Justice VR Krishana Ayyer
"यादों के झरोखे से"
श्री वी.आर कृष्णा अय्यर विश्व के उन गणमान्य न्यायाधीशों में से एक थे, जिन्होंने अपने आदेशों से एक नया रास्ता दिखाया है। चाहे मजदूरों का विषय हो अथवा बुद्धिजीवियों का, जस्टिस अय्यर सदा ही मुखर रहे । वे तब अत्यधिक प्रकाश में आए जब 1977 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज श्री जगमोहन सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के रायबरेली से चुनाव निरस्त कर दिए। फैसला भी ऐसे समय में आया जब अदालतों में ग्रीष्मकालीन अवकाश होने को था। हो सकता है ऐसा सब कुछ सुनियोजित हो। इंदिरा जी के सामने कोई चारा नहीं था। दूसरी तरफ जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन इंदिरा शासन के खिलाफ पुरजोर चल रहा था। रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां ,'कुर्सी खाली करो कि जनता आती है', हर जुबान पर थी। चारों तरफ अराजकता का माहौल था,पर सौभाग्य रहा कि उस समय सुप्रीम कोर्ट में वोकेशनल जज श्री वी. आर. कृष्णा अय्यर थे ।इंदिरा जी की तरफ से हाईकोर्ट के फैसले को चैलेंज करते हुए अपील दायर की गई और न्यायमूर्ति अय्यर ने अपने अंतरिम आदेश में निम्न कोर्ट के फैसले पर स्टे कर दिया। अराजकता की धुंध छट चुकी थी और देश में शासन पुनः अपनी शक्ति से आरूढ़ हो गया था। मैं यहां इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाया आपातकाल कितना सही था और कितना गलत। व्यक्तिगत रूप से मैं अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण आपातकाल के समर्थन में था। जस्टिस अय्यर अपने उद्बोधन में बार-बार कहते थे कि यह कहना निरा पाखंड है कि न्यायपालिका राजनीति से प्रेरित नहीं है। जबकि सवाल यह है कि इसके न्यायाधीश किस विचारधारा से प्रभावित हैं?
जस्टिस अय्यर अपने प्रगतिशील पृष्ठभूमि के लिए सर्वदा चर्चा में रहे । वे राजनीति में भी रहे और सन 1957 में केरल में श्री ई0 एम0 एस0 नंबूदरीपाद द्वारा बनाई गई पहली कम्युनिस्ट नेतृत्व वाली सरकार को बतौर निर्दलीय विधायक समर्थन देने पर मंत्री भी रहे। बाद में राजनीति छोड़कर न्यायाधीश बने ।
सन 1977 से 80 तक मुझे कानून के एक विद्यार्थी के रूप में जे. वी . जैन कॉलेज ,सहारनपुर में पढ़ने का अवसर मिला। सौभाग्य यह रहा कि इसी दौरान लॉ फैकेल्टी के सचिव पद पर निर्वाचित हुआ। उसी दौरान ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के जिला संयोजक के रूप में भी कार्य करने का मौका मिला और इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट श्री आर. के. गर्ग के संपर्क में भी आया। लॉ फैकल्टी का कोई भी समारोह करने की वहां कोई परंपरा नहीं थी। परंतु मेरी सक्रियता ने मुझे बल दिया और साहस कर श्री
आर.के. गर्ग से आग्रह किया कि क्यों न कॉलेज में एक कार्यक्रम किया जाए, जिसमें जस्टिस अय्यर को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जाए। श्री गर्ग ने इसके जवाब में फौरन कहा कि तुम पत्र लिखो और मैंने लॉ फैकेल्टी के सचिव के नाते उन्हें आमंत्रण भेजा। यह क्या एक हफ्ते के बाद ही उनका जवाब आया कि वे 14 अप्रैल 1979 को कार्यक्रम में आने के लिए तैयार हैं। सुप्रीम कोर्ट के किसी जज का पत्र कॉलेज में आना एक अचरज की बात थी। हमारी लॉ फैकेल्टी के डीन श्री आर. के. अग्रवाल अचंभित थे और इस पत्र को जगह-जगह दिखा रहे थे। श्री अय्यर के पत्र में यह भी लिखा था कि यद्यपि वे आने को तैयार हैं, चूंकि सहारनपुर हिंदी बेल्ट है। इसलिए उनके अंग्रेजी व्याख्यान को समझने में श्रोताओं को कठिनाई होगी। इस पर मैंने तुरंत जवाबी खत लिखा, जिसमें कहा था कि भाषा,विचार प्रवाह में कोई बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती। कार्यक्रम तय हो गया था। इस अवसर पर उन्हें अभिनंदन पत्र भी दिया जाए ऐसा भी निश्चय किया गया। इसे कौन तैयार करवाए, यह सवाल था? श्री आर. के. गर्ग से आग्रह किया गया कि वह हमारी मदद करें। गर्ग का कहना था कि उसमें कोई नई बात होनी चाहिए । क्यों न अच्छा हो कि उनके वर्तमान विचारों से ही ओतप्रोत एक अभिनंदन पत्र उन्हें दिया जाए ताकि वे उससे आगे वक्तव्य रखे अतः ऐसा ही हुआ।
