Master Nand Lal-Panipat ke Buzurg

 


*पानीपत के बुज़ुर्ग-मास्टर नंद लाल*   

         श्री नंदलाल(मास्टर जी) का जन्म बेशक पानीपत में नहीं हुआ परंतु उनका संपूर्ण कार्यस्थल यह शहर ही रहा है । भारत विभाजन के बाद  ही वे पानीपत आए और यहीं बस गए। उन्होंने अपने कार्यों से  वह अनूठा काम किया जिसकी अपेक्षा उनके गुरु महात्मा गांधी उनसे करते थे।

     मास्टर  जी का जन्म 1887 में गांव मघियाना , जिला झंग, पंजाब वर्तमान पाकिस्तान में पुत्र श्री कालाराम, माता श्रीमती रामी बाई के घर हुआ था।  इनके पिता फाजिल्का जिला फिरोजपुर में अर्जी नवीस थे।

   मास्टर जी जब कुल 12 साल के थे तो उनके पिता का निधन हो गया और उनका पालन पोषण  उनकी माता रामी बाई ने किया।

      सन 1904 में इन्होंने सी. जी. हिंदू हाई स्कूल झंग से मैट्रिक परीक्षा पास की तथा इसके बाद डिप्टी कमिश्नर 

लायलपुर के कार्यालय में क्लर्क की नौकरी करने लगे। दफ्तर का वातावरण इमानदाराना  और खुशनुमा नहीं था। इसलिए वे वहां ज्यादा नहीं टिक सके और त्यागपत्र देकर भलवाल में अर्जी नवीस का काम करने लगे।

      मास्टरजी जन्मजात कलाकार थे और इस कला का सदुपयोग उन्होंने एक नाटक मंडली बनाकर किया जो जगह-जगह नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन करती। परिवार  इसे पसंद नहीं करता था। लेकिन मास्टर जी के लिए यह एक जुनून था। सन 1909 में  झंग के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं अखबार झंग के संपादक लाला बांकेलाल के संपर्क में आए। मास्टर जी ने केवल एक कलाकार थे अपितु एक बहुत अच्छे वक्ता भी थे। यह  वह समय था जब पूरे पंजाब में किसान आंदोलन चरम सीमा पर था।वे अपने जिले में होने वाले आम जलसो में जाने और पगड़ी संभाल जट्टा नज़्म बोल कर युवाओं में जोश भर देते और यही थी वह करवट   जिसने इस कलाकार को पेशेवर कलाकार बना दिया ।अब वे नाटकों के लेखक भी थे,निर्देशक भी और स्वयं पात्र भी। वे स्थान-  स्थान पर

राष्ट्रभक्ति से सारोबार नुक्कड़ नाटकों को प्रस्तुत करते। पुलिस  उनके पीछे  होती परंतु अपनी धुन के धनी मास्टर जी चकमा देकर अगले कार्यक्रम में पहुंच जाते। इन नाटकों में  वे निर्देशक भी थे जिसकी वजह से सभी उन्हें  मास्टर जी के नाम से पुकारते थे। सन् 1911 में मास्टर जी कस्बा 

भलवाल से जड़ावाला आबाद हो गए। वहां पर आपने अर्जी नवीस का काम शुरू किया परंतु काम में मन नहीं लगता था। पूरा दिलो-दिमाग तो सियासी रंग में रंग चुका था। इसी सिलसिले में आप हरिद्वार गए और वहां महात्मा गांधी की एक अनुयाई श्रीमती कान बाली का रौलट एक्ट के विरोध में हो रहे एक जलसे में भाषण सुना जिसका मास्टर जी के मन पर बहुत असर हुआ और अब मास्टर जी के जीवन की धारा ही बदल गई।  देहरादून से मंसूरी होते हुए महात्मा गांधी के दर्शन के लिए दिल्ली आए। तभी उन्हें पता चला कि 10 दिसंबर 1919 को पलवल रेलवे स्टेशन पर गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तारी के वक्त गांधी जी ने अपना एक संदेश अपने निजी सचिव भोला भाई देसाई और स्वामी श्रद्धानंद के जरिए जनता को भिजवाया। जिसे दिल्ली में यमुना नदी के किनारे एक सभा में सुनाया गया। इस संदेश में कहा था कि देश की आजादी का रास्ता जेल की तंग और अंधेरे रास्तों से गुजरता है। इस पैगाम को सुनने के बाद आपकी जिंदगी में भी इंकलाब आया और आपने वह रास्ता पा लिया जिसकी खोज में महात्मा गांधी के नेतृत्व में काम करने का अहद अपने मन ही मन में लिया था।

