safarnama chandigarh-solan
चंडीगढ़ -05.06.2018
श्री प्रमोद शर्मा ,स्व0 दीदी निर्मला देशपांडे जी के बहुत ही विश्वसनीय तथा निकटष्ठ साथी रहे है । मुझे दो बार दीदी के साथ उनके कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला है । सन 2004 के अखिल भारत रचनात्मक समाज के जालंधर (पंजाब) सम्मेलन में। उनकी महती भूमिका रही थी । उसके बाद भी उन्होंने दीदी के काम को जारी रखा हुआ है । वे हर वर्ष सिंतबर - अक्टूबर में चंडीगढ़ में ही एक युवा महोत्सव का आयोजन करते है जिसमे अनेक देशों के नौजवान शामिल रहते है । वर्ष 2008 का आयोजन स्व0 निर्मला दीदी को ही समर्पित था । गत वर्ष ,पाकिस्तान समेत लगभग 30 देशो के युवाओ ने इसमें भाग लिया था । चंडीगढ़ में एक अजीब नज़ारा था जब विभिन्न देशों के सेंकडो युवा अपने -२ देश की वेशभूषा पहन कर अपनी -२ भाषा मे अमन और भाईचारे के गीत गाते और नारे लगाते निकले थे । उनका संगठन " युवसत्ता" चंडीगढ़ तथा आस पास के क्षेत्रो में शांति ,सदभाव,मैत्री एवम पर्यावरण पर बेहतर काम करता है जिसकी सर्वत्र प्रशंशा है । प्रमोद शर्मा व उनकी पत्नी दोनो ही बहुत ही विनम्र भाव से सेवा कार्य कर रहे है और करे भी क्यो न ,उन्हें स्व0 दीदी का भरपूर आशीर्वाद एवम स्नेह हमेशा मिला है ।उन्ही के द्वारा 'पर्यावरण दिवस' पर आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने का सुअवसर मिला।इस कार्यक्रम में विभिन्न स्कूलों के सेंकडो छात्रों ने भाग लिया तथा इस विषय पर गीत ,कविता एवम नाटकों का सुंदर मंचन किया ।
इसी कार्यक्रम के पश्चात , संगीत एवम भरत नाट्यम की विख्यात शिक्षिका सुश्री सुचित्रा मित्रा से मुलाकात हुई जो भारत एवम बाली के बीच सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन को लेकर श्री इन्द्रा उदयाना से मिलने के लिए आई थी । यद्यपि हम पहली बार ही उनसे मिल रहे थे परन्तु उनका मृदु स्वभाव तथा विनम्र व्यवहार ने हमे अपनी ओर आकर्षित किया । सुश्री मित्रा , राष्ट्रीय एकता की शानदार प्रतिमूर्ति है । असम में मूलतः बांग्ला परिवार में जन्मी सुचित्रा का शिक्षा एवम पालन पोषण कोलकोता में हुआ । वे ,जग प्रसिद्ध कला विद्यालय रबीन्द्र भारती में न केवल शिक्षित हुई वहीं उन्होंने बतौर शिक्षिका भी काम किया । नृत्य व कला की लगन उन्हें चेन्नई खींच कर ले गयीं जहाँ उन्होंने भरत नाट्यम एवम अन्य नृत्य विधाओं में महारत हासिल की । वे पंजाब यूनिवर्सिटी के कला विभाग में कार्यरत्त रही परन्तु बाद में अपनी इस कला साधना को मूर्त रूप देते हुए एक स्वतंत्र " प्रशिक्षण कला केंद्र " की स्थापना की जहाँ से अनेक विद्यार्थियो ने विशेष योग्यता अर्जित की है । आकर्षक मुख मण्डल की इस महिला से जब हमारे एक परिचित ने उनके घर परिवार के बारे में पूछा तो उनका साफ जेवाब था " वर्षो पहले उन्होंने नृत्य कला से विवाह कर लिया था और जो भी उनके पास प्रशिक्षणार्थी है वे ही उनके बच्चे है " । कला जगत की इस समर्पित कलाकार को नमन । उनसे मिलने के बाद हमने अपने मित्र श्री राकेश वर्मा से मिलने उनके आवास पर जाना था । मैं वर्मा परिवार का स्वभाव जानता हूं मैने सुचित्रा जी से भी प्रार्थना की कि वे भी हमारे साथ चले उन्होंने भी बिना किसी तकल्लुफ के हमारे आग्रह को स्वीकार किया और हम सब श्री राकेश वर्मा के घर पहुचे ।
राम मोहन राय
(Nityanootan broadcast service)
सर्वधर्म समभाव का प्रतीक -दादा चेलाराम आश्रम ,सोलन
गत दिवस हिमाचल प्रदेश यात्रा के दौरान सोलन से दो किलोमीटर पहले ही मुख्य मार्ग पर स्थित एक ऐसे स्थान पर दो दिन रुकने का अवसर मिला जो न केवल प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण है वही आध्यात्मिक साधना का भी एक उच्च स्थल है । चार दिन पहले ही मेरे पास इंडोनेसिया के मेरे मित्र श्री इन्द्रा उदयाना ,जो अक्सर अपने भारत प्रेम के कारण यही रहते है , का फोन आया कि वे अपने एक साथी विशाल जैन के साथ हिमाचल प्रदेश में श्री सिद्धार्थ कृष्ण से मिलने जा रहे हैं तथा इसी बीच पानीपत में हमारे घर कुछ समय रुक कर डिनर करेंगे । वे रात्री को ठीक 9.30 बजे आये ,भोजन किया और मेरे आग्रह पर रात को रुके भी । इसी दौरान उन्होंने