Nityanootan Varta 282
21वीं में मार्क्सवाद
नित्यनूतन वार्ता के 282 वें सत्र में 21वीं सदी की विचारधारा शीर्षक से चल कार्यक्रम में मार्क्सवाद विषय पर चर्चा करते हुए अम्बेडकर यूनिवर्सिटी ,दिल्ली के प्रोफेसर डॉ गोपालजी प्रधान ने अपने विस्तृत वक्तव्य में कहा कि कार्ल मार्क्स के समय से ही विरोधी लोग मार्क्सवाद के खात्मे की घोषणा करते रहे है । वास्तव में इस वाद के समाप्त होने की सबसे अधिक खुशी मार्क्सवादियों को ही होगी क्योंकि यह तभी खत्म हो सकता है जब मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण समाप्त हो । ऐसा होने पर इस विचारधारा की कोई आवश्यकता नही रहेगी । उन्होंने कहा कि ज्यों ज्यों चीजें बदलती है त्यों त्यों वह यथावत स्थिति में प्रकट होती है । फासिज्म लोकतंत्र को समाप्त करके ही आया । पूंजीवाद के संकट ने ही राष्ट्रवाद को पैदा किया और उसी से फासिज्म उपजा । पुरानी चीजे भी वापिस आयी । अनेक लोग सोवियत संघ से विघटन से पूर्व वहाँ ख़ुफ़िया तंत्र की मजबूती , तनाशाही तथा प्रेस की स्वतंत्रता की बात करते थे, पर आज की स्थितियां को देखे तो पाएंगे कि इंटरनेट ,सोशल मीडिया ने हमारी सारी जानकारी बिना चाहे सरकार व कॉरपोरेट को दे दी है । हम कितने लोकतांत्रिक है इसका अंदाज़ा आमजन की सत्ता में भागीदारी दर्शाती है । पूरा मीडिया सरकार, एक पार्टी व कॉरपोरेट का भोंपू( गोदी मीडिया) बन गया है । सभी प्रेस में एक ही तरह की खबरे है मानो उसका एक ही स्त्रोत हो । तकनीक ने बहुत ही सुव्यवस्थित ढंग से लोकतंत्र विहीन बना दिया है । कार्ल मार्क्स स्वयं लोकतंत्र व प्रेस की आज़ादी के हिमायती थे । गोथा कार्यक्रम की आलोचना में उन्होंने इन सवालों को उठाया भी था व कहा था कि शिक्षा का सम्पूर्ण खर्च सरकार ही उठाये परन्तु उसकी व्यवस्था में दखलन्दाजी नही करे ।
डॉ गोपालजी ने कहा कि पूंजी पर समाज का अधिपत्य होना चाहिए परन्तु निजि तथा व्यक्तिक सम्पति में अंतर अवश्य होगा व्यक्तिक मलकियत में उपयोग का अधिकार सभी को मिलेगा पर निजि तौर पर नही और पूंजीवाद ने सम्पति का जो अधिग्रहित कर लिया है उसे वापिस लेना होगा । नस्लवाद ,उपनिवेशवाद का ही एक रूप है ।
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि भारत मे ईस्ट इंडिया कम्पनी कॉरपोरेट का पहला रूप थी जिसकी पृष्टभूमि में अंग्रेज़ी शासन था । आज ऐसे ही हालात पैदा किये जा रहे है । एक नए तरह की वर्ण व्यवस्था थोपने का प्रयास है जिसमे आम लोगों के बच्चों के लिए पड़ोस के स्कूल व स्किल इंडिया होगा और उच्च वर्गों के लिए अलग स्कूल ,संस्थान व विश्वविद्यालय ।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि मार्क्स का सिद्धांत न तो जटिल है और न ही आदर्शवादी ।ऐतिहासिक भौतिकवाद से सिर्फ अभिप्राय परिवर्तन है जबकि द्वन्दात्मक भौतिकवाद हमे उस परिवर्तन के लिये सामूहिक लड़ाई की बात करता है और समाजवाद का अर्थ है मनुष्य द्वारा मुनाफे के आधार पर मनुष्य के शोषण की समाप्ति ।
मार्क्सवादी विचार के धर्मविरोधी होने पर उनका मत था कि अंधविश्वास ,पाखंड तथा तर्कविहीन अवैज्ञानिक सोच धर्म का हिस्सा नही हो सकती । इसीलिए समाज मे कबीर ,रविदास , गुरुनानक जैसे महापुरुषों को धार्मिक कठमुल्ले कभी भी सराहते नही । गांधी जी स्वयं को सच्चा सनातनी हिन्दू कहते थे भी इनके निशाने पर रहे ।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उनका कहना था कि क्रांति किसी की व्यक्तिगत इच्छा से नही अपितु सामूहिक इच्छाशक्ति से ही आएगी । इसीलिए कार्ल मार्क्स ने अपनी प्रार्थमिकता में भेदभाव के सभी रूपों की समाप्ति , महिला सशक्तिकरण तथा पर्यावरण सुरक्षा की बात कही ।
उन्होंने कहा कि नए लोग विशेषकर युवा वर्तमान की परिस्थितियों से ग्रस्त होकर नेतृत्व में आ रहे है । किसान आंदोलन ने उन्हें वे सब कुछ सीखा दिया है जो अनेक वर्षों तक सीखना मुश्किल था । आज जरूरत है मजदूरों एवम युवाओं के बीच सीखने के लिए जाया जाए न कि शिक्षक बन कर । क्रूर सत्ता का मुकाबला एकजुट होकर ही होगा । कोरोना काल के बाद की दुनियां नई होगी ।
प्रोफेसर डॉ गोपालजी ने लगभग दो घण्टे तक अपनी बात को रखा जिसने श्रोताओं को उनसे जोड़े रखा ।
संवाद के बाद बस्तर से पद्मश्री श्री धर्मपाल सैनी ने अपनी टिप्पणी रखी ।
वार्ता में राम मोहन राय ने नित्यनूतन विचार का परिचय दिया जबकि श्री एस पी सिंह ने वक्ता और विषय का परिचय दिया व अंत मे धन्यवाद ज्ञापित किया ।
राम मोहन राय
(नित्यनूतन वार्ता)
09.05.2021
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