Mahavir Narwal se Dosti


 *महावीर नरवाल से दोस्ती*

      श्री महावीर नरवाल से परिचय का मायना रहा है एक अत्यंत मानवीय संवेदनाओ तथा भावनाओं से परिपूर्ण एक व्यक्तित्व से जान-पहचान ।  

    मैं यह दावा तो नही कर सकता कि उनकी -मेरी पुरानी वाकफियत थी पर जितनी भी थी गहरी व आत्मीय थी ।

   सन 2007 की बात है जब साहित्य उपक्रम के सानिध्य में हम कुछ साथियों ने भगतसिंह जन्मशती पर भगतसिंह से दोस्ती कार्यक्रमों की शुरुआत की । हम एक छोटी वैन रखते जिसमें अनेक प्रगतिशील लेखकों की किताबें होती जिस पर जगह -२ पर जाकर न केवल विचारों का आदान-प्रदान होता वहीं पुस्तकों की बिक्री भी होती । इसी वैन के जरिए हम लोगों ने हरियाणा, दिल्ली ,पंजाब और अंत में पहाड़ परिक्रमा के नाम से पूरे उत्तराखंड की ही यात्रा की । एक बहुत ही गज़ब मंज़र रहता । न केवल नए लोगों से परिचय वहीं नए विचारों का आगमन भी ।

    उसी यात्रा के दौर-दौरे में मुझे व मेरे साथी दीपक को हिसार -सिरसा जाने का भी अवसर मिला। हम शाम को हिसार पहुंचे । वैसे तो मेरे लिए हिसार कोई नया नही था । मेरी तो माँ ही हिसार की थी । यही वह जगह थी जहाँ उन्हें राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने का पराक्रमी अवसर मिला । यहीं उन्होंने महात्मा गांधी, नेता जी सुभाष चंद्र बोस व लाला अचिंत राम सरीखे नेताओं के विचार सुने और सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल जाना पड़ा । हिसार से ही मेरी मां को सन 1957 में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का टिकट मिला परन्तु चूंकि मैं उनके गर्भ में था इसलिये वे न लड़ सकी । अपने मामा के घर  हिसार में हम साल में दो बार छुटियों में तो अवश्य जाते ही थे । पर अब न मामा रहे और न ही उनकी बहन । अब कहां रुका जाए जहाँ न केवल आश्रय मिले और साथ-२ वैचारिक खुराक भी । इसके लिए हमारे संरक्षक श्री वी राय ने श्री महावीर नरवाल का नाम सुझाया और हम चल दिये उनके पास ।

     हम अपनी वैन लेकर उनके एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में बताए घर की खोज करते बढ़ने लगे । इस दौरान हमे कोई दिक्कत नही हुई । किसी भी अपरिचित से उनके बारे में पूछते तो वह घर बताने के साथ-२ उनकी सज्जनता , मृदुलता एवम मृदु स्वभाव की प्रशस्ति गाने लगता  । तब हमें पता चला कि वे एक योग्य शिक्षक के साथ-२ एक ट्रेड यूनियन व प्राध्यापक नेता भी है। वे चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय प्राध्यापक यूनियन के अध्यक्ष भी थे। इसी तमाम जानकारी की मिठास लिए हम उनके घर पर पहुंचे । हमारी उनसे पहले कोई मुलाकात न थी । और उनकी स्तुतिगान सुन कर लगता था कि कोई बड़ा आदमी ही होगा। घर पर कोई नही था परन्तु वह बंद भी नही था । पड़ोसी सज्जन ने बताया कि नरवाल साहब कुछ देरी से आएंगे । आप अंदर चले जाए । हम उनकी बैठक में चले गए । इतने वे पड़ोसी सज्जन ही हमारे लिए चाय नाश्ता ले आये । उन्होंने भी यह पूछने का कष्ट न किया कि हम कौन है और कहाँ से आये है? थोड़ी ही देर में हम भी वहाँ के अभ्यस्त हो गए । ढेर शाम ढलने पर एक पतले-दुबले शरीर के पर कद में लंबे मुँह पर कुंची दाढ़ी लिए एक व्यक्ति आये । पर हम तो पड़ोसी नही थे ,हम तो घर मे घुसे अस्थायी मालिक थे । उनके आने पर हमने उनसे पूछा कि वे कौन है तो उनका बहुत ही सरल भाव से जवाब था कि वे महावीर है ।

