Subhadra Joshi
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 हमारे घर पर ,मेरे पिता जी जिस एक नाम की चर्चा करते थे वह था नाम करनाल (करनाल-पानीपत) लोकसभा क्षेत्र से सदस्य श्रीमती सुभद्रा जोशी का । उस समय यह हल्का बहुत बड़ा था जिसमे कैथल ,जगाधरी व वर्तमान कुरुक्षेत्र का कुछ भाग आता था ,इतने बड़े संसदीय क्षेत्र से बिलकुल ही अनजान एक व्यक्ति आकर चुनाव लड़े और वह भी जिसे पार्टी की भितरघात का सामना करना पड़े ,वह कोई सामान्य नही हो सकता ,पर वह महिला दिल्ली से आकर कांग्रेस टिकट पर चुनाव में उतरी तथा अपनी ओजस्वी वक्तृता शैली व सांगठनिक कार्यकुशलता से विरोधियो को धूल चटा दी वह सुभद्रा जोशी ही थी । मेरे पिता अक्सर बताते थे कि भारत विभाजन के बाद करनाल ,पानीपत ,कैथल ,जगाधरी में पाकिस्तान से उजड़ कर आए भारी तादाद में शरणार्थी भाई आ कर बसे थे । इन क्षेत्रो में महात्मा गांधी के आह्वान पर कांग्रेस के कार्यकर्ता इनके पुनर्स्थापन के काम में लगे थे ,इसके विपरीत वे ताकते भी सक्रिय थी जो इसका निषेधात्मक लाभ उठा रही थी ।'हिन्दू -हिंदी-हिंदुस्तान' के नाम पर धुर्वीकरण का प्रयास था और इसका असर इन कस्बो में दिखने भी लगा था । स्वयं ,कांग्रेस के अंदर भी यह विभाजन था ।पंडित जवाहर लाल नेहरू ,रफ़ी अहमद किदवई व भीम सेन सच्चर चाहते थे कि इस क्षेत्र से कोई धर्मनिरपेक्ष व राष्ट्रभक्त व्यक्ति ही कांग्रेस की नुमाइंदगी करे ,ऐसा कौन हो इस पर संजीदा विचार था । मेरे पिता जी बताते थे कि एक स्थानीय नेता मास्टर योगराज ने तो अपनी उम्मीदवारी ,कांगेस आलाकमान की बिना सहमति के घोषित ही कर दी थी । मास्टर जी अच्छे पैसे वाले थे पर विचारो से दक्षिणपंथी थे। उन्होंने आलाकमान को कह दिया था कि वे तो खड़े हो गए अब कांग्रेस अपना विचार बताए । सब इच्छुक व्यक्तियों को टटोला गया पर कोई भी मास्टर जी के मुकाबले में खड़ा होने की हिम्मत जुटा नही पा रहा था । पार्टी नेतृत्व को ऐसा उम्मीदवार चाहिए था जो साम्प्रदायिक वातावरण के खिलाफ डट कर लड़ सके । ऐसे में दिल्ली कांग्रेस की महासचिव सुभद्रा जोशी को मैदान में उतारा गया । सुभद्रा जी का जन्म सियालकोट के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । जातीय व क्षेत्रीय समीकरण भी उनके हक में थे , उनकी सबसे बड़ी ख्याति थी कि उन्होंने दिल्ली में तथा पंजाब के कई इलाको में साम्प्रदायिक सदभाव के लिये तथा शरणार्थियो को बसाने के लिये महत्वपूर्ण काम अपनी जान को जौखिम में डाल कर किये है । पिता जी बताते थे कि उनके इलेक्शन की सबसे बड़ी बात यह थी कि सुभद्रा जी के पास न तो कोई पैसा था इसलिये खर्चने की नौबत ही नही आई ,पूरा चुनाव पार्टी फण्ड से ही लड़ा गया । वास्तव में उनका यह चुनाव साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक जंग थी जिसे उन्होंने बखूबी लड़ा और वे इसमें कामयाब हुई । इसके बाद तो उनका इतना हौसला बढ़ा कि पार्टी को जब भी साम्प्रदायिक राजनीती का मुकाबला करना होता तो वे उन्हें ही आगे करती । बलरामपुर (उ प्र)में जनसंघ का गढ़ होता था । भारतीय जनसंघ के सबसे चर्चित नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी ( पूर्व प्रधानमन्त्री ) सबसे सुरक्षित सीट मान कर वहाँ से जनसंघ के प्रत्याशी बने उनके मुकाबले में कांग्रेस के पास सिर्फ सुभद्रा जी ही तुर्प का पत्ता थी । वे वहाँ से चुनाव लड़ी तथा उन्होंने अटल जी को एक बार नही दो बार पराजित किया ।