धर्म के नाम पर कुंभ में स्नान हो रहे हैं और किसान आंदोलन में लाखों लोग दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं तो फिर करोना कहां है?
हम उनकी इन बातों का जवाब तो नहीं देना चाहते। पंजाब दिल्ली एवं महाराष्ट्र की सरकारों की प्रशंसा अवश्य करना चाहेंगे कि उन्होंने जमीनी हकीकत को समझ कर बहुत ही साफगोई से यह कहने की हिम्मत की कि मामला चरमरा गया है। परंतु अभी भी हमारी राष्ट्रवादी सरकार इस बात को कहने की हिम्मत नहीं जुटा रही कि वह इस आपदा से कैसे निपटेंगी?
हालात यहां तक है कि मेरे छोटे से शहर पानीपत में ही रोजाना पांच शव चिताओं में जलाए रहे हैं तो ऐसे हालात में हम क्या करें ?
मेरे एक डॉक्टर मित्र ने मुझे बताया की कोरोना निरोधक एक इंजेक्शन 11 सो रुपए का होना चाहिए एक मरीज के रिश्तेदार ने तीन लाख ₹ का खरीदा यानी के आपदा में अवसर मुनाफाखोर माफिया ने भी ढूंढ लिया है।
एक अन्य मित्र जो कि सत्ताधारी पार्टी का प्रचारक है से मैंने इस बारे में चर्चा की तो उनका कहना था कि 5 राज्यों का चुनाव होने दो और 29 तारीख को तो कुंभ भी समाप्त हो जाएगा तब हम खुलकर गंभीरता से इस आपदा से निपटने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे ।
बड़ी प्रसन्नता की बात है कि प्रधानमंत्री जी ने कुंभ को प्रतीकात्मक करने की अपील की तथा जिसे धार्मिक नेताओं ने स्वीकार किया परंतु इसके विपरीत चुनावी रैलियां भी तो प्रतीकात्मक हो सकती हैं ? तो फिर ऐसा क्यों नहीं ? यह तमाम बातें संशय पैदा करती हैं
एक अन्य मित्र बता रहे थे कि कोरोना के डर का माहौल किसान आंदोलन को समाप्त करने का भी प्रयास हो सकता है। इस बारे में दो राय नहीं दिल्ली के चारों तरफ बैठे किसान आंदोलनकारियों ने अपने धैर्य का परिचय दिया है तथा करोना रोकने के सभी तरीकों पर वे सही साबित हुए हैं। इसके बावजूद भी ऐसा संभव नहीं कि यह बीमारी सब को तो मिल जाएगी परन्तु किसान आंदोलनकारियों को रियायत पर देगी ।
हरियाणा के उपमुख्यमंत्री सहित सत्तारूढ़ दल के अनेक वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखकर किसान आंदोलनकारियों से पुनः वार्ता शुरू करने की फरियाद की है। प्रधानमंत्री जी भी कहते हैं कि वह सिर्फ एक कॉल की दूरी पर है। किसान आंदोलनकारियों के नेता भी वार्ता करने को तैयार हैं। हमें यह देखना होगा कि वार्ता किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो निष्कर्ष निकालने में सक्षम हो न की किसी गूंगी गुड़िया से। ऐसे मामले में केंद्रीय मंत्रिमंडल के अनेक वरिष्ठ सदस्य जिनमें श्री राजनाथ सिंह आदि हो सकते हैं यदि उन्हें वार्ताकार बनाकर शक्ति दी जाए तो संभवत कुछ हल निकल सके ।
हास्य कवि श्री सुरेंद्र शर्मा का एक वीडियो आजकल वायरल हो रहा है जिसमें वे अपने व्यंग्यात्मक शैली में कहते हैं कि किसान तो नहीं मांग रहा उसका भला करो, पर तुम क्यों पड़े हो उसका भला करने में । यानी कि इस भलाई में भी यह शंका है तो क्यों जिद पर अड़े हो।
वक्त की आवाज है जरूरत थी यदि एक विशाल समुदाय उनके लिए बनाए गए कानूनों को नहीं चाहता तो केंद्रीय सरकार को किसी भी प्रकार की हठधर्मिता को छोड़ते हुए उन्हें वापस ले लेना चाहिए ताकि यह आंदोलन समाप्त हो ताकि आज के समय में जो महामारी है उसके प्रकोप को भी दूर किया जा सके ।
कानून ऐसे नहीं होते की उन्हें वापस न लिया जा सके। अनेक बार ऐसा हुआ है कि संसद द्वारा पारित कानूनों को वापस लिया गया है ।और हां, यदि यह कानून बहुत ही सार्थक है तो उचित प्रक्रिया अपनाकर वार्ता के माध्यम से इन्हें दोबारा भी सर्व सहमति से प्रस्तुत किया जा सकता है। क्या केंद्र सरकार पर ऐसा करने की कोई रोक है?
कोरोना को आपदा में अवसर की तरह नहीं लिया जा सकता। यह एक जानलेवा आपदा है जिसे निबटने के हर संभव प्रयत्न करने होंगे। इसके लिए न केवल उचित राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है अपितु उन तमाम प्रावधानों को भी अपनाने की आवश्यकता है जिससे यह आपदा हमारे देश से सदा सदा के लिए विदा हो।
इस बीमारी को खत्म करने के लिए ने केवल सरकार अपितु जनता पर पर भारी जिम्मेदारी है मात्र ऐलान करके कि नियमों का पालन करो उस पर अमल नहीं किया जा सकता जब तक हम खुद उदाहरण पेश नहीं करेंगे तब तक ऐसा कुछ भी नहीं होगा। नेताओं के प्रदर्शन ने ऐसी बातें बिल्कुल बेबुनियाद ही साबित की है, जिनका कोई असर आम लोगों पर नहीं है।
ऐसा लगता है कि अब निदान सरकारों के हाथ से निकल रहा है। ऐसे समय में हमें अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी यानी कि कोविड-19 को रोकने के तमाम नियमों का पालन करना होगा।
मैं अपने शहर का ही अनुभव बताता हूं । देखने में मिलेगा कि 80% लोग बिना मास्क व सावधानी के इधर-उधर घूम कर कोरोना संक्रमण के वाहक बन रहे हैं।
आइए ऐसी गंभीर स्थिति में हम अपने कर्तव्य को पहचाने साथ-साथ नेताओं को भी उनके कर्तव्यों का आभास कराएं । ऐसी स्थिति में जब कोई आम आदमी बीमार होता है तो उसे देसी नुस्खे लेने के अलावा कोई चारा नहीं होता क्योंकि अस्पताल तो मरीजों से भरे और प्राइवेट अस्पताल में दाखिल होने की ताकत आम लोगों के पास नहीं है। देश के बड़े-बड़े अस्पताल तो सिर्फ राजनेताओं एवं धन्ना सेठों के लिए ही आरक्षित हैं ।
समय बहुत ही विकट है कोई भी धार्मिक अनुष्ठान इसे दूर नहीं करेगा । वैज्ञानिक सोच एवं चेतना ही का विकास ही हमें इसका सामना करने की शक्ति देगा।
राम मोहन राय
पानीपत/18.04.2021
(नित्यनूतन वार्ता)
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