मेरी मम्मा सबकी माँ मोहिनी गिरि को विनम्र श्रद्धांजलि Mohini Giri

 

मेरी मम्मा,सबकी माँ-मोहिनी गिरि 

    आयु में ही नहीं अपितु मातृत्व भरे वात्सल्य, करुणामय व्यवहार तथा स्नेहमय आचरण से परिपूर्ण हम सबकी एकमात्र माँ मोहिनी गिरि है. एक सम्पन्न परिवार में जनमी, उच्च शिक्षा प्राप्त तथा मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत एक स्वतंत्रता सेनानी राजनीतिक परिवार में विकसित यदि कोई व्यक्ति किसी को बेटा कह कर संबोधित करे तो वह कितना सौभाग्यशाली होगा, इसका वर्णन असम्भव है, पर एसे गौरवशाली लोगों में मेरी गिनती भी शुमार है. 

      उनके दर्शनों का सर्वप्रथम मुझे जब हुआ जब मैं कुल 14 वर्ष का था और अपने शहर पानीपत में भारतीय बाल सभा का संस्थापक अध्यक्ष था. मेरे सामाजिक-राजनीतिक पारिवारिक वातावरण ने मुझे अपनी उम्र से अधिक प्रौढ़ता और समझदारी दी थी और मैं अपने चंद दोस्तों के साथ चल पड़ा था भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ वी वी गिरि से मिलने राष्ट्रपति भवन, दिल्ली और वहीँ दर्शन हुए थे राष्ट्रपति जी की प्रोटोकोल अधिकारी और उनकी पुत्रवधू श्रीमती मोहिनी गिरि जी के. उनकी मनमोहक आकर्षक छवि आज भी हम सभी के मन मष्तिष्क पर अंकित है.

     वर्ष 1995 से 1998 तक वे राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष बनी. उनका कार्यकाल महिला आयोग के लिए स्वर्णिम काल था. उनसे पूर्ववर्ती अध्यक्ष श्रीमती जयंती पटनायक से मेरी माता श्रीमती सीता रानी जी सैनी को कार्य करने का अवसर मिला था अतः महिला आयोग के क्रियाकलापों से हम वाकिफ थे. मेरी माता जी न केवल स्वतंत्रता सेनानी रहीं थी वहीं एक जुझारू महिला नेत्री भी थी, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन पीड़ित औरतों को उनके कष्टों से निजात के लिए लगाया. सन 1992 मे उनके निधन के पश्चात उनके महिलाओं के लिए किए जा रहे कार्यो को  जारी रखने  के लिए  हमारे शहर  पानीपत में "माता सीता रानी सेवा संस्था " की स्थापना उन्हीं से जुड़ी बहनो ने की. उसी दौरान हमारा परिचय एक अत्यंत क्रियाशील महिला नेत्री श्रीमती कुसुम नौटीयाल जी से हुआ. लोगों को अच्छे काम के लिए प्रेरित करने एवं जोड़ने का काम करना यदि कोई सीखना चाहता है तो उसे कुसुम जी की पाठशाला में आना होगा. यह उन्हीं का प्रयास था कि हम और हमारी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग से जुड़ी यानी कि मोहिनी जी से जुड़े. 

      महिला आयोग में एक दिन जाने पर वे मुझे मोहिनी जी से मिलवाने उनके ऑफिस में ले गयी. उनको मेरा परिचय दिया गया और मैं तो उनसे परिचित था ही. उनके ही कहने पर हमने संस्था की ओर से पानीपत मे आयोग के सौजन्य से पारिवारिक महिला अदालत लगाने का साहस किया और वह दिन आया जब इस अदालत का शुभारंभ करने डॉ मोहिनी गिरि पानीपत पधारी. वह एक भव्य समारोह रहा जो इस एतिहासिक शहर में एक नया इतिहास रच रहा था. पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश श्री जी एस सिंघवी, एन के जैन सहित अनेक न्यायाधीश पधारे. और कुल सात घण्टे तक चली इस अदालत में 99 पारिवारिक मुकदमों का निपटारा हुआ.