      अपने घर जड़ावाला पहुंचकर आपने अपने तमाम विदेशी कपड़ों को बाजार के चौराहे में आग के हवाले कर दिया और अपने हाथ से कते सूत से बने कपड़े को धारण करने का संकल्प किया। उन्होंने ऐलान किया कि वे न तो सर पर कोई पगड़ी बांधेगे न हीं पैरों में जूता, जब तक वह अपने मकसद में कामयाब न हो जाए। उन्होंने अनाज मंडी जड़ावाला में जलसा करने की घोषणा की परंतु तहसीलदार ने इसकी इजाजत यह कहकर न दी कि यह मंडी सरकारी भूमि पर है।पर इस परवाने को कौन रोक सकता था और उन्होंने अपना पहला जलसा जड़ावाला की श्मशान भूमि में रखा। डर के मारे जलसे में मौजूद लोग तो कम थे परंतु चारदीवारी और झाड़ियों के पीछे सैंकड़ों लोग उनके भाषण को सुन रहे थे। उनके भाषण का ऐसा असर हुआ कि जलसे के बाद जुलूस के रूप में महात्मा गांधी की जय के नारे लगाते हुए लोग उनके पीछे चलने लगे। लोगों के दिल में डर समाप्त हो गया। रोलेट एक्ट के खिलाफ अगले दिन पूरे जड़ावाला में हड़ताल रही और अगला जलसा सनातन धर्म मंदिर में किया गया जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। उन्होंने अपने भाषण में लोगों को गांधीजी के सत्याग्रह में शामिल होने का आह्वान किया।

       20 अप्रैल 1919 को होने और उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया। उन्हें डेढ़ साल की सजा सुनाई गई जबकि अन्य साथियों को 9 माह की ।

     आखिरकार मास्टर जी को अन्य साथियों के साथ 1 जनवरी 1920 को आम रिहाई के आदेशानुसार रिहा कर दिया गया।

      7 फरवरी 1921 को पुणे में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक में वे प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए और वापस आकर आपने  जड़ावाला में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। ओर ले पहले जनरल सेक्टरी बनाए गए और इस जिम्मेदारी को उन्होंने 18 साल तक निभाया।

      सन 1921 में आप जिला लायलपुर कमेटी के जिला महासचिव बने और पंजाब प्रदेश कमेटी के भी सदस्य रहे। बाद में आप जिला लायलपुर कमेटी के प्रेसिडेंट रहे और सन 1925 से 1957 तक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे  इस काल में उन्हें भारत के राजनेताओं मौलाना आजाद, वल्लभभाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू,

पट्टाभी सीता रमैया, सुभाष चंद्र बोस जैसे महान नेताओं के नेतृत्व में कांग्रेस में काम करने का अवसर मिला। बेशक उनकी माता रामी बाई कट्टर सनातन धर्मी थी परंतु उनके घर में 

सर्वधर्म समभाव का माहौल था। माहौल यह था कि जब भी मास्टर जी जेल जाते उनकी माता रामी देवी उनको तिलक लगाकर फूलों का हार पहनाकर विदाई देती और जेल यात्रा की अवधि में स्वयं जमीन पर ही सोती।

    3 अप्रैल 1928 को साइमन कमीशन के खिलाफ हड़ताल का ऐलान किया गया। इस हड़ताल का सबसे बड़ा असर जड़ावाला में था। इसी वर्ष अप्रैल महीने में छद्म देश में रहने वाले जनरल लाला केदारनाथ सहगल की अगुवाई में नौजवान भारत सभा की स्थापना की गई जिसकी एक इकाई  मास्टर जी की अगुवाई में जड़ावाला में बनाई गई । इस माध्यम से ये क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े और कांग्रेस कमेटी में वामपंथ के पैरोकार माने जाने लगे। 26 जनवरी 1929 को लाहौर में रावी नदी के तट पर ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव  पारित किया गया। जिसके ठीक 1 साल बाद 26 जनवरी 1930 को लाहौर में पहला स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए एक विशाल जनसभा आयोजित की गई। इन दोनों सभाओं में मास्टर जी सैकड़ों लोगों को ले गए।

