शुभकामनाएं

*शुभकामनाएं* 
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की हरियाणा राज्य सम्मेलन के अवसर पर पार्टी की नगर कमेटी, सभी सदस्यों, शुभचिंतकों तथा प्रगतिशील नागरिकों की ओर से हार्दिक अभिनन्दन एवं स्वागत करता हूं तथा आशा व्यक्त करता हूं कि यह सम्मेलन न केवल इस प्रदेश में कम्युनिस्ट आंदोलन को मजबूत करेगा, वहीं देशभर में चल रहे कार्यो को भी सशक्त करेगा. 
     पानीपत एक एतिहासिक शहर है. इसकी ख्याति इसमे हुई तीन लड़ाइयों की वज़ह से भी है. दिल्ली पर उसी शासक के राज किया जिसने पानीपत फतेह किया. पर यहां मैं एक दूसरा पक्ष भी रखना चाहूँगा कि पानीपत के तत्कालीन शहरियों का कभी भी इन युद्धों से कभी कोई सरोकार नहीं रहा. बेशक य़ह युद्ध भूमि रहीं हैं क्योंकि अफ़ग़ान दर्रे से दिल्ली तक एक तरफ तो ढाक के जंगल थे और दूसरी तरफ यमुना नदी और यह ही खुली जगह थी जो खुली थी और हमलावरों को पानी, रसद आदि मुहैया करा सकती थी. यह के लोग तो शांति प्रिय थे जिन्होंने यह निश्चय किया हुआ था कि वे फौज, पुलिस और शराब के धंधे में हिस्सा नहीं लेंगे. एसे लोगों के लिए तो य़ह लड़ाइयाँ सदा आफ़त बन कर आयी. दूसरे शब्दों मे हम कहेंगे कि वे सभी लड़ाइयाँ पानीपत की न होकर पानीपत में थी. इसके विपरित य़ह शहर सूफियाना माहौल एवं इल्म (शिक्षा) का था जहां देश विदेश के लोग दीन -धर्म और अमन-मोहब्बत की तालीम लेने आते थे. 
   इसका प्रमाण य़ह भी है कि लड़ाइयों का इतिहास तो 1526 से शरू होता है जब बाबर और इब्राहिम लोधी की जंग हुई और यह जारी रहा 1556 में जब अकबर और हेमू की भिड़ंत हुई और समाप्त हुआ 1761 में अहमद शाह अबडाली और मराठों के बीच युद्ध से. पर ये तो इतिहास का एक पक्ष है जबकि लगभग 1300 साल पहले, इस्लाम के अरब में उदय के समय में ही इमाम साहब यहां आए. इसके बाद तो सैंकड़ों की संख्या में सूफ़ी संत यहां आए जिनमे हजरत गौस अली, रोशन अली शाह, बू अली शाह कलंदर, मखदुम साहब आदि बुजुर्ग हुए जिन्होंने अध्यात्म की शिक्षा दी. एसा माना जाता है कि मक्का शरीफ के बाद पानीपत ही एक एसी जगह थी जहां अनेक विद्वान रहते थे 
   इसी दौरान इराक़ से ख्वाजा मलिक अंसार तशरीफ फर्मा हुए और उन्हीं के परिवार में वर्ष 1834 में प्रसिद्ध शायर मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली पानीपती का जन्म हुआ और उन्हीं के भांजे ख्वाजा अहमद अब्बास का जन्म भी यही हुआ जो बाद में न केवल प्रसिद्ध फिल्म कहानीकार, निदेशक और निर्माता रहे वहीं वर्ष 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापकों में भी रहे. IPTA के संस्थापक के रूप मे ख्वाजा अहमद अब्बास का नाम लिया जाता है. हमारे इसी प्रगतिशील परिवार में डॉ सैय्यदेन हुए जिन्होंने मौलाना आजाद के साथ मिल कर आज़ादी के बाद देश की नई शिक्षा नीति बनायी और उन्हीं की बेटी डॉ syeda हमीद ने अनेक वर्षो तक महिलाओं के सशक्तिकरण का काम कर रहीं हैं. इतिहास का एक यह सुनहरा पक्ष है जो उजागर करना बेहद जरूरी है.
     इस अवसर पर यह कहना भी जरूरी है कि भारत विभाजन से पूर्व इस शहर की कुल 30 हजार आबादी में 70 प्रतिशत मुस्लिम संख्या थी, जो न केवल पढ़े लिखे थे और ज्यादातर प्रगतिशील विचारों से ओतप्रोत थे . ख्वाजा अहमद अब्बास और सैय्यदेन का परिवार भारत में ही रहा वहीं डॉ ज़कि हसन, डॉ Mubashir हसन का परिवार पाकिस्तान चला गया और उन्होंने वहां बन्ने मियां के साथ मिल कर कम्युनिस्ट पार्टी में निर्माण का काम किया. कामरेड सज्जाद जहीर उर्फ बन्ने मियां तो कुछ अर्से बाद हिन्दुस्तान लौट आए इसके बाद वहां पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी पर पाबंदी के बाद भी पानीपत से गए इन कामरेडों ने अन्य क्षद्म नामों से पार्टी के काम को जारी रखा.
