Kartarpur Sb -a bridge of Peace and Harmony

*"करतारपुर साहब-दिलों को जोड़ने का सेतु"।*             हमेशा से श्री गुरु नानक देव जी महाराज के पवित्र  स्थल, जहां उन्होनें अपने 17-18 साल बिताए, के दर्शन करने का मन रहा है, परंतु वह पूरा नहीं हो सका । पर जब करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण हुआ तो लगा कि अब यह संभावना हो सकती है कि हम भी कभी गुरु महाराज के पवित्र स्थान पर जाकर  उन्हें नमन करें। पिछले महीने ही पंजाबी भाषा की मुल्तानी बोली के एक प्रसिद्ध कलाकार कमलनयन वर्मा जो कि  हमारे शहर पानीपत के ही हैं, करतारपुर साहब में दर्शन करने गए । वहां उनके जाने का प्रयोजन यह भी था कि वे वहां जाकर पकिस्तान जाकर  अपने बिछूड़े परिवार से   मिले तथा साथ-साथ धर्म लाभ भी कमाएं। उनके साथ हुई बातचीत ने भी मुझे प्रोत्साहित किया कि हमें भी कोशिश करके करतारपुर जाना चाहिए।  और यह मौका हमें दिया आगाज़ ए दोस्ती के साथी श्री नितिन मीटू ने जिसमें उन्होंने एक संदेश भेजा कि वे करतारपुर यात्रा वर्ष के अंतिम दिवस पर आयोजित करना चाहते हैं, ताकि इधर और उधर से सभी साथी इकट्ठे हो जो साथ मिलकर गुरु महाराज से प्रार्थना करें कि दोनों मुल्कों में शांति एवं मैत्री संबंध स्थापित हो। मैंने भी अपने अनेक साथियों को इस बारे में सूचित किया और आखिरकार हमारे 13  साथी तैयार हो गए।
 साथी तो और भी तैयार हो सकते थे परंतु यात्रा की पहली शर्त यह थी कि उनके पास भारतीय पासपोर्ट होना चाहिए। यद्यपि इस पासपोर्ट पर न तो पाकिस्तान ने कोई वीज़ा  देना था और न ही कोई अन्य तरह की एंट्री करनी थी। परंतु यह इस बात का डॉक्यूमेंट था  कि भारत सरकार हमें कहीं भी जाने के लिए प्रतिबंधित नहीं करती।
      लगभग 15 दिन पहले हम सभी साथियों ने अपना पासपोर्ट की प्रति, आधार कार्ड की कॉपी अपने साथी  नितिन  को भेजी और उन्होंने हम सबका रजिस्ट्रेशन करवा दिया। 3 दिन बाद ही हमें रजिस्ट्रेशन की सूचना भारत के विदेश मंत्रालय से प्राप्त हुई। तत्पश्चात लगभग एक सप्ताह बाद पुलिस वेरिफिकेशन हुई जिसमें सब कुछ ठीक पाए जाने पर हमें यात्रा से लगभग 3 दिन पहले यात्रा परमिट प्राप्त हो गया।
     हमारी यात्रा वर्ष के अंतिम दिन तय हुई थी। हम सभी साथी एक दिन पहले रात को ही अमृतसर पहुंच गए और हमारा वहां रुकने की व्यवस्था संत निरंकारी मिशन में हो गई। हम सुबह जल्दी ही  उठे और बॉर्डर पर जाने के लिए तैयार हो गए। लगभग 9:00 बजे तक हम डेरा बाबा नानक पहुंच गए, यह वह क्षेत्र है जो भारतीय सीमा में है। इसके बाद हमारी तमाम तरह की कागजात  और  हमारी फिजिकल जांच हुई जो सब कुछ लगभग एक घंटे तक संपन्न हो गई। इसके बाद ई रिक्शा में हमें पाकिस्तान बॉर्डर पर ले जाया गया, वहां पर भी इसी तरह से कुछ जांच हुई।  वहां की एंट्री फीस $20 है जो हमने जमा करवाई।  यदि कोई साथी पाकिस्तानी करेंसी भी एक्सचेंज करना चाहे तो वह ₹100 देकर ₹200 प्राप्त कर सकता था। यह सब कर हम दोबारा ई रिक्शा में बैठे और  कुछ दूरी पर पाकिस्तान बॉर्डर पर ले जाया गया और वहां से एक पाकिस्तानी बस में बिठा कर करतारपुर साहब गुरुद्वारा में  पहुंचे ।