   कुछ ही देर में वे हमसे घुल मिल गए । शाम गहरी हो रही थी व पेट की भूख जाग रही थी । पर तभी उन्होंने कहा कि आओ मिल कर खाना बनाये । तब ही पता चला कि वे इस घर मे अकेले ही रहते है । पत्नी का निधन हो चुका है और बेटा और बेटी कहीं बाहर पढ़ते है ।आटा गूंथने की मशीन पहली बार उनके घर देखी । खाने के बाद देर रात तक खूब गपशप हुई और वैचारिक चर्चा भी । तब ही हमने उनके विराट स्वरूप के दर्शन किये । हमारी उम्र के इस पड़ाव में श्री एस पी सिंह तथा उनकी पत्नी गीता से भी मैत्री हुई । उनके अनेक गुणों के  अन्य आकर्षणों से बढ़ कर यह बात भी प्रभावित करती है कि गीता, महावीर नरवाल की बहन है और दोस्त की बहन हमारी बहन ।

     फिर इसके बाद तो उनसे लगातार बातचीत होती ही रहती थी । एक बार वें तथा महिला नेत्री जगमती सांगवान पानीपत भी हमारे घर पधारे । हर बार उनसे मिल कर लगता कि मानो एक बहुत ही प्यारा दोस्त मिला हो ।

     यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड होने के बाद अब वे रोहतक रहने लगे थे । बेशक हमारा रोहतक जाना कम ही होता था परन्तु यदि वहाँ जाए और नरवाल जी से न मिले तो यह नामुमकिन था । पर गत वर्ष ऐसा ही हुआ । आर्य समाज के एक कार्यक्रम में टिटौली जाने का मौका मिला । रास्ते मे ग्राम्य सौंदर्य देख कर दीपक ने एक फोटो खींची और मैने अपनी आदत के अनुसार तुरंत सोशल मीडिया पर डाल दिया । इतिफाक से उस पोस्ट पर लोकेशन रोहतक की प्रदर्शित हुई । और यह क्या ,तुरंत महावीर नरवाल जी का फोन आया और उसी बेतकलुफ्फी से बोले " राम मोहन तुम कहाँ हो ,घर आ जाओ"। मैने उनसे क्षमा प्रार्थना की व असमर्थता प्रकट की पर उनका आग्रह आज भी दिल को छू रहा है ।

     उनकी बेटी नताशा उनके ही नक्शेकदम पर चलती एक क्रांतिकारी है । वह पिंजड़ा तोड़ आंदोलन की नेत्री है तथा स्त्री शक्ति जागरण आंदोलन की प्रमुख नेत्री है । इसी अपराध में उसे लगातार एक वर्ष से भी अधिक समय जेल में रह कर अब जमानत पर रिहा है । जेल यात्रा के दौरान हमारी उनसे बात होती रहती थी और नताशा का नाम आते ही उनकी आवाज में खुशी व गौरव की भावना प्रदर्शित होती । उन्हें अपनी बेटी पर गर्व था।

    कोरोना बीमारी ने अनेक प्रिय लोगों को हम सब से जुदा किया है । अगर मेरे अपने निजी परिवार की चर्चा करें तो 11 लोग बिछुड़े है परन्तु सामाजिक मित्रों एवम सदस्यों में स्वामी अग्निवेश ,डॉ शंकरलाल, नवाब शुएब खान,श्री सुंदर लाल बहुगुणा सरीखे लोगों को भी खोया है और उसी श्रृंखला के एक बेहतरीन मोती डॉ महावीर नरवाल थे ।

     वेद की ऋचाओ कहा है "स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा। यत्र देवा ऽ अमृतमानशानास्तृतीये" धामन्न– ध्यैरयन्त।। 7।। (यजु.अ.32/मं.10)

 अर्थात वह भ्राता के समान सुखदायक व पिता की भांति हितकारी मित्र है ।

    डॉ नरवाल भी न केवल हमारे बड़े भाई थे अपितु पितृतुल्य व दोस्त भी थे । उनसे दोस्ती एक ऐसी अमूल्य निधि है जो हमेशा संजो कर रखी जायेगी ।

   हाली पानीपती ने इसे ही इंसानों के बारे में लिखा था-

"फरिश्तों से बेहतर है इंसान बनना, मगर इसमे पड़ती है मेहनत ज्यादा "।

राम मोहन राय

(एडवोकेट व सामाजिक कार्यकर्ता)
















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