    वर्ष 1947 में ही पाकिस्तान से बड़ी संख्या मे हिन्दू भाई पानीपत आए. उनके पुनर्स्थापन का काम में भी तत्कालीन पंजाब पार्टी ने किया. 
  यहां मैं एक घटना को जरूर प्रस्तुत करना चाहूँगा कि 11 नवंबर, 1947 को महात्मा गांधी पानीपत आए. पानीपत के किला मैदान मे एक जलसा आयोजित किया गया. वहां सैंकड़ों लोग जमा थे पर तभी वहां जमा आर अस अस के लोगों ने इस जलसे में अफरातफरी पैदा कर दी. माहौल एसा लगा कि शायद बापू पर हमला करके यही कत्ल न कर दिया जाए पर तभी एक नौजवान जिनका नाम कामरेड टीका राम सखुन था उसने गांधी जी की हिफ़ाज़त करते हुए उन्हें एक कमरे में ले जाकर बंद कर दिया और लगभग आधे घण्टे तक अपने विचारों से लोगों को शांत किया तब महात्मा जी की तकरीर हुई. यदि कामरेड टीका राम नहीं होते तो बापू यहि शहीद हो जाते. उन्हीं कामरेड टीका राम ने तत्कालीन संयुक्त पंजाब इस हिस्से मे कम्युनिस्ट पार्टी निर्माण का काम किया.
    विभाजन के बाद अनेक नौजवान पंजाबी कामरेड जिनमें कामरेड बलवंत सिंह, कामरेड रामदित्ता आदि पाकिस्तान से आए तथा उन्होंने पार्टी निर्माण का काम किया. यह उन्हीं की तपस्या तथा कड़ी मेहनत का फल था कि कामरेड रघबीर सिंह जेसे लोग पार्टी में आए जिन्होंने इस औद्योगिक नगर में AITUC की स्थापना की.
   मैं यहां 1966 में पानीपत में पंजाबी सूबे और हरियाणा को अलग स्टेट बनाने के आंदोलन का भी जिक्र करना चाहूँगा. जब इस शहर में ही RSS के लोगों ने तीन राष्ट्रभक्त लोगों को जिनमे एक शहीद भगत सिंह के साथी कामरेड क्रांति कुमार भी थे, उन्हें एक दुकान में बंद करके जिंदा जला दिया था. इस घोर निंदनीय हिंसक घटना के बाद य़ह कम्युनिस्ट पार्टी और उसके कार्यकर्ता ही थे जिन्होंने अपराधियों का पर्दाफाश किया.
    हरियाणा बनने के बाद न केवल ट्रेड यूनियन की अपितु All INDIA STUDENTS FEDERATION के काम में भी बढ़ोतरी हुई. कामरेड जयपाल , काम0 माम चंद, का0 रणबीर मलिक, का0 विजय सपरा, बलबीर bhashin, राम मोहन राय, बलविंदर सिंह, दरियाव सिंह सेवा सिंह ....आदि तथा पार्टी का वर्तमान जिला नेतृत्व उन्हीं दिनों के संघर्षों की उपज है.
    कम्युनिस्ट पार्टी ने न केवल मेहनतकश आवाम के मुद्दे उठाये वहीं नागरिक समस्याओं का भी नेतृत्व किया है. पानीपत को जिला बनाने के आंदोलन की सफ़लता पार्टी के सूझबूझ वाले नेतृत्व को ही है.
     सन 1982-84 का समय बहुत ही दुखदायी एवं चुनौती भरा था . एक तरफ पंजाब में militancy चरम सीमा पर थी वही हरियाणा विशेषकर पानीपत में हिन्दुत्व वादी ताकतें अलगाव और हिंसा पर उतारू थी. फरवरी 84 में ही यहां हिंसा का तांडव शुरू हो गया. बदला के नाम पर गुरुद्वारों को आग लगा दी गयी, नौ निरपराध सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गयी.अनेक सिखों पर झूठे मुकदमे कायम किए. उस समय का0 सूरत सिंह, का0 राम मोहन राय तथा अन्य सहयोगी वकीलों ने पैरवी का काम किया वहीं ALL INDIA YOUTH FEDERATION तथा AISF के साथियों ने अन्य प्रगतिशील संगठनों के साथ मिल कर भगतसिंह सिंह सभा की स्थापना कर पार्टी द्वारा दिए गये नारे " न हिन्दू राज न खालिस्तान-जुग जुग जिए हिंदुस्तान " पर काम करना शुरू किया. इस तमाम कार्यवाही को समर्थन देने के लिए स्वयं अरुणा आसिफ़ अली, सुभद्रा जोशी एवं निर्मला देशपांडे पानीपत आयी.
      सीपीआई की नगर इकाई के हर संघर्ष में भागीदारी ने पार्टी को एक जन पार्टी बनाने का काम किया है जिसकी स्वीकार्यता जनता में है और य़ह ही भाव एक मजबूत पार्टी बनाने का काम करेगी. 
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,
राम मोहन राय

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