अपनी दाल गलती न देख कर सन् 1971 में अटल जी ने अपना क्षेत्र बदला और वे चांदनी चौक ,दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़े ,सुभद्रा जी कहाँ उनका पीछा छोड़ने वाली थी उन्होंने भी चांदनी चौक से अपना पर्चा भरा और तीसरी बार अटल जी को पटकी दी । इन तीन चुनावो के बाद सुभद्रा जी ने चुनावी राजनीती को छोड़ कर साम्प्रदायिकता के विरुद्ध ही अपना मोर्चा जोड़ा तथा अखिल भारतीय साम्प्रदायिकता विरोधी समिति बना कर पुरे देश में सदभाव के लिये अलख जगाने का काम शुरू किया । समिति के माध्यम से युवाओ ,विद्यार्थियों तथा महिलाओ की लगातार ट्रेनिंग का काम किया जाने लगा । देश में कही भी दंगे होते अथवा तनाव होता सुभद्रा जी व उनके शांति सेनिक वहाँ पहुँच कर सदभाव का काम करते ।
सन् 1980 से 85 तक की घटनाएं हमारे शहर के लिये अच्छी न रही थी । पंजाब में आतंकवाद की घटनाओं का विरोध प्रतिकार के नाम पर हरियाणा में खास तौर से हमारे शहर पानीपत में बेहद बेहूदे ढंग से हो रहा था । साम्प्रदायिक तत्व (तत्कालीन सत्ताधारी व वर्तमान राष्ट्रवादी) दोनों के एक स्वर थे तथा उनके निशाने पर निरपराध सिक्ख थे । यहाँ तक कि अनेक सिक्ख परिवार पानीपत से पलायन करके पंजाब जाने लगे थे । अनेक सिक्खो को अपने केश कतल करने के लिये विवश किया गया और कईयो को आतंकवादी की तोहमत लगा कर झूठे मुकदमो में फंसाया गया। ऐसे समय में जब साम्प्रदायिकता अट्टहास कर रही थी व भाई- भाई का दुश्मन हो चला था । अतिवादी लोग रोजाना नई अफवाहों का बाजार गर्म कर रहे थे ऐसे में अमन का मलहम लगाने का काम भी कुछ कांग्रेसजन ,कम्युनिस्ट व दूसरे धर्मनिरपेक्ष लोग कर रहे थे । प0 माधोराम शर्मा (स्वतन्त्रता सेनानी व पूर्व सांसद) का घर उनका दफ्तर था । एक दिन मुझे वहाँ बुलाया गया ।मैने वहाँ जाने पर पाया कि श्री चमन लाल आहुजा , मदन लाल शास्त्री ,तिलक राज शर्मा ,का0 रघबीर सिंह ,का0 बलवंत सिंह ,का0 राम दित्ता सहित अनेक लोग मौजूद है तथा वे एक महिला के साथ कार्ययोजना पर विचार कर रहे है । मेरे पहुचते ही श्री चमन लाल आहुजा ने मेरा परिचय देते हुए कहा कि यह हमारी पुरानी कांग्रेसी बहन सीता रानी का लड़का है पर आजकल (का0 रघुबीर सिंह आदि की तरफ इशारा करके )कहा कि इनकी स्टूडेंट्स फेडरेशन में सक्रिय है । मेरी समझ में नही आया कि यह महिला कौन है ?इससे पहले मै पूछता का0 रघबीर ने कहा कि यह बहन जी दिल्ली से आई है ,हमारे यहाँ एक मर्तबा मेंबर पार्लियामेंट रही है और इनका नाम 'सुभद्रा जोशी 'है और इनके पति का0 बी डी जोशी दिल्ली में ट्रेड यूनियन नेता है । मै तो नाम सुन भौचक्का सा रह गया । मेरे पिता जी ने जिस सुभद्रा जोशी के बारे मे बताया था आज मै उनके सामने बैठा था । उन्होंने मुझे मुखातिब होकर किस तरह नौजवानो में काम हो सकता है इसकी रूपरेखा समझानी शुरू की । वे पूर्णतया गांधी विचार के प्रति समर्पित थी पर विचार मतैक्य के बावजूद कम्युनिस्ट बी डी जोशी की जीवन संगिनी थी और यही कारण था कि वे महात्मा गांधी व सरदार भगत सिंह को एक दूसरे का पूरक मानती थी ।अपने जीवन के अनेक अनुभवो को बताते हुए ,उन्होंने मुझे सलाह दी कि 'शिव शम्भु दल'की घिनौनी राजनीती का मुकाबला 'भगत सिंह सभा'बना कर ही किया जा सकता है जिसका नारा होगा 'न हिन्दू राज न खालिस्तान -जुग जुग जिये हिंदुस्तान '। इस नारे ने युवाओ की जत्थे बन्दी का काम सरंजाम दिया और उनकी सामूहिक ताकत ने साम्प्रदायिक तत्वों का मुकाबला करने का ।
राम मोहन राय
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