     1930 से 1933 तक 3 वर्षों का दौर संघर्ष का था। 8 मार्च 1930 को गांधी जी ने नमक सत्याग्रह की घोषणा की। इस सत्याग्रह ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक नई जान डाल दी। नमक सत्याग्रह जो 8 अप्रैल से 14 अप्रैल तक चलना था  जड़ावाला में तो इसकी शुरुआत चक्र नंबर 21 में मास्टर जी ने 18 मार्च 1930 को ही शुरू कर दी थी ।उन्होंने अपने गांव में नमक कानून को तोड़ा और अपने साथ 150 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी दी। इसी अवधि में दोबारा सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हुआ। विदेशी वस्तुओं  संपूर्ण बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का अभियान आपके नेतृत्व में हुआ। मास्टर जी ने इस दौरान विदेशी कपड़ों, दवाइयों और शराब की दुकानों के आगे भी धरने दिए। अनेक बार उन्हें हिंसा का शिकार होना पड़ा परंतु उन्होंने अपनी अहिंसा को नहीं छोड़ा।

   3 जनवरी 1932 को कांग्रेस कमेटियां भंग कर दी गई और इनके स्थान पर डिक्टेटर नियुक्त कर दिए गए ताकि पार्टी का संचालन सुचारु रुप चलता रहे ।जड़ावाला में मास्टर जी के नेतृत्व में लाला सालग राम, मास्टर उत्तमचंद, सरदार राजा सिंह, डॉक्टर कृष्ण लाल खेड़ा और लाला हंसराज समेत एक कमेटी बनाई गई।

      13 जनवरी 1938 को मास्टर जी की माता रामी बाई का स्वर्गवास हो गया। उनकी शव यात्रा पर पूर्ण शहर बंद था और उन्हें कंधा देने के लिए हिंदू और मुसलमान बराबर की संख्या में थे। अर्थी का जुलूस मंदिर में नमस्कार और मस्जिद में सजदा देते हुए आगे बढ़ा। बेशक वह शव यात्रा थी परंतु ऐसा लगता था कि जैसे कांग्रेस की विशाल रैली चल रही हो। सन 1940 में महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की जिसमें 

वे प्रत्येक व्यक्ति से एक एफिडेविट भरवा कर अनुमति लेते थे। इस एफिडेविट को दायर करने वाले भी मास्टरजी प्रथम पंक्ति में थे।

     सन 1930 में पंडित जवाहरलाल नेहरु आपके गांव जड़ावाला में आए। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह यह था कि उन्होंने एक पुख्ता दरवाजे का नाम  ही नेहरू गेट रख दिया।

     इन तमाम संघर्षों में मास्टर जी के वे संघर्ष भी शामिल रहे जो उन्होंने पारिवारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत रूप से भी लड़े। जीवन में काफी नुकसान भी उठाए परंतु अपने मकसद से कभी नहीं डिगे। सन 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया था और ऐसे समय में मास्टर जी जगह-जगह प्रचार करते कि किसी भी प्रकार से ब्रिटिश शासन को न तो कोई चंदा दिया जाए और न ही कोई अन्य मदद । वे एक बहुत अच्छे कवि भी थे और उनका तखल्लूस        कंवर था। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लड़े गए सत्याग्रह में मास्टर जी जगह-जगह पर जलसों में अपनी कविता पढ़ते जिसकी कुछ पंक्तियां निम्नलिखित है :

    'आजादी की तमन्ना 

खेंच 

लाई जेलखाने में ,

      आबादी से मुकद्दर खेंच लाया 

     है वीराने में 

        तुझे भी नाज़ जल्लाथ ग़र 

तलवार पर अपनी,

          हमें भी लुत्फ आता है वतन 

   पर सर कटाने में,

वतन में शोर ओ गोगा है 

   आजादी लो आजादी लो,

कमर उठ तू भी जान दे दे 

   वतन आजाद कराने में 

  इस सत्याग्रह में उन्हें दो साल की सजा हुई। मास्टर जी सजा काटने के बाद 1941 में  वापस घर आए तो घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे । किराये के मकान का किराया देना भी दुर्लभ था और आखिरकार उन्होंने अपने कस्बा जड़ावाला को छोड़ अपने गांव 

