Som Bhai

"सोम-सलाम"
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 संत विनोबा जी ने पंजाब में अपनी भूदान यात्रा के प्रवेश होते ही अपने विनोदी स्वभाव के अनुसार नारा दिया -
'ओम-राम,
सोम-सलाम'
यात्रा को व्यवस्थित करने के लिये जिन चार लोगो को जिम्मेवारी दी गयी थी उनमें  ओम प्रकाश त्रिखा -ओम , बीबी अल्तमशसलाम -सलाम, सोम दत वेदालंकार-सोम तथा हरि राम चोपड़ा -राम प्रमुख थे । सोम भाई का जन्म बेशक सन् 1913 में वर्तमान पाकिस्तान के क्वेटा शहर में हुआ हो तथा उनका पैतृक गांव बब्याल (ज़िला अम्बाला )  हो और स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्थापित गुरुकुल इंद्रप्रस्थ  व कांगड़ी से उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे 'सर्व-मित्र'व दैनिक हिंदुस्तान के सम्पादक मण्डल में दिल्ली आदि स्थानों पर रहे हो परन्तु उन्होंने अपना सेवा -स्थल पानीपत को ही चुना । स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ साथ भारत विभाजन के कारण तत्कालीन पंजाब में शरणार्थी बहन -भाइयो का भारी तादाद में आना शुरू हो गया । आल इंडिया कांग्रेस समिति ने 'रिफ्यूजी रिलीफ कमेटी 'की स्थापना श्री सोम दत्त भाई के नेतृत्व में की तथा उनका कार्य स्थल पानीपत को ही बना कर विस्थापितों की पुनर्स्थापित करने का काम सौंपा । सोम भाई ठहरे गांधी बाबा के पक्के चेले ,उन्होंने बापू के अत्यंत प्रिय सेवा 'खादी ' को ही माध्यम बना कर शरणार्थी भाइयो के पुनर्स्थापन का काम शुरू किया और सन् 1952 -53 में खादी आश्रम की स्थापना करके इसे विश्वस्तरीय बनाने का काम किया । श्री सोमभाई ,तन व मन से एकदम साफ व्यक्ति थे । हमारे नगर के अत्यंत लोकप्रिय व सम्मानित व्यक्तियो में उनका स्थान अग्रणी था । प0 जवाहर लाल नेहरु , संत विनोबा भावे , डॉ ज़ाकिर हुसैन ,बाबू जय प्रकाश नारायण ,ढेबर भाई ,आचार्य जे बी कृपलानी ,मोरारजी भाई सदृश राष्ट्रिय स्तर के  व्यक्तियो को हमारे शहर में लाने का काम सोम भाई ने ही किया ।सन् 1977 में ,इमरजेंसी हटने के फौरन बाद लोकसभा चुनाव में एकतरफा जनता लहर थी , जनता पार्टी ने भाई जी को अपना प्रत्याशी बनाने की पेशकश की पर विजय सुनश्चित जानते हुए भी उन्होंने चुनावी राजनीती में उतरने को स्पष्ट इंकार कर दिया ।वे ताजिंदगी विनोबा जी को किसी को भी वोट न देने के वायदे पर पक्के उतरे । वे किसी भी दल के समर्थक व विरोधी नही थे परन्तु हर  पार्टी में उनका सम्मान था जिसे हर व्यक्ति जानता था ।  
