Dr A T Aryaratne (श्रीलंका के गांधी)

*श्रीलंका के गांधी-डॉ ए टी आर्यरत्ने*   
          सर्वोदय का अर्थ सबके उदय के साथ-साथ सबके जागरण का सूत्र देने वाले महान शिक्षक डॉ ए टी आर्यरत्ने ,विश्वस्तर पर गांधी विचार के न केवल एक साधक है वहीँ अपने जीवन तथा कार्यों से उस विचार के प्रचारक एवं प्रसारक भी हैं। उनके सानिध्य में बैठ कर कुछ सीखना, जानना और समझना किसी भी व्यक्ति के लिए उसके जीवन की एक सर्वोत्तम कृति हो सकती है। बापू की तरह उनका भी जीवन उनका दर्शन है।
   अपने देश में उन्हें "श्रीलंका के गांधी " के रूप मे सम्मान प्राप्त है। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी तथा उनके कार्यो की मान्यता एवं सम्मान है, जिसका प्रमाण यह भी है कि उन्हें अनेक पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है। 
      मेरी गुरु-माँ दीदी निर्मला देशपांडे जी से अक्सर उनके बारे मे प्रशंसा भाव सुने थे। एक दो बार कोशिश भी हुई कि दीदी वहां जाकर उनके कार्यों को देखें जबकि अपने भारत आगमन पर वे दीदी से हर बार मिलते ही थे, तब उनका आग्रह रहता कि दीदी भी श्रीलंका जाकर उनके कार्यो को देखें परंतु यह अवसर न आ सका। सन 2008 में दीदी परलोक सिधार गयी और उनकी यह ईच्छा पूरी न हो सकीं।
     भारत विभाजन के बाद महात्मा गांधी पाकिस्तान जाना चाहते थे। उनके जाने का कार्यक्रम भी बन गया था परंतु काल के क्रूर हाथों ने 30 जनवरी ,1948 को उन्हें हम सब से छीन लिया। निर्मला दीदी सदा इस बात को याद रखती थी और चाहती थी कि बापू की यह अंतिम इच्छा पूरी हो ।और आखिरकार अक्तूबर- नवंबर, 1997 में अपने चंद साथियों जिनमे उनमे मुझे भी शामिल किया था, के साथ वे पाकिस्तान गयी. वे इसे पूज्यनीय महात्मा गाँधी को ही उनके सेवकों द्वारा दी गई श्रद्धांजली मानतीं थी। ऐसे ही दीदी का श्रीलंका जाने का कई बार कार्यक्रम बना पर वे नहीं जा सकीं और उनकी मृत्यु के बाद उनकी इस इच्छापूर्ति का यह कार्य उनके सहयोगियों और अनुयायियों ने पद्मश्री श्री धर्म पाल सैनी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में जाकर किया. दि 0 12 से 18 मार्च तक चलने वाली सप्ताह भर की यात्रा के लिए, पूरे देश से मेरे सहित उनके साथी ज्योति बहन, वीणा बहन, जयवंती श्योकन्द , उर्मिला श्रीवास्तव ,    जम्मू बहन,  याक़ूब  दार, कृष्णा कान्ता, पी मारुति संघ मित्रा और तरु कोलंबो पहुंचे। 
         डॉ आर्यरत्ने जी का सर्वोदय संगठन इस पूरे कार्यक्रम के प्रयोजक एवं मेज़बान था। हम सब का सिर्फ एक ही प्रयोजन था कि अपने पांच दिन के प्रवास में हम किस तरह से उनका सानिध्य प्राप्त करें।
     यह सर्वोदय संगठन पूरे देश में गांधी जी के खादी एवं हाथकरघा, कुटीर एवं ग्रामोद्योग, बुनियादी तालीम, स्त्री शक्ति जागरण, ग्रामोदय एवं ग्राम स्वराज का अद्भुत और अनुकरणीय कार्य कर रहा है, जिसके साक्षात दर्शन हमें वहां जाकर मिले।