मधियाना झंग में बसने का निश्चय किया। इस बात को कस्बा निवासी बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने अन्य मकान का इंतजाम किया और  मास्टर जी अपने परिवार सहित वहां रहने लगे। 8 अगस्त 1942 को बंबई कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए बंबई पहुंचे और गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। परंतु किसी भी तरह से बचते बचाते 11 अगस्त को जड़ावाला पहुंचे और यही पर 13 अगस्त 1942 को उन्हें गिरफ्तार कर डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के अंतर्गत जेल में डाल दिया। आंदोलन की समाप्ति पर मास्टर जी लगभग 3 वर्ष तक जेल की सजा काट कर वापस आए। इस आंदोलन में उनके पुत्र स्वराज दत्त भी गिरफ्तार हुए  और उन्हें 2 वर्ष तक की सजा हुई । 

        सन 1919 से 1930  तक लगभग 11 साल जेल में काटे ।1945 से 1947 का यह दौर संक्रमण का दौर था। संप्रदायिक ताकते उस देश को विभाजित करना चाहती थी जिसको एक करने के लिए मास्टर जी ने अपने जीवन को लगाया था । 15 अगस्त 1947 बेशक आजादी के जश्न का दिन था। परंतु यह विभाजन का दिन भी था। जिसने दिलों को तोड़ दिया था। 9 सितंबर 1947 को मास्टर जी अपने परिवार के साथ अपने कस्बे को छोड़कर अमृतसर आ गए और वहां से भी चलकर 1 नवंबर 1947 को पानीपत आकर आबाद हुए। पानीपत आकर भी उन्होंने अपने काम को जारी रखा एवं शरणार्थी सहायता समिति का गठन कर पाकिस्तान से आए पुरुषार्थी भाइयों को यहां बसाने का काम किया। 

मास्टर जी कांग्रेस में प्रगतिशील धडे के नुमाइंदे थे और उन्होंने उन्हीं विचारों को यहां सरअंजाम देने का काम किया। मास्टर जी का जो सबसे बड़ा काम था वह यह भी था कि उन्होंने महात्मा गांधी को सलाह दी कि पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों से आए बुनकर शरणार्थियों को पानीपत में इकट्ठा किया जाए ताकि वे यहां से गए पाकिस्तान बुनकरों का काम संभाल सकें। पाकिस्तान में हैदराबाद नाम का कस्बा था जिसके परिवार खड्डी का काम करते थे। पानीपत में मुस्लिम आबादी का एक बड़ा व्यवसाय था। यहां हैदराबादियों  की स्थापना में उनका योगदान एक वरदान साबित हुआ।

       मास्टरजी सादगी व ईमानदारी के प्रतीक थे। संविधान सभा (संसद) के सदस्य होने के बावजूद भी वे बहुत ही साधारणपन से अपना जीवन व्यतीत करते थे। सन 1952 में मास्टर जी करनाल विधानसभा क्षेत्र से पंजाब असेंबली के लिए निर्वाचित हुए। यद्यपि उनका क्षेत्र पानीपत था परंतु उनकी लोकप्रियता का यह पैमाना था कि पानीपत में चौधरी कृष्ण गोपाल दत्त तथा करनाल में उन्हें प्रत्याशी बनाया गया और वे भारतीय जनसंघ के डॉक्टर गोकुल चंद्र नारंग को भारी मतों से हराकर असेंबली में पहुंचे। सांप्रदायिकता  ताकतें हरदम उनके खिलाफ प्रचार करती रहती थी परंतु मास्टर जी ने केवल उनका मुकाबला किया अपितु एक संगठन बनाकर सांप्रदायिक ताकतों का पर्दाफाश किया ।अपने जीवन के 11 साल जेल में काटने के कारण उनका शरीर अस्वस्थ रहने लगा था। काफी ईलाज आज के बाद बावजूद भी कोई सुधार नहीं हो रहा था। इसी दौरान हरियाणा में हिंदी आंदोलन चल रहा था। जिसका विरोध कांग्रेस पार्टी कर रही थी। मास्टर जी ने भी अपनी विचारधारा को मजबूत रखते हुए इसका विरोध किया ।उनका शरीर क्षय होता जा रहा था परंतु उनके जीवन जीने की इच्छा अभी बाकी थी। वे चाहते थे कि स्वतंत्रता बेशक आ गई है परंतु स्वराज आना बाकी है और इसी के लिए वे हमेशा संघर्षरत रहे और आखिरकार 19 अप्रैल 1959 को 72 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया।

Ram Mohan Rai.

( Nityanootan Broadcast Service)

03.03.2023

संदर्भ : श्री राजेन्द्र पाल का लेख तथा श्री रवि कुमार द्वारा उपलब्ध विभिन्न प्रकाशित सामग्री एवम अखबार। 

(पानीपत के बुज़ुर्ग पुस्तक से उद्धरित)

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