Seattle USA
"अलविदा सीएटल "
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सीएटल ,अमेरिका का एक बहुत ही महत्वपूर्ण नगर है जो इसके उत्तरी छोर पर स्थित है । चारो तरफ पहाड़ियो से ढके इस शहर में अनेको प्रकृतिक झीलें है तथा पर्यटन के क्षेत्र में भी इसका नाम है । आई टी क्षेत्र में यह अब एक विकसित नगर बन गया है जहाँ लाखो विदेशी नागरिक कार्य करते है । लगभग सात लाख की आबादी के इस शहर में 14 प्रतिशत एशियाई जनसँख्या है जिसमे 3 प्रतिशत भारतीय व 2 प्रतिशत पाकिस्तानी नागरिक है । सर्वाधिक संख्या चीनी नागरिको की है । यह नगर ज्वालामुखी पहाड़ियो से भी घिरा है इन सब के बावजूद ,कनाडा से लगते इस शहर में मौसम की दृष्टि से काफी सुहावना मिज़ाज है । सर्दी के तीन महीनो नवम्बर से जनवरी तक खूब बारिश होती है ,यद्यपि बर्फबारी अक्सर नही होती परन्तु यदाकदा भरपूर होती है । यह नगर बोईंग हवाईजहाज बनाने के लिए प्रसिद्ध है । यह प्रसिद्ध अमेरिकन उद्योगपति बिल गेट्स का रिहायशी शहर है इसके अतिरिक्त अमेज़न ,माइक्रोसॉफ्ट तथा सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में अनेक नामी गिरामी कम्पनियो के मुख्यालय यहाँ स्थित है । यहां एक अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा भी है परन्तु भारत आने -जाने वाले लोगो को लगभग 19 से 21 घण्टे हवाई सफ़र में लगते है अतः यूरोपीय देशो सहित चीन ,सिंगापुर ,जापान ,दुबई ,क़तर में रुक कर दूसरी फ्लाइट से आना पड़ता है । शहर में यातायात व्यवस्था बहुत अच्छी है । ट्राम ,मेट्रो ,बस ,प्राइवेट टैक्सी मोनो ट्रेन बहुतयत में है । ऐतिहासिक ,प्राकृतिक व अन्य दर्शनीय स्थल है । एक किनारे से झील पार कर दूसरे किनारे के लिए फेरी की व्यवस्था है । पर्यटको के लिए विशेष बस सर्विस है जो सड़क पर तो चलती ही है झील आते ही उनमे किश्ती की तरह चलने लगती है ,बड़ा ही अद्भुत व मस्त नज़ारा होता है । बच्चों व वृद्धजनों के लिए विशेष पार्क व स्थल है । कही भी पार्क में जाए तो वहाँ युवाओ के ग्रुप संगीत पर थिरकते मिल जाएंगे । कानून -व्यवस्था की स्थिति भी ठीक है परन्तु राष्ट्रपति ट्रम्प के आने के बाद गैर अमेरिकी लोगो में दहशत है । कंसास में एक भारतीय नौजवान की नस्लीय हत्या के बाद भय और आतंक और बढ़ा है । शहर चार भागो में बटा है नॉर्थगेट, डाउन टाउन ,बोथल व बेल्लवीएव् । बोथल व बेल्लवीएव् में एशियाई आबादी विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी ज्यादतर है । मन्दिर ,गुरुद्वारा व इंडियन मार्केट यहाँ है । विभिन्न धर्मो द्वारा विद्यार्थियों के लिए भी छुट्टी के दिन उन्हें हिन्दू ,मुस्लमान अथवा सिख बनाने के कई स्कूल चलाए जाते है वैसे प्रायः यहाँ का मिज़ाज सेक्युलर है ।राजनैतिक तौर पर लोग लिबरल है अतः डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक है परन्तु वामपंथियो की भी कमी न है तथा वे 'सोशलिस्ट अल्टरनेटिव'के नाम से काम करते है । वर्तमान में भी सिटी कॉंसिल में इन्ही का बहुमत है तथा भारतीय मूल की एक महिला क्षमा सांवत यहा की मेयर भी रही है । रोजगार की गारंटी कतई नही वाले इस पूंजीपति देश में जब की पुरे देश में अन स्किल्ड मजदूर का प्रति घण्टा वेतन 10 डॉलर है वहीँ इस 'सोशलिस्ट 'प्रभुत्व शहर में 15 डॉलर है । मजदूर हितो के लिए कई अनेक व्यवस्थाएं यहाँ अमेरिका के अन्य राज्यो से बेहतर है । शहर के बीचोबीच फेरमेंट इलाके में महान अक्टूबर क्रांति के नायक तथा रूसी कम्युनिस्ट नेता का0 वी आई लेनिन की विशाल पाषाण प्रतिमा स्थापित है ।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पद भार सम्भालने के बाद उनकी संकीर्ण नीतियों का इन्ही सोशलिस्टों की वजह से सबसे ज्यादा विरोध है तथा यहीं की एक कोर्ट ने उनके 6 मुस्लिम बाहुल्य देशो के लोगो के अमेरिका में आने पर रोक के आदेश पर अपना स्टे आर्डर जारी किया है । एशियाई मूल के लोगो ,विशेषकर भारत व पाकिस्तान के लोगो में खूब आपसी भाईचारा है तथा वे सभी उत्सव मिल कर मनाते है । जैन व सनातन मन्दिर एक ही छत के नीचे है और मन्दिर के एक अधिकारी की इस सूचना से बहुत ही आश्चर्य हुआ कि ' अमेरिका ' में एक शंकराचार्य भी नामित हुआ है खैर ये उनकी आस्था का विषय है ।
