Dr Asghar Ali Engineer

*डॉ असगर अली इंजीनियर*    
     जीवन में अनेक महान व्यक्तित्वो से मिलने और सीखने का सौभाग्य मिला उनमें एक नाम डा0 असगर अली इंजीनियर का भी है । 
    मैने उनका नाम खूब सुना था और एक बार उनकी एक किताब धर्म और सांप्रदायिक को पढ़ने का अवसर मिला । उनकी उस पुस्तक में मेरे जीवन की सोच को बदलने का काम किया । इतिहास से जुड़े अनेक ऐसे प्रसंग एवम तथ्यात्मक विश्लेषण उसमें थे जो स्वत:ही भ्रम दूर करने का काम करते थे । इसे पढ़ने के बाद तो उनसे मिलने की ओर अधिक अभिलाषा जागृत हुई। 
     डा0 असगर अली इंजीनियर मुस्लिम समुदाय में एक बोहरा समुदाय से ताल्लुक रखते थे। इस  तबके में भी कर्म कांडो को लेकर अनेक विवादास्पद बाते थी और वे इन सब के सिद्दत के साथ विरोधी थे । वास्तव में वे एक सुधार आंदोलन के जनक एवम प्रवक्ता थे । वाजिब है कि इस बात के लिए उनका अपने ही समुदाय में भारी विरोध था । पर वे ठहरे एक सिधानतनिष्ठ व्यक्ति । उनके मित्र भी उन जैसे ही थे । आर्य समाज के समाज सुधारक स्वामी अग्निवेश, ईसाई समुदाय के प्रवक्ता वालसन थम्पू आदि आदि । यानी की जैसे वे खुद ऐसे ही उनके दोस्त ।
      शहीद भगत सिंह शताब्दी वर्ष ,सन 2007 में हम सब मित्रो ने साहित्य उपक्रम के अंतर्गत भगत सिंह से दोस्ती मंच के नाम से हम मित्रों ने कार्यक्रम शुरू किया । कालेजों एवम स्कूलों में जा जा कर विद्यार्थियों से संवाद होता तथा उन्हे स0 भगत सिंह के जीवन एवम सिद्धांतो के बारे में जानकारी देते । हमारे सूत्रधार थे हरियाणा के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी श्री वी एन राय । जो एक अधिकारी के साथ २ एक क्रांतिकारी बुद्धिजीवी ज्यादा थे । हरियाणा में अपने कार्यकाल में उन्होंने 1857 की क्रांति पर एक बृहद अभियान चलाया । पुलिस को  संवेदीकरण करने के लिए अनेक पाठ्यक्रम एवम कार्यशालाएं आयोजित की । इसी क्रम में साहित्य , प्रेमचंद, हाली, आंबेडकर से दोस्ती पर अनेक गोष्ठियां आयोजित हुई ।और ऐसी ही पानीपत में आयोजित एक पांच दिवसीय कार्यशाला में डा0 असगर अली इंजीनियर पधारे ।
      वे एक ऐसे शानदार व्यक्तित्व थे जिनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नही रहा जा सकता था । हर बात को बहुत ही बारीकी से विस्तार पूर्वक रखते । उनकी कक्षा भी पूरे२ दिन में 7 से 10 घंटे की होती और हर क्षण नई जानकारी । वास्तव में वे ज्ञान के ऐसे समुंदर थे जिसमे जितना गहरा जाओगे उतने ही बेशकीमती मोती मिलेंगे । उसी कार्यशाला में तय पाया गया कि शहीद भगत सिंह जन्म शताब्दी वर्ष में न केवल 100 चेतना स्कूल जिनमे उपेक्षित बच्चों को शिक्षा की धारा से जोड़ने का काम होगा वहीं एक मोबाइल वैन के द्वारा स्थान २ पर भगत सिंह से दोस्ती के शिविर आयोजित किए जाएंगे । यह वैन लोगों तक अच्छी व ज्ञानवर्धक सस्ती किताबे लेकर जायेगी और