मेरे सपनों का स्कूल
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मेरे माता पिता मूलतः शिक्षक थे अत: उनकी हर बात में शिक्षा थी ।वैसे भी "मातृमान पितृमान आचार्यमान पुरुषो वेदा "अर्थात पहले माता फिर पिता ही शिक्षक होते है ।महात्मा गांधी ने कहा है ''संस्कारवान घर जैसा कोई विद्यालय नही तथा चरित्रवान अभिभावक जैसे कोई अध्यापक नही"।ऐसा ही माहौल मेरे घर का था जहाँ किसी भी क्षेत्रीयता, साम्प्रदायिकता व जातीय संकीर्णता का कोई स्थान न था । पिता जी का मानना था कि स्कूल ऐसा हो जहां की दीवारे भी कुछ सिखाये यानि स्कूल का एक- एक कण कुछ न कुछ सिखाये जरूर ।
इत्तिफ़ाक से मुझे प्रारम्भ से ही अनेक संस्थानों ,योग्य व अनुभवी गुरुजन तथा विद्वान मार्गदर्शकों का सानिध्य मिला । नेतृत्व क्षमता के कारण अपनी प्रतिभा दिखाने तथा विकसित करने के अवसरो ने मेरे ज्ञान को भी बढ़ाया । इस तरह मेरे विश्वविद्यालय भी मैक्सिम गोर्की के विद्यालय ही रहे । वैदिक,जैन,मार्क्स ,गांधी -नेहरू,भगत सिंह को पढ़ने से बुद्धि का विकास हुआ ।पानीपत ,दिल्ली,सहारनपुर तथा ताशकन्द-मॉस्को में अध्ययन के लिए जाने से बुद्धि तंतुओ को खोला व देश विदेश की यात्राओ ने नई नई जानकारी दी । स्व0 निर्मला दीदी ने आध्यात्मिक तथा व्यवहारिक शिक्षा दी जिससे मुझे नया प्रकाश मिला ।कला ,विज्ञान तथा कानून की पढ़ायी से अलग अलग रहस्यों को ढूंढने का अवसर मिला ।मेरे इन्ही तजुर्बो व् ज्ञान की वजह से अनेक शिक्षण संस्थानों के विभिन्न प्रशासकीय पदों पर रहने का अवसर मिला और फिर अंत में परिस्थितियों वश अब हाली अपना स्कूल का संचालन कर रहा हूं। मै इस स्कूल को अपने अनुभवो व सपनो का शिक्षालय बनाना चाहता हूँ. क्या हम ऐसा बना पाएंगे या यू ही समय पार हो जायेगा ।बड़ी ख़ुशी की बात है कि इस स्कूल में सभी प्रारम्भिक जरूरी स्थितियां मौजूद है ।यानि ऐसे बच्चे जो निर्धन मजदूर परिवारो से है ।दूसरे शब्दों में वे बच्चे जिन्हें मात्र इसी स्कूल से ही कोई उम्मीद दिखाई देती है । तीसरे स्कूल का मानस जहा साम्प्रदायिक आधार पर कोई भेद भाव नही किया जा सकता । चौथे- बिल्डिंग व अन्य आवशयक सामान जो किसी भी स्कूल के लिए जरूरी हो । हमारे स्कूल में कार्य करने के लिए कुछ सुझाव =
1. स्कूल में शिक्षा परम्परा गत न हो कर व्यवहारिक तथा बच्चों की भाषा में होनी चाहिए ।
2. बच्चों की पढ़ाई को काम से जोड़ा जाये यानि वे स्कूल में ही ऐसे हूनर को सींखे जिससे उन्हें आमदनी हो ताकि वे अपनी व्यक्तिगत ,स्कूल खर्च तथा कुछ रूप में माता पिता की भी मदद कर सके ।
3. बच्चे अपने अपने ढंग से waste material इकठ्ठा करे बाद में उसे उपयोगी बना कर तैयार किया जाये ।इसकी मार्केटिंग की जिम्मेवारी स्कूल प्रशासन की हो इसके लिए समय समय पर हॉट/प्रदर्शनी भी लगाई जा सकती है । बच्चों की ट्रैनिंग के लिए अनुभवी ट्रेनर्स को जोड़ा जा सकता है ।
4 स्कूल में कोई भी छोटा बड़ा न हो । सफाई से ले कर सभी काम मिल कर करे । एक टीम की तरह सब काम करे बस एक टीम लीडर हो ।
5. प्रायः यह देखने में आया है कि हर कोई ,कोई न कोई हूनर तो जानता ही है, उसे दूसरो भी सिखाये ।
6. स्कूल में ज्यादा सहूलियत न हो सभी को हर स्थिति में रहना सीखना चाहिए । मैने अजमेर का विश्व प्रसिद् मेयो कॉलेज को देखा वहाँ राज परिवारो तथा नौकरशाहों के बच्चे हॉस्टल में भी रहते है । वे बच्चे जिनके घरो में नौकर चाकर है,ए सी लगे है परन्तु स्कूल में मात्र पंखे ही है जबकि वार्षिक फीस 5-6लाख रूपये ली जाती है ।
7 स्कूल में कभी भी कोई प्रतियोगिता नही होनी चाहिए । यह तर्क निरर्थक है की इससे बच्चे में सीखने की होड़ होती है पर वास्तव मे इसमें शर्म व हीन भावना ही पनपती है ।
8. स्कूल की प्रार्थना में संगीत जरूर होना चाहिए । बच्चों को खाना बनाना,संगीत तथा डांस जरूर सिखाया जाए । हंसने व् शोर की पूरी छूट हो पर साथ साथ श्रम तथा योग का भी महत्व पता हो । रोजाना स्कूल समय के 1/4 समय में खेल व मनोरंजन की कक्षा हो ।
9. स्कूल में सप्ताह में कम से कम दो दिन बाहर से अतिथि बुलाये जाए जो अपने अनुभवो को बच्चों से शेयर करे ।
10. खेल- खेल में बच्चों को पढ़ाया जाए. बोझिल संवाद् तथा पुस्तके कभी भी विकास में सहायक नही हो सकते ।
11. बच्चों की लाइब्रेरी जरूर हो जहा बच्चों की किताबे ,कॉमिक्स व् कार्टून हो ।
क्या हम ऐसे स्कूल बनाने का प्रयास कर सकते है ,दुनियां में कुछ भी तो असम्भव नही है आइये हम मिल कर ऐसा स्कूल बनाये । यदि हाँ तो एक नए प्रयोग के लिए तैयार हो कर आयें।
राम मोहन राय,
HOPE यानी हाली ओपन इंस्टिट्यूट ऑफ पीस एंड एजुकेशन.
पानीपत.
बातचीत आजकल सिर्फ WhatsApp number 9354926281(और वह भी भारतीय समय शाम 7 बजे से प्रात: 9 बजे तक , क्योंकि आजकल हम USA में है)
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