Sardar Kultar Singh

स0 कुलतार सिंह-भगत सिंह के भाई 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐सहारनपुर में तीन साल (1977-80)कैसे बीत गए इसका पता ही नही चला ।परन्तु अपने को समझने ,सिखने व पढ़ने का सबसे ज्यादा मौका यही मिला । बेहतरीन दोस्त मिले वहीँ तजुर्बेकार बुज़ुर्गो का भी सानिध्य मिला । शहीद  ए  आज़म स0 भगत सिंह के छोटे भाई स0 कुलतार सिंह ,गांधीवादी स्वतन्त्रता सेनानी श्री प्रेमनाथ गर्ग व उनके छोटे भाई श्रीं मनमोहन नाथ , कम्युनिस्ट नेता श्री राजकुमार वोहरा ,राव मुख्त्यार अली खान,जामिया मिलिया के पूर्व प्रो0 मो0 आकिल          ,कांग्रेसी नेता राम किशोर वैश्य ,लोकबन्धु राजनारायण के साथी श्री महेंद्र भल्ला ,एडवोकेट श्री  जमील अहमद व श्री बसंत सिंह । ये सभी वे व्यक्तित्व रहे जिनकी सरपरस्ती में सहारनपुर में कभी कोई दिक्कत नही आई । हर एक के साथ मेरे प्रेरक संस्मरण है जो  सदा मार्गदर्शन करते है ।
     स0 कुलतार सिंह एक निहायत ही सरल व विनम्र व्यक्ति रहे । 'न कोई बैरी न कोई बेगाना' इस सिद्धान्त पर पुरे खरे उतरते इंसान । किसी भी प्रकार का कोई गुमान रत्ती भर का भी नही । स0 भगत सिंह के छोटे भाई होने का इतना बड़ा नाम ,उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री होने का रुतबा और  लम्बी चोडी कद काठी उनकी विनम्रता को कही भी विचलित नही करती थी । मेरी उनसे पहली मुलाकात उनके चुनाव के समय हुई थी ,जीत -हार के दांव।पेंच से बिलकुल अलग , समभाव व स्थितप्रज्ञ । मुकाबला कांटे का था । पूरा चुनाव दो खेमो में विभक्त था । मुस्लिम लीग व भारतीय जनसंघ के उमीदवार ऐड़ी चोटी  का नफरत भरा प्रचार कर साम्प्रदायिक धुर्वीकरण में लगे थे । ऐसे में सहारनपुर के मतदाताओ ने इन दोनों को हरा कर स0 कुलतार सिंह को  जीता कर मानो यह सन्देश दिया हो कि हर प्रकार की घटिया साम्प्रदायिक राजनीती के खिलाफ भगत सिंह का नाम ही भारी है । इस चुनाव के बाद स0 साहब , उत्तर प्रदेश में राज्यमंत्री बने । शायद यह उनका पहला व अंतिम चुनाव था । 
      इसी प्रवास के दौरान ही हम साथियो ने मिल कर इंडो सोवियत युवा फ्रेंडशिप सोसाइटी की स्थापना , श्री संजय गर्ग की अध्यक्षता व मेरे संयोजकत्व में की । यह एक भूचाल था ,प्रतिष्ठित सामंतो के खिलाफ । पर ऐसे अवसर पर भी स0 कुलतार सिंह,बाबू प्रेमनाथ गर्ग व राजकुमार वोहरा हमारे साथ रहे, इसी कारण सहारनपुर में अंद्रेज़ ग्रोनोव्स्की को हम बुलाने में।कामयाब रहे ।
  स0 कुलतार सिंह की असली सवारी साइकिल ही रहती थी ।इतना सब कुछ पद प्रतिष्ठा पाने के बावजूद भी उन्होंने इसे नही बदला । एक बार मै उन्हें पानीपत एक।कार्यक्रम में लाया । सवारी रोडवेज़ बस ही।थीं,इस पर भी हरियाणा -यूपी को जोड़ने वाला यमुना पर बना कैराना -पानीपत पुल मुरम्मत।की वजह से बंद था । सरदार जी को बिला किसी तकलुफ़्फ़् व नाराजगी से मेरे साथ चले पुल से इस पार उतरे फिर पुल पैदल पार किया व परली पार सनौली से सवारियो से बेहद टेम्पो  सवार हुए तथा पानीपत में गन्तव्य स्थान कार्यक्रम में पहुचे । मुझे शर्मिंदगी थी कि इनके रुतबे का तो ख्याल न करता उम्र का तो करता परन्तु उनके चेहरे पर कोई शिकन न थी । रास्ते भर वे अपने परिवार की अनेक बाते बताते रहे । वे मेरे अंदर उतपन्न हुए ग्लानि भाव को भी भांप रहे थे व बोले 'काका ,फ़िक्र नही करदे , जीवे डा मौका मिले ऊंज ही करना चाहिदा है '। इस ने मुझे प्रेरणा दी कि कोई भी हालात हो आदमी उसके अनुसार यदि खुद को ढाल कर चले तो कोई दिक्कत नही आ सकती ।
   स0 जी की प्रेरणा से ही  ,श0 भगत सिंह की जन्म शताब्दी के अवसर पर मै ,मेरी पत्नी व किरण जीत लाहौर जा सके । वह यात्रा' भगत सिंह की यात्रा 'रही ,अर्थात हम उस गांव गए , जहाँ भगत सिंह  भगत सिंह पैदा हुए थे ,उस स्कूल में जहाँ वे बचपन में पढ़े ,फिर लाहौर में जिस कॉलेज में वे पढ़े ,उस चौक पर जहाँ उन्होंने लाला जी (लाला लाजपत राय)की मौत का बदला लिया , जिस किले में उन पर मुकदमा चला और अंत में वह स्थान जहाँ उन्हें व उनके साथियो  राजगुरु व सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया । हम हर जगह जाते उसे देखते फिर उसकी तस्दीक वहीँ से सहारनपुर फोन करके स0 जी से करते । स0 जी भी सभी बातो को ऐसे दरयाफ़्त।करते मानो वे भी हमारे साथ ही मौजूद है । इतने साल बाद भी इतनी बढ़िया याददाश्त काबिले तारीफ थी । एक बार और , इस यात्रा का संयोजक मै था मैने ही निर्मला देशपांडे दीदी की मदद से वीज़ा  वगेरह लगवाया था परन्तु जब तारीफ व खैरमकदम किरण जीत का होता  तो मुझे थोड़ी ईर्ष्या होती पर बाद मे मैने समझा कि यह सम्मान किसी एक आदमी का नही है क्रांतिकारी परम्परा का है जो स0 अर्जुन सिंह से शुरू हो कर स0 किशन सिंह व अजीत सिंह से होती हुई भगत सिंह तक पहुचीं । उस परम्परा के सदस्यों को मिलने, साथ रहने व स्नेह पाने का अवसर मिला यह इस जीवन की सफलता ही है ।
राम मोहन राय 
(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट सर्विस)

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