     यह यात्रा कतई उबाऊ नहीं थी। अपितु  श्रद्धा और उत्साह  से भरी थी। बस में हमारे सहित तकरीबन 40 अन्य लोग भी थे। हम  गुरुद्वारा के मेन गेट पर पहुंचे तो वहां हमें बताया गया कि गुरुद्वारा में प्रवेश की क्या मर्यादा है? हम लोगों ने अपने अपने जूते- चप्पल  जोड़ाघर में  उतारे और फिर हम नंगे पैर गुरुद्वारे तक पहुंचे। सबसे आनंद का विषय है तो यह था कि मुश्किल से तीन चार मीटर के फासले पर ही गुरु नानक देव महाराज की समाधि भी थी और मजार भी। इनके दर्शन कर हमने गुरु नानक देव महाराज के कुआं जो पुराने ढंग के रहट से चलता था उसके भी दर्शन किए और वहां के अमृत को भी  प्राप्त किया। इसके बाद हम सब लोग गुरु नानक देव महाराज के अमरूद के बाग और खेत देखने  गए। हमारे लिए यह बहुत ही आनंद का विषय था और हम ऐसा महसूस कर रहे थे कि आज हम गुरु महाराज के आगोश में है।
जितनी तादाद यहां भारत से गए हुए यात्रियों की थी उससे कहीं भी कम पाकिस्तान से आए हुए लोगों की नहीं थी। बस फर्क  एक ही  था कि यहां से जाने वाले हिंदू अथवा सिख थे और वहां से आने वाले मुस्लिम। उन सब से मुलाकात करने पर एक बहुत ही आत्मीय भाव के दर्शन हुए और हमें ऐसा नही लगा ही कि हम किसी दूसरे देश की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। सब लोग आपस में खूब- खुशी से बातचीत कर रहे थे और एक दूसरे के देश के बारे में जानना चाहते थे। हम लोगों की भी इस दौरान तकरीबन 50- 60 नौजवान लड़के लड़कियों से बातचीत हुई तो हमने पाया कि वे सभी भारत में आना चाहते हैं  हम भी तो यही दुआ करते हैं कि भारत और पाकिस्तान में शांति एवं मैत्री संबंध स्थापित हुई यह पूरा वीज़ा फ्री बन जाए ताकि लोगों का इधर से उधर और उधर से इधर आना जाना प्रारंभ हो गए।  इसी दौरान हम लोगों ने वहां लंगर हॉल में जाकर लंगर छका और खाने के बाद हममें से अनेक साथी मार्केट में चले गए जो कि खासतौर पर इसी गुरुद्वारे में आने वाले यात्रियों के लिए बनाई गई है। सब लोगों ने वहां से अपने- अपने पसंद का सामान खरीदा। अब शाम के 4:00 बज गए थे। सूचना भी मिलने लगी थी अब वापस लौटने का समय आ गया है, और 4:00 बजने से कुछ मिनट पहले बहुत ही भारी मन से वापिस लौट आए। यह यात्रा रूहानियत से इंसानियत को जोड़ने का एक महान कदम है । हम उम्मीद करते हैं कि आगामी बरसों में हजारों लोग इस यात्रा पर जाएंगे और गुरु महाराज जिन्होंने "मानस की जात ,एक ही पहचानवे"  का संदेश दिया था उनकी पावन धरती के दर्शन करेंगे।
राम मोहन राय,
आगाज़ ए दोस्ती यात्रा,
करतारपुर साहब,पाकिस्तान ।
01.01.2023

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