     आर्यरत्ने जी एवं उनका पूरा परिवार ही सादगी एवं सरलता से ओतप्रोत है। हमने यह पाया कि वहां रहते हुए कई बार उनसे किसी मीटिंग में हम तो देरी से पहुंचते थे परन्तु वे हमेशा समय का पालन करते थे।
     एक दिन शाम को हम सब साथी अनुराधा पूरम से आते हुए लेट हो गए और हमारी उनसे मुलाकात के तय समय से एक घंटा देरी हो चुकी थीं । उनके सचिव ने हमें सूचित किया कि अब आर्य रत्ने जी से मुलाकात नहीं हो सकेगी। हम सब निराश होकर अपनी कोताही को कोस रहे थे। तभी क्या देखते हैं कि आर्यरत्ने जी स्वयं चल कर हमारे हास्टल की तरफ आए और देर रात घंटों हमसे बतियाते रहे।
     मेरे तथा मेरी सुपुत्री संघमित्रा के प्रति उनका विशेष स्नेह रहा। मेरे प्रति इसलिये भी कि वे मुझे दीदी निर्मला देशपांडे जी का प्रतिनिधि मानते थे और बेटी के प्रति इसलिए कि वे उसके नाम से अत्यंत प्रभावित थे. संघमित्रा वह नाम है जो सम्राट अशोक की पुत्री के रूप मे बौद्ध धर्म का प्रचार करने श्रीलंका आई थी। श्री आर्यरत्ने जी ने ही हमारी इस यात्रा को " संघमित्रा का पुनरागमन " का नाम दिया था।
     गांधी ग्लोबल फॅमिली के नाम, उद्देश्यों एवं कार्यो से भी वे बेहद प्रभावित हुए। उन्हें इस बात की भी प्रसन्नता हुई कि सन 1969 में गांधी जन्म शताब्दी के अवसर पर भारत से उनके पास गांधी विचार के शिक्षण का प्रशिक्षण लेने वाला एक कश्मीरी युवक गुलाम नबी आजाद (तत्कालीन केंद्रीय मंत्री, भारत सरकार) ही इस संगठन का अध्यक्ष है।
     श्री आर्यरत्ने जी ने अपने इस अनुराग को अपने शुभकामना संदेश के रूप मे लिख कर हमें दिया। 
    हमारी यात्रा के दौरान ही होली का त्यौहार भी आया। हमारे पास न तो कोई रंग थे और न ही गुलाल। परंतु आर्यरत्ने जी भारतीयों के लिए इस दिवस के महत्व को अवश्य समझते थे। होली के दिन उन्होंने हम सभी को अपने निवास पर बुलाया और वहां अपने समूचे परिवार के साथ मिलवाते हुए प्रीति भोज का आयोजन किया और चलते हुए सब के माथे पर हल्दी और चंदन का लेप किया।
    आर्यरत्ने जी बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान एवं महान विचारक भी हैं. हमारी यात्रा के दौरान ही उन्होंने "धम्म" की भी हमे जानकारी दी। उनका मानना था कि भगवान बुद्ध और महात्मा गाँधी के सत्य, अहिंसा और करुणा के विचार ही इस पूरी दुनियां को विध्वंस से बचा सकते हैं। बुद्ध भूमि भारत के प्रति उनका विशेष आकर्षण है और वे चाहते हैं कि श्रीलंका से रामेश्वरम तक जल मार्ग से आकर तीर्थयात्री सस्ते रेल्वे मार्ग से विभिन्न बौद्ध तीर्थस्थल के दर्शन करें।
   आर्यरत्ने जी के सानिध्य में रहने का अर्थ है आध्यात्मिक समुद्र में डूबकी लगाना और
अनेक तीर्थयात्रा का पुण्य कमाना ही है. 
    श्री आर्यरत्ने जी अब 92 वर्ष की अवस्था में भी स्वस्थ एवं क्रियाशील हैं। हम उनकी दीर्घायु की प्रार्थना करते हुए उनकी कृपादृष्टि हम सब पर बने रहने की कामना करते हैं. 
   जीवेम शरद: शतम .
राम मोहन राय. 
30.06.2022.
Seattle, Washington-USA

Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

मुजीब, गांधी और टैगोर पर हमले किस के निशाने पर