     इसमे से अनेक एसे विवाद थे जो अनेक वर्षों से अदालतों में चल रहे थे परन्तु सार्थक संवाद हीनता की वज़ह से लम्बित थे. एसे टूटे परिवारों के जोड़ने के कार्य से न केवल संस्था को ख्याति मिली वहीं कार्य करने का रास्ता भी मिला. इस कार्यक्रम में आकर सबसे ज्यादा प्रसन्नता मोहिनी जी को हुई और यह ही पहला अवसर था कि उन्होंने बेटा कह कर मुझे सम्मानित किया और उसके बाद  तो मैं भी उन्हें "मैडम " न कह कर मम्मा ही कह कर संबोधित करता .

       राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष पद के कार्यकाल समाप्त होने पर भी माँ-बेटे का समबन्ध कभी भी नहीं टूटा. अब मैं जब भी किसी भी काम से दिल्ली आता तो काम से भी बड़ा आकर्षण मुझे अपनी मम्मा से मिलने का रहता.

     महिला लोक अदालत की अपार सफ़लता के बाद हम सब साथियों का विचार रहा कि यदि कुल सात घंटे की एक छोटी सी मेहनत करके 99 परिवारों को जोड़ने का काम कर सकते हैं तो यदि काम को निरन्तरता दी जाए तो कितने ही टूटे परिवारों को जोड़ने का काम किया जा सकता है. यह मेरी मम्मा मोहिनी जी तथा दीदी निर्मला देशपांडे जी की के ही सहयोग का परिणाम रहा कि वर्ष 1998 में संस्था ने केंद्रीय समाज कल्याण समाज बोर्ड, भारत सरकार के सौजन्य से "परिवार परामर्श केंद्र "की स्थापना की जिसने अपने कार्यकलापों तथा संगठन शक्ति से आपसी संवाद द्वारा हज़ारों परिवारों को जोड़ने का काम करके एक कीर्तिमान स्थापित किया है.

       भगवान कृष्ण की लीला नगरी वृंदावन में हज़ारों की संख्या मे रह रहीं हज़ारों तिरस्कृत विधवाओं के असहाय जीवन की ओर किसी का भी ध्यान नहीं था पर ये हमारी मम्मा ही हैं जिन्होंने वहां *माँ धाम* की स्थापना कर उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने की व्यवस्था की. मम्मा ने मुझे भी उस काम से जोड़ा. पानीपत आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यवसायियों का नगर है. मम्मा ने उन्हें भी मेरे माध्यम से आंदोलित किया और वे माँ धाम के सहयोगी बने.

        साल 1999  में करगिल युद्ध में शहीद हुए अनेक एसे युवा थे जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरगति प्राप्त की थी. इस पीड़ा को एक माँ के अतिरिक्त कौन अच्छी तरह समझ सकता था. मेरी मम्मा ने ऐसे अनेक जवानों के पीड़ित परिवारों के घर-2 जाकर न केवल सांत्वना एवं संवेदना प्रकट की वहीं उन्हें स्वावलंबी बनने के लिए आर्थिक मदद भी प्रदान करवाने का काम किया.

    श्री वी वी गिरि के राष्ट्रपति रहते ही वर्ष 1971 में उन्होंने वार विडोज की मदद के लिए एक समिति का गठन किया था. अतः वे इन युवा विधवाओं की पीड़ा को समझती थी. उन्होंने इस काम को कभी भी नहीं बिसराया और सदा उनकी माँ बन कर उनका सहारा भी रहीं. वे युद्ध की त्रासदी को भी समझती थी. मुझे याद है कि एक बार मेरा सुपुत्र उत्कर्ष मेरे साथ उनसे मिलने गया. तब वह मात्र दस वर्ष का रहा होगा. मम्मा ने उससे पूछा कि बड़ा होकर वह क्या करना चाहता है तो उसका कहना था कि वह आर्मी में भर्ती होना चाहता है तो मम्मा निराश होकर बोली थी कि अब और लडाई नहीं देखी जाती और यही वह प्रेरणा थी कि उत्कर्ष ने सेना में जाने का मोह छोड़ कर एक शांति सैनिक बनने का संकल्प लिया था.

     वे बखूबी समझती हैं कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है. युद्ध तो महिलाओं की छातियों पर ही लड़े जाते हैं इसीलिए उन्होंने अपनी मित्रों दीदी निर्मला देशपांडे जी और सईदा हमीद आपा के साथ Women's Initiative For Peace in South Asia ( WIPSA) की स्थापना की.