निश्चित दिन हम तमाम साथी सहारनपुर विश्राम गृह पर श्री अय्यर की अगुवाई के लिए पहुंचे। दोपहर बाद वे श्री आर. के. गर्ग के साथ एक फिएट कार में बैठकर आए ।गर्ग ड्राइव कर रहे थे और वे उसके साथ वाली सीट पर बैठे थे। न कोई सुरक्षा, न अर्दली , न पी. ए., न कोई तामझाम । गाड़ी रुकने पर हमने देखा कि एक गरिमापूर्ण व्यक्ति सफेद लूंगी व शर्ट में सामान्य चप्पल में उतरा है। हम अचंभित थे कि क्या सुप्रीम कोर्ट का ऐसा भी जज हो सकता है? पर हां, वे तो कृष्णा अय्यर ही थे। बाद में हम उन्हें एक सामान्य से होटल में लंच करवाने के लिए ले गए। खाने की कोई अपेक्षा नहीं, विशुद्ध शाकाहारी भोजन।
निश्चित समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ । जस्टिस अय्यर के बोलने से पहले कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ आर. सी.अग्रवाल, लॉ फैकेल्टी एसोसिएशन के अध्यक्ष हंस कुमार जैन व श्री आर .के. गर्ग के उद्बोधन के बाद उन्होंने अपना वक्तव्य दिया। बेशक मै मंच संचालन हिंदी में कर रहा था,परंतु वे हर बात को बखूबी समझने की कोशिश कर रहे थे ।उनके उद्बोधन से पहले भी मैंने यही कहा कि जिस तरह से मुख्य अतिथि मेरी हिंदी समझ रहे हैं, वैसे ही हम उनकी इंग्लिश को समझेंगे। हिंदी भाषी तमाम श्रोता जस्टिस अय्यर का व्याख्यान दतचित्त होकर सुन रहे थे। उनकी भाषा ही नहीं उनके व्यक्तित्व की झंकार ही ऐसी थी जो तमाम वातावरण को गुंजायमान किए हुए थी।
(2) वकालत करने के बाद सन 1981 में मैं अपने पैतृक नगर पानीपत में आ गया और वकालत की शुरुआत की। वकालत के साथ-साथ मुझे अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के प्रांतीय सचिव की जिम्मेदारी का भी निर्वहन करना था। जिसके अध्यक्ष नगर के प्रसिद्ध समाजसेवी चौधरी राम स्नेही जी थे। श्री राम स्नेही जी बहुत निश्चल एवं सरल प्रवृत्ति के व्यक्ति थे ।मैंने उनसे आग्रह किया कि क्यों संगठन(AIPSO) का एक कार्यक्रम रखा जाए ,जिसमें न्यायमूर्ति श्री अय्यर को निमंत्रित किया जाए। यहां भी ऐसा ही हुआ कि उन्हें पत्र लिखा और वे आने के लिए मान गए। उन्होंने अपनी सहमति में यह सूचित किया कि वह पानीपत सरकारी गाड़ी से नहीं आएंगे -जाएंगे, अपितु कोई प्राइवेट गाड़ी भेजी जाएगी। मैं उन्हें लेने पहुंचा तो पाया कि वह किन्हीं और कामों में व्यस्त हैं और चलने की स्थिति में नहीं है ।उन्होंने अपनी विवशता बताई। पर मैंने भी अपनी आग्रह को इस तरह कहा," पीपल विल बीट अस विद जूतास, इफ यू डोंट गो "इतना सुनते ही वे खिलखिला कर हंस पड़े और हमारी टैक्सी में बैठ गए । दिल्ली से पानीपत के रास्ते भर के सफर में मैं उन्हें अपनी बातें सुनाता रहा और वे बहुत दिलचस्पी से सुनते रहे। पानीपत पहुंचने पर आर्य कॉलेज के ठसाठस भरे सभागार में उनका व्याख्यान हुआ। वापसी के दौरान गाड़ी पानीपत में ही खराब हो गई और कोई व्यवस्था थी नहीं। उन्होंने हमारी इस विवशता को समझा और बिना कोई नाराजगी जाहिर किए गाड़ी के ठीक होने की रात 11 बजे तक प्रतीक्षा की।
इसके बाद भी जस्टिस अय्यर से कई कार्यक्रमों में मुलाकात हुई और मिलने पर हर बार उनका प्रसन्न मुख अनेक आशीर्वाद और शुभकामनाएं देता हुआ प्रतीत हुआ।
राम मोहन राय
07.11.2021
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