हाली की बेटियां

 


हाली की बेटियां. 

   आजकल हम अमेरिका के सिएटल में अपनी बड़ी बेटी और उसके परिवार के साथ हैं पर यहाँ हमारी एक और बेटी भी है. बेशक उसका जन्म लाहौर (पाकिस्तान)में हुआ परंतु लालन-पालन, शिक्षा आदि अमेरिका में ही हुए. सन 2017 में जब हम दूसरी बार अमेरिका आए तो उसके परिवार से अनायास ही एक म्युजियम में मुलाकात हुई. उनके पति डॉ औरंगजेब अहमद एक विख्यात युवा वैज्ञानिक हैं तथा यहीं कार्यरत हैं. उनकी दो प्यारी-सी बेटियाँ इलिया और नूरी है. 

    जीवन के कोई पुण्यकर्म होंगे कि इस परिवार से मुलाकात हुई और फिर यह संपर्क समबन्ध बन गए. अब तो हालात य़ह हो गए कि वह मेरी सगी बेटी की तरह हो गयी. हर दूसरे-तीसरे दिन बिला नागा हमारी दूसरी बेटियों की तरह हमारी मिजाज़ पूरसी के लिए फोन आते. दिवाली, होली, हमारे जन्मदिन, शादी की साल गिरह को हम बेशक भूल जाए पर वह हमे विश करना नहीं भूली. 

   फिज़ा शक्ल सूरत से ही खूबसूरत नहीं अपितु जहनी तौर पर उससे भी बढ़ कर है . एसा कोई काम नहीं जिसमे उसे महारत न हो. कुकिंग, हाउस मेकिंग, पेंटिंग, कशीदाकारी आदि आदि सभी में वह अव्वल है. उसके पति न केवल एक साइंटिस्ट्स है वही इतिहास, ज्ञान-विज्ञान, आध्यात्म तथा पुरातत्व के भी जानकर हैं. हिन्दुस्तान के बारे मे उनकी विद्वता अद्वितीय है. देश-विदेश के दुर्लभ करेंसी, पोस्टल स्टैम्प, एतिहासिक तथ्यों को संजोए पुराने अखबार, 200 साल से भी पुरानी किताबों का संकलन उनकी हॉबी में शुमार है. उनसे बातचीत का मतलब है कि एक लाइब्रेरी में घण्टों बैठ कर अनेक विषयों की पुस्तकों का अध्ययन. उनकी माता श्रीमती खालिदा जो रहती तो इस्लामाबाद में है परंतु यदाकदा अमेरिका आती रहती हैं. वे एक बहुत ही स्नेही महिला हैं तथा उनके संस्कार इस परिवार पर पूरी तरह से दृष्टिगोचर होते हैं. 

    इसबार जब अमेरिका आना हुआ तो पाया कि हमारी बेटी फिज़ा बेसब्री से हमारा इंतजार कर रहीं हैं. अभी तो हमारा जेटलोग भी नहीं टूटा परंतु उसके न्यौते को हम टाल न सके और उसके घर पहुचने पर उसने भी अपनी खुशी का जो इज़हार किया जिसका वर्णन करना नामुमकिन है. बहुत ही भावुकतापूर्ण समय रहा. 

  वेसे तो ईद का अर्थ ही खुशी है और यह त्यौहार बीते 15 दिन बीतने को है पर इस मौके पर लगी झालर और सजावट को फिज़ा ने इसलिए नहीं हटाया कि हम लोग आ रहे हैं. उसके लिए इस बार दोहरी खुशी थी. इसी दौरान फिज़ा की अम्मी जो कि अटलांटा में रहती है का भी फोन आया और वे बोली कि फिज़ा तो आपकी ही बेटी है. एसा सुन कर दिल बाग बाग हो गया. 

     हमारी आमद की खुशी में फिज़ा ने कई दिन पूर्व ही खाने की तयारी शुरू कर दी थी. उसने इतने शाकाहारी व्यंजन बनाये जिनकी गिनती भूली जा सकती है. 

      अब आप ही बताए कि यह क्या समबन्ध है ? वह तो मुस्लिम है और पाकिस्तानी भी और हमारे मुल्क के मौजूदा हालात तो बिल्कुल अलग. पर यह हालात तो सियासी है और असलीयत तो इन रिश्तों में छुपे हैं. 

   हमें अपनी बेटियों पर गर्व है. 

इन्हीं पर तो मौलाना हाली ने अपनी शायरी में फरमाया है-

" ए माओ- बहनों - बेटियों-दुनियां की ज़ीनत तुमसे है, 

मुल्कों की बस्ती हो तुम्हीं-कौमों को इज़्ज़त तुमसे है. "

राम मोहन राय  

Bothell, Washington-USA. 

(Nityanootan Varta)

17th May, 2022














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