रहबर ए आज़म छोटूराम
छोटूराम-भारत-पाकिस्तान दोस्ती की कड़ी
पाकिस्तान के पूर्व वित्तमंत्री डा. मुब्बसर हसन एक ऐसे बुजुर्ग है जिन्होंने भारत-पाक दोनों मुल्कों के बीच दोस्ती व भाईचारे की मशाल अपने जीवन पर्यन्त सदा चलाए रखी । उन्हीं के साथ लाहौर में उनके निवास पर उनसे बातचीत के कुछ अंश.
1. रहबरे आजम चौ छोटू राम के व्यक्तित्व से आपको कैसे परिचय मिला?
मेरा जन्म संयुक्त पंजाब के ऐतिहासिक व धार्मिक शहर पानीपत में हुआ था। मेरा शहर शुरू से ही धार्मिक व सांसारिक इल्म (शिक्षा) का केंद्र रहा है। हजरत बू अली शाह कलंदर सहित सैकड़ों दरवेश व सूफी संत इस शहर में थे। हजरत बू अली शाह कलंदर के समय में हमारे पूर्वज ख्वाजा मलिक अंसारी, पानीपत में आए और तत्कालीन बादशाह हिंदुस्तान बलबन ने उनके ज्ञान तथा बुद्धिमता से प्रभावित होकर ,पानीपत में जागीर अलॉट की तथा वे यहीं बस गए ।मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा जिस पानीपत को आप लड़ाइयों से जानते हैं ,उसका
लड़ाईयों से सिर्फ इतना ही ताल्लुक है कि इस की सरजमीं पर लड़ाइयां लड़ी गई ।जबकि पानीपत के लोगों का कभी भी
लड़ाईयों से कुछ भी ताल्लुक (वास्ता) नहीं रहा। मेरे शहर के लोग कभी भी फौज ,पुलिस एवं
शराबनौशी (एक्साइज )के महकमे में नौकरी नहीं करते थे अर्थात् वे लड़ाई ,जुल्म तशदद तथा नशे से हरदम दूर थे ।इसी शहर में दुनिया के मशहूर शायर व मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली
पानीपती का जन्म हुआ। जिन्होंने उर्दू अदब में एक नई शुरुआत की।
हाली साहब ने शिक्षा के क्षेत्र में विशेषकर लड़कियों की शिक्षा के लिए अद्भुत काम किया। पानीपत में हाली मुस्लिम हाई स्कूल की स्थापना उनकी ही स्मृति में की गई। जहां मैंने भी पढ़ाई की। वह दौर, देश में उथल-पुथल का दौर था। देश में आजादी की लड़ाई कई मोर्चों पर लड़ी जा रही थी ।साथ-साथ समाज सुधारक के आंदोलन भी सरगर्म थे। महात्मा गांधी व कायदे आजम जिन्ना के रास्ते बेशक अलग थे पर उद्देश्य एक ही था कि अंग्रेजी हुकूमत यहां से जाए।
रहबरे आजम चौधरी छोटूराम बेशक आर्य समाज तथा महात्मा गांधी से प्रभावित थे ,परंतु उनका नजरिया समाज सुधार का था। एक बेहतरीन वक्ता थे। जिनमें कशिश थी तथा हर किसी को अपनी ओर खींच लेते थे। किसानों की दुर्दशा जो उन्होंने अपने परिवार के साथ झेली थी, से वे वाकिफ थे, इसलिए किसानों की कर्ज गुलामी के खिलाफ उन्होंने काम किया।
वे किसान चाहे हिन्दू हो या मुसलमान दोनों में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं मानते थे । वे पूरी दुनिया के किसान की समस्याओं ,दिक्कतों तथा परेशानियों को एक ही मानते थे। इस तरह वे कॉल मार्क्स के निकट थे। जो दुनिया भर की मेहनतकशों के एक होने की बात करते थे ।मेरे विद्यार्थी काल में ही हमने दीनबंधु छोटू राम के विचारों को सुना तथा उनके व्यक्तित्व से परिचय पाने का मौका मिला ।वे एक बेहद सादगी पसंद इंसान थे तथा बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात कहते थे। उनका यह वाक्य , 'हे भोले किसान, बात तू मेरी मान' बहुत ही लोकप्रिय था ।एक बार वे करनाल आए तथा हम भी उनके विचार सुनने गए ।उनकी बात सुनकर हमने पाया कि किसान को इसका रहबर मिल गया है
2 . चौधरी छोटूराम के जिंदगी से आप स्वयं को कैसे प्रभावित मानते हैं?
पानीपत शहर ,जिसमें मेरा जन्म हुआ, विभाजन से पहले 70 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी थी, जो ज्यादात
हथकरघे व किसानी से जुड़े थे तथा उनकी जमीनें पानीपत के चारों ओर थी। रहबरे आजम चौ छोटूराम पूरी तरह से किसान के हमदर्द व रहनुमा, हिंदू' मुस्लिम एकता के हामी तथा औरतों के हक में यकीन करने वाले थे। वे कतई तौर पर दकियानूसी नहीं थे तथा बहुत ही
फिरारवदिल इंसान थे। उनकी इन्हीं बातों से हम सब नौजवान प्रभावित थे।
3 . चौधरी छोटू राम के जीवन तथा दर्शन को आप किस तरह स्वयं में आत्मसात करते हैं?
रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम ने एजुकेशन को हर कामयाबी की चाबी बताया । मेरा खुद का परिवार जो इस बात का कायल था में सभी लोग पढ़े लिखे थे। हमारे परिवार का ताल्लुक हाली पानीपती से था। इस परिवार में ख्वाजा गुलामुद्दीन सैयदेन भारत के पहले एजुकेशन सेक्रेट्री थे। परिवार की पृष्ठभूमि खेती-बाड़ी थी। चौ छोटूराम के विचारों ने हमें भी प्रभावित किया। पाकिस्तान बनने के बाद हमारा पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया । मैंने सियासत में हिस्सा लिया तथा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की जनाब जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार में वजीर ए खजाना बना ।मेरे सामने या सदा चौधरी छोटूराम के ही संकल्प रहते थे। किसान मजदूर की भलाई और तरक्की पूरे कार्यकाल में जनाब भुट्टो साहब की रहनुमाई में हमारा काम सोशलिस्ट निजाम की स्थापना था।
4 . संयुक्त पंजाब में किसानों के जीवन को चौधरी छोटूराम ने किस तरह से देखा है उसके हक के लिए क्या कार्य किया?
कर्ज गुलामी एक लानत थी। किसान व दूसरे
मेहनतकश तो तबके साहूकारों के कर्ज के नीचे दबे हुए थे। एक कर्जे का दुख तो दूसरी बेगार की लानत। चौ छोटूराम तथा उनके दूसरे साथियों ने हिम्मत दिखाई तथा कानून बनाकर किसान को कर्ज की गुलामी से आजाद करवाया। इस कानून के बाद पूरे यूनाइटेड पंजाब में किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई। आज तक किसान- मजदूर उनका ऐसा नहीं भूल सकता।
5. मुस्लिम लीग तथा जमीदारा लीग को आप किस दृष्टिकोण से देखते हैं तथा छोटूराम की सांप्रदायिक समस्या हल करने की क्या रूपरेखा थी?
कायदे आजम जनाब मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग दकियानूसी नहीं थी। उनका नजरिया बहुत ही खुला था। पाकिस्तान बनाने का उनका मकसद सिर्फ इस्लामिक देश नहीं था। वे चाहते थे कि पाकिस्तान में भी सभी तरह के लोग रहेंगे। पर अफसोस पाकिस्तान बनने से आबादी के तबादले, नुकसान व मारकाट ने दो भाइयों को दुश्मन बना दिया। सर छोटूराम व उनके साथियों ने जमीदारा लीग बनाकर मजहबी नजरिए से हटाकर उसे जमाती नजरिया दिया। यानी किसान व मेहनतकश अवाम चाहे वह किसी भी मजहब व जात का हो एक साथ आए।
6. वर्तमान के पाकिस्तान पंजाब में छोटूराम को किस तरह से देखा जाता है?
चौधरी छोटूराम किसी मजहब, इलाके व जात के नेता नहीं थे । वे सभी किसानों व मेहनतकशों के रहनुमा थे। हिंदुस्तान बंटने के बावजूद भी दोनों मुल्कों में चाहे जितना भी मतभेद हो उनकी एक ही दिक्कतें हैं ,एक ही मसाइल है। दोनों तरफ गरीबी है, बेकारी और बीमारी है तथा हम सब जानते हैं कि इनका हल लड़ाई नहीं है। इनका मुकाबला दोनों मुल्कों को मिलकर ही करना होगा। हमें तसलीम करना होगा कि दो मुल्क वजूद में आ चुके हैं। दोनों फिर एक हो जाएंगे, ऐसी सोच बेमानी है। दोनों हथियारों के पैमाने पर ही इतने मजबूत है कि एक की तबाही दूसरे को भी होगी। इसलिए जरूरी है कि दोनों देशों की आवाम के बीच दोस्ती और भाईचारे का माहौल बने। दोनों देशों में एक ही परिवार के अलग-अलग हिस्से रहते हैं अच्छा माहौल बनना हमारी जरूरत है और ऐसे समय में हाली पानीपती ,चौ छोटू राम, भगत सिंह ही ऐसे शख्सियत हैं जो दोनों मुल्कों के हीरो हैं।
7. भारत-पाकिस्तान रिश्तों को सुधारने में चौ छोटू राम के दर्शन की क्या भूमिका हो सकती है?
चौ छोटूराम का फलसफा भाईचारे का था। मज़हबों में ही नहीं कमेरी जातियों में भी आज उस नजरिए को बढ़ाने की जरूरत है।
8 . नित्य नूतन पत्रिका के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
आपका यह रिसाला नित्य नूतन मरहूम दीदी निर्मला देशपांडे की नुमाइंदगी करता है। जिन्होंने भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच दोस्ती कायम करने का बेमिसाल काम किया। दोनों मुल्कों में वे दीदी बहन के नाम से इज्जत पाती थीं। दोनों मुल्कों के लोगों के बीच जो रिश्ते बनने का काम हुआ वह निर्मला देशपांडे की कोशिशों से ही हुआ है। जिन्हें हम सलाम करते हैं। मरहूम निर्मला बहन द्वारा शुरू की गई इस नित नूतन रिसाले के लिए मेरी हरदम ने नेक
ख्वाशियात है तथा मैं दुआ करता हूं कि उनका काम, उनके दोस्त व उनके
अकीदतमन्द हमेशा जारी रखें।
राम मोहन राय,
लाहौर
24.08.2013
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