बताया कि सिद्धार्थ कृष्ण जी व उनके पिता श्री प्रभु जी सोलन में रुके है तथा वे उनसे ही मिलने जा रहे है । अनेक वर्षों से मेरा मन था कि मैं "श्री प्रभु" जी के दर्शन करुं । वे एक महान आध्यात्मिक विभूति है जिन्होंने संत विनोबा भावे सरीखे व्यक्तित्व के साथ साधना की है । आदरणीय स्व0 दीदी निर्मला देशपांडे जी के साथ भी उनका विशेष स्नेह रहा है । स्व0 दीदी ,अक्सर ऋषिकेश स्थित ऑंकरानंद आश्रम में उनके पास जाकर ठहरती थी तथा अनेक आध्यात्मिक विषयो पर चर्चा करती थी । अखिल भारत रचनात्मक समाज का सम्मेलन जब ऋषिकेश में वर्ष 2004 में , आयोजित किया गया तो श्री प्रभु जी एवम परम पावन दलाई लामा जी की गरिमामयी उपस्थिति में ही उसका उदघाटन हुआ था । स्व0 दीदी अक्सर उनकी चर्चा करती थी बाद में प्रसिद्ध गांधी विचारक एवम सेवक डॉ एस एन सुब्बाराव जी तथा उनके प्रिय शिष्य श्री संजय राय के माध्यम से उनकी स्तुति सुनने को मिलती रही । जब श्री इंद्रा उदयाना ने उनके बारे में बताया तो मैं भी उनसे मिलने का प्रलोभन छोड़ न सका और बिना किसी कार्यक्रम के उनके साथ हिमाचल के लिए रवाना हो गया । एक दिन चंडीगढ़ रुक कर हम सुबह लगभग 10 बजे सोलन पहुचे ।
सोलन में हमारे रुकने की व्यवस्था ,श्री सिद्धार्थ जी के साथ "दादा चेला राम आश्रम " में की गयी थी । बाहर से तो यह स्थान एक सामान्य ' धार्मिक स्थल ' की तरह प्रतीत होता है परन्तु अंदर घुसते ही आपको आभास हो जाएगा कि इसमे कुछ तो निराली बात है । गाड़ी से उतरते ही हमारी भेंट आश्रम के निदेशक श्री हरीश चेलाराम , उनकी विदुषी सुपुत्री सुश्री माला तथा श्री सिद्धार्थ जी से हुई । परिसर में ही एक दिवंगत साधिका ' राधिका ' जी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित कर हम अंदर की तरफ बढ़े जहाँ एक और " गुरु ग्रन्थ साहब " का प्रकाश था वही दूसरी ओर " वेद, बाइबिल एवम क़ुरान शरीफ' की पवित्र प्रतियां आदर पूर्वक रखी गयी थी और इसी के साथ ही ' उपनिषद,गीता एवम पुराण' भी रखे थे ।एक अद्भुत नजारा था । इस के बाद श्री हरीश जी अपने कक्ष में ले गए और वहाँ उन्होंने आश्रम के बारे में बताया । उनके पिता 'दादा चेला राम ' जो मूलतः सिंध के थे तथा एक महान स्वतन्त्रता सेनानी एवम सामाजिक चिंतक थे ,के पुरषार्थ एवम प्रेरणा से यहाँ यह आश्रम लगभग 50 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था । दादा चेला राम जी ने एक सरकारी सेवा में भाग लिया ततपश्चात सब कुछ छोड़ छाड़ कर आध्यात्मिक चेतना में उतर आए । वे वैचारिक रूप से गांधी विचार से प्रभावित रहे तथा प0 जवाहर लाल नेहरू एवं डॉ राजेन्द्र प्रसाद के निकटस्थ रहे । उन्होंने सत्य ,अहिंसा एवम खादी को अपनाया तथा अपने साधको को इसी की प्रेरणा दी शायद यही वजह है कि वे सभी व्यवहारिक
रूप से खादी एवम 'गांधी टोपी' का प्रयोग करते है ।
आश्रम की दिनचर्या साधारण लोगो के लिए बहुत ही अनुशासित ,सादगी पूर्ण एवम कठोर है । सुबह तीन बजे से उठ कर रात्रि 9.30 बजे तक एक- एक मिनट का टाइम टेबल सेट है । जिसमे योगाभ्यास ,श्रमदान, स्वाध्याय सभी कुछ तो है । प्रार्थना में भी सभी धर्मों की प्रार्थना को सभी मिल कर करते है । ऐसा दिखावे के तौर पर ही नही अपितु व्यवहारिक भी है ।सभी छोटे - बड़े सभी आश्रमवासीयो के तौरतरीकों एवम बोलचाल से भी इसका दर्शन होता है । क्या ये सभी ग्रन्थ यहाँ दर्शनार्थ ही है इस पर निदेशक श्री हरीश का जवाब था कि कई बार अनेक मुस्लिम यहाँ आकर क़ुरान पाठ करते है व ईसाई बाइबिल पठन।आश्रम के सभी साधक संगीत के जानकार है तथा गायन में तो सभी की जिह्वा पर सरस्वती का वास है ।
सब कुछ तो अच्छा व प्रेरणादायी है ही परन्तु भोजन से पहले की प्रार्थना तो खाने में एक अलग ही रस भर देती है । यह कबीर साहब के शब्द है -
" राजन कोउनु तुमारै आवै,
ऐसे भाऊ बिदर को देखियो,
ओहु गरीब मोहि भावे,
हस्ती देखी भरम ते भूला,
सिरी भगवान न जानिआ ।
तुमरो दूध बिदुर को पान्हों,
अमृत करी मैं मानीआ ।
खीर समानी सागु मैं पाईया ,
गुन रावत रैनि बिहानी ,
कबीर को ठाकुरों अनद विनोदी जाति न काहू की ।"
राम मोहन राय
(Nityanootan broadcast service)
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