Dhan Nirankar ji

संत निरंकारी मिशन के अध्यक्ष श्री सी एल गुलाटी जी तथा अमेरिका चैप्टर  के अध्यक्ष श्री डॉ इकबाल राय  जी  का मैं हार्दिक आभारी हूं कि उन्होंने गांधी ग्लोबल फैमिली के उपाध्यक्ष पद्मश्री डॉ ऐस पी वर्मा जी के आग्रह पर मेरे अमेरिका प्रवास के दौरान मिशन से जोड़ा.  इसके साथ जुड़ाव ने न केवल मेरी बोझिल यात्रा को आनंदमय बना दिया वहीं आध्यात्मिक दृष्टि भी दी. 
   सम्भवत:यह मेरे किन्ही संचित पुण्य कर्मों का फल होगा कि संत-महात्माओं के दर्शन की अभिलाषा बचपन से ही रही है.  साल 1973 के आसपास हमारे शहर पानीपत में निरंकारी मिशन  के  सतगुरु बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज पधारे थे.  अपनी जिज्ञासावश शायद यह कौतूहल भी हो सकता है, मैं भी उनके दर्शन करने गया था.  छोटा बच्चा था और निर्भीक भी अतः मैं बाबा जी के बिल्कुल निकट चरणों में ही बैठा था.  मेरे परिवार में आर्य समाज का प्रभाव इस कदर गहरा था कि मिशन से न जुड़ सका.  वर्ष 2013 में गांधी ग्लोबल फैमिली की ओर से मिशन के दिल्ली में आयोजित समागम में सतगुरु बाबा हर देव सिंह जी महाराज को महात्मा गांधी सेवा अवार्ड से नवाजा गया और बाद मे तो GGF के प्रतिनिधि के रूप मे लगभग हर समागम में उपस्थित होकर अपना सम्मान प्रदर्शित करने का प्रयास किया.
    साल 2018 में मेरे शहर पानीपत के निकट स्थित समालखा में आयोजित समागम में जब मैं सतगुरु माता जी के दर्शन करने के लिए उपस्थित हुआ तो अपने साथ प्रसिद्ध चित्रकार हेना चक्रवर्ती की महात्माजी पर बनाई एक पेंटिंग और बुल्लेशाह  की  दरगाह, कसूर (पाकिस्तान) से लाए एक टॉय चरखे को भी भेंट किया.  मुझे अचरज हुआ कि सतगुरु माता जी ने उस चरखे को बच्चों की तरह ही चला कर अपने बाल सुलभ व्यवहार का परिचय दिया.
     अब जब मुझे सिएटल अपनी बेटी के पास आना था तो श्री वर्मा जी की मार्फत मिशन का एड्रेस मिला.  मैंने यहां आकर स्थानीय प्रमुख जी से संपर्क किया.  पहले तो मुझे लगा कि ऐसा मुझ में क्या है जो ये लोग मुझे तरजीह देंगे परंतु धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा कि ये तो किसी और मिट्टी के ही बने हैं. श्री  सोहन सिंह जी  उबी और अमित ओबेरॉय के व्यवहार से अब मैं इनके प्रति सहज होने लगा था और फिर डॉ अंजना-रजनीश, आरती-शरद तो ऐसे लगने लगे मानो मेरे ही बच्चे हो.  सभी तो प्यार और सेवा से आकंठ डूबे हुए हैं. इनकी इन्हीं बातों ने हमे इनके प्रति आकर्षित किया.  
      अमेरिका  की यह हमारी चौथी यात्रा है.  पिछली बार की यात्रा में हम पहले दिन से ही उस दिन का इंतजार रहता कि जब वापिस लौटना है और यह ही हमे ढाढस देता पर इस बार वापसी की तारीख हमें उदास कर रहीं हैं.
    अब हर रविवार को हम संगत में जाने लगे.  एक बार शामिल होकर अगली बार की संगत का इंतजार रहता है.  पिछले रविवार को मेरी पत्नी के अस्वस्थ होने की वज़ह से नहीं जा सके . मुझे याद है कि उस रात जब मेरी पत्नी दर्द  से कराह रहीं थीं तो हमारे निकट डॉ अंजना ही थी और अगले दिन लगातार हाल चाल पूछने वालों में आरती.  ये क्या रिश्ते हैं हम समझ नहीं पा रहे थे.
कुछ भी हो पर ये रिश्ते स्वार्थ के तो बिल्कुल भी नहीं थे. जो काम लाखों लोगों के शामिल होने वाले समागम नहीं कर पाया.  सिएटल में इनके समर्पण सेवा भाव ने कर दिया.  और एक देर रात जब मैं और मेरी पत्नी अचानक नींद खुलने की वज़ह से जगे थे तो हमने सामुहिक निश्चय किया कि जीवन भर प्रदर्शन खूब हो चुके अब स्व-दर्शन के लिए निरंकारी मिशन से जुड़ कर ज्ञान प्राप्त करें.  यह कोई भावुक फैसला नहीं था बल्कि सोच समझकर लिया गया सामुहिक निर्णय था. अपनी चर्चा के दौरान हमारी अनेक शंकाओं को डॉ अंजना ने दूर किया था जब हम उनके घर दो दिन रुके थे.
    न्यूयार्क आकर हमने स्थानीय प्रमुख पाल चेलानी जी से अपने निर्णय की जानकारी दी और उन्होंने संतोष माता जी से हमारे ज्ञान प्राप्ति की व्यवस्था की.  अभी भी कुछ सवालों का सिलसिला ज़हन में था पर यह क्या माता जी ने ज्ञान प्रदान करते हुए उन सवालों का ज़वाब स्वत: ही दे दिया.  हम दोनों पति-पत्नी नहीं जानते कि माता जी के द्वारा ज्ञान देने के बाद हम दोनों पति-पत्नी इतना चित्कार मार कर क्यों रोये थे.  शायद वह जीवन परिवर्तन के पदार्पण का एहसास था. 
  अब जीवन मे अपने 40 वर्षो  तक वकालत करने.  अनेक धार्मिक ग्रंथ पढ़ने, चारो वेदों के परायण यज्ञ करने,  चारों धाम की यात्रा करने का गरूर न होकर शांति प्राप्त करने के लिए शून्यता की अनुभूति है.  अब उसकी नहीं इसकी कृपा प्राप्त करने की इच्छा और कामना है. 
धन निरंकार जी. 
Ram Mohan Rai. 
Newyork,  USA. 
15.08.2022


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