विविधताओं से भरे इस बेहतरीन शहर में मै व मेरी पत्नी श्रीमती कृष्ण कांता ,हमारी बेटी सुलभा व दामाद श्री उल्लास सांखला के निमन्त्रण पर आए हुए।है । बेशक यह हमारी निजी पारिवारिक यात्रा है तथा हम इस दुनियां में आई नई -२दोहती अद्विका का अभिनंदन करने आये है तथा नाना -नानी के दायित्वों का पालन अपनी सर्वोत्कृष्ट योग्यता से कर रहे है परन्तु इसके साथ -२ उन दायित्वों का भी निर्वहन जिसके प्रति हम संकल्प शील है और जिसके लिये अपने माता -पिता व गुरु दीदी निर्मला देशपाण्डे जी को प्रतिज्ञाबद्ध है 'लोगो को जोड़ने का काम '। यद्यपि यहाँ सभी लोग अंतर्मुखी है । सोमवार से शुक्रवार तक अपने काम में मस्त व वीकेंड पर अपनी मस्ती में मस्त फिर भी हमने एशियाई लोगो से मिलने व उनसे संवाद करने का काम किया । मुझे खेद है कि भारतीय लोग एक दूसरे को देखकर भी परायेपन का अहसास दिलाते है । पड़ोसदारी नही के बराबर है । अमेरिकन्स तो नजर मिलने पर मुस्कराते है पर हमारे लोग तो बस । हमे पता चला था कि हमारे घर के सामने ही हमारे पानीपत के पड़ोस के करनाल का एक अग्रवाल परिवार रहता है । बहुत प्रसन्नता हुई थी चलो एक तो मिला । दो माह होने को है जनाब के दर्शन नही हुए ,खैर हमारा भाग्य । हमारा यहाँ आकर बहुत मन लगा । खुली सड़के है ,साफ-सफाई है , प्रदूषण कतई नही है ,घूमने को बहुत जगह है । कई बार वापिस जाने का मन नही करता पर तभी मेरे स्व0 पिता जी की बात याद आती है जो उन्होंने अपने जीवनकाल में सन् 1995 में मुझे पानीपत छोड़ने के मेरे फैसले के वक्त कही थी 'बेटा हम हज़0 बू अली शाह क़लन्दर के आगोश में है ,पानीपत कभी न छोड़ना ' । शायद यही मन्ज़र हाली साहब के सामने भी रहा होगा कि उन्होंने कहा-
'हरगिज़ ना लूँ बहिश्त ,
तेरी एक मुश्ते खाक के बदले '। खैर हम तो 'वसुधैव कुटुम्बकम् 'वाले है यानि सारी दुनियां हमारा घर है फिर भी अपनी मातृभूमि भूल जाने की चीज नही होती ।
प्रायः हमारे मित्र हम से पूछ रहे है कि आपने इन दो माह में किया क्या? उन्हें कहना है नाना -नानी का दायित्व पूरा किया, अपने संस्मरणों को लिपिबद्ध किया ,पढ़ने -पढ़ाने का काम किया और आग़ाज़ ए दोस्ती का भारत -पाकिस्तान के लोगो के बीच दोस्ती बनाने का काम किया । मुहम्मद औरंगज़ेब अहमद ,श्रीमती खालिदा व श्रीमती फ़िज़ा के माध्यम से इंडो -पाक पीस कलेंडर को जारी किया । पाकिस्तान की श्रीमती ज़ुबैदा व बांग्लादेश की श्रीमती तन्द्रा बरुआ व श्री नब कुमार राहा से बातचीत करके एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स ऑफ़ एशिया के दो शांति -मैत्री यात्रा आयोजित करने की रूप रेखा तैयार की । मै अपनी साथी श्रीमती उपमा शर्मा व उनके पति श्री नवीन शर्मा का भी आभारी हूँ कि उनके माध्यम से रिश्तेदार श्रीमति मुक्ता तथा श्री वीरेंद्र मान से भी मिलने का अवसर मिला । अपनी बेटी व दामाद का विशेष आभार जिन्होंने अपने अनेक मित्रो से हमारी मुलाकात की व हमे कई स्थान पर ले गए । हमारी खास कामयाबी व उपलब्धि तो मु औरंगज़ेब अहमद से सम्बन्ध है जो खुद व उनकी पत्नी फ़िज़ा न केवल एक बेहतरीन कलाकार है अपितु बेहतरीन इंसान भी है जिन पर हर तरह से यकीन किया जा सकता है । वे भारत और पाकिस्तान ,दोनों मुलक़ो के बीच पुलबनाने का काम करेंगे ,ऐसी मेरी आशा है । 'आशा -अमन की आशा '।
हाली पानीपती ने क्या खूब फ़रमाया है -
'फरिश्तो से बेहतर है इंसान बनना,
मगर इसमें लगती है मेहनत ज्यादा '।
अलविदा सीएटल ।
राम मोहन राय ,
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