Vaidehi Pandya

 




*कस्तूरबा की बेटी , हम सब की मां*

ओडिसा की प्रसिद्ध गांधी वादी सामाजिक नेत्री अरुंधति देबी की पोस्ट से जानकारी मिली की गांधी-विनोबा की शिष्य व दीदी निर्मला देशपाण्डे की घनिष्ठ  सहेली वैदेही पंडा अब नही रही । एक अत्यंत जागरूक व आत्मीय महिला , वात्सल्य से भरी मां व स्वतन्त्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली इस सेनानी की अद्भुत व अविस्मरणीय बाते व यादें है जो भुलाए से भी नही भुलाई जा सकती । अपनी उम्र के 87 वर्षों में भी वे अत्यंत चेतन व जागरूक थी । एक निर्भीक व कर्तव्य निष्ठ नेत्री , जिसने अपने जीवन की बाल्यावस्था में ही गांधी-विनोबा की जिस कठिन डगर को पकड़ा उस पर मृत्यु पर्यंत चलती रही । जिसे बापू के साक्षात आशीर्वाद था कि " तुम सेवा मार्ग पर चलती रहना मेरा आशीर्वाद तुम्हारे पीछे -२ चलेगा ।  ओड़िसा में भूदान यात्रा के दौरान, विनोबा जी की यात्रा के दौरान जी उनकी भी *पायलट* बन कर उनकी भी मार्गदर्शक बनी । कस्तूरबा आश्रम में रह कर जिसने  मां रमा देवी का न केवल सानिध्य प्राप्त किया वही पल -२ मिलते आशीर्वचनों ने जिसे सेवा का मार्ग दिखाया ऐसी हम सब की मां *वैदेही* क्या अब नही रही । रूदन रूक नही रहा ,मन उदास है ,विश्वास नही हो रहा । जी करता है कि अभी *अरुंधति दीदी* को फोन मिलाऊँ और वह बोले कि गलती से उन्होंने पोस्ट की । पर क्या यह सच होगा ? अपनी जन्मदात्री माता सीता रानी , अपनी गुरु माता निर्मला दीदी के बाद मां वैदेही के जाने के बाद स्वयं को निराश व शोकग्रसित पा रहा हूं । फिर एक सवाल है कि तेरा उनसे क्या सम्बन्ध था । तू हरियाणा का ,वे ओड़िसा की , तू कहाँ वे कहाँ , वे गांधी - विनोबा के साक्षात सानिध्य पाने वाली और तूने तो उनके चित्र ही देखे पर तभी जवाब मिलता है कि वे एक दूसरे की कड़ी थे ,जिन्होंने न केवल गाँधीमय - सेवामय जीवन जिया वहीं अपने जीवन से उसका दिग्दर्शन भी हम जैसे लोगो को करवाया ।

     वर्ष 2012 के अंत मे एक अपरिचित फोन आया कि वे भोपाल से  वैदेही बोल रही है । उनका परिचय प्राप्त कर मैं गदगद हो गया और फिर तो लगातार उनसे बातचीत होती ही रही । मई-2013 में वे हमारे घर पानीपत आयी और लगातार एक महीने तक रुकी । वे ,इतिहास की अध्येता ही नही थी अपितु खुद चलती- फिरती इतिहास थी । हम उनके पास घण्टो बैठते और वे धारा प्रवाह अपने संस्मरण सुनाती । स्कूलों में जाकर विद्यार्थियो के बीच जाकर तो भावविह्वल हो जाती और राष्ट्र निर्माण की सीख देती । कंठ पर साक्षात सरस्वती का वास , 84 वर्ष की आयु में भी ऐसे गीत गाती जैसे कोई *कोकिला* चहचहा रही हो । जैन मंदिर में गयी तो वहां *मंगल भजन* गाये और सनातन धर्म मंदिर में वहीं के , आर्य समाज मे तो वे छा गयी , और यही तो है सर्वधर्म समभाव विचार का ही नही हिना अपितु उसे जीना भी ।

मुझे तो वे अपना बेटा ही मानने लगी और मेरी पत्नी को अपनी *बहू* । मेरे बच्चों को इतना स्नेह दिया कि उन्हें  तो साक्षात दादी ही मिल गई । दीपक के घर बेटा हुआ ही था वे वहां भी पहुंची और उसके बेटे भुवनेश को भी खूब दुलार दिया । यह तो उनकी लीला ही थी ,जिसमे हजारों -हजार पुत्र- पुत्रियां ,पौत्र- पौत्री, दोहित्र- दोहित्र शामिल थे पर वे कही भी न तो लिप्त थी और न ही मोहग्रस्त । मेरी बेटी संघमित्रा की शादी के बारे में वे हमेशा ,एक दादी की तरह चिंतित रहती और जब उसका रिश्ता हुआ तो वे फूली नही समाई और जब दोनों बेटियों के सन्तान होने की उन्हें खबर मिली तो खूब प्रसन्न हुई । दीवाली ,होली ,नव वर्ष अथवा मेरे जन्मदिन पर यदि सबसे पहले किसी का फोन आता तो वह *मां वैदेही पंडा* का । अब ऐसा कोई फोन नही आ पायेगा पर उनकी स्मृतियां हमे हमेशा आशीर्वाद देती रहेगी ।

*कलिंग कन्या* के नाम से प्रसिद्ध * *विदेही पंडा*  के निधन से मन उद्वेलित है । ऐसी ममतामयी मां को विनम्र श्रद्धांजलि ।

Ram Mohan Rai

(Nityanootan broadcast service)

01.02.2019


Comments

Popular posts from this blog

Gandhi Global Family program on Mahatma Gandhi martyrdom day in Panipat

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

पानीपत की बहादुर बेटी सैयदा- जो ना थकी और ना झुकी :