     सन् 1968 -69 में मात्र दस साल की उम्र में ही पारिवारिक पृष्ठभूमी व सामाजिक राजनितिक चेतनता के कारण  मेरे माता -पिता तथा स्वामी आनंद रंक बन्धु जी की प्रेरणा से मैने 'भारतीय बाल कांग्रेस /भारतीय बाल सभा 'की स्थापना की ,उसका अध्यक्ष भी मै ही बना । मुझे ख़ुशी है कि मात्र 8-9 साल की उम्र में ही मैने अख़बार पढ़ना शुरू कर दिया था तथा रोजमर्रा के समाचारो से मै पूरी तरह जागरूक था । तभी सुना कि आल इंडिया कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन ,फरीदाबाद में आयोजित किया जा रहा है । कांग्रेस अधिवेशन हो और  हमारी 'भारतीय बाल कांग्रेस ' का प्रतिनिधि मण्डल उसमे हिस्सा न ले यह बात गवारा नही हो रही थी ,अब यह सवाल था कि उसमे जाया कैसे जाए । मेरे पिता जी ने कहा कि शहर में एक ही ऐसे व्यक्ति 'सोमभाई 'ही है जो मदद कर सकते है । आज यह सोच कर भी पूरा शरीर सिहिर उठता है कि एक 10 -11 साल का बालक अपने घर से तीन किलोमीटर 'खादी आश्रम ' दिन छिपे पैदल पंहुचा व बेझिझक सोमभाई के घर में घुसने का साहस किया । भाई जी उस समय कमरे में बैठे चरखा चला रहे थे । उन्होंने मेरे आने की आहट सुन कर मुझे देखा व बैठने का इशारा देकर मेरे आने का प्रयोजन पूछा । पता नही कहाँ से इतनी ताकत व हौसला आया कि मैने हिम्मत से अपने आने का प्रयोजन बताया । उनकी उदारता यह थी कि मुझसे ऐसे बात कर रहे थे मानो कोई हम उम्र व्यक्ति ही उनसे बात कर रहा है । उन्होंने मेरी बात सुन कर कहा कि डेलिगेट तो वे नही बनवा सकते क्योकि उनका कांग्रेस से कोई सम्बन्ध नही है परन्तु वे डॉ माधो राम शर्मा , एम् पी , को कह सकते है कि हमारे जाने पर  बतौर दर्शक  प्रवेश दिलवा दे और हाँ जब हम वहाँ जाए तो सम्मेलन स्थल पर  उनके आश्रम के प्रदर्शनी स्टाल में रुक सकते है । उन्होंने एक पत्र प0 माधोराम जी के नाम लिख कर हमे दे दिया । बात-चीत के बाद जब मै चलने लगा तो वे भी उठे और दरवाजे तक मुझे इस तरह विदा करने आये मानो कोई अति सम्मानित व्यक्ति को उन्होंने विदा करना हो । मै गद -गद था  और सोचता सोचता घर वापिस आगया कि यह कैसा आदमी है जो इतना सरल है तथा मुझ जैसे बालक की भी सिर्फ सुनता ही नही अपितु सम्मान भी देता । यह उनकीं मदद व प्रेरणा थी कि उस छोटी उम्र में मेरे जैसा बालक उस ऐतिहासिक फरीदाबाद कांग्रेस अधिवेशन को देख सका । बाद में यह पाया कि भाई जी का यह स्वभाव ही था कि हर की सुनना , उसे यथायोग्य प्यार व आदर देना तथा इसी तरह विदा करना । इसके बाद अनेको बार अनेक मसलो पर उनसे   मुलाकात हुई  व हमेशा स्नेह पाया । मेरे हर पारिवारिक कार्यक्रमों में वे सम्मलित रहे तथा एक बुज़ुर्ग की तरह उनका मार्गदर्शन मिलता रहा । आर्य समाज के कार्यक्रमों में उन्हें आना सदा अच्छा लगता था परन्तु वे आर्य समाजियों के कट्टरवाद से खुश भी न थे ।