   कश्मीर में वर्ष 1989-90 से जारी हिंसा से भी वे व्यथित रहीं. अनेक बार उन्होंने हिंसा ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया और WIPSA को इस क्षेत्र मे औरतों की भलाई के लिए और शांति स्थापित करने के काम में लगाया. इस कार्य में उन्होंने मुझे भी जोड़ा बेशक मैं कोई महिला तो नहीं था परंतु यह उनका मेरे प्रति विश्वास ही रहा कि उन्होंने WIPSA का मुझे ट्रस्टी बनाया. एक मर्तबा जब मैं उनके साथ कश्मीर गया तो जो संयुक्त रिपोर्ट जारी हुई उसकी तैयारी में भी मैं जुड़ा रहा.

     भारत और पड़ोसी देशों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होगी इसको वे बखूबी समझती हैं. इसीलिए उनके नेतृत्व में महिलाओं के अनेक दल पाकिस्तान और बांग्लादेश आए-गए. 

    वर्ष 1985 के आसपास उन्होंने श्री कुलदीप नय्यर तथा अपने अन्य साथियो के साथ भारत-पाकिस्तान, अटारी -वाघा पर अमन दोस्ती के लिये यात्रा शुरू की थी जो अनेक वर्षों तक बखूबी चली परंतु आयु के पड़ाव ने उसे कमजोर कर दिया था परंतु यात्री थके नहीं थे. और एक रोज़ मई-2017 में मम्मा का संदेश आया कि मैं आकर उनसे मिलूँ. मैं उनके दिल्ली स्थित निवास पर निश्चित समय जब पहुंचा तो पाया कि मम्मा और सईदा आपा  इंतजार कर रहीं हैं. पहुंचने पर उनका कहना था कि अमन दोस्ती की मशाल को अब मैं अपने हाथ मे लूँ. यही तो मेरा मन भाता काम रहा है जिसके लिए मेरी गुरु माँ निर्मला देशपांडे जी ने अनथक प्रयास किए. मेरे हाँ करने की देर थी कि उन्होंने तुरन्त श्री कुलदीप नय्यर जी से फोन पर बात की और मैं और रवि नीतेश उनके साथ श्री कुलदीप नय्यर जी के घर पर पहुंचे. नय्यर जी को भी संतोष रहा कि यात्रा की ज्योति को युवा हाथों ने सम्भाल लिया है.

    मुझे वह दिन भी याद है जब मम्मा के घर से ही यात्रा का शुभारंभ होने का निश्चय हुआ था और वह भी जब मम्मा ,सईदा आपा श्री कुलदीप नय्यर जी को लेकर यात्रा को विदा करने गांधी दर्शन, दिल्ली में आई थी. 

    असहाय और कमजोर महिलाओं की सुरक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए उन्होंने गिल्ड ऑफ सर्विस की स्थापना की जो हजारों महिलाओं की आशा की किरण बन कर उभरी है. श्री नगर में राहत घर एक ऐसी योजना है जो अनेक बेआवाज़ औरतों और बच्चों की आवाज़ भी है. 

     ऐसे एक नहीं अनेक वृतांत है जिसे किसी एक लेख में लिखना असम्भव है. फिर क्या कोई अपनी माँ के उपकारो को भी भूल सकता है. 

    कोविड महामारी के दौरान मेने facebook पर देखा कि वें राहत घर, श्री नगर में रह रहे बच्चों के लिए स्वेटर बुन रहीं हैं तो मैंने भी उनसे कहा कि मैं भी तो उनका बच्चा हूं इसलिए मेरे लिए भी एक मफलर बना कर दें. इस पर वे मुस्करा दी और एक दिन संदेश आया कि बेटा तुम्हारे लिए मफलर तैय्यार है ,ले जाए. ऐसी प्यारी है हमारी मम्मा. 

    मोहिनी जी मेरी मम्मा तो है ही उसके साथ-2 उन सब की भी माँ है जो अमन, दोस्ती और मोहब्बत के हामी है. 

   We all love you Mamma. 

राम मोहन राय



Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

मुजीब, गांधी और टैगोर पर हमले किस के निशाने पर