उन्हें बेचने का काम करेगी। हम सभी लोगों ने आपसी सहयोग से एक वैन खरीदी और काम शुरू हुआ । इसी श्रृंखला में पहाड़ परिक्रमा का एक कार्यक्रम बना जिसमे ऋषिकेश (उत्तराखंड) से प्रवेश कर पूरे गढ़वाल  कुमायू संभाग में हर छोटे बड़े कस्बों शहरों में लोगो को मिलते हुए नैनीताल के रास्ते नीचे उतरे और यात्रा के अंत में अल्मोड़ा में एक पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ .पहाड़ परिक्रमा अथवा कार्यशाला ऐसा माध्यम भी था जिसने स्थानीय जिंदगी को समझने और सीखने का अवसर दिया । दीपक कथूरिया का तो  यह सौभाग्य रहा कि उन्होंने पूरी यात्रा को जीया पर हम भी यदा कदा इसमें शामिल रहे । उतराखंड के औजस्वी नेता श्री शमशेर सिंह बिष्ट जेसे व्यक्ति से मुलाकात इसी  की देन थी । डा0 असगर अली इंजीनियर हमेशा गुण ग्राही रहे और साथ साथ घूमने फिरने के भी शौकीन । इसी दौरान उन से अंतरंगता और अधिक बढ़ी और हम उनके  साथ कसौली , बागेश्वर व अन्य पर्यटन स्थल देखने भी गए । कसौली में तो उस आश्रम मे रुके जहां महात्मा गांधी गए तो थे चंद दिनों के लिए पर उस स्थान से इतने प्रभावित हुए कि रुके काफी दिन । अगर इस यात्रा में असगर अली इंजीनियर जैसे शिक्षक हो तो कहना ही क्या?
अब तो हम बेबाक ढंग से दोस्ताना तरीके से उनसे व्यवहार तथा बातचीत करते। उनकी शारीरिक और मानसिक उच्चता कभी भी आड़े नहीं आई । उनके पास तो हर बात का जवाब था । फिर चाहे कोई भी बात किसी भी धर्म की हो अथवा सामाजिक या राजनीतिक ।
   सन 2008 में दीदी निर्मला देशपांडे जी के निधन के बाद गांधी ग्लोबल फैमिली द्वारा श्री नगर में आयोजित पहली तीन दिवसीय बैठक में शामिल होने के लिए वे अपने पुत्र श्री इरफान अली के साथ पधारे तथा बैठक में फैमिली को चलाने के लिए अनेक  महत्वपूर्ण सुझाव दिए । इसके बाद तो कोई ही ऐसा महीना होता होगा जब कही न कहीं कोई कार्यक्रम न होता हो । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पंचकुला तथा पंजाब यूनिवर्सिटी द्वारा चंडीगढ़ में आयोजित कार्यशाला तो सदा ही स्मरणीय रहेगी ।
     वर्ष 2015 में अपने जीवन सफर पर उन्होंने एक पुस्तक A living  Faith लिखी । जिसके विमोचन  दिल्ली में तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री हमीद अंसारी ने किया । देशभर से कुल 50 लोग आमंत्रित किए गए थे और मेरा यह सौभाग्य रहा कि उनमें एक मैं भी था ।
    एक दिन अचानक समाचार आया कि वे अब नही रहे । उनका जाना दुनियाभर में चल रहे शांति ,भाईचारे तथा सद्भाव के आंदोलन को क्षति थी । वास्तव में वे स्वयं एक आंदोलन थे ।
    उनके बाद भी उनके परिवार के सदस्यों इरफान अली इंजीनियर तथा साथी कुतुब किदवई से लगातार संबंध बरकरार है  और कोशिश है कि उनके मिशन से जुड़ा रहूं ।
राम मोहन राय 
(NityanootanVarta)

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