 अपने विचारो व सिद्धान्तों पर अडिग रहते हुए भी वे सर्वधर्म समभाव व उदार विचारो के समर्थक थे । वे अपने गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती के भी जीवन की व्याख्या उसी तरह से करते थे । हरियाणा में सन् 1983-85 तक सिक्ख विरोधी वातावरण के दौरान एक नही अनेक राहगीर सिक्ख परिवारो को उन्होंने ,उनके पुत्र महेश शर्मा व् पुत्रवधु निर्मल दत्त ने अपने आश्रम व निवास में पनाह देकर जीवन की सुरक्षा की । किसी भी प्रकार की संकीर्णता से वे ऊपर थे इसीलिये अपनी पुत्री का विवाह एक गुजराती परिवार में ,बड़े पुत्र का विवाह अपने ही एक अनन्य  जाट मित्र की पुत्री के साथ व अन्य पुत्र का विवाह एक बंगाली लड़की से करने में उन्हें बेहद ख़ुशी थी । हमारे शहर में स्थित दरगाह हज़0 बू अली शाह क़लन्दर , देवी मन्दिर व गुरुद्वारा में उनकी एक समान ही श्रद्धा थी इसीलिये जब स्थानीय गुरुद्वारों में आग लगाई गयी तो उनके मुँह से एक ही शब्द निकला 'क्या हो गया गांधी के इस देश को '।
        वे अपने जीवन काल में एक बार  तो अपनी जन्म भूमि 'क्वेटा' जाना चाहते थे । सन् 1997 में पाकिस्तान से पानीपत के पूर्व शहरियों का एक दल आया । ऐसा कैसे हो सकता था कोई आये वह भाई जी से मिलने खादी आश्रम न जाए । भाई जी ने उनके स्वागत में एक विशेष कार्यक्रम रखा ।सब लोगो ने आश्रम की प्रवृतियों को देखा व  उनके साथ जल -पान भी किया । उन्होंने सब को खादी के सामान की कुछ न कुछ चीज भी भेंट स्वरूप दी । भेंट लेने के अवसर पर लाहौर से आई ज़ुबैदा आपा की बेटी अस्मारा चूक गयी । शाम को मिलते ही उसने भाई जी को अधिकारपूर्वक कहा 'नाना जान ,उसका गिफ्ट'। इस प्यार के।सामने भाई जी  द्रवित हो गए ,रात 9 बजे भण्डार खुलवाया गया और उसे भी गिफ्ट दिया गया ।
     अपने अंतिम समय तक वे सामाजिक मुद्दों के प्रति सचेत थे । 'आज़ादी बचाओ आंदोलन'की ओर से बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के खिलाफ मानव श्रृंखला की योजना बनाई जा रही थी ,दायित्व था मुझ पर व उनकी ऊर्जावान पुत्रवधु निर्मल दत्त पर । अस्वस्थ होने के कारण उन्हें स्थानीय डॉ छाबड़ा हॉस्पिटल में दाखिल करवाना पड़ा । हमे भी पता लगने पर हम भी उनकी मिजाज पुरसी के लिये वहाँ पहुचे । जब हम हॉस्पिटल गेट पर ही थे तो भाई जी को स्ट्रेचर पर थे एम्बुलेंस से दिल्ली ले जाने की तैयारी थी । उन्हें पूर्ण चेतनता थी उन्होंने मेरी ओर देखा व बोले ' मानव शृंखला की तैयारी है न '। मैने उन्हें आश्वस्त करते हुए गर्दन हिलाई तो उन्होंने मुस्करा कर हाथ उठा कर आशीर्वाद दिया । शायद यह आखिरी मुलाकात थी । मानव श्रृंखला बनना कामयाब कर हमने आश्वासन पूरा किया ,पर कुछ दिन बाद भाई जी का शव ही दिल्ली से वापिस आया  ।उस समय भी उनके चेहरे पर हर समय की तरह मुस्कराहट फैली हुई थी , एक शांत व निश्चिन्त भाव  ।मानो एक यात्रा पूर्ण कर यात्री आगामी पथ पर अग्रसर है ।कभी भी सोचता हूँ 'कैसे थे ये लोग ,कहाँ गए ये लोग '?
राम मोहन राय 
